Friday, July 29, 2016

Junbishen 723



Muskurahaten

ध्यान का ज्ञान 

इक ध्यानी ध्यान में था , डूबा विधान में था ,
इच्छा थी उसको पाऊँ , फिर दुनिया को दिखाऊँ .
लेकिन बड़ी थी मुश्किल , होना ये ग़र्क ए कामिल 
कोई विचार आता , प्रयत्न टूट जाता .
उसने गुरु बनाया , जो उसके काम आया .

गुरुवर ने दक्षिना ली , भंग उसको फिर पिला दी .
उसको नशा जो आया , धीरे से खिलखिलाया .
बोला गुरु , मिला कुछ ? "हाँ और भी पिला कुछ "
जब पूरी चढ़ गई भंग ,शागिर्द रह गया दंग .
प्रसाद गुड का खाता , लड्डू के मज़े पता .

उठ कर वह नाच जाता ,फिर तालियाँ बजाता .
जिसको वो ध्यान करता , वह सामने गुज़रता .
भगवान् पा चुका था, मुक्ति कमा चूका था .
*

 دھیان کا گیان 

اک گیانی گیان میں تھا ، ڈوبا ندان میں تھا 
اچھا تھی اسکو پاؤں ، پھر دنیا کو دکھاؤں 

لیکن بڑی تھی مشکل ، ہونا یہ غرق کامل 
کوئی وچار آتا ، پریتن ٹوٹ جاتا 
اسنے گرو بنایا ، جو اسکے کام آیا 
گرو ور نے دکچھنا لی ، بھنگ اسکو پھر پلا دی 
اسکو نشہ جو آیا ، دھیرے سے کھلکھلایا 
جب پوری چڑھ گئی بھنگ ، شاگرد رہ گیا دنگ 
پرساد گڑ کا کھاتا  ، لدڈو کا مزہ پاتا 
اٹھ کر وہ ناچ جاتا ، پھر تالیاں بجاتا 
جسکو وہ دھیان کرتا ، وہ سامنے گزرتا 
بھگوان پا چکا تھا ، مکتی کما چکا تھا  

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Wednesday, July 27, 2016

Junbishen 722


Muskurahaten

मरसिया 

बाद मुद्दत के सही , आई क़ज़ा अच्छा हुवा .
थक गया था , चार कान्धों पर लदा अच्छा हुवा .

लुट गया बुड्ढे का कल माल ओ मतअ अच्छा हुवा .
था दुकान ओ घर पे ग़ालिब , मर गया अच्छा हुवा .

बेबसी के बार ए ज़हमत से तुम्हें छुट्टी मिली ,
था निज़ाई वक़्त , तुमने ली ख़ुला अच्छा हुवा .

रो रहे हो इस लिए , दुन्या का ये दस्तूर है ,
दिल में कहते हो मरा खूसट , चलो अच्छा हुवा .

मैं भटकती रूह हूँ ,उसके सितम से था मरा ,
आज निपटूंगा , कि मह्शर में मिला अच्छा हुवा .  

देख कर मय्यत को क्यों, मिलती है राहत क़ल्ब को ,
लगता है मुंकिर कि थोडा सा, मरा अच्छा हुवा .

*
مرثیہ 

بعد مدّت کے سہی ، آئ قضا ، اچّھا ہوا 
تھک گیا تھا، چار کاندھوں پر لدا اچّھا ہوا 

لٹ گیا بدڈھے کا کل مال و مطع اچّھا ہوا
تھا دکان و گھر پہ غالب ، اٹھ گیا اچّھا ہوا

بےبسی کے بار زحمت سے تمہیں چھٹی ملی 
تھا نزاعی وقت ، تمنے لی خلاء اچّھاہوا 

رو رہے ہو اس لئے ، دنیا کا یہ دستور ہے 
دل میں کہتے ہو ، گیا کھوسٹ ، چلو اچّھا ہوا

میں بھٹکتی روح ہوں ، اسکے ستم سے تھا مرا 
آج نپٹونگا کہ محشر میں ملا ، اچّھا ہوا

دیکھ کر میّت کو کیوں ملتی ہے راحت قلب کو 

لگتا ہے منکر بھی تھوڑا سا مرا اچّھا ہوا

Monday, July 25, 2016

Junbishen 721


MUSKURAHATEN

दुआ ए ग़ैर 

या इलाही हर बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
सब मरें मेरी बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
है ये बेहतर कि पड़ोसी के यहाँ हों सरफ़रोश ,
इन्क़लाबी हादसा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
न पुलिस वालों से मेरा, हो कभी साहब सलाम ,
और हिजड़ों की अदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
सौ बरस तक मैं मरीज़ों की दवा करता रहूँ ,
नातवानी ओ क़ज़ा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
मेरा धंधा है कुछ ऐसा , नर्क है पर्यावरण ,
देख , दैविक आपदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख .
हाय! ये मुंकिर है बैठा, राह में बन कर फ़क़ीर ,
इस दहेरिए की दुआ से तू मुझे महफ़ूज़ रख .

دعائے غیر 
یا الہی ہر وبا سے، تو مجھے محفوظ رکھ 
سب مریں میری بلا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 
ہے یہ بہتر ہوں پڑوسی، کے یہاں ہی سرفروش 
انقلابی حادثوں سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 
نہ پولیس والوں سے، میرا ہو کبھی صاحب سلام  
اور ہجڑوں کی ادا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 
سو برس تک میں، مریضوں کو دو دیتا رہوں 
نا توانی و قضا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 
میرا دھندھا ہے کچھ ایسا ، نرک ہے پریا ورن ،
دیکھ دیوک آپدا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 
ہاۓ ! یہ 'منکر' ہے بیٹھا ، راہ میں بن کر فقیر  
اس دہریہ کی دعا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 

*

Friday, July 22, 2016

Junbishen 719




बैटिंग ----

क्या बात है, अकेले ही 'मुंकिर' खड़े हो तुम?
लगता है इस समाज से कस के लड़े हो तुम।

तफसीर1,तर्जुमा2 कि हो तारीख, चट चुके,
जितने ज़मीं से निकले हो उतने गडे हो तुम।

इब्लीस3 की तरह ही, खुदी के नशे में हो,
आदम की वल्दियत है, ये किस पे पड़े हो तुम?

मज़हब हैं ग्यारह, बारह किसी पर तो पसीजो,
दिल नर्म है, दिमाग़ से कितने कड़े हो तुम।

कैच
लोगो ये कायनात4 तगय्युर पजीर5 है,
सदियों पुरानी रस्मे-कुहन6 पर अडे हो तुम।

ख़ुद अपनी रहनुमाई के काबिल नहीं हुए?
कब तक रहोगे गोद में। जल्दी बड़े हो तुम।

१-ब्याख्या २-अनुवाद ३-बड़ा शैतान ४-ब्रम्हांड ५-परिवर्तन शील ६-पुराणी रस्में
*

بیٹنگ 

کیا بات ہے ، اکیلے ہی 'منکر' کھڑے ہو تم
لگتا ہے اس سماج سے ، کس کے لڑے ہو تُم٠ 
تفسیر و ترجمہ کہ ہو تاریخ ، چٹ چکے 
جتنے زمیں سے نکلے ہو ، اتنے گڑے ہو تم ٠ 
ابلیس کی طرح ہی ، خودی کے نشے میں ہو  
آدم کی ولدیت مگر ، کس پہ پڑے ہو تم ٠ 
مذہب ہیں چار پانچ ، کسی پر پسیج جاؤ 
دل نرم ہے ، دماغ کے کتنے کڑے ہو تم ٠ 

اور کیچ 

لوگو ! یہ کاینات تغیّر پذیر ہے 
صدیوں پرانی رسم کہن پر اڑے ہو تم 
خود اپنی رہنمائی کے قابل نہیں ہوئے ؟
کب رہوگے گود میں ،جلدی بڑے ہو تم ٠ 

Wednesday, July 20, 2016

Junbishen 818

muskurahaten


पंडितो-मुल्ला -----

पंडितो-मुल्ला दो गहरे दोस्त थे इक चाल में,
खूब बनती, खूब छनती दोनों की हर हाल में,

एक दिन मुल्ला ये बोला , सुन कि ऐ पंडित महान!
बाँधता तू है ग़लत , पेशाब में बेचारे कान ?

सुन के पंडित ने कहा और वज़ू तेरा मियाँ,
गंध करता है कहाँ से ? साफ़ करता है कहाँ ?

तेरे मेरे आस्थाओं में ज़रा सा फ़र्क़ है,
मेरी कश्ती नर्क में है, तेरा बेडा ग़र्क़ है।

*

एक दिन पंडित ने छेड़ा , मुल्ला ए क़ल्ब ए सियाह, 
छींक पर अल्हम्द की, क्यों लिया करता है थाह ?
पास तेरे हर घडी अवसर की होती है दुआ ,
है कोई ऐसी दुआ जो बाद हो ख़ारिज रियाह ?
बोला मुल्ला हाँ , है न ऐ काशी नरेश ,
ऐसे मौके की दुआ होती है मेरी जय गणेश .


نہلے پر دہلا 

پنڈت و مللہ دو باہم، دوست تھے اک چال میں
خوب بنتی ، خوب چھنتی ، دونوں کی ہر حال میں ٠ 
ایک دن مللہ نے پوچھا ، سن کہ ائے پنڈت مہان
جاتا ہے پیشاب کو ، کیوں باندھتا ہے اپنے کان ؟
سن کے پنڈت نے کہا ، جیسے وضو تیرا میاں 
گندہ کرتا ہے کہاں سے اور دھوتا ہے کہاں ٠ 
*
ایک دن پنڈت نے چھیڑا، مللہ ائے قلب سیاہ 
جب ڈکاریں آتی ہیں ، علحمد کی لیتا ہے تھاہ 
پاس تیرے ہر گھڑی، اوسر کی ہوتی ہے دعا     
ہے کوئی ایسی دعا ، جو بعد ہو خارج ریاح 
بولا ملا ہاں ! ہے نہ ائے کاشی نریش 
ایسے موقعہ پر پڑھا کرتا ہوں میں جے جے گنیش ٠ 

*******

Monday, July 18, 2016

Jumbishe 817



हास्य 

सफ़ैद झूट
दाढ़ी है सन सफ़ैद औ मोछा सफ़ैद है,
धोती निरी  सफ़ैद औ कुरता सफ़ैद है,
नेता की टोपी जूता औ मोज़ा सफ़ैद है,
देख सखी झूट औ कितना  सफ़ैद है।

سفید جھوٹ 
داڑھی ہے سن سفید، او موچھا سفید ہے 
دھوتی نری سفید، او کرتا سفید ہے  
نیتا کی ٹوپی، جوتا و موجہ سفید ہے 
دیکھ سکھی ! جھوٹ، او کتنا سفید ہے ٠ 

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Friday, July 15, 2016

Junbishen 816

mizah

डर डरा डर डर, डर डर डर 


है बाढ़ का, क़हत का, बड़े ज़लज़ला का डर,

पर्यावरण से दूषित, आबो-हवा का डर,

है कैंसर से, एड्स से, सब को फ़ना का डर,

राहों पे चलते फिरते, किसी हादसा का डर,

साँपों का, बिछुओं का, मुए भेड़िया का डर,

नेता, पुलिस, लुटेरे, गुरू, माफिया का डर,

इन सब से बच बचा के भी, बाकी बचा रहा, 

शैतान, भूत, जिन्न ओ मलायक, खुदा का डर। 
***

mizah
ڈر ڈرا ڈر، ڈرڈرڈر 

ہے باڑھ کا ، قحط کا ، بڑے زلزلہ کا ڈر 
آلودگی میں ڈوبی ، آب و ہوا کا ڈر 
ہے کینسر سے ، ایڈس سے، برھتی قضا کا ڈر 
راہوں پہ چلتے پھرتے ، کسی حادثہ کا ڈر

سانپوں کا ،بچھوؤں کا ، موے بھیڑیا کا ڈر 
نیتا ، پولیس ، لٹیرے ، گرو ، مافیہ کا ڈر 
ان سب سے بچ بچا کے، ابھی باقی بچا ہے 
شیطان و بھوت و جن و ملایک ، خدا کا ڈر ٠ 

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Wednesday, July 13, 2016

Junbishen 815





ग़ुबार 

कुछ फ़ी सदी तरक्क़ी , हिदोस्तां की यारों ,
धर्मों ने खा लिया है , मज़हब ने पी लिया है .
लम्हे मशक़्क़तों के , बर्बाद हो रहे हैं ,
सजदों में जा रहे हैं , घन्टे बजा रहे हैं. 

ज्योतिष पे न्यूँ डाले , हर झूट को संभाले ,
तंजीमें बन रही हैं , ज़हरें उगल रही हैं .
टी वी के चैनलों पर ये राम भरोसे हैं ,
विज्ञानी थालियों में , अज्ञान परोसे हैं .

बनते जगत गुरु हैं , दुन्या में ज़र्द रू हैं . 
इनके शरण न जाओ, पहचान अपनी पाओ .
धर्मो का विष त्यागो , धर्मो से दूर भागो .
सच के गगन पे छाओ , विज्ञान को निभाओ .

धरती के कुछ नियम हैं , ये धर्म बस भरम हैं .
खुद अपने में बशर है ,सब खुद पे मुनहसर है .
मज़हब है एक साज़िश , समझो मेरी गुज़ारिश ,
बाहर से ये भले हैं , अन्दर से खोखले हैं .

धर्मी मेरे अमल हों , सच्चाई पर अटल हों ,
लालच न फ़ायदे हों ,डर हो न दबदबे हों .
हम ऐसे मुस्कुराएँ , मुजरिम न खुद को पाएँ 
हर चेहरे पर ख़ुशी हो , आबाद ज़िन्दगी हो .

गर अपना देश भारत धर्मों से पाक होता ,
पश्चिम हमारे आगे जूती की खाक होता .
होती गराँ न रोटी , छत और ये लंगोटी .
मय नोश हम भी होते , बा होश हम भी होते .

शीशे के घर में रहते , ये मुफ़लिसी न सहते .
तालीम होती लाज़िम , हम होते सब मुलाजिम .
घर बिजली मुफ़्त होती , हम को भी कार ढोती .
पाखंड न राज करता , सच सजता और संवरता .

दहकाँ शबाब पाता , मज़दूर गुनगुनाता ,
जोगी ये नर न बनता , मज़मून पर निखरता ,
न गुंडा राज होता , सच्चे पे ताज होता .
धर्मो ने मार डाला , मज़हब ने डाका डाला .

ऐ साकिनान भारत , थोड़ी सी ही जिसारत ,
है वक़्त जाग जाओ , मत झूट को निभाओ ,
अमरीका मुन्तज़िर है , योरोप को आस फिर है ,
तुम पूरे सो जो जाओ , बस धर्म को बचाओ ,
वह तुम को जाम कर दें , फिर से ग़ुलाम कर दें .

غبار  
کچھ فی صدی تراققی ، ہندوستاں ہی یارو 
دھرموں نے کھا لیا ہے ، مذہب نے پی لیا ہے ٠ 
لمحے مشققتوں کے برباد ہو رہے ہیں  
سجدوں لوگ غلطاں ، گھنٹے بجا کے مستاں ٠ 
جیوتش پہ نیوں ڈالے ، ہر جھوٹ کو سنبھالے 
دھرموں کا آگمان ہے ، آبھاس کا ندھن ہے ٠ 
ٹی وی کے چینلوں پر ، بھگوان کے بھروسے 
وگگیانی تھالیوں میں ، اگگیاں کو پر وسے ٠ 
کردار کچھ نہیں ہے ، معیار کچھ نہیں ہے 
بنتے جگت گرو ہیں ، دنیا میں زرد رو ہیں ٠ 
اب نہ کبیر ہوگا ، کوئی نہ ویر ہوگا 
مذہب ہے ایک سازش ، انسانیت پہ خارش٠ 
دھرتی کے کچھ نیم ہے ، یہ دھرمباس بھرم ہیں٠ 
*
خود اپنے پہ بشر ہے ، سب خود پہ منحصر ہے 
دین و دھرم نہ ہوتے ، پھوٹے کرم نہ ہوتے٠ 
انکے شرن نہ جاؤ ، پہچان اپنی پاؤ 
دھرموں زہر تیاگو ، مذہب سے دور بھا گو٠ 
دھرمی میرے عمل ہوں ، سچائی پر اٹل ہوں
لالچ نہ فائدے ہوں ، ڈر ہوں نہ دبدبے ہوں٠ 
ہم ایسے مسکرایں ، مجرم نہ خود کو پایں٠ 
گر اپنا دیش بھارت ، دھرموں سے پاک ہوتا
پشچم ہمارے آگے جوتی کی خاک ہوتا٠ 
ہوتی نہ دور روٹی ، دکھتی نہ یہ لنگوٹی 
اے سی میں ہم بھی سوتے ، سب کے فلیٹ ہوتے٠ 
مے نوش ہم بھی ہوتے ، با ہوش ہم بھی ہوتے 
شیشوں کے گھر میں رہتے ، یہ مفلسی نہ سہتے٠ 
یہ بجلی مفت ہوتی ، ہم کو بھی کار ڈ ھوتی 
تعلیم ہوتی لازم ، سب ہوتے پھر ملازم٠ 
*



Tuesday, July 12, 2016

Junbishen 814



नज़्म 
अपना सूरज

अपने सूरज में गर समाना है,
और कुछ कर के ही दिखाना है,

अपनी हस्ती को बर्क़१ पर रख के,
तर्क-लज़्ज़त२ का ज़ायका चख के,

अपने माहौल को सुलाते हुए,
अपने मीरास३ को भुलाते हुए,

अपने साए को नान्घ कर बढ़ जा,
मरहले४ डाक, मंज़िलें चढ़ जा।

ख़ुद को पहचान एक साज़ है तू ,
आपो दीपो भवः का राज़ है तू ।

तू जहाँ है वहां पे कोहरा है,
मुन्तज़िर5 तेरा हुस्ने ज़ोहरा६ है।

१-बिजली २-स्वाद त्याग ३-धरोहर ४-पडाव ५-एक सितारा



اپنا سورج

اپنے سورج میں گر سمانا ہے
اور دنیا میں جگمگانا ہے
اپنی ہستی کو برق پر رکھ کر
ترک لذّت کا ذائقہ چکھ کر
اپنے ماحول کو بھلاتے ہوئے
اپنی میراث کو سلاتے ہوئے
اپنے ساۓ کو نانگھ کر بڑھ جا
مرحلے ڈانک ، منزلہ چڑھ جا
خود کو پہچان ایک ساز ہے تو
" آپو دیپو بھوہ" کا راز ہے تو
تو جہاں ہے ، وہاں پہ کہرا ہے
منتظر تیرا حسن زوہرہ ہے ٠ 

Friday, July 8, 2016

jUNBISHEN 813




नज़्म

एहसास ए नदामत 


खंडहरों ममे नक़्श हैं माज़ी की शरारतें ,
लूटने में लुट गई हैं ज़ुल्म की इमारतें .

देख लो सफ़ीर ए हज उस सफ़र में क्या मिला ,
थोड़ा सा सवाब था , ढेर सी हिक़ारतें .

बात क़ायदे की है , अपने ही ज़ुबां में हो ,
मज़हबी किताब की तूल तर इबारतें .

है अज़ाब ए जरिया , ज़ालिमों की क़ौम पर ,
मिट गईं तमुद्दनी शाख की ज़ियारतें ,

क़ाफ़ला गुज़र गया , नक्श ए पा पे धुल है ,
पा सकी न रह गुज़र , सिद्क़ की हरारतें .

शर्म सार है ख़ुदा , उम्मतों पे बोझ है ,
शाज़िशी मुहीम वह थी , बेजा थीं जिसारतें 

نظم 

احساس ندامت 

کھنڈ ہروں میں نقش ہیں ماضی کی شرارتیں 
لوٹنے میں لٹ گئی ہیں ظلم کی عمارتیں .

دیکھ لو سفیر حج ، اس سفر میں کیا ملا ؟
تھوڑا سا ثواب تھا ،ڈھیر سی ہقارتیں .

بات قاعدے کی ہے ، اپنی ہی زبان میں ہو 
مذہبی کتاب کی طول تر عبارتیں .

ہے عذاب جاریہ ، ظالموں کی قوم پر 
مٹ گئیں تمدّنی شاخ کی زیارتیں .

قافلہ گزر گیا ، نقش پا پہ دھول ہے 
پا سکیں نہ رہ گزر، صدق کی حرارتیں 

شرم سار ہے خدا ، امتوں پہ بار ہے 
سازشی مہم یہ تھی ، بے جا تھیں جسارتیں .

Wednesday, July 6, 2016

Junbishen 812


नज़्म


कुदरत की चोलियाँ


विज्ञान के विरुद्ध, हैं पुजारी की बोलियाँ,
जो भर रहा है, दान के टुकड़ों से झोलियाँ,
जो बेचता है,जनता को धर्माथ गोलियाँ ,
छूती हैं जिनके पाँव को, निंद्रा में टोलियाँ,
जो मठ में दासियों की, उतारे हैं डोलियाँ,
हर रात है दीवाली, जिनकी रोज़ होलियाँ।

विज्ञान है मनुष्य के लक्छों में अग्र्क्षर,
वैज्ञानिकों को अपनी, कहाँ है कोई ख़बर,
जन्नत की आरजू है, न दोज़ख का कोई डर,
हुज्जत से, नफ़रतों से, सियासत से ख़ाली सर,
ईजाद कुछ नया हो, हैं इनकी ठिठोलियाँ,
क़ुदरत की खोलते हैं, नई रोज़ चोलियाँ।

نظم 

قدرت کی چولیاں

وگیان کے وردھ ہیں ، پجاری کی بولیاں
جو بھر رہے ہیں ، دان کے ٹکڑوں سے جھولیاں
جو بیچتے ہیں جنتا کو ، دھرمارتھ گولیاں 
چھوتی ہیں جن کے پاؤں کو ، نندرا میں ٹولیاں
جو مٹہ میں داسیوں کی بلاتے ہیں ڈولیاں
ہر رات ہے دیوالی ، تو ہر روز ہولیاں ٠ 

وگیان ہے منشیہ کے لکچھوں میں اگرسر
ویگیانکوں کو اپنی کہاں ہے کوئی خبر
جنّت کی آرزو ہے نہ دوزخ کا کوئی ڈر
ایجاد کچھ نیا ہو ، ہیں ان کی ٹھٹھولیاں
قدرت کی کهولتے ہیں ، نئی روز چولیاں ٠ 

Tuesday, July 5, 2016

JUNBISHEN 811



ईद की महरूमियाँ 1

कैसी हैं ईद की खुशियाँ, यह नक़ाहत की तरह,
जश्न क़र्ज़े की तरह, नेमतें क़ीमत की तरह।
ईद का चाँद ये, कैसी खुशी को लाता है,
घर के मुखिया पे नए पन के सितम ढाता है।

ज़ेब तन कपड़े नए हों तो ख़ुशी ईद है क्या?
फिकरे-गुर्बा के लिए हक़ की ये ताईद है क्या?
क़ौम पर लानतें हैं फ़ित्रा-ओ-खैरातो-ज़कात ,
ठीकरे भीख की ठंकाए है, उमरा की जमाअत।

पॉँच वक़तों  की नमाज़ें हैं अदा रोज़ाना,
आज के रोज़ अज़ाफ़ी है सफ़र दोगाना।
इसकी कसरत से कहीं दिल में ख़ुशी होती है,
भीड़ में ज़िन्दगी तनहा सी पड़ी होती है।

ईद के दिन तो नमाज़ों से बरी करना था,
छूट इस दिन के लिए मय-ब-लबी करना था।
नव जवाँ देव परी के लिए मेले होते,
अपनी दुन्या में दो महबूब अकेले होते।

रक़्स होता, ज़रा धूम धडाका होता,
फुलझडी छूटतीं, कलियों में धमाका होता।
हुस्न के रुख़ पे शरीयत का न परदा होता,
मुत्तक़ी १०,पीर, फ़क़ीहों११, को ये मुजदा१२, होता।

हम सफ़र चुनने की यह ईद इजाज़त देती,
फ़ितरते ख़ल्क़ १३ को संजीदगी फ़ुर्सत देती।
ईद आई है मगर दिल में चुभी फांस लिए,
क़र्बे १४ महरूमी लिए, घुट्ती हुई साँस लिए।

१-वनचित्ता २-कमजोरी ३-गरीबों की चिंता ४-ईश्वर 5-समर्थन ६-दान की विधाएँ ७-धनाड्य ८-ईद की नमाज़ को दोगाना कहते ९-धर्मं विधान १०-सदा चारी  11-धर्म-शास्त्री १३-खुश खबरी १3-जीव प्रवर्ति14-वंचित की पीड़ा

عید کی محرومیاں

کیسی ہیں عید کی خوشیاں ، یہ نقاہت جیسی 
جشن قرضے کی طرح ، نعمتیں قیمت جیسی 
عید کا چاند ، خوشی لےکے کہاں آتا ہے ؟
گھر کے مکھیہ پہ ، نئے پن کے ستم ڈھاتا ہے ٠

زیب تن کپڑے نئے ہوں ، تو خوشی عید ہے کیا ؟
فکر غربہ کے لئے ، حق کی یہ تائید ہے کیا ؟
قوم کی لعنتیں ہیں ، فطرہ و خیرات و زکات 
ٹھیکرے بھیکھ کے ، ٹھنکاتی ہے عمرہ کی جماعت ٠

پانچ وقتوں کی نمازیں ہیں ادا روزانہ 
آج کے روز اضافی ہے ، سفر دوغانا 
ان کی کثرت سے ، کہیں کوئی خوشی ملتی ہے ؟
اس کی ییاری میں ہی ، نصف صدی لگتی ہے ٠

آج کے دن تو نمازوں سے بری کرنا تھا 
چھوٹ اس دن کے لئے مے بہ لبی کرنا تھا 
نو جواں قیس و پری کے لئے میلے ہوتے 
محو انفاس میں ہر جوڑے اکیلے ہوتے ٠

ان چھئے جسم ، نئے لمس کی لذّت پاتے 
انتخبات نظر ، رتبۂ فطرت پا تے
حسن کے رخ پہ ، شریعت کا نہ پردہ ہوتا 
متقی ، پیر ، فقیہوں کو یہ مژدہ ہوتا ٠

ہم سفر چننے کی ، یہ عید اجازت دیتی 
فطرت خلق کو ، سنجیدگی فرست دیتی 
عید آئ ہے ، مگر دل میں چبھی پھانس لئے 
قرب محرومی لئے ، گھٹتی ہوئی سانس لئے ٠ 
*

Monday, July 4, 2016

Junbishen 810




ग़ज़ल 
मय्यत का मेरी आग या दरिया हो ठिकाना ,
तुम खाता बही लेके मियाँ क़ब्र में जन. 

पहले तो वज़ू और रुकुअ तक ही फसाना ,
मैं फंस जो गया तो मुझे उंगली पे नचाना .

इंसान का है ज़िक्र मवेशी का नहीं है ,
लाखों को हांकता है यहाँ फ़र्द ए सयाना .

है गिलमा के तोहफ़े की तलब गार इमामत ,
हुजरे में मसाजिद के न बच्चों को पढ़ना .

अपनी ख़ुशी के रोड़े हटा ले तो मैं चलूँ ,
जिन रास्तों पर चलने को कहता है ज़माना .

अल्ला मियां की ज़ात घसीटे है बहस में ,
दर अस्ल मेरी ज़ात है ज़ाहिद का निशाना 

غزل 

میّت کا میری آگ یا، دریہ ہو ٹھکانا 
تم کھاتا بہی لیکے، میاں قبر میں جانا .

پہلے تو وضو اور رقوع، تک ہی پھسانا 
میں پھنس جو گیا تو، مجھے انگلی پہ نچانا 

یہ ذکر ہے انساں ، مویشی کا نہیں ہے 
لاکھوں کو ہانکتا ہے، یہاں فرد سیانا 

ہے غلمه کے تحفہ کی، طلب گار امامت 
حجرے میں مساجد کے، نہ بچوں کو پڑھانا 

اپنی خوشی کے روڑے، ہٹا لے تو میں چلووں
جن راستوں پہ چلنے کو، کہتا ہے زمانہ 

اللہ میاں کی ذات، گھسیٹے ہے بحث میں 
منکر کی ذات ، ورنہ ہے زاہد کا نشانہ 

Friday, July 1, 2016

Junbishen 809

ग़ज़ल

है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है,
यकसूई चाहता है, दो पाट में फँसा है।

दिल जोई तेरी की थी, बस यूँ ही वह हँसा है,
दिलबर समझ के जिस को, तू छूने में लसा है।

बकता है आसमा को, तक तक के मेरी सूरत,
पागल ने मेरा बातिन, किस ज़ोर से कसा है।

सच बोलने के खातिर, दो आँख ही बहुत थीं,
अलफ़ाज़ चुभ रहे हैं, आवाज़ ने डंसा है।

कैसी है सीना कूबी? भूले नहीं हो अब तक,
बहरों का फ़ासला था, सदियों का हादसा है।

है वादियों में बस्ती, आबादी साहिलों पर,
देखो जुनून ए 'मुंकिर' गिर्दाब में बसा है.

*****
*बातिन=अंतरात्मा *सीना कूबी=मातम *बहरों=समन्दरों *गिर्दाब=भंवर

غزل 

ہے کیسی کشمکش یہ ، یہ کیسا وسوسہ ہے 
یکسوئی چاہتا ہے ، دو پاٹوں میں پھنسا ہے ٠ 

دل جوئی تیری کی تھی ، بس یوں ہی وہ ہنسا 
دلبر سمجھ کے جسکو ، تو چھونے میں لسا ہے ٠ 

تکتا ہے آسمان کو، تک تک کے میری صورت 
پاگل نے میرا باطن ، کس زور سے کسا ہے ٠ 

سچ بولنے کی خاطر، دو آنکھین ہی بہت تھیں 
الفاظ چبھ رہے ہیں ، آواز نے ڈنسا ہے ٠ 

کیسی ہے سینہ کوبی ، بھولے نہیں ہو اب تک ؟
صدیوں کا حادثہ ہے ، بحروں کا فاصلہ ہے ٠ 

ہے وادیوں میں بستی ، آبادی ساحلوں پر 
دیکھو جنون منکر ، گرداب میں بسا ہے ٠