Monday, May 30, 2016

Junbishen 795



ग़ज़ल

क़हेरो-गज़ब के डर से सिहरने लगे हैं वह,
ख़ुद अपनी बाज़े-गश्त से डरने लगे हैं वह।

गर्दानते हैं शोख़ अदाओं को वह गुनाह,
संजीदगी की घास को चरने लगे हैं वह।

रूहानी पेशवा हैं, या ख़ुद रूह के मरीज़,
पैदा नहीं हुए थे कि मरने लगे हैं वह।

हैं इस लिए खफा, मैं कभी नापता नहीं,
वह काम नेक, जिसको कि करने लगे हैं वह।

ख़ुद अपनी जलवा गाह की पामालियों के बाद,
हर आईने पे रुक के सँवारने लगे हैं वह।

"मुंकिर" ने फेंके टुकड़े, ख्यालों के उनके गिर्द,
माक़ूलियत को पा के, ठहरने लगे हैं वह।


غزل 
 
قہر و غضب کے ڈر سے سھرنے لگے ہیں یہ 
خود اپنی باز گشت سے ڈرنے لگے ہیں یہ٠ 

گردانتے ہیں شوخی کے لمحات کو گناہ 
سنجیدگی کی گھاس کو چرنے لگے ہیں یہ٠ 

روحانی پشوه ہیں کہ خود روح کے مریض 
پیدا نہیں ہوئے تھے کہ مرنے لگے ہیں یہ٠ 

ہیں اس لئے خفا ، میں کبھی ناپتا نہیں 
وہ کار خیر جسکو کہ کرنے لگے ہیں یہ٠ 

خود اپنے جلوہ گاہ کے پامالیوں کے بعد 
ہر آئینے پہ رک کے سنورنے لگے ہیں وہ ٠ 

منکر نے پھیکے ٹکڑے خیالوں کے انکے گرد 
معقولیت کو پاکے ٹھہرنے لگے ہے وہ ٠  

Friday, May 27, 2016

Junbishen 794



ग़ज़ल

बहानो पर बहाना,
नया फिर इक फ़साना।

तवाज़ुन1 खो चुका हूँ,
न अब सर को उठाना।

तल्लुक़ मुन्क़ता2 हो,
नहीं मिलना मिलाना।

नहीं बर मिल सका था,
कि ऊंचा था घराना।

तहारत3 पर अडे हो,
न तुम हरगिज़ नहाना।

फ़लक़ पर जा बसे हो,
लिखा था आब दाना।

बहुत बारीक से हो,
ज़रा नज़दीक आना।

बहुत सीधा है 'मुंकिर',
न उसका दिल दुखाना।

१-संतुलन २-विच्छेद ३- पवित्रता

غزل
بہانو پر بہانا 
بڑے جھوٹے ہو مانا ٠ 

توازن کھو چکا ہوں 
نہ پھر آنسو بہانا ٠ 

تعلق منقطع ہو
نہیں ملنا ملانا ٠ 

نگاہیں ہیں کہیں پر
کہیں پر ہے نشانہ ٠ 

نہیں بر مل سکا ہے 
کہ اونچا تھا گھرانہ ٠ 

طہارت پر اڑے ہو 
نہ تم ہرگز نہانا ٠ 

فلق پر جا بسے ہو 
لکھا تھا آب دانہ ٠ 

بہت باریک سے ہو
ذرہ نزدیک آنا ٠ 

بہت سیدھا ہے منکر 
نہ اسکا دل دکھانا ٠ 
*************

Wednesday, May 25, 2016

Junbishen 793



ग़ज़ल

तू है रुक्न अंजुमन का, तेरी अपनी एक ख़ू है,
मैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग ओ बू है.

वतो इज़ज़ो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख़ रू है, बेक़ुसूर ज़र्द रू है.

तेरा दीं सुना सुनाया, है मिला लिखा लिखाया,
मेरे ज़ेहन की इबारत, मेरी अपनी जुस्तुजू है.

मुझे खौफ है ख़ुदा का, न ही एहतियात ए शैतान,
नहीं खौफ दोज़खों का, न बेहिश्त आरज़ू है.

वोह नहीं पसंद करते, जो हैं सर्द मुल्क वाले,
तेरी जन्नतों के नीचे, वो जो बहती अब ए जू है.

तेरे ध्यान की ये डुबकी, है सरल बहुत ही जोगी ,
कि बहुत सी भंग पी लूँ ,तो ये पाऊँ तू ही तू है.
*****
* वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए=खुदा जिसको चाहे इज्ज़त दे,जिसको काहे जिल्लत.

غزل
تو ہے رکن انجمن کا ، تری اپنی ایک خو ہے،
میں الگ ہوں انجمن سے ، مرا اپنا رنگ بو ہے ٠ 

وتعزو من تشاؤ ، وتزللو من تشاؤ
جو تھا شر پہ ، سرخرو ہے ، بے قصور زرد رو ہے 

ترا دیں سنا سنایا ، ہے ملا لکھا لکھایا
مرے ذہن کی عبارت، مری اپنی جستجو ہے ٠ 

مجھے خوف نہ خدا کا ، نہ ہی احتیاط شیطاں
نہ ہی خوف دوزخوں کا ، نہ بہشت آبرو ہے ٠ 

وہ نہیں پسند کرتے ، جو ہیں سرد ملک والے 
ترے جنّتوں کے نیچے ، وہ جو بہتی اب جو ہے ٠ 

ترے دھیان کی یہ ڈبکی ، ہے بہت سرل سی سادھو 
کہ ذرا سی بھنگ پی لوں ، تو یہ پاؤں تو ہی تو ہے ٠ 

Tuesday, May 24, 2016

Junbishen 792



ग़ज़ल

आलम ए गुम की चीज़ होती है,
जान कितनी अज़ीज़ होती है.

अच्छा शौहर गुलाम होता है,
अच्छी बीवी कनीज़ होती है.

बात बिगडे तो जाए रुसवाई,
बात बन कर तमीज़ होती है.

मुफ़्त का मॉल खाने वालों की,
खाल कितनी दबीज़ होती है.

फिल्म बे दाग़ रहनुमाओं की ,
देखिए कब रिलीज़ होती है.

बे ख़याली में लम्स की बोटी,
हाय कितनी लज़ीज़ होती है.

*****
*कनीज़=दासी * दबीज़=मोटी*लम्स=स्पर्श

GHazal 

عالم گم کی چیز ہوتی ہے 
جان کتنی عزیز ہوتی ہے ٠

اچھا شوھر غلام ہوتا ہے
اچھی بیوی کنیز ہوتی ہے ٠ 

بات بگڑے تو جاے رسوائی 
بات بن کر تمیز ہوتی ہے ٠ 

مفت کا مال کھانے والوں کی
کھال کتنی دبیز ہوتی ہے ٠ 

فلم بے داغ رہنماؤں کی 
دیکھئے کب رلیز ہوتی ہے ٠ 

بے خیالی میں لمس کی بوٹی 
ہاۓ ! کتنی لذیز ہوتی ہے ٠ 

Friday, May 20, 2016

Bedariyan 10



ग़ज़ल

नई सी सिंफ़े सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,
न झूट सच की, खुशी की, न ग़म की बात करो।

न बैठ जाना कि मसनद3 है, सुलह कुल4 की ये,
खड़े खड़े ही, दिलेरी की दम की बात करो।

उतार आओ अक़ीदत को, साथ जूतों के,
हमारी बज़्म में, हक़ की, धर्म की बात करो।

मुआमला है, करोड़ों की जिंदगी का ये,
सियासतों के खिलाड़ी, न बम की बात करो।

सभी असासा5 वतन का है, हस्बे नव आईन6,
अमीन कौन है, इस पर भरम की बात करो।

ये चाहते हो, हमा तन ही गोश 7हो जाएँ,
हों उलझे गेसुए अरज़ी8, अदम9 की बात करो।

तलाशे सिद्क़े ख़ला10 कितने मक़नातैशी11 हैं,
न अब जनाब ख़ुदा की, सनम की बात करो।

बहुत ही खून पिए जा रहे हैं, ये "मुंकिर"
क़सम है तुम को, जो दैरो हरम12 की बात करो।

१-काव्य-विधा २-नई बात ३-कुर्सी ४-सम्पूर्ण-संधि ५-पूँजी ६-नया संविधान ७-शरीर का कान बन जाना ८-धरती की लटें ९-अनिस्तत्व --क्षितिजि-सच्चाई ११-चुम्बकीय १२-मंदिरों-मस्जिद


غزل 

نئی سی صنف سخن ہو . نعم کی بات کرو
نہ جھوٹ سچ کی ، خوشی کی نہ غم کی بات کرو ٠ 

نہ بیٹھ جانا، کہ مسند ہے صلح کل کی یہ
کھڑے کھڑے ہی دلیری کی دم کی بات کرو ٠ 

اتار آؤ عقیدت کو، ساتھ جوتوں کے
ہمارے بزم میں حق کی، دھرم کی بات کرو.٠ 

معاملہ ہے کروڑوں کی زندگی کا یہ
سیاستوں کے کھلاڑی ، نہ بم کی بات کرو ٠ 

یہ چاہتے ہو ہمہ تن ہی گوش ہو جایں
ہوں الجھے ، گیسو ے ارضی ، عدم کی بات کرو.٠ 

تلاش صدق خلا ، کتنے مقنا تیشی ہیں 
نہ اب جناب ! خدا ، نہ صنم کی بات کرو ٠ 

بہت ہی خون پئے جا رہے ہیں یہ منکر 
قسم ہے تم کو جو دیر حرام کی بات کرو ٠ ٠ 

Wednesday, May 18, 2016

Junbishen 790



ग़ज़ल

ये जम्हूरियत बे असर है,
संवारे इसे, कोई नर है?

बहुत सोच कर खुद कशी कर,
किसी का तू ,नूरे नज़र है.

दिखा दे उसे क़ौमी दंगे,
सना ख्वान मशरिक, किधर हैं.

बहुत कम है पहचान इसकी,
रिवाजों में डूबा बशर है.

नहीं बन सका फर्द इन्सां,
कहाँ कोई कोर ओ कसर है.

है ऊपर न जन्नत, न दोज़ख,
खला है, नफ़ी है, सिफ़र है.

इबादत है, रोज़ी मशक्क़त,
अज़ान ए कुहन, पुर ख़तर है.

ये सोना है, जागने की मोहलत,
जागो! ज़िन्दगी दांव पर है.

है तक़लीद बेजा ये 'मुंकिर',
तेरे जिस्म पर एक सर है.
*****
*जम्हूरियत=गण-तन्त्र *नूरे नज़र=आँख का तारा *सना ख्वान मशरिक=पूरब का गुण-गण करने वाले*खला, नफ़ी=क्षितिज एवं शून्य * तकलीद=अनुसरण.



غزل

یہ جمہوریت بے اثر ہے 
سنوارے اسے کوئی نار ہے ٠

بہت سوچ کر خود کشی کر 
کسی کا تو نور نظر ہے ٠ 

دکھا دے اسے قومی دنگے
ثنا خوان مشرق کدھر ہے ٠ 

بہت کم ہے پہچان اسکی 
رواجوں میں ڈوبا بشر ہے ٠ 

نہیں بن سکا فرد انساں
کہاں پر یہ کور و کثر ر ہے ٠ 

ہے اوپرنہ جنّت نہ دوزخ
خلا ہے ، نفی ہے ، صفر ہے ٠ 

عبادت ہے روزی مشقت 
اذان کہن پر خطر ہے ٠ 

یہ سونا ہے جگنے کی مہلت 
جگو زندگی دانو پر ہے ٠ 

ہے تقلید بے جہ یہ منکر 
ترے جسم پر ایک سر ہے ٠ 

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Monday, May 16, 2016

Junbishen 789



ग़ज़ल

मुतालेआ करे चेहरों का, चश्मे नव ख़ेज़ी ,
छलक न जाए कहीं यह, शराब ए लब्रेजी.

हलाकतों पे है माइल, निज़ामे चंगेजी,
तरस न जाए कहीं, आरजू ए खूँ रेज़ी .

अगर है नर तो, बसद फ़िक्र शेर पैदा कर,
मिसाले गाव, बुज़, ओ ख़र है तेरी ज़र ख़ेज़ी.

तू अपनी मस्त ख़ेरामी पे, नाज़ करती फिर,
लुहा, लुहा से न डर, ए जबाने अंग्रेजी.

नए निज़ाम के जानिब क़दम उठा अपने,
ये खात्मुन की सदा छोड़, कर ज़रा तेज़ी .

बचेगी मिल्लत ख़ुद बीं, की आबरू 'मुंकिर',
अगर मंज़ूर हों  मंसूर, शम्स ओ तबरेज़ी.
*****
*मुतलेआ= अद्ध्य्यन *निजामे=व्योवस्था *गाव, बुज़, खर=भेडें,बकरियां,गधे *उपजता *मिल्लत खुद बीन =इशारा वर्ग विशेष की ओर

غزل

مطالعہ کرے چہروں کی ، چشم نو خیزی 
چھلک نہ جاۓ کہیں یہ شراب لبریزی ٠ 

ہلاکتوں پہ ہے مائل نظام چنگیزی 
ترس نہ جاۓ کہیں آرزو ے خوں ریزی ٠ 

اگر ہے نر، تو بصد فکر ، شیر پیدا کر 
مثال گاؤ و بز و خر ہے تیری زر خیزی ٠ 

تو اپنی مست خرامی پہ ناز کرتی پھر 
مخالفوں سے نہ ڈر ، اے زبان انگریزی ٠

نیےنۓ نظام کی جانب قدم اٹھا اپنے 
یہ خاتمن کا وہم چھوڑ لا ذرہ تیزی ٠ 

بچیگی ملّت خود بیں کی آبرو منکر
اگر قبول ہو ں منصور و شمس تبریزی ٠


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Friday, May 13, 2016

Junbishen 788



ग़ज़ल

इस शहरी आबादी को, जंगल में बोया जाए,
परबत के दामन हैं खाली, चलो वहीँ सोया जाए.

जीवन भर के सृजित हीरे, आँख खुली तो पत्थर थे,
चुन कर लाए जहाँ से इनको, वहीँ कहीं खोया जाए.

आहें निकलें, आंसू बरसें, हस्ती का कुछ बोझ कटे,
मन भारी है, तन है बोझिल, फूट फूट रोया जाए.

ऐ फ़ातेह! यह तेरा जिगरा, बस्ती है वीरान पड़ी,
तौबा का साबुन ले कर आ, दागे जिगर धोया जाए.

दुःख को ढूंढो बाती लेकर, मिले कहीं तो बतलाना,
सुख की गठरी नहीं है सर पे, इस पर क्यों रोया जाए.

जुल दे कर भागी है "मुंकिर" उम्र जवानी हाय रे अब,
बूढी पीठ पे इस की करनी, किस बल से ढोया जाए.

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غزل

اس شہری آبادی کو ، جنگل میں بویا جاے
پربت کے دامن ہیں خالی ، چلو وہیں ، سویا جاۓ ٠

جیون بھر کے سرجت ہیرے ، آنکھ کھلی تو پتھر تھے
چن کر جہاں سے لاۓ انکو ، وہیں کہیں کھویا جاۓ ٠

آہیں نکلیں ، آنسو برسیں ، ہستی کا کچھ بوجھ کٹے
من بھاری ہے ، تن ہے بوجھل ، پھوٹ پھوٹ رویا جاۓ ٠

ائے فاتح ، یہ تیرا جگرا ، بستی ہے ویران پڑی
توبہ کا صابن لیکر آ ، داغ جگر دھویا جاۓ ٠

دکھ کو ڈھونڈھو باتی لیکر ، کہیں ملے تو بتلانا
سکھ کی گٹھری نہیں ہے سر پر ، اس پر کیوں رویا جاۓ ٠

جل دیکر بھاگی ہے 'منکر' ، عمر جوانی ہاۓ رے اب
بوڑھی پیٹھ پہ اس کی کرنی، کس بل سے ڈھویا جاۓ ٠ ٠
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Wednesday, May 11, 2016

Junbishen 787



ग़ज़ल

अपने घरों में, मंदिर ओ मस्जिद बनाइए,
अपने सरों पे, धर्म और मज़हब सजाइए.

उस सब्ज़ आसमान के, नीचे न जाइए,
इस भगुवा कायनात से, खुद को बचाइए.

सड़कों पे हो नमाज़, न फुटपाथ पर भजन,
जो रह गुज़र अवाम है, उस पर न छाइए.

बचिए ज़ियारतों से, दर्शन की दौड़ से,
थोडा वक़्त बैठ के खुद में बिताइए.

परिक्रमा और तवाफ़ के हासिल पे गौर हो,
मत ज़िन्दगी को नक़ली सफ़र में गंवाइए.

बच्चों का इम्तेहान है, बीमार घर पे हैं,
मीलाद ओ जागरण के ये भोपू हटाइए.

अरबों की सर ज़मीन है, जंगों से बद नुमा,
'मुंकिर' वतन की वादियों में घूम आइए.

*****


غزل

اپنے گھروں میں مندر و مسجد بنائے 
اپنے سروں پہ دھرم اور مذهب سجائے ٠ 

اس سبز آسمان کے نیچے نہ جائیے 
اس بھگوا کائنات سے خود کو بچائے ٠ 

سڑکوں پہ ہو نماز نہ فٹ پاتھ پر بھجن
جو رہگزر عوامی ہے ، اس پر نہ چھائے ٠ 

بچیے زیارتوں سے ، اور درشن کے وہم سے 
تھوڑا سا وقت بیٹھ کر خود میں گزاریے ٠ 

پریکرمہ اور طواف کے حاصل پہ غور ہو
مت زندگی کو نقلی سفر میں گزارئیے ٠ 

وہ انکی سر زمین ہے جنگوں سے بعد نما 
اپنے وطن کی وادیوں میں گھوم آئیے ٠ 

بچوں کے امتحان ہیں ، بیمار گھر میں ہے
میلاد و جاگرن کے نہ بھونپو بجائیے ٠ ٠ 
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Monday, May 9, 2016

unbishen 786



ग़ज़ल

जितना बड़ा है क़द तेरा, उतना अज़ीम है,
ऐ पेड़! तू भी राम है, तू भी रहीम है.

ईमान दार लोगों के, ज़ानों पे रख के सर,
बे खटके सो रहे हो, ये अक़्ले सलीम है.

तेरह दिलों की धड़कनें, तेरह दलों का बल,
जम्हूर का मरज़ ये, वबाल ए हकीम है.

अलक़ाब में आदाब के, अम्बार मत लगा,
बालाए ताक कर इसे, क़द्रे क़दीम है.

खूं का लिखा हुवा, मेरा दिल में उतार लो,
ये आसमानी कुन, न अलिफ़,लाम, मीम है.

'मुंकिर' खिला रहा है, जो कडुई सी गोलियां,
इंकार की दवा है, ये तासीर नीम है.
*****

غزل

جتنا بڑا ہے پیڑ، تو اتنا عظیم ہے
اے پیڑ تو بھی رام ہے ، تو بھی رحیم ہے ٠ 

ایمان دار لوگوں کے، زانو پہ رکھ کے سر 
بے کھٹکے سو رھے ہو ، یہ عقل سلیم ہے ٠ 

تیرہ دلوں کی دھڑکنیں ، تیرہ دلوں کا بل 
جمہور کا مرض ، یہ وبال حکیم ہے ٠ 

القاب میں ادب کے یہ انبار مت اٹھا 
بالاۓ طاق کر اسے ، قدر قدیم ہے ٠ 

خوں سے لکھا ہوا مرا ، دل میں اتار لو 
یہ آئیں بایں شایں ، نہ الف لام میم ہے ٠ 

منکر کھلا رہا ہے جو کڑوی سی گولیاں
انکار کی دو ہے ، تاثیر نیم ہے ٠

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Thursday, May 5, 2016

Junbishen 785



ग़ज़ल

जहान ए अर्श का बन्दा है, बार ए अन्जुमन होगा,
मसाइल पेश कर देगा, नशा सारा हिरन होगा.

मुझे दो गज़ ज़मीन दे दे अगर शमशान में अपने,
मज़ार ए यार पे अर्थी जले तेरी, मिलन होगा.

मिले हैं पेट पीठों से, तलाशी इनकी भी लेना,
कहीं कुछ अन्न मिल जाए, तो बाक़ी है हवन होगा.

वो जिस दिन से ग़लाज़त साफ़ करना बंद कर देगा,
कोई सय्यद न होगा, और न कोई बरहमन होगा.

अपीलें सेक्स करता हो, तो ऐसा हुस्न है बरतर,
अजब मेयार लेके हुस्न का, यह बांक पन होगा.

फिरी के, गिफ्ट के, और मुफ़्त के, हमराह हैं सौदे,
खरीदो मौत गर 'मुंकिर' तो तोहफ़े में कफ़न होगा.
*****


غزل
جہان عرش کا بندہ ہے ، بار انجمن ہوگا 
مسائل پیش کر دیگا ، نشہ سارا ہرن ہوگا ٠ 

مجھے دو گز زمیں دیدے ، اگر شمشان میں اپنے 
مزار یار پہ ارٹھی جلے تیری ، ملن ہوگا ٠ 

ملے ہیں پیٹ ، پیٹھوں سے ، تلاشی ان کی بھی لینا 
کہیں کچھ انّ مل جاۓ ، تو باقی ہے ہون ہوگا ٠ 

وہ جس دن سے غلاظت صاف کرنا بند کر دیگا 
کوئی سیّد نہ ہوگا اور نہ کوئی برہمن ہوگا ٠ 

شرافت ہو کسی میں یا کسی میں بے نظیری ہو
کہ بس انجام پاکستان ہے دار و رسن ہوگا ٠ 

اپیلیں سیکس کی کرتا ہو ، ایسا حسن ہے برتر
عجب معیار لے کے ، حسن کا اب بانک پن ہوگا ٠ 

فری کے ، گفٹ کے اور مفت کے ، ہمراہ سودے ہیں
خریدو موت گر منکر ، تو تحفے میں کفن ہوگا ٠

Monday, May 2, 2016

Junbishen 784


रुबाईयाँ   رباعیاں


दौलत से कबाड़ी की है, बोझिल ये हयात, 
हैं रोज़ सुकून के, न चैन की रात, 
बुझती ही नहीं प्यास कभी दौलत की, 
देते नहीं राहत इन्हें सदका ओ ज़कात. 

دولت کے کباڑی کی ہے ، بوجھل یہ حیات ،
ہیں روز سکونوں کے ، نہ ہے چین کی رات ،
بجھتی ہی نہیں پیاس ، کبھی دولت کی ،
دیتے نہیں راحت انہیں ، صدقہ و زکات ٠

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तुम दिल के दुखाने को विजय कहते हो, 
मस्जिद के ढहाने को विजय कहते हो, 
होती है विजय सरहदों पे, दुश्मन पर, 
सम्मान गंवाने को विजय कहते हो. 

مسجد کو ڈھانے کو ، وجے کہتے ہو ،
تم دل کے دکھانے کو ، وجے کہتے ہو ،
ہوتی ہے وجے سرحدوں پہ ، دشمن پر ،
سمماں گنوانے کو ، وجے کہتے ہو ٠

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हों फ़ेल मेरे ऐसे, मेरी नज़रें न झुकें, 
सब लोग हसें और क़दम मेरे रुकें, 
अफकार ओ अमल हैं लिए सर की बाज़ी. 
'मुंकिर' की नफ़स चलती रहे या कि रुके, 

ہوں فعل مرے ایسے ، مری نظریں جھکن ،
سب لوگ ہنسیں اور قدم میرے تھمیں   ،
افکار و عمل ہیں لئے ، سر کی بازی ،
'منکر' کی نفس چلتی رہیں ، یاکہ رکیں ٠

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