Friday, October 28, 2016

Junbishen 762


क़तआत
ज़ीने बज़ीने


जो छोड़ के बरेली को पहुँचे हैं देवबंद ,
क़िस्तों में कर रहे हैं वह तब्दीलियाँ पसंद ,
बस थोड़े फासले पे है इंसानियत की राह ,
करते रहें सफ़र कि रहे हौसला बुलंद .

زینہ بزینہ 

وہ چھوڑ کے بریلی کو پہنچے ہیں دیو بند 
قسطوں میں کر رہے ہیں تبدیلیاں پسند 
بس تھوڑے فاصلے پہ ہے انسانیت کی راہ 
کرتے رہیں سفر ، کہ رہے حوصلہ بلند ٠



वादा तलब

नाज़ ओ अदा पे मेरे न कुछ दाद दीजिए ,
मत हीरे मोतियों से मुझे लाद दीजिए ,
हाँ इक महा पुरुष की है, धरती को आरज़ू ,
मेरे हमल को ऐसी इक औलाद दीजिए .


وعدہ طلب

ناز و ادا پہ میرے نہ کچھ داد دیجئے 
مت ہیرے موتیوں سے مجھے لاد دیجئے 
ہاں ! اک "مہا پروش " کی ہے دھرتی کو آرزو 
میرے شکم سے ایسی ، اک اولاد دیجئے ٠


काश 

तोहफ़ा पाने का हसीं एहसास होती ज़िंदगी ,
ज़िंदा रहने के लिए यूँ रास होती ज़िंदगी ,
नब्ज़ मंडलाती न हरदम यूँ बक़ा के वास्ते ,
धड़कने होतीँ न , पैहम सास होती ज़िंदगी .


کاش 

تحفہ پانے کا حسین ، احساس ہوتی زدگی 
زندہ رہنے کے لئے ، یوں راس ہوتی زندگی 
نفس منڈلاتی نہ ہردم یوں ، بقا کے واسطے 
دھڑکنیں ہوتیں ، نہ پیہم سانس ہوتی زندگی ٠ 
*

Thursday, October 27, 2016

xx


Junbishen 762


क़तआत 

मिठ्ठू मियाँ 


पढ़ते हो झुकाए हुए सर क़िस्सा कहानी,
अंजान जुबां में है लिखी देव की बानी ,
यूँ लूट के ले जाते हो अंबार ए सवाब ,
दर पे हैं अज़ाबों के ये हालात जहानी .

مٹھو میاں

پڑھتے ہو جھکاۓ ہوئے سر ، قصّہ کہانی ،
انجان زباں میں ہے لکھی ، دیو کی بانی ،
یوں لوٹ کے پا جاتے ہو ، انبار ثواب ،
در پہ ہیں عذابوں کے ، یہ حالت جہانی ٠ 


मुज़ब्ज़ब 

इकबाल बग़ावत लिए लगते हैं ग़ज़ल में,
डरते हैं, सदाक़त को छिपाए हैं, हमल में,
बातिन में हैं कुछ और, निभाए हैं खुद को,
जैसे थे मुसलमाँ नए, बुत दाबे बग़ल में .

مذبذب

اقبال بغاوت لئے ، لگتے ہیں غزل میں ،
ڈرتے ہیں ، صداقت کو چھاپے ہیں حمل میں ،
باطن میں ہیں کچھ اور ، نبھاۓ ہیں خدا کو ،
جیسے تھے مسلماں نیے ، بت دا بے بغل میں ٠ 



वहमों के क़ैदी 

कुछ लोग खुद में पाले हैं इक ऐसा जानवर ,
हर वक़्त खुद इन्हें ही जो घायल किया करे ,
दिखला के सींग इनको सवाब ओ अज़ाब की ,
कर जुंबिश ए हयात पे क़ायल किया करे .


وہموں کے قیدی 

کچھ لوگ خود میں پالے ہیں اک ایسا جانور 
ہر وقت خود انہیں ہی جو گھائل کیا کرے 
دکھلا کے سینگ انکو ثواب و عذاب کی 
ہر جنبش حیات پہ قائل کیا کرے

Wednesday, October 19, 2016

Junbishen 758

qataat

कुछ न समझे खुदा करे कोई 

हिन्दू के लिए मैं इक, मुस्लिम ही हूँ आखिर ,
मुस्लिम ये समझते हैं, गुमराह है काफ़िर ,
इंसान भी होते हैं, कुछ लोग जहाँ में ,
गफ़लत में हैं ये दोनों, समझाएगा 'मुनकिर';

قطعات 

ہندو کے لئے میں اک مسلم ہی ہوں آخر 
مسلم یہ سمجھتے، ہیں گمراہ ہے کافر 
انسان بھی ہوتے ہیں، کچھ لوگ جہاں میں 
غفلت میں ہیں یہ دونوں ، سمجھایگا منکر


ज़िन्दगी कटी

बन्ने का और संवारने का मौक़ा न मिल सका,
खुशियों से बात करने का मौक़ा न मिला सका,
बन्दर से खेत ताकने में ही ज़िन्दगी कटी,
कुछ और कर गुजरने का मौक़ा न मिल सका।

زندگی کٹی

بننے اور سنوارنے کا موقعہ نہ مل سکا 
خوشیوں سے بات کرنے کا ، موقعہ نہ مل سکا 
بندروں سے فصل ، بچانے میں کٹ گئی 
کچھ اور کر گزرنے کا، موقعہ نہ مل سکا ٠



बुख्ल(कृपण)

बन के बीमार लेट लेता हूँ,
मुंह पे चादर लपेट लेता हूँ,
ऐ शनाशाई१ तेरी आहट से,
अपनी किरनें समेट लेता हूँ।
१-परिचय

بخل

بن کے بیمار لیٹ لیتا ہوں 
منہ پہ چادر لپیٹ لیتا ہوں 
ایے شناسائی تیری آہٹ سے 
اپنی کرنیں سمیٹ  لیتا ہوں ٠

**************

Monday, October 17, 2016

Junbishen 757

قطعات 

कुछ न समझे खुदा करे कोई 

हिन्दू के लिए मैं इक, मुस्लिम ही हूँ आखिर ,
मुस्लिम ये समझते हैं, गुमराह है काफ़िर ,
इंसान भी होते हैं, कुछ लोग जहाँ में ,
गफ़लत में हैं ये दोनों, समझाएगा 'मुनकिर';

ہندو کے لئے میں اک مسلم ہی ہوں آخر 
مسلم یہ سمجھتے، ہیں گمراہ ہے کافر 
انسان بھی ہوتے ہیں، کچھ لوگ جہاں میں 
غفلت میں ہیں یہ دونوں ، سمجھایگا منکر

ज़िन्दगी कटी

बन्ने का और संवारने का मौक़ा न मिल सका,
खुशियों से बात करने का मौक़ा न मिला सका,
बन्दर से खेत ताकने में ही ज़िन्दगी कटी,
कुछ और कर गुजरने का मौक़ा न मिल सका।

زندگی کٹی

بننے اور سنوارنے کا موقعہ نہ مل سکا ،
خوشیوں سے بات کرنے کا ، موقعہ نہ مل سکا ،
بندروں سے فصل ، بچانے میں کٹ گئی ،
کچھ اور کر گزرنے کا، موقعہ نہ مل سکا ٠


बुख्ल(कृपण)

बन के बीमार लेट लेता हूँ,
मुंह पे चादर लपेट लेता हूँ,
ऐ शनाशाई१ तेरी आहट से,
अपनी किरनें समेट लेता हूँ।
१-परिचय

بخل

بن کے بیمار لیٹ لیتا ہوں ،
منہ پہ چادر لپیٹ لیتا ہوں ،
ایے شناسائی تیری آہٹ سے ،
اپنی کرنیں سمیٹ  لیتا ہوں ٠
**************

Friday, October 14, 2016

Junbishen 756


nazm 

वक़्त ए अजल 

ख़ामोश रहो, वक़्त अजल छेड़ न जाना ,
मत पढना पढाना, न कोई रोना रुलाना .
ठहरो, कि मुझे थोड़ा सा माज़ी में है जाना ,
बचपन की झलक, आए जवानी का ज़माना .

माँ बाप की शिफ्क़त, वो बुजुर्गों की मुहब्बत ,
झगड़े वो बहिन भाई के, वह प्यार की शिद्दत ,
दादी की तरफ़दारी, वो नानी की मुरव्वत ,
ख़ाला की तबअ की सी, मामूं की रिआयत .

स्कूल के दर्जात में, आला मैं बना था ,
आया जो जवाँ साल तो राजा मैं बना था ,
इक सुर्ख़ परीज़ाद का दूलह मैं बना था, 
क्या खूब हुवा नाना ओ दादा  मैं बना था ,

अब हल्का हुवा जाता हूँ, बीमार बदन से ,
छुट्टी हुई जाती है, अदाकार बदन से ,
मैं, मैं था बहुत दूर था, जाँदार बदन से ,
इस मैं ने बड़े ज़ुल्म किए यार बदन से .

 तोहफ़े में मिली ज़ीस्त की सौग़ात विदा हो ,
आलिम हुवा मैं सच का, ख़ुराफ़ात विदा हो ,
मातम न तमाशा हो, मेरी ज़ात विदा हो,
संजीदा निगाहों से,ये बारात विदा हो .

وقت اجل 
خاموش رہو ، وقت اجل چھیڑ نہ جانا
مت پڑھنا پڑھانا ، نہ کوئی رونا رلانا 
ٹھہرو کہ مجھے تھوڑا سا ، ماضی میں ہے جانا 
بچپن کی جھلک آے ، جوانی کا زمانہ 
ماں باپ کی شفقت ، وہ بزرگوں کی محبت 
جھگڑے وہ بہیں بھائی کے ، وہ پیار کی شدّت 
دادی کی طرف داری ، وہ نانی کی مروت 
خالہ کی طبع ماں سی ، وہ ماموں کی رعایت 
*
اسکول کے درجات میں اعلیٰ میں بنا تھا 
آیا جو جواں سال تو راجہ میں بنا تھا 
اک سرخ پری زاد کا دولہ می بنا تھا
کیا خوب ہوا ، نانا و دادا میں بنا تھا 
اب ہلکا ہوا جاتا ہوں بیمار بدن سے 
چھٹی ملی جاتی ہے اداکار بدن سے ٠ 
میں میں تھا بہت دور تھا ، نادر بدن سے 
*
تحفہ میں ملی زیست کی سوغات وداع ہو 
درپیش صداقت ہے ، خرافات وداع ہو 
ماتم نہ تماشہ ہو ، مری ذات وداع ہو 
سنجیدہ نگاہوں سے ، یہ بارات وداع ہو ٠ 

Friday, October 7, 2016

Junbishen 755

Nazm


ख़ुदकुशी 

ख़ुद कुशी जुर्म नहीं, उम्र के क़ैदी हैं सभी ,
मुझको आती है हँसी, आलम ए हैरत में कभी ,
रग पे, धड़कन पे, हुकूमत की इजारा दारी ,
अपनी सासों में भी, गोया है दख्ल ए सरकारी .

गर किसी का कोई एक चाहने वाला भी न हो ,
शर्म ओ ग़ैरत का, अगर एक नवला भी न हो ,
दर्द ए अमराज़ से जीने की सज़ा मिलती हो ,
एक लाचार को रहमों की, बला मिलती हो ,

बुज़दिली ये है कि, मर मर के जिए जाते हैं ,
है तो ज़िल्लत की, मगर सांस लिए जाते हैं .
मरना आसान नहीं है, ये बहुत मुश्किल है ,
वक़्त माकूल पर मर ले, वह बशर कामिल है. 

जिंदगानी पे अगर वाक़ई दिल से रो दे ,
जीना चाहें तो जिएन, वर्ना ज़िन्दगी खो दे .

कोढ़ी मफ़लूज ओ अपाहिज को चलो समझाएं ,
खुद कुशी करने की तरकीब, उन्हें बतलाएं ,
उनको बतलाएं, ज़मीं हद के उन्हें सहती है ,
ज़िन्दा लाशों से ज़मीं, पाक नहीं रहती है .


خود کشی 

خود جرم نہیں ، عمر کے قیدی تو نہیں
مجھکو آتی ہے ہنسی ، عالم حیرت میں کبھی 
رگ پہ ، دھڑکن پہ ، حکومت کی اجارہ داری 
اپنی ساسوں پہ بھی ، گویہ ہے دخل سرکاری ٠ 
*
گر کسی کا کوئی ، اک چاہنے والا ہی نہ ہو 
شرم و غیرت کا اگر ، ایک نوالہ بھی نہ ہو 
درد امراض سے ، جینے کی سزا ملتی ہو 
ایک لاچار کو ، رحموں کی بلا ملتی ہو
بزدلی یہ ہے کہ ، مر مر کے جے جاتے ہیں
ہے تو ذلّت کی ، مگر سانس لئے جاتے ہیں ٠ 
مرنا آسان نہیں ہے ، یہ بڑا مشکل ہے 
وقت معقول پہ مر لے ، وہ بشر کامل ہے ٠ 
*
زندگانی پہ اگر واقعی ، دل سے رو دے 
پھر تو بہتر ہے ، بار گراں ہستی کھو دے ٠ 
کوڑھی ، مفلوج و اپاہج کو ، چلو سمجھا یں 
خود کشی کرنے کی ، ترکیب انھیں بتلایں 
انکو سمجھا یں ، زمیں ہڑ کے انھیں سہتی ہے
زندہ لاشوں سے ، زمیں پاک نہیں رہتی ہے ٠ 

Monday, October 3, 2016

Junbishen 754


नज़्म

मुस्लिम राजपूतों के नाम

ख़ुद को कहते हो, गुलामान ए रसूले-अरबी1,
हैसियत दूसरे दर्जे के लिए हैं अजमी2,
तीसरा दर्जा हरब३, रखता है 'मुंकिर', हरबी.
और फ़िर दर्जा-ऐ-जिल्लत4 पे हैं हिन्दी मिस्कीं5,
बरतरी६ को लिए, मग़रूर हैं काबा के अमीं७,
सोच है कैसी तुम्हारी ? भला कैसा है यकीं ?

हज से लौटे हुए हाजी से हक़ीक़त८ पूछो,
एक हस्सास९ से कुछ, क़र्ब ए हिक़ारत पूछो।

है वतन जो भी तुम्हारा, है तुम्हें उसकी क़सम,
खून में पुरखो की धारा है ?तुम्हें उसकी क़सम,
नुत्फ़े१० की आन गवारा है? तुम्हें उसकी  क़सम,
ज़ेहन का कोई इशारा है ? तुम्हें उसकी क़सम,

अपने पुरखों की ख़ता क्या थी भला, हिदू थे ?
क़बले इस्लाम सभी, हस्बे ख़ुदा हिन्दू थे।
ज़ेब११ देता ही नहीं, पुरखो की अज़मत१२ भूलो,
उनको कुफ़्फ़र१३ कहो, और ये बुरी गाली दो।

क़ौमे होती हैं नसब14 की, कोई बुनियाद लिए,
अपने मीरास१५ से पाई हुई, कुछ याद लिए,
तुम बहुत ख़ुश हो, बुरे माज़ी१६ की बेदाद१७ लिए,
अरबों की ज़ेहनी गुलामी18 की, ये तादाद लिए।

अपने खूनाब19 की, नुत्फ़े की तहारत20 समझो,
जाग जाओ, नई उम्मत21 की ज़रूरत समझो।

अज़ सरे नव22, नया एहसास जगाना होगा,
इक नए बज़्म२३ का, मैदान सजाना होगा।
इक नई फ़िक्र24 का, तूफ़ान उठाना होगा,
मादरे हिंद में ही, काबा बनाना होगा।

राम और श्याम से भी, हाथ मिलाना होगा,
नानको-बुद्ध को, सम्मान में लाना होगा,
दूर तक माज़िए नाकाम25 में जाना होगा,
इस ज़मी का बड़ा इन्सान बनाना होगा।

१-मुहम्मद-दास 2-अरब गैर अरब मुस्लिम देशों को अजम कहते हैं ,वहां के रहने वालों को अजमी अर्थात गूंगा कहते हैं जोकि हीन माने जाते हैं .ठीक ऐसा ही हिंदू शब्द अरबों का दिया हुआ है जिसके माने अप शब्द हैं जिस पर कुछ लोग गर्व करते हैं .३-सभी गैर मुस्लिम देश को मुस्लिम हरब कहते हैं ।वहां के बाशिंदों को हरबी यानी हरबा (चल बाज़ी )करने वाला. ४- अपमानित श्रेणी ५-भारतीय भिखारी (ये हमारे लिए अरबियों का संबोधन है ) ६-श्रेष्टता -पीढी७-न्यास धारी ८-सच्चाई १०-शुक्र ,वीर्य ११-शोभा १२-मर्यादा १३-मूर्ति-पूजक १४ १५-दाय १६-अतीत १७-ज़ुल्म १८-मानसिक दासता 19-मर्यादित रक्त २०-पवित्रता २१-वर्ग २२-नए सिरे से २३-सभा २४-चिंतन २५-असफल २६-अत

 راجپوت ٹھاکروں کے نام

خود کو کہتے ہو غلامان رسول عربی 
حیثیت دوسرے درجے کی لئے ہو اجمی 
تیسرا درجۂ حرب رکھتا ہے 'منکر' حربی 
اور پھر درجۂ ذلّت پہ ہیں ہندی مسکیں 
برتری کو لئے مغرور ہیں کعبہ کے امیں 
آسماں کیسا تمہارا ہے، یہ کیسی ہے زمیں 

حج سے لوٹے ہوئے حاجی سے صداقت پوچھو 
ایک حسساس سے کچھ قرب حقارت پوچھو 
ہے وطن جو بھی تمہارا ، تمہیں ہے اسکی قسم 
خون میں پرکھوں کی دھارا ہے ، تمہیں اسکی قسم 
نطفے کی شان گورا ہے ؟ تمہیں اسکی قسم 
ذہن کا کوئی اشارہ ہے ، تمہیں ہے اسکی قسم 

اپنے پرکھوں کی خطا کیا تھی ، بھلا ہندو تھے 
قبل اسلام سبھی حسب خدا ، ہندو تھے 
زیب دیتا ہی نہیں ، پرکھوں کی عظمت بھولو 
انکو کفّار کہو اور یہ بری گالی دو ٠

قومیں ہوتی ہیں نسب کی کوئی بنیاد لئے 
اپنے پرکھوں کی بلندی کی ، کوئی یاد لئے
اپنے میراث میں پائی ہوئی کچھ یاد لئے 
تم بڑے خوش ہو ، برے ماضی کی بیداد لئے 
جبر کا بوجھ لئے ، ظلم کی فریاد لئے 
 عربوں کی ذہنی غلامی کی یہ تعداد لئے
اپنے خوں ناب کی ، نطفے کی طہارت سمجھو 
جاگ جاؤ نئی امّت کی ضرورت سمجھو ٠

اپنے میں اک نیا احساس جگانا ہوگا 
اک نئے بزم کا ، میدان سجانا ہوگا 
اک نئی فکر کا ، طوفان اٹھانا ہوگا 
مادر ہند میں ہی کعبہ بنانا ہوگا
رام اور شیام سے بھی ہاتھ ملانا ہوگا 
نانک و بدھ کو سممان میں لانا ہوگا 
دور تک ماضی ے ناکام میں جانا ہوگا 
اس زمیں کا بڑا انسان بنانا ہوگا ٠ ٠ 

*************