Monday, October 15, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 58-60-


58

पसमांदा अक़वाम पे, क़ुरबान हूँ मै, 
मुस्लिम के लिए ख़ासा परीशान हूँ मैं, 
पच्चीस हैं सौ में, इन्हें बेदार करो, 
सब से बड़ा हमदरदे-मुसलमान हूँ मैं. 

पसमांदा=पिछड़ों ,बेदार=जगाओ 

پسماندہ اقوام پر قربان ہوں میں
مسلم کے لئے خاصہ پریشان ہوں میں 
اُنیس ہیں سو میں ، انہیں بیدار کرو
سب سے بڑا ہمدردِ مسلمان ہوں میں ٠ 

59

दौलत से कबाड़ी की है, बोझिल ये हयात, 
हैं रोज़ सुकून के, न चैन की रात, 
बुझती ही नहीं प्यास कभी दौलत की, 
देते नहीं राहत इन्हें सदक़ा ओ ज़कात. 

सदक़ा ओ ज़कात=दान पुण्य 

دولت کے کباڑی کی ہے ، بوجھل یہ حیات 
ہیں روز سکونوں کے ، نہ ہے چین کی رات 
بجھتی ہی نہیں پیاس ، کبھی دولت کی 
دیتے نہیں راحت انہیں ، صدقہ و زکات ٠

60

माज़ी की तल्ख़ यादें आती क्यों हैं,
जब देखो, मुझे आके सताती क्यों हैं, 
हों मेरी मुस्बतों से, मेरी नफ़ियाँ मुजरा,
नफियाँ ही मुझे रोज़, गिनाती क्यों हैं.

ماضی کی تلخ یادیں ، آتی کیوں ہیں 
جب دیکھو ، مجھے آ کے ، ستاتی کیوں ہیں 
ہوں میرے مثبتوں سے ، نفیاں مجرا 
نفیاں ہی مجھے روز گناتی کیوں ہیں ٠

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