Saturday, September 29, 2012

रुबाइयाँ



रुबाइयाँ 



तहरीक ए सदाक़त हो दिलों में पैदा, 
तबलीग़  ए जिसारत हो दिलों में पैदा, 
समझा दो ज़माने को खुदा भी बुत है, 
फ़ितरत की अक़ीदत को दिलों में पैदा. 

मुझको क्या कुछ, समझा बूझा है तुमने, 
या अपने ही जैसा, जाना तुमने, 
मेरे ईमान में फ़र्क लाने का ख़याल, 
चन्दन पे है गोया, साँप पाला तुमने. 

फिर धर्म के पाखंड पे, भारत है रवाँ, 
खो दे न तवानाई, तरक़क़ी ये जवाँ, 
बढ़ चढ़ के दिमाग़ों में है मज़हब की अफ़ीम, 
हुब्बुल बतानी का जज़्बा है कहाँ. 

दिल चाहता है, जिस्म थका, फिर हो जवाँ, 
खूँ नाब में, परियों की अदा, फिर हो जवाँ, 
कुछ ऐसा मुअज्ज़ा हो कि लौट आए जवानी, 
मय, जाम, सुबू, साग़र ओ साक़ी का जहाँ हो, 

रोज़ों का असर देखो कि कुछ काम आया, 
वह ईद के मौके पे लबे-बाम आया. 
आदाब की झंकार, सिवइयों के साथ, 
मुज्दः ! कि वह पलकों पे रखे जाम आया. 

Saturday, September 22, 2012

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ  



इंसान नहीफ़ों को दवा देते हैं, 
हैवान नफीफ़ों को मिटा देता हैं, 
है कौन समझदार यहाँ दोनों में? 
कुछ देर ठहर जाओ, बता देते हैं. 

यह मर्द नुमायाँ हैं मुसीबत की तरह,
यह ज़िदगी जीते हैं अदावत की तरह ,
कुछ दिन के लिए निस्वाँ क़यादत आए, 
खुशियाँ हैं मुअननस सभी औरत की तरह. 
*

सद-बुद्धि दे उसको तू निराले भगवन, 
अपना ही किया करता है पैहम नुक़सान, 
नफ़रत है उसे सारे मुसलमानों से, 
पक्का हिन्दू है वह कच्चा इन्सान. 
* 

जन्मे तो सभी पहले हैं हिन्दू माई! 
इक ख़म माल जैसे हैं ये हिन्दू भाई, 
इनकी लुद्दी से हैं ये डिज़ाइन सभी, 
मुस्लिम, बौद्ध, सिख हों या ईसाई. 

गुफ़्तार के फ़नकार कथा बाचेंगे, 
मुँह आँख किए बंद भगत नाचेंगे, 
एजेंट उड़ा लेंगे जो थोड़ी इनकम, 
महराज खफ़ा होंगे बही बंचेगे. 

Friday, September 21, 2012

रुबाइयाँ

रुबाइयाँ    


इक फ़ासले के साथ मिला करते थे,
शिकवा न कोई और न गिला करते थे,
क़ुरबत की शिद्दतों ने डाली है दराड़ ,
दो रंग में दो फूल खिला करते थे.
*

खामोश हुए, मौत के ग़म मैंने पिए,
अब तुम भी न जलने दो ये आंसू के दिए,
मैं भूल चुका होता हूँ अपने सदमें,
तुम रोज़ चले आते हो पुरसे को लिए.
*

माइल बहिसाब यूँ न होना था तुम्हें ,
मालूम न था अज़ाब होना था तुम्हें,
हंगामे-जवानी की मेरी तासवीरों,
इतनी जल्दी ख़राब होना था तुन्हें?
*

पंडित जी भी आइटम का ही दम ले आए,
तुम भी मियाँ परमाणु के बम ले आए,
लड़ जाओ धर्म युद्ध या मज़हबी जंगें ,
हम सब्र करेगे, उम्र कम ले आए.
*

तेरी मर्ज़ी पे है, मै बे दाग मरूँ,
हल्का हूँ पेट का, सुबकी को चरुं,
'मुनकिर' को नहीं हज्म बहुत से मौज़ूअ.
गीबात न करे तू तो, मैं चुगली न करून, 
*

Saturday, September 15, 2012

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ

औकात बदलते हैं, बदलतीं सूरत, 
अहकाम इलाही में हो कैसे हुज्जत, 
खैरात, ज़कात, फ़ितरा तब किसको दें, 
जब हों सभी खुश, सभी बा गैरत. 

किस बात पे यूँ गाना बजाना छोड़ा,
नाराज़ हुए, आब ओ दाना छोड़ा,
कुछ सुनने सुनाने की क़सम भी खली,
इक हिचकी ली और सारा ज़माना छोड़ा.
*

आवाज़ मुझे आखिरी देकर न गए,
आवाज़ मेरी आखिरी लेकर न गए,
बस चलते चलाते ही जहाँ छोड़ दिया,
अफ़सोस कि समझा के, समझ कर न गए. 
*

होते हुए पुर अम्न ये हैबत में ढली, 
लगती है ख़तरनाक मगर कितनी भली,
है ज़िन्दगी दो चार दिनों की ही बहार,
ये मौत की हुई , जो फूली न फली.
*

वह करके दुआ सबके लिए सोता है,
खिलक़त के लिए तुख्म -समर बोता है,
तुम और सताओ न मियां मुनकिर को,
मासूम की आहों में असर होता है.
*

Friday, September 14, 2012

Rubaiyan -13


रुबाइयाँ  

क्यों सच के मज़ामीन यूँ मल्फूफ़ हुए, 
फ़रमान बजनिब हक, मौकूफ हुए, 
इंसान लरज़ जाता है गलती करके, 
लग्ज़िश के असर में खुदा मौसूफ़ हुए. 

ग़ारत हैं इर्तेक़ाई मज़मून वले, 
अज़हान थके हो गए, ममनून वले,
साइन्स के तलबा को खबर खुश है ये, 
इरशाद हुवा "कुन" तो "फयाकून"वले,

काफ़िर है न मोमिन, न कोई शैताँ है, 
हर रूप में हर रंग में यही इन्सां है, 
मज़हब ने, धर्म ने, किया छीछा लेदर, 
बेहतर है मुअतक़िद नहीं, जो हैवाँ है. 

तुम अपने परायों की खबर रखते थे, 
हालात पे तुम गहरी नज़र रखते थे, 
रूठे  हों कि छूटे हों तुम्हारे अपने, 
हर एक के दिलों में, घर रखते थे. 
* 

बेयार ओ मददगार हमें छोड़ गए, 
कैसे थे वफ़ादार हमें छोड़ गए, 
अब कौन निगहबाने-जुनूँ होगा मेरा, 
लगता है कि घर बार हमें छोड़ गए. 

Saturday, September 8, 2012

रुबाइयाँ



रुबाइयाँ  

गफ़लत थी मेरी या कि तुम्हारी जय थी.
ग़ालिब थी मुरव्वत जो अजब सी शय थी,
तुम पर था चढ़ा जोश तशद्दुद का खुमार,
दो जाम भरे सुल्ह के, मेरी मय थी.
*

ऐ गाज़ी ए गुफ़तार ज़रा थोडा सँभल,
माहौल में है तेरे छिपी तेरी अजल,
यलगार लिए है तेरी गुफ्तार की बू,
गीबत का नतीजा न हो चाकू का अमल.
*

मज़हब है रहे-गुम पे, दिशा हीन धरम,
आपस में दया भाव हैं नही है,न करम,
तलवार धनुष बान उठाए दोनों,
मानव के लिए पीड़ा हैं, इंसान के गम.
*

इन रस्म रवायत की मत बात करो,
तुम जिंसी खुराफात की मत बात करो,
कुछ बातें हैं मायूब नई क़दरों में ,
मज़हब की, धरम ओ ज़ात की मत बात करो.
*

आओ कि लबे-क़ल्ब, खुदा को ढूंढें,
रूहानी दुकानों में, वबा को ढूंढें,
क्यूं कौम हुई पस्त सफ़े अव्वल की?
मज़हब की पनाहों में ख़ता को ढूंढें.
*

Friday, September 7, 2012

रुबाइयाँ

रुबाइयाँ  



दोज़ख से डराए है मुसलसल मौला,
जन्नत से लुभाए है मुसलसल मौला,
है ऐसी ज़हानत कि ज़हीनो को चुभे ,
हिकमत को जताए है मुसलसल मौला,.
*

बस गाफिल ओ नादर डरा करते हैं,
यारों से कहीं यार डरा करते हैं,
मत मुझको डरना किसी क़ह्हारी से,
मौला से गुनहगार डरा करते हैं.
*

कब तक ते रवादारियाँ जायज़ होंगी,
औरत की ये कुरबानियाँ जायज़ होंगी,
हर रोज़ तलाक़ और हल्लाला ओ निकाह?
कब तक ये कलाकारयाँ जायज़ होंगी,
*

शैतान को भड़काते, किसी ने देखा?
आवाज़ सुनी उसकी, किसी नें समझा?
आओ मैं दिखता हूँ अगर चाहो तो,
तबलीग के परदे में छिपा है बैठा.
*

ईसाई गनीमत हैं, बदल जाते हैं,
हालात के साँचे में ही ढल जाते हैं,
फ़ितरत के हुए कायल, साइंस शुआर,
मजलिस की जिहालत से निकल जाते हैं.
*