Friday, April 27, 2012

ग़ज़ल- - - चेहरे यहाँ मुखौटे हैं और गुफ्तुगू हुनर





चेहरे यहाँ मुखौटे हैं और गुफ्तुगू हुनर,
खाते रहे फरेब हम, कमज़ोर थी नज़र।


हैं फायदे भी नहर के पानी है रह पर,
लेकिन सवाल ये है, यहाँ डूबे कितने घर।


पाले हुए है तू इसे अपने खिलाफ क्यूँ ,
ये खौफ दिल में तेरे है अंदर का जानवर।


होकर जुदा मैं खुद से तुहारा न बन सका,
तुम को पसंद जुमूद था मुझ को मेरा सफ़र।


पुख्ता भी हो, शरीफ भी हो , और जदीद भी,
फिर क्यूँ अज़ीज़ तर हैं तुम्हें कुहना रहगुज़र।


हस्ती का मेरे जाम छलकने के बाद अब,
इक सिलसिला शुरू हो, नई रह हो पुर असर।

जुमूद=ठहराव *जदीद=नवीन *कुहना रहगुज़र=पुरातन मार्ग

Saturday, April 21, 2012

ग़ज़ल -सुममुम बुक्मुम उमयुन कह के फहेम के देते हो ताने



सुममुम बुक्मुम उमयुन कह के, फहेम के देते हो ताने,
दिल में मरज़ बढा के मौला, चले हो हम को समझाने।


लम यालिद वलं यूलाद, तुम हम जैसे मखलूक नहीं,
धमकाने, फुसलाने की ये चाल कहाँ से हो जाने?


कभी अमन से भरी निदाएँ, कभी जेहादों के गमज़े,
आपस में खुद टकराते हैं, तुम्हरे ये ताने बाने।


कितना मेक अप करते हो तुम, बे सर पैर की बातों को,
मुतरज्जिम, तफसीर निगरो! "बड बड में भर के माने।


आज नमाजें, रोजे, हज, खैरात नहीं, बर हक़ ऐ हक़!
मेहनत, गैरत, इज्ज़त, का युग आया है रब दीवाने।


बड़े मसाइल हैं रोज़ी के, इल्म बहुत ही सीखने हैं,
कहाँ है फुर्सत सुनने की अब, फ़लक ओ हशर के अफ़साने।


कैसे इनकी, उनकी समझें, अपनी समझ से बहार है,
इनके उनके सच में "मुंकिर" अलग अलग से हैं माने।
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नोट-पहले तीन शेरों में शायर सीधा अल्लाह से मुखातिब है , चौथे में उसके एजेंटों से और आखिरी तीन शेरों में आप सब से. अर्थ गूढ़ हैं, काश कि कोई सच्चा इस्लामी विद्वान् आप को समझा सके.

Saturday, April 14, 2012

डर डरा डर डर, डर डर डर


डर डरा डर डर, डर डर डर 

है बाढ़ का, क़हत का, बड़े ज़लज़ला का डर,


पर्यावरण से दूषित, आबो-हवा का डर,


है कैंसर से, एड्स से, सब को फ़ना का डर,


राहों पे चलते फिरते, किसी हादसा का डर,


साँपों का, बिछुओं का, मुए भेड़िया का डर,


नेता, पुलिस, लुटेरे, गुरू, माफिया का डर,


इन सब से बच बचा के भी, बाकी बचा रहा, 


शैतान, भूत, जिन्न ओ मलायक, खुदा का डर। 



Sunday, April 8, 2012

ग़ज़ल___सब रवाँ मिर्रीख१ पर और आप का यह दरसे-दीन२




सब रवाँ मिर्रीख१ पर और आप का यह दरसे-दीन२ , 
कफिरीनो-मुशरिकीनो-मुनकिरीनो-मोमनीन3।






रौशनी कुछ सर पे कर लो, ताकि परछाईं का क़द,
छोटा हो जाए तुम्हें कुछ अपने क़द पर हो यकीन।






सीखते क्या हो इबादत और शरीअत के उसूल,
है खुदा तो चाहता होगा क़तारे गाफ़िलीन।






तलिबाने अफ्गनी और कार सेवक हैं अडे,
वह बजाएं, अपनी ढपली, यह बजाएं अपनी बीन। 






जाने कितने काम बाकी हैं जहाँ में और भी,
थोडी सी फुर्सत उसे देदे ख्याल नाजनीन।






साहबे ईमाँ तुम्हारे हक में है 'मुंकिर' की राह,
सैकडों सालों से गालिब हैं ये तुम पर फ़ास्क़ीन4 । 








१-मंगल ग्रह पर २-धर्म-शास्त्र दर्शन ३-शास्त्र-शीर्षक ४-झूठे

Sunday, April 1, 2012

ग़ज़ल - - - जेहनी दलील दिल के तराने को दे दिया




जेहनी दलील दिल के तराने को दे दिया,
इक ज़र्बे तीर इस के दुखाने को दे दिया। 


तशरीफ़ ले गए थे जो सच की तलाश में,
इक झूट ला के और ज़माने को दे दिया। 


तुम लुट गए हो इस में तुम्हारा भी हाथ है,
तुम ने तमाम उम्र ख़ज़ाने को दे दिया। 


अपनी ज़ुबां, अपना मरज़, अपना ही आइना,
महफ़िल की हुज्जतों ने दिवाने को दे दिया। 


आराइशों की शर्त पे मारा ज़मीर को,
अहसास का परिन्द निशाने को दे दिया। 


"मुंकिर" को कोई खौफ़, न लालच ही कोई थी,
सब आसमानी इल्म फ़साने को दे दिया.