34
बतलाई नई राह, पे चलना है तुम्हें,
सांचा है क़दामत का, न ढलना है तुम्हें,
ये दुन्या बहुत आगे निकल जाएगी,
इबहाम के आलम से निकलना है तुम्हें.
अब्हाम=वहम
بتلائی نئی راہ پہ چلنا ہے تمہیں
سانچے میں قدا مت کے نہ ڈھلنا ہے تمہیں
یہ دنیا بہت آگے نکل جاۓگی
ابہام کے عالم سے نکلنا ہے تمہیں
35
ज़ालिम के लिए है तेरी रस्सी ढीली,
मज़लूम की चड्ढी रहे पीली गीली,
औतार ओ पयम्बर को, दिखाए जलवा,
और हमको दिखाए, फ़क़त छत्री नीली.
ظالم کے لئے ہے تری رسسی ڈھیلی
مظلوم کی چڈھی رہےگیلی پیلی
اوتار پیمبر کو دکھاۓ جلوہ
اورہمکو دکھاۓ فقط چھتری نیلی ٠
36
है रीश रवाँ, शक्ल पे गेसू है रवाँ ,
हँसते हैं परी ज़ाद सभी, तुम पे मियाँ,
मसरूफ़ ए इबादत हो, मशक्क़त बईद,
करनी नहीं शादी तुम्हें? कैसे हो जवाँ.
बईद=दूर
ہے ریش رواں شکل پہ ، گیسو ہیں رواں
ہنستے ہیں پری زاد سبھی تم پہ میاں
مصروف عبادت ہو ، مشقّت سے بعید
کرنی نہیں شادی تھیں ؟ کیسے ہو جواں ٠
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