88
ऐ गाज़ी ए गुफ़तार ज़रा थोडा सँभल,
ऐ गाज़ी ए गुफ़तार ज़रा थोडा सँभल,
माहौल में है तेरे छिपी तेरी अज़ल,
यलग़ार लिए है तेरी गुफ़्तार की बू,
ग़ीबत का नतीजा न हो चाकू का अमल.
اے غیبتی گفتار ، ذرا تھوڑا سنبھل
ماحول میں ہے تیرے ، چھپی تیری اجل
یلغار لئے ہے ، ترے گفتار کا پھل
غیبت کا نتیجہ نہ ہو ، چاقو کا عمل ٠
89
है बात कोई गाड़ी यूँ चलती जाए,
विज्ञान के युग में भी फिसलती जाए,
ढोती रहे सर पे, अवैज्ञानिक मिथ्या,
पीढ़ी को लिए माज़ी में ढलती जाए.
ہے بات کوئی گاڑی یوں چلتی جاۓ
وِگیان کے یُگ میں بھہی پِھسلتی جاۓ
ڈھوتی رہے سر پہ اَویگیانک مِتھیہ
نسلوں کو لئے ماضی میں ڈھلتی جاۓ
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इन रस्म रवायात की मत बात करो,
तुम जिंसी ख़ुराफ़ात की मत बात करो,
कुछ बातें हैं मायूब नई क़दरों में ,
मज़हब की, धरम व् ज़ात की मत बात करो.
ان رسم و روایات کی مت بات کرو
تم جنسی خرافات کی مت بات کرو
کچھ باتیں ہیں معیوب نی قدروں میں ،
مذہب کی ، دھرم ، ذات کی مت بات کرو ٠
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