43
मेहनत की कमाई पे ही जीता है फ़क़ीर,
हर गाम कटोरे में भरे अपना ज़मीर,
फतवों की हुकूमत थी,था शाहों का जलाल,
बे खौ़फ़ खरी बात ही करता था कबीर.
محنت کی کمائی پہ ہی جیتا تھا کبیر
ہرگام کٹوروں میں بھرے اپنا ضمیر
فتویٰ کی حکومت تھی ، تھا شاہوں کا جلال
بے خوف صحیح بات ہی کرتا تھا فقیر ٠
44
फ़न को तौलते रहे, ग़ारत थी फ़िक्र,
था मेराज पर उरूज़, नदारत थी फ़िक्र,
थी ग़ज़ल ब अक्द, समाअत क्वाँरी,
थी ज़बाँ ब वस्ल , ब इद्दत थी फ़िक्र.
فن کو تولتے رہے ، غارت تھی فکر
تھا عروض ہی عروض ، ندارت تھی فکر
تھی غزل بعقد ، سماعت کُنواری
تھا زباں پہ وصل ، بعدّت تھی فکر ٠
45
खुद मुझ से मेरा ज़र्फ़ जला जाता है,
कज़ोरियों पर हाथ मला जाता है,
दिल मेरा कभी मुझ से बग़ावत करके,
शैतान के क़ब्ज़े में चला जाता है.
ज़र्फ़=मर्यादा
خود مجھ سے میرا ظرف جلا جاتا ہے
کمزوریوں پر ہاتھ ملا جاتا ہے
دل میرا کبھی مجھ سے بغاوت کر کے
شیطان کے قبضے میں چلا جاتا ہے ٠
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