Tuesday, July 31, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 14 बड़ा सलाम



14

बड़ा सलाम

ज़िंदगी इतनी क़ीमती भी नहीं,
यार कि, जितना तुम समझते हो.
यह रवायत1 के नज़्र होती है,
आधी जगती है, आधी सोती है.

तन का ढकना, है पेट का भरना,
धर्म ओ मज़हब की घास को चरना.
यह कभी क़र्ब से गुज़रती है,
कभी काटे नहीं, ये कटती है.

इसका अपना कोई निशाना हो,
ज़िन्दगी जश्न हो, तराना हो.
इसको मौके पे, काम आने दो,
जंगे-हक़ पर, महाज़ पाने दो.

इसका अंजाम, बालातर आए,
आख़िरी वक़्त में निखर जाए.
सच एलान कर के मर जाओ,
आख़िरी वक़्त में संवर जाओ.

मियां 'मुंकिर'! ज़रा सा काम करो,
ज़िंदगी को बड़ा सलाम करो.

१-कही सुनी बातें २-पीडा ३-सच्ची लडाई ४-मोर्चा ५-श्रेष्ट

بڑا سلام
  
،زندگی اتنی قیمتی بھی نہیں
،یار کہ جتنا تم سمجھتے ہو
،یہ روایت کے نذر ہوتی ہے
دن کو جگتی ہے رات سوتی ہے٠ 

،تن کو ڈھکنا ہے ، پیٹ بھرنا ہے
،دین دھرموں کی گھاس چرنا ہے
،یہ سسکتے ہوئے گزرتی ہے
کبھی کاٹے نہیں یہ کاٹتی ہے ٠

 ،اسکا اپنا کوئی نشانہ ہو
،زندگی جشن ہو ترانہ ہو
،اسکو موقع پہ کام آنے دو
جنگ حق کا پیام پانے دو٠ 

،اسکا انجام بالا تر آے
،آخری وقت میں نکھر جاۓ
،سچ کا اعلان کر کے مر جاؤ  
،آخری وقت میں سنوار جاؤ

،میاں منکر ذرا سا کام 
زندگی کو بڑا سلام  کرو ٠ 

Monday, July 30, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 1३



13

शक बहक़ 

यक़ीं बहुत कर चुके हो यारो,
इक मरहला1 है, गुमाँ2 को समझो.
यक़ीं है अकसर तुम्हारी ग़फ़लत,
ख़िरद3 के आबे-रवां को समझो .

अक़ीदतें और आस्थाएँ,
यक़ीं की धुंधली सी रह गुज़र4 हैं.
ख़रीदती हैं यह सादा लौही5,
यक़ीं की नाक़िस दुकाँ को समझो .

१-पड़ाव २-अविश्वाश का उचित मार्ग ३-अक्ल ४-सरल स्वभाव ५-हानि करक

شک  بحق

،یقیں بہت کر چکے ہو یارو 
ہے مرحلہ اک گماں کو سمجھو ٠
،یقیں ہے اکثر تمہاری غفلت 
خرد کے آبِ رواں کو سمجھو ٠
،عقیدتیں اور آستھیں 
،یقیں کی دھندھلی سی رہ گزر ہیں 
،خریدتی ہیں یہ سادہ لوحی 
یقیں کی ناقص دکاں کو سمجھو ٠   

Sunday, July 29, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 12 दस्तक



12

दस्तक 

घूँघट तो उठा दे कभी, ऐ वहिदे मुतलक़1,
चिलमन पे खड़ा कब से हूँ, आमादए दस्तक.

बाज़ार तेरे ख़ैर की बरकत की लगी है,
अय्यार लगाए हैं दुकानें, जो ठगी है.

तुज्जार2 तेरी शक्लें हज़ारो बनाए हैं,
आपस में मुक़ाबिल भी हैं, तेवर चढ़ाए हैं.

अल्लाह बड़ा है, तू बड़ा है, तू बड़ा है,
शैतान है छोटा जो तेरे साथ खड़ा है.

कब तक यह फ़सानों की हवा छाई रहेगी,
माजी3  की सियासत की वबा छाई रहेगी.

सर पे है खड़ा वक़्त चढ़ाए हुए तेवर,
हो जाए न महशर4  से ही पहले कोई महशर.

अब सोच को बदलो भी क़दामत के पुजारी,
मुंकिर तभी संवरेगी ज़रा नस्ल तुम्हारी. 

१-एकेश्वर २- व्यापारी ३-भूत काल ४-प्रलय 

دستک

،گھُونگھٹ تو اُٹھا دے کبھی تو واحدِ مُطلعق 
بے چین یقیں ، دید کے در پہ ہے، بہ شدّت ٠

،بازار ترے خیر کی ، برکت کی لگی ہے
عیاّر لگاۓ ہیں دکانیں ، جو ٹھگی ہے ٠

،تجاّر تیری شکلیں ہزاروں بناۓ  
آپس میں مقابل ہیں یہ ، تیور چرھاۓ ٠

،الله بڑا ہے ، تو بڑا ہے ، تو بڑا ہے 
شیطان ہے چھوٹا جو مقابل میں کھڑا ہے ٠

،کب تک یہ فسانے ، یہ ہوا چھائی رہیگی 
ماضی کی سیاست کی وبا چی رہیگی ٠

،سر پہ ہے کھڑا وقت ، چرھاۓ ہوئے تیور 
ہو جاۓ نہ محشر سے ہی پہلے کوئی محشر ٠ 

،اب سوچ کو بدلو بھی قیامت کے پجاری 
منکر تبھی سنوریگی ذرا نصل تمہاری ٠

Saturday, July 28, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 11 अपील


11

अपील

लिपटे-लिपटे सदियाँ गुज़रीं, वह्म की इन मीनारों से,
मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठ और दरबारी दीवारों से,
अन्याई उपदेशों से, और कपट भरे उपचारों से,
दोज़ख़, जन्नत की कल्पित, अंगारों,उपहारों से.

बहुत अनोखा जीवन है ये, इन पर मत बरबाद करो,
माज़ी के हैं मुर्दे ये सब, इनको मुर्दाबाद करो,
इनका मंतर उनका छू, निज भाषा में अनुवाद करो.
निजता का काबा काशी, निज चिंतन में आबाद करो.



اپیل

،لِپٹے لِپٹے صدیاں گزریں، وهم کی ان دیواروں سے 
،مندر مسجد گرجا مٹھہ ، اور درباری دیواروں سے 
،اننیائی اُوپدیشوں سے اورکپٹ بھرے اُپچا روں سے
دوزخ جنّت کی کلپیت ، انگاروں اُپہا روں سے٠   


،بہت انوکھا جیون ہے یہ ، اِسکو مت برباد کرو
،ماضی کے مُردے ہیں یہ سب ، اِن کو مُردہ باد کرو 
اِنکا منتر، اُنکا چهو ، نِج بھاشا میں انواد کرو٠ 
نِجتا کا کعبہ کاشی ، نِج چیتن میں آباد کرو٠ 

Friday, July 27, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 10 तुम - - -



10

तुम - - -

ख़ुद को समझ रहे हो, कि रूहे रवाँ1 हो तुम,
ख़िलक़त2 ये कह रही है, कि उसपे गराँ हो तुम.

सब फ़ारिग़ ए सलात3 अभी तक अजाँ हो तुम,
हर सम्त है बहार,  शिकार खिजाँ4 हो तुम.

क्यूँ चाहते हो, अपना यक़ीं सब पे थोप दो,
है भूत आस्था का, वहीं पर जहाँ हो तुम.

फ़रदा5 की कोख में हैं, सभी हल छिपे हुए,
माज़ी6 सवार सम्त, मुख़ालिफ़7 रवाँ हो तुम.

सर जिस्म पर ज़रूर है, रूहों का क्या पता ?
सर का ख़याल पहले करो, नातवाँ8 हो तुम.

शिद्दत9 है, जंग जूई10, बेएतदाली11 है,
आपस में लड़ रहे हो, जहाँ इम्तेहाँ हो तुम.

महकूम12 गर हुए, तो रवा दारी13 चाहिए,
कुछ और ही लगे हो, जहाँ हुक्मराँ14 हो तुम.

कुछ ऐसे बन सको, कि तुम्हारी हो पैरवी,
दुन्या गवाह हो, कि उरूज ए जहाँ15 हो तुम.

'मुंकिर' जगा रहा है, उठो मर्तबा16 वालो,
इक्कीसवीं सदी में, जहाँ है, कहाँ हो तुम.

1-प्राण-वर्धक २- अन्तर राष्ट्रिय जन समूह ३-नमाज़ अदा कर चुकना 
४-पतझड़ ५-आनेवाला कल ६-अतीत ७-उल्टी दिशा ८ -कमजोर
 ९-उग्रता १०-युद्धाभियान ११-असंतुलन १२-आधीन 
१३ -उचित बर्ताव १४-शाशक१५- दुन्या ऊपर १६-श्रेरेष्ट

تُم 

،خود کو سمجھ رہے ہو ، کہ روحِ رواں ہو تم 
خِلقت یہ کہ رہی ہے کہ ، اُس پہ گراں ہو تم ٠

،سب فارغِ صلات ، ابھی تک اذاں ہو تم 
ہر سمت ہے بہار ، شِکار خزاں ہو تم ٠

،کیوں چاہتے ہو اپنا یقیں سب پہ تھوپ دو 
ہے بھوت آستھا کا وہیں پر، جہاں ہو تم ٠

،فردہ کے کوکھ میں ہیں ، سبھی حل چُھپے ہوئے 
ماضی سوار ، سمت مخالف رواں ہو تم ٠

،سر جِسم پر ضرور ہے روحوں کا کیا پتہ 
اِس کا خیال پہلے کرو، ناتواں ہو تم ٠

،شِدّت ہے ، جنگ جوئی ہے ، اعتدالی ہے 
آپس میں لڑ رہے ہو ، جہاں امتحاں ہو تم ٠

،محکوم جب ہوئے تو ، روا داری چاہئے 
کچھ اور ہی لگے ہو ، جہاں حکمراں ہو تم ٠

،کچھ ایسے بن سکو ، کہ تمہاری ہو پیروی 
دُنیا گواہ ہو کہ ، عروجِ جہاں ہو تم ٠

،منکر جگا رہا ہے اُٹھو ! اہل مرتبہ 
اِکیسویں صدی میں جہاں ہے ، کہاں ہو تم ٠   

Thursday, July 26, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 9 मैं ----



9

मैं ----

सदियों की काविशों1 का, ये रद्दे अमल2 हूँ मैं,
लाखों बरस के अज़्म मुसलसल3 का फल हूँ मैं.

हालाते ज़िंदगी ने मुझे नज़्म4 कर दिया,
फ़ितरत5 के आईने में, वगरना ग़ज़ल6 हूँ मैं.

मेयारे आम7 होगा, कि जिसके हैं सब असीर8,
हस्ती है मेरी अपनी, ख़ुद अपना ही बल हूँ मैं.

उक़दा कुशाई9 मेरी, ढलानों पे मत करो ,
थोड़ा सा कुछ फ़राज़10 पे, आओ तो हल हूँ मैं.

ये तुम पे मुनहसर है, मुझे किस तरह छुओ,
पत्थर की तरह सख़्त, तो कोमल कमल हूँ मैं.

मुझ को क़सम है, रुक्न हुक़ूक़ुल इबाद11 की,
ज़मज़म12 सा पाक साफ़ हूँ, और गंगा जल हूँ मैं.

इंसानियत से बढ़ के, मेरा दीन कुछ नहीं,
सच की तरह ही अपनी, ज़मीं पर अटल हूँ मैं.

मस्लेहत पसंद13 हूँ, न दार व् रसन14 का खौ़फ़,
मैं हूँ खुली किताब, बबांगे दुहल15 हूँ मैं.

मैं कुछ अज़ीम लोगों को, सजदा न कर सका,
उनकी ही पैरवी में, मगर बा अमल हूँ मैं.

'मुंकिर' को कोई ज़िद है, न कोई जूनून है,
लाओ किताब ए सिद्क़16 तो देखो रेहल17 हूँ में. 

१-प्रय्तानो २-प्रतिक्रया ३-लगातार उत्साह ४-शीर्षक अधीन कविता ५-प्रकृति ६-प्रेमिका से वरत्लाप ७-मध्यम अस्तर ८-कैद ९-गाठे खोलना १०-ऊंचाई ११-बन्दों का अधिकार १२-मक्के का जल १३-दोगुला 14 फाँसी 
१5-डंके की चोट १6-सच्ची किताब १7-किताब पढने का स्टैंड

میں

،صدیوں کی کاوِشوں کا یہ رد عمل ہوں میں 
اک نقطہء حیات کی نوبت ، اجل ہوں میں ٠

،حالات زندگی نے ، مجھے نظم کر دیا 
فطرت کے آئینے میں ، مسلسل غزل ہوں میں ٠ 

،میعار عام ہوگا کہ ، جسکے ہیں سب اسیر 
ہستی ہے میری اپنی ، کہ خود اپنا بل ہوں میں ٠

،عقدہ کشائی میری ، ڈھلانوں پہ مت کرو 
تھوڑا سا کچھ فراز پہ ، آؤ تو حل ہوں میں ٠

،مجھکو قسم ہے ، رکن حقوق العباد کی 
زم زم سا پاک صاف ہوں ، تو گنگا جل ہوں میں ٠

،انسانیت سے بڑھ کے مرا دین کچھ نہیں 
سچ کی طرح ہی اپنی ، زمیں پر اٹل ہوں میں ٠

،جینے کا صرف آج کو ، الہام ہے مجھے 
گزرا ہوا نہ کل ہوں ، نہ آنے کا کل ہوں میں ٠ 

،دیر و حرم کا خوف ، منافق کی خو نہیں 
میں ہوں کھلی کتاب ، ببانگ دھل ہوں میں ٠

،میں کچھ عظیم لوگوں کو ، سجدہ نہ کر سکا 
انکی ہی پیروی میں ، مگر با عمل ہوں میں ٠

،منکر کو کوئی ضد ہے نہ کوئی جنون ہے 
لاؤ کتاب صِدق تو ، دیکھو رِحل ہوں میں ٠  

Wednesday, July 25, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 8 राज़ ए ख़ुदावन्दी



8

राज़ ए ख़ुदावन्दी

क़ैद ओ बंद तोड़ के निकलो, ऐ तालिबान ए फ़रेब1,
तुम हो इक क़ैदी, मज़ाहिब के ख़ुदा ख़ानों के.
हम तुम्हें राज़ बताते हैं, ख़ुदा वन्दों के,
साकितो,व् सिफ़्र व् नफ़ी,अर्श के बाशिंदों के.

यह तसव्वर में जन्म पाते हैं,
बस कयासों में कुलबुलाते हैं.

चाह होते हैं यह, समाअत की,
रिज्क़ होते हैं यह, जमाअत की.

यह कभी साज़िसों में पलते हैं,
जंग की भट्टियों में ढलते हैं.

डर सताए तो, यह पनपते हैं,
गर हो लालच तो, यह निखरते हैं.

यह सुल्ह नामाए फ़ातेह10 भी हुवा करते हैं,
पैदा होते हैं नए, कोहना11 मरा करते हैं.

हम ही रचते हैं इन्हें, और कहा करते हैं,
सब का ख़ालिक़12 है वही, सब का रचैता वह है.

१-छलावा की चाह वाले २-मौन ३-शुन्य ४-अस्वीक्र्ती५-कल्पना ६-अनुमान ७-श्रवण शक्ति 
८-भोजन ९-टोली १०-विजेता की संधि ११-पुराना १२-जन्म -दाता

رازِ خدا وندی

،اپنے خولوں سے نکل آؤ نئی دنیا میں
،تم ہو اک قیدی مذاھب کے خدا خانوں کے
،میں تمہیں شوشے بتاتا ہوں خدا وندوں کے
ساکِت و صِفر نفی ، عرش کے باشندوں کے٠ 

،یہ تصوّر میں جنم پاتے ہیں
،بس قیاسوں میں کلبلاتے ہیں
،چاہ ہوتے ہیں یہ سماعت کی
رزق ہوتے ہیں یہ جماعت کی٠ 

،یہ کبھی سازشوں میں پلتے ہیں
،جنگ کی بھٹیوں میں ڈھلتے ہیں
،ڈر ستاۓ  تو یہ پنپتے ہیں،
گر ہو لالچ تو یہ نکھرتے ہیں٠ 

،یہ صلح نامہء فاتح بھی ہوا کرتے ہیں
،پیدا ہوتے ہیں نئے ، کہنہ مرا کرتے ہیں
،ہم ہی رچتے ہیں انہیں اور کہا کرتے ہیں
سب کا خالق ہے وہی ، سب کا رچیتا وہ ہے ٠ 

Tuesday, July 24, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 7 शक के मोती



7

शक के मोती

शक जुर्म नहीं, शक पाप नहीं, शक ही तो इक पैमाना है,
विश्वाश में तुम लुटते हो सदा, विश्वाश में कब तक जाना है.

शक लाज़िम है भगवान व् , ख़ुदा पर जिनकी सौ दूकानें हैं,
अवतार ओ पयम्बर पर शक हो, जो ज़्यादः तर अफ़साने1हैं.

शक हो सूफ़ी सन्यासी पर, जो छोटे ख़ुदा बन बैठे हैं,
शक फूटे धर्म ग्रंथों पर, फ़ासिक़ हैं दुआ बन बैठे हैं.

शक पनपे धर्म के अड्डों पर, जो अपनी हुकूमत पाए हैं,
जो पिए हैं ख़ून  की गंगा जल, जो माले ग़नीमत3 खाए हैं.

शक थोड़ा सा ख़ुद पर भी हो, मुझ पर कोई ग़ालिब तो नहीं?
जो मेरा गुरू बन बैठा है, वह बदों का ग़ासिब तो नहीं?

शक के परदे हट जाएँ तो, 'मुंकिर' हक़ की तस्वीर मिले,
क़ौमों को नई तअलीम मिले,ज़ेहनों को नई तासीर मिले.

१-कहानी २- मिथ्य  ३-युद्ध में लूटी सम्पत्ति ४-विजई ५ -अप्भोगी ६-सत्य

شک کے موتی 

،شک جُرم نہیں ، شک پاپ نہیں ، شک ہی تو اِک پیمانہ ہے 
وِشواس میں تم لٹتے ہو صدا ، وِشواس میں کب تک جانا ہے ٠

،شک لازم ہے بھگوان و خدا پر ، جن کی سو دوکانیں ہیں 
اوتار و پیمبر پر شک ہو ، جو زیادہ تر فرزانے ہیں ٠

،شک ہو صوفی سنیاسی پر ، جو چھوٹے خُدا بن بیٹھے ہیں 
شک پھوٹے دھرم گرنتھوں پر فاسِق ہیں ، دُعا بن بیٹھے ہیں ٠

،شک پھوٹے دھرم کے اڈوں پر ، جو اپنی حکومت پاۓ ہیں 
جو پیے ہیں خون کی ندیوں کو ، جو مالِ غنیمت کھاۓ ہیں ٠

،شک تھوڑا سا خود پر بھی ہو ، مجھ پر کوئی غالب تو نہیں 
?جو میرا گرو بن بیٹھا ہے ، وہ بندوں کا غاصِب تو نہیں 

،شک کے پردے ہٹ جایں تو 'منکر' حق کی تصویر ملے 
قوموں کو نئی تعلیم ملے ، ذہنوں کو نئی تاثیر ملے ٠ 

Monday, July 23, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 6 ग्यारहवीं सदी की आहें



6

ग्यारहवीं  सदी की आहें

हमारे घर में घुसे, बस कि धड़धदाए हुए,
वो डाकू कौन थे? इन वादियों में आए हुए.

यक़ीन व् खौफ़, सज़ा और तमअ1 की तलवारें,
अजीब रब था कोई, उनको था थमाए हुए.

ख़ुदाए सानी2 बने हुक्मराँ,वज़ीर ओ सिपाह,
सितम के तेग़ थे, हर शख़्स में चुभाए हुए.

जेहाद उनकी बज़िद थी, लड़ो या जज़या  दो,
नहीं तो ज़ेह्नी ग़ुलामी, को थे जताए हुए.

दलाल उसके, रिया कारियों3 का दीन लिए,
दूकाने अपनी थे, हर कूंचे में सजाए हुए.

दोबारा रोपे गए हैं, वह शजर4 हैं 'मुंकिर',
महद5 से माँ के हैं, ज़ालिम उसे उठाए हुए.

१-लालच २-द्वतीय ईश्वर ३-ढोंगी ४-पेड़ ५-पालना


گیاروھیں صدی کی آہیں

،ہمارے گھر میں گھُسے ، بس کہ دھڑ دھاڑاے ہوئے 
وہ ڈاکو کون تھے ان وادیوں میں آے ہوئے ٠

،یقین و خوف و طمع اور سزا کی تلواریں 
عجیب رب تھا کوئی ، انکو تھا تھماے ہوئے ٠

،خداۓ ثانی بنے حکمراں ، وزیر و سپاہ 
ستم کی تیغ تھے ، ہر ذہن میں چُبھاۓ ہوئے ٠

،جہاد انکی بضد تھی ، لڑو کہ جزیہ دو 
وگرنہ ذہنی غُلامی کو تھے جتاے ہوئے ٠

،دلال ان کے ، ریا کاریوں کا مال لئے 
دکانیں اپنی تھے ، ہر کوچے میں سجاۓ  ہوئے ٠

دوبارہ روپے گۓ ہیں ، شجر وہ ہیں 'منکر' ٠
محدِ مادر سے  ہیں، ظالم اُسے اُٹھاۓ ہوۓ ٠

Sunday, July 22, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 4 सना1



4

सना1

तूने सूरज चाँद बनाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने तारों को चमकाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने बादल को बरसाया, होगा हम से क्या मतलब,
तूने फूलों को महकाया, होगा हम से क्या मतलब.

तूने क्यूं बीमारी दी है, तू ने क्यूं आज़ारी दी?
तूने क्यूं मजबूरी दी है, तूने क्यूं लाचारी दी?
तूने क्यूं महकूमी दी है, तूने क्यूं सालारी दी?
तूने क्यूं अय्यारी दी है, तूने क्यूं मक्कारी दी?

तूने क्यूं आमाल बनाए, तूने क्यूं तक़दीर गढ़ा?
तूने क्यूं आज़ाद तबअ दी, तूने क्यूं ज़ंजीर गढ़ा?
ज़न, ज़र, मय में लज़्ज़त देकर, उसमें फिर तक़सीर गढ़ा,
सुम्मुम,बुक्मुम,उमयुन कहके, तअनो की तक़रीर८, गढ़ा.

बअज़ आए तेरी राहों से, हिकमत तू वापस लेले,
बहुत कसी हैं तेरी बाहें, चाहत तू वापस लेले,
काफ़िर, 'मुंकिर' से थोडी सी नफ़रत तू वापस लेले,
दोज़ख़ में तू आग लगा दे, जन्नत तू वापस लेले.

शीर्षक =ईश-गान १-आधीनता २-सेनाधिकार ३-स्वछंदता ५-सुंदरी,धन,सुरा,६-अपराध ७-अल्लाह 8-क़ुसूर 
अपनी बात न मानने वालों को गूंगे,बहरे और अंधे कह कर मना करता है कि मत समझो इनको,इनकी समझ में न आएगा 

ثنا 

،تو نے سورج چاند بنایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مطلب 
،تو نے تاروں کو چمکایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مطلب 
،تو نے بادل کو برسایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مطلب 
تو نے پھولوں کو مہکایا ، ہوگا ! ہم سے کیا مرلب ٠

تو نے کیوں بیماری دی ہے ، تونے کیوں آزاری دی ؟
تو نے کیوں مجبوری دی ہے ، تو نے کیوں لاچاری دی ؟
تو نے کیوں محکومی دی ہے ، تو نے کیوں سالاری دی ؟
تو نے کیوں مکّاری دی ہے ، تو نے کیوں عیاری دی ؟

تو نے کیوں اعمال بناۓ ، تونے کیوں تقدیر گڑھی ؟
تو نے کیوں آزاد طبع دی ، تو نے کیوں زنجیر گڑھی ؟
زن زر مئے میں لذّت دیکر ، اس میں کیوں تقصیر گڑھی ؟
سُممُم بُکمُم اُمیُن کہکے ، تعنوں کی تقریر گڑھی ؟

،بازآ ے تیری تکڑم سے ، حکمت تو واپس لیلے 
،بہت کسی ہیں تیرے باہیں ،چاہت تو واپس لیلے 
،کافر منکر مشرق سے، نفرت تو واپس لیلے 
دوزخ کو تو آگ لگا دے ، جنّت تو واپس لیلے ٠ 

जुंबिशें - - - नज़्म 5



5

क़फ़्से इन्कलाब1

हद बंदियों में करके, आज़ाद कर गए,
दी है नजात या फिर, बेदाद कर गए.

अरबो, अजम, हरब के, दर्जाते-इम्तियाज़4,
अपनों को दूसरों पर, आबाद कर गए.

जिस्मो, दिलों, दिमागों, पर हुक्मराँ हैं वह,
बे बालो पर हमें यूँ , सय्याद कर गए.

ज़ेहनो में भर दिया है, इक आख़िरी निज़ाम,
हर नक्श इर्तेक़ा को, बरबाद कर गए.

इंसान चाहता है,  बे ख़ौफ़ ज़िन्दगी,
वह सहमी सी, ससी सी, इरशाद कर गए.

इक्कीसवीं सदी में, आया है होश 'मुंकिर',
उनके सभी सितम को, फिर याद कर गए.

१-इन्कलाब का पिंजडा २-जुल्म ३-मुल्कों की इस्लामी श्रेणी ४पदोन का अन्तर
५-आखेटक ६- व्यवस्था ७-रचनात्मक चिन्ह ८-फरमान


 قفسِ انقلاب

،حد بندیوں میں کر کے، آزاد کر گئے ہیں 
دی ہے نجات یا پھر ، بیداد کر گئے ہیں ٠

،اہل عرب ، عجم پر ، مسکین  ہندیوں پر 
اپنوں کو دوسروں پر ، آباد کر گئے ہیں ٠

،جسموں و دل و دماغوں ، پر راج کر رہے ہیں
بے بال و پر ہمیں وہ ، صیاد کر گئے ہیں ٠

،ذہنوں میں بھر دیا ہے اک آکری نظام
تصویرِ ارتقائی ، برباد کر گئے ہیں ٠

،مفروضہ حادثاتی ، محشر میں  مبتلا ہم 
وہ سہمی زندگی کو ، ارشاد کر گئے ہیں ٠

اِکیسویں صدی میں ، آیا ہے ہوش 'منکر
اُنکے سبھی ستم کو ، ہم یاد کر گئے ہیں ٠  

Monday, July 16, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 3



3

ख़्वाहिशे पैग़म्बरी

जी में आता है कि मैं भी, इक ख़ुदा पैदा करुँ,
पहले जैसों ही, सदाक़त1 में रिया2 पैदा करुँ.

कुछ ख़ता पैदा करुँ, फ़िर कुछ सज़ा पैदा करुँ,
मौत से पहले ही इक, यौमे जज़ा3 पैदा करुँ.

आऊँ और जाऊं पहाडों पर, निदा4 के वास्ते,
वह्यि5 सी, या देव वाणी सी, सदा पैदा करुँ.

गढ़ के इक हुलिया निकालूँ , ख़ुद को इस मैदान में,
सब से हट कर इक अनोखी ही अदा पैदा करुँ.

मुह्मिलों6 में फ़लसफ़े राग माले डाल कर,
आश्रम में रख के, अपना बुत ग़िज़ा पैदा करुँ.

उफ़! कि दिल के क़ैद ख़ाने में है 'मुंकिर' का ज़मीर,
कैसे मासूमों के ख़ातिर, मैं दग़ा पैदा करुँ.

१-सत्य २-मिथ्य ३-प्रलय के बाद इनाम पाने का दिन
 ४-आकाशवाणी ५-ईश्वानी ६- अर्थ हीन और अनरगल 

خواہشِ پیغمبری

،جی میں آتا ہے کہ ، میں بھی اک خُدا پیدا کروں
پہلے جیسوں ہی ، صداقت میں رِیا پیدا کروں٠

،کچھ خطا پیدا کروں ، پھر کچھ سزا پیدا کروں
موت سے پہلے ہی، اِک یومِ جزا پیدا کروں٠

،آؤں  اور جاؤں پہاڑوں پر ، ندا کے واسطے
وحیی سی یا دیو وانی ، سی صدا پیدا کروں٠ 

،گڑھ کے اک حلیہ نکالوں ، خود کو اس میدان میں
سب سے بڑھ کر، اِک انوکھی ہی ادا پیدا کروں٠

،مُحملوں میں فلسفے کے ، راگ مالے ڈال کر
آشرم میں رکھ کے ، اپنا بُت غذا پیدا کروں٠

،اُف ! کہ دل کے قید خانے میں ، ہے 'منکر' کا ضمیر
کیسے معصوموں کی خاطر ، میں دغا پیدا کروں٠ 

Sunday, July 15, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 2 ह्म्द



2

ह्म्द1

तेरी संगत तो मुश्किल, कि ऐ मौला निभा पाऊँ,
अज़ाबों  में तेरे ख़ुद को, हमेशा मुब्तिला पाऊँ.

अक़ीदा है मगर कितना ख़तरनाकी की हद में है,
कि तुझ पर सर झुका कर ही, सरे अक़दस उठा पाऊँ.

तमसख़ुर को बुरा माने, तू संजीदा हुवा वाक़अ,
तुझे गर भूल ही जाऊं थोड़ा मुस्कुरा पाऊँ.

बड़ा ही मुन्तक़िम है तू , चला करता है चालें भी,
कहीं मफ़रूर होकर ही अदू १० से सर बचा पाऊँ.

अना११ तेरी रक़ीबाना१२, है क़ायम वाहिदे मुतलक़१३,
बड़ा मुश्किल मुक़ामे किब्रियाई१४ है, अमाँ पाऊँ.

नमाज़ो, हज, ज़कातो, रोज़ा दारी१५, क़र्ज़ हैं तेरे,
हयाते ख़ुश नुमा१६ को, गर सज़ा दूँ तो चुका पाऊँ.

मुझे मंज़ूर हैं दोज़ख़  की सारी कुल्फ़तें१७ 'मुंकिर',
तलाशे हक़१८ में मर जाऊं, तो कोई भी सज़ा पाऊँ.

१-वन्दना २-विपत्ति ३-आस्था ४-पवित्र शीश ५-हस-परिहास ६-गंभीर ७-स्थापित होना
८-प्रति शोध ९-पलायन वादी १०-शत्रु ११आत्म सम्मान १२-दुश्मनी १३- एकेश्वर ४-ईश्वरीय श्रेष्टता
१५-ये चार इस्लाम के मूल-भूत कर्म-कांड हैं १६-सुखी जीवन १७-यातनाएं १८-सत्य की खोज .

حمد

،تری سنگت تو مشکل ہے، کہ اے مولا نبھا پاؤں
عذابوں میں ترے خود کو، ہمیشہ مبتلا پاؤں٠ 

،عقیدہ ہے مگر کتنی خطرناکی کی حد میں ہے
کہ تجھ پرسرجھکا کر ہی، سرِاقدس اٹھا پاؤں٠

،تمسخر کو برا مانے، تو سنجیدہ ہوا واقع 
تجھے گر بھول ہی جاؤں، تو تھوڑا مسکرا پاؤں٠ 

،بڑا ہی متقیم ہے تو، چلا کرتا ہے چالیں بھی
کہیں مفرور ہوکر ہی، عدو سے سر بچا پاؤں٠ 

، انا تیری رقیبانہ، ہے قائم واحد متلعق
بڑا مشکل مقام کبریائی ہے، اماں پاؤں٠ 

،نمازوحج، زکات و روزہ داری، قرض ہیں تیرے
حیات خوش نما کو گر، سزا دوں تو چکا پاؤں٠
  
،مجھے منظور ہیں دوزخ کی ، ساری کلفتیں منکر
تلاشِ حق میں مر جاؤں، تو کوئی بھی سزا پاؤں٠ 



Saturday, July 14, 2018

जुंबिशें - - - नज़्म 1 बइस्म ए सिद्क़




1

बइस्म ए सिद्क़ 1

(सच्चाई के नाम से शुरू करता हूँ )

यह जुम्बिशें हैं दिल की, बेदारी2 सू ए ज़न2 की,
हैं रूह की ख़राशें, टीसें हैं मेरे मन की.

रस्मो की बारगाहें3, बाज़ार हैं चलन की,
बोसीदा4 हो चुकी हैं, दूकानें यह सुख़न5 की. 

फ़रमान ए साबक़ा6 के, ऐ बाज़ गश्तो ठहरो,
अब होगी आज़माइश, थोड़े से बाँकपन की.

आतिश फ़िशाँ8 की नोबत, आए तो क्यों न आए,
बेचैन हो चुकी हैं, पाबंदियाँ दहन* की.

जिस झूट में सदाक़त10, साबित हुई हो शर से,
उस सिद्क़11 को ज़रूरत, है गोर12 और कफ़न की.

तअलीम नव13 के तालिब14, अब अर्श१५ छू रहे हैं,
डोरी न इनको खींचे, इन शेख़ व बरहमन की.

गर दिल पे बोझ आये, ईमान छटपटाए,
ऐसे क़फ़स१६ से निकलो, छोडो फ़िज़ा चुभन की.

हम सब ही आलमीं17 हैं, भूगोल सब की माँ है,
आओ बढ़ाएँ अज़मत18, हम मादर ए वतन की.

धर्मो से पाई मुक्ति, मज़हब से पाई छुट्टी,
इंसानियत की बूटी, पीडा हरे है मन की.

तअमीर19 में है बाक़ी, जो ईंट, वह है 'मुंकिर',
मेमार20 इसको चुन दे, तकमील21 हो चमन की.

१-प्रचलित बिस्मिल्लाह या श्री गणेश २-जागरण 2+ MITURITY३-दरबार ४-जीर्ण ५-वाणी ६-पुरानेआदेश 
७-प्रति -ध्वनी ८-ज्वाला-मुखी ९-मुख (दहन =मुँह)१० सत्यता 11-सत्य 12 -कब्र १३-नवीं शिक्छा १४-इच्छुक 
१५-आकाश १६-पिंजडा १७-अन्तर राष्ट्रीय 18 मर्यादा 19-रचना 20-रचना कार २१-सम्पूर्णता.

بئسمِ صدق 

،یہ جُنبشیں ہیں دل کی، بیداری سوئےِزن کی
ہیں روح کی خراشیں، ٹیسیں ہیں میرے من کی٠

،رسموں کی بارگاہیں، بازار ہیں چلن کی
بوسیدہ ہو چکی ہیں، دوکانیں یہ سُخن کی٠

،فرمانِ گزشتہ کی، ائے بازِگشتو ٹھہرو
تم میں ہے آزمائش، تھوڑے سے بانک پن کی٠

،آتش فشاں کی نوبت، آتی تو کیوں نہ آتی
بے چین ہو چُکی تھیں، پابندیاں دَہن کی٠

،جس جھوٹ کی صداقت، ثابِت ہی ہو شر سے
اُس صِدق کو ضرورت، ہے گور اور کفن کی٠ 

،تعلیمِ نَو کے طالب ، ہیں عالمِ  فلک پہ 
 ڈوری نہ ان کو کھینچے، اب شیخ و برہمن کی٠

،گر دل  پہ  بوجھ  آئے، ایمان چھٹپٹائےِ
ایسے قفس سے نکلو، چھوڑو فضا گُھٹن کی٠

،ہم سب ہی عالمی ہیں، بھوگول سب کی ماں ہے
آؤ بڑھأئیں عظمت ، ہم مادرِ وطن کی٠ 

،دھرموں سے پائی مُکتی، مذہب سے پائی چُھٹّی
انسانیت کی بوٹی، پیڑا ہرے ہے من کی٠

،تعمیر میں ہے باقی، جو اینٹ وہ ہے منکر
معمار اسکو چُن دے ، تکمیل ہو وطن کی٠