Tuesday, July 29, 2014

Junbishen 220


गज़ल

क़हेरो-गज़ब के डर से सिहरने लगे हैं वह,
ख़ुद अपनी बाज़े-गश्त से डरने लगे हैं वह।

गर्दानते हैं शोख़ अदाओं को वह गुनाह,
संजीदगी की घास को चरने लगे हैं वह।

रूहानी पेशवा हैं, या ख़ुद रूह के मरीज़,
पैदा नहीं हुए थे कि मरने लगे हैं वह।

हैं इस लिए खफा, मैं कभी नापता नहीं,
वह काम नेक, जिसको कि करने लगे हैं वह।

ख़ुद अपनी जलवा गाह की पामालियों के बाद,
हर आईने पे रुक के सँवारने लगे हैं वह।

"मुंकिर" ने फेंके टुकड़े, ख्यालों के उनके गिर्द,
माक़ूलियत को पा के, ठहरने लगे हैं वह।

Friday, July 25, 2014

Junbishen 219


गज़ल

बहानो पर बहाना,
नया फिर इक फ़साना।

तवाज़ुन1 खो चुका हूँ,
न अब सर को उठाना।

तल्लुक़ मुन्क़ता2 हो,
नहीं मिलना मिलाना।

नहीं बर मिल सका था,
कि ऊंचा था घराना।

तहारत3 पर अडे हो,
न तुम हरगिज़ नहाना।

फ़लक़ पर जा बसे हो,
लिखा था आब दाना।

बहुत बारीक से हो,
ज़रा नज़दीक आना।

बहुत सीधा है 'मुंकिर',
न उसका दिल दुखाना।

१-संतुलन २-विच्छेद ३- पवित्रता

Wednesday, July 23, 2014

Junbishen 318

नज़्म 

पैग़ाम ए नाहक़ 

कैसी सदा है दुन्या ये नापएदार है ,
फ़ानी तो हम सभी हैं, मगर ज़िंदगी केबाद ,
फ़रमान ए बुज़दिली है कि मरने से पहले मर .

इंसान में अजीब ये, मरने का खौफ़ है ,
वरना क़ज़ा ही उम्र ज़दा की नजात है ,
पचती नहीं किसी को, ये घुट्टी ज़वाल की .

किस कद्र फ़िक्र ख़ाम है, मरने का खौफ़ ये,
जब कि बहुत ही साफ़ है, तरतीब ए ज़िन्दगी ,
फलना शजर के बस में है, झरना है बेबसी .

यह उम्र चाहती है, उरूज ओ ज़वाल को ,
इंसान चाहता है, मुसलसल हयात हो ,
हिस्से में इसके एक बड़ी कायनात हो .
*

Monday, July 21, 2014

Junbishen 317


नज़्म 

वसीयत नामः 

मेरे बच्चो सही कहने की, मोहलत तुम नहीं लेना ,
ग़लत बातों में हाँ में हाँ की आदत तुम नहीं लेना .

जो मेहनत से मिले अमृत , जो मांगे से मिले पानी ,
जो छीना झपटी से आए , वह दौलत तुम नहीं लेना .

लक़ब तुमको ग़नी का मुफ़्त दे जाएँगे बे ग़ैरत ,
कभी भी मुफ़्त खोरों से ये शोहरत तुम नहीं लेना . 

जो सीधे सादे और अनपढ़ बुजुर्गों के मुकाबिल हों ,
ज़मीं पर फेंकना , ऐसी ज़ेहानत तुम नहीं लेना . 

छिपा है जो भी धरती में , अमानत है वो खिलक़त का ,
इसे लेकर ज़माने की अदावत तुम नहीं लेना . 

यतीमों की किफ़ालत में , उधर भी है तमअ की बू ,
इधर ग़ासिब का तुरका है , अमानत तुम नहीं लेना . 

पड़े मज़लूम को सर पे, उठा कर घर पे ले आना ,
किसी ज़ालिम के गोशे की, हिफ़ाज़त तुम नहीं लेना . 

बड़ा आलिम है वह मसूमयत को खो चुका होगा ,
वहां पर जा के कम अक़्लो , हिक़ारत तुम नहीं लेना . 

जरायम थे मेरे जायज़, मज़ालिम के ठिकानों पर ,
मुझे लड़ना है दोबारा , ज़मानत तुम नहीं लेना . 

नमाज़ें बख्शवाएंगी, गुनहगारों  को मह्शर में ,
गुनाहों से बचो मुंकिर , ये जन्नत तुम नहीं लेना .



Saturday, July 19, 2014

Junbishen 316



प्रशंशनीय 

प्रदर्शनी प्रकृति की, नहीं पूजनीय है ,
ये आपदा , विपदा भी, नहीं निंदनीय है ,
भगवान् या शैतान नहीं होती है क़ुदरत ,
जो कुछ मिला है इससे, वह प्रशंशनीय .


जल परी 

शाम आई भर नहीं , ऊबने लगता है दिल ,
जाने क्यों गुम सी ख़बर , ढूँढने लगता है दिल ,
याद आती है उसे इक खूबसूरत जल परी ,
जाके पैमाने में फिर , डूबने लगता है दिल .


इबरत का नज़ारा 

शमशान में जलती हुई, लाशों का नज़ारा,
या कब्र में उतरी हुई, मय्यत का इशारा,
देते हैं ये जीने का सबक़, अह्ल ए हवस को,
समझो तो समझ पाओ, कि कितना हो तुम्हारा    

Thursday, July 17, 2014

Junbishen 315


रूबाइयाँ 

दंगों में शिकारी को लगा देते हो,
शैतां की तरह पाठ पढ़ा देते हो,
फुफकारते हो धर्म ओ मज़ाहिब के ज़हर,
तुम जलते हुए दीप बुझा देते हो.



दोज़ख से डराए है मुसलसल मौला,
जन्नत से लुभाए है मुसलसल मौला,
है ऐसी ज़हानत कि ज़हीनो को चुभे ,
हिकमत को जताए है मुसलसल मौला,.


बस गाफिल ओ नादर डरा करते हैं,
यारों से कहीं यार डरा करते हैं,
मत मुझको डरना किसी क़ह्हारी से,
मौला से गुनहगार डरा करते हैं.

Tuesday, July 15, 2014

Junbishen 314


मुस्कुराहटें 
मुहाविरों के बोल 

कुछ पाना, कुछ खोते रहना ,
तुम बस, रोते धोते रहना .

फूल की सेजें खोते रहना , 
राह में कांटे बोते रहना .

जो बोले दरवाज़ा खोले ,
जागे हो तो सोते रहना .

नौ मन तेल पे राधा नाचे ,
तेली बैल को जोते रहना .

आँख के अंधे नाम नयन सुख ,
सूरदास सब टोते रहना .

धोबी के कुत्ते मत बनना ,
घर के घाट के होते रहना .

भैंस है उसकी जिसकी लाठी ,
पाप की गठरी ढोते रहना .

नाच न आवे आँगन टेढ़ा , 
पीर की तीर चुभोते रहना .

भाग की रोटी जुरवा खाए ,
मुनकिर रूप को रोते रहना .

Sunday, July 13, 2014

Junbishen 313


गज़ल

तू है रुक्न अंजुमन का, तेरी अपनी एक ख़ू है,
मैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग ओ बू है.

वतो इज़ज़ो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख़ रू है, बेक़ुसूर ज़र्द रू है.

तेरा दीं सुना सुनाया, है मिला लिखा लिखाया,
मेरे ज़ेहन की इबारत, मेरी अपनी जुस्तुजू है.

मुझे खौफ है ख़ुदा का, न ही एहतियात ए शैतान,
नहीं खौफ दोज़खों का, न बेहिश्त आरज़ू है.

वोह नहीं पसंद करते, जो हैं सर्द मुल्क वाले,
तेरी जन्नतों के नीचे, वो जो बहती अब ए जू है.

तेरे ध्यान की ये डुबकी, है सरल बहुत ही जोगी ,
कि बहुत सी भंग पी लूँ ,तो ये पाऊँ तू ही तू है.
*****
* वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए=खुदा जिसको चाहे इज्ज़त दे,जिसको काहे जिल्लत.

Friday, July 11, 2014

Junbishen 312


गज़ल

आलम ए गुम की चीज़ होती है,
जान कितनी अज़ीज़ होती है.

अच्छा शौहर गुलाम होता है,
अच्छी बीवी कनीज़ होती है.

बात बिगडे तो जाए रुसवाई,
बात बन कर तमीज़ होती है.

मुफ़्त का मॉल खाने वालों की,
खाल कितनी दबीज़ होती है.

फिल्म बे दाग़ रहनुमाओं की ,
देखिए कब रिलीज़ होती है.

बे ख़याली में लम्स की बोटी,
हाय कितनी लज़ीज़ होती है.

*****
*कनीज़=दासी * दबीज़=मोटी*लम्स=स्पर्श


Tuesday, July 8, 2014

Junbishen 311


गज़ल

नई सी सिंफ़े सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,
न झूट सच की, खुशी की, न ग़म की बात करो।

न बैठ जाना कि मसनद3 है, सुलह कुल4 की ये,
खड़े खड़े ही, दिलेरी की दम की बात करो।

उतार आओ अक़ीदत को, साथ जूतों के,
हमारी बज़्म में, हक़ की, धर्म की बात करो।

मुआमला है, करोड़ों की जिंदगी का ये,
सियासतों के खिलाड़ी, न बम की बात करो।

सभी असासा5 वतन का है, हस्बे नव आईन6,
अमीन कौन है, इस पर भरम की बात करो।

ये चाहते हो, हमा तन ही गोश 7हो जाएँ,
हों उलझे गेसुए अरज़ी8, अदम9 की बात करो।

तलाशे सिद्क़े ख़ला10 कितने मक़नातैशी11 हैं,
न अब जनाब ख़ुदा की, सनम की बात करो।

बहुत ही खून पिए जा रहे हैं, ये "मुंकिर"
क़सम है तुम को, जो दैरो हरम12 की बात करो।

१-काव्य-विधा २-नई बात ३-कुर्सी ४-सम्पूर्ण-संधि ५-पूँजी ६-नया संविधान ७-शरीर का कान बन जाना ८-धरती की लटें  ९-अनिस्तत्व --क्षितिजि-सच्चाई ११-चुम्बकीय १२-मंदिरों-मस्जिद

Monday, July 7, 2014

Junbishen 310



नज़्म 

कारसेवा 

कार सेवा है कि गुरु द्वारे जा ,
झूटे बर्तन की सफ़ाई कर दे ,
फर्श गन्दा हो , लगा दे पोछा ,
काम को मांगे रसोई जाके ,
कार सेवा है इबादत से सिवा .

कार सेवा को हथौड़ों से किया,
बेलचे और कुदालों से किया ,
करके मिस्मार एक मस्जिद को ,
कार सेवा को गुनाहों से किय. 

कार सेवा है कि आँखें बरसें ,
नाम कुछ और इसे दे डालो ,
कार सेवा को यूँ रुसवा न करो,
कार सेवा है मुक़द्दस हरकत ,
कार सेवा है खुदाई खिदमत .

Thursday, July 3, 2014

Junbishen 309



नज़्म 

कर्ब ए तन्हाई 

तू भी चल उस सम्त, जिस पर ये ज़माना है रवां ,
वर्ना छुट जाएगा 'मुंकिर' तुझ से तेरा कारवां .
अपने धुन की बोझ लेकर, तनहा तू रह जाएगा ,
इन्किशाफ़ ऍ राज़ ऍ हस्ती किस पे तू झलकाएगा .
क्यों गुरेज़ाँ है जहाँ, खुद अपनी ही तकमील से ,
क्यों झुसस जाती है दुन्या, सच की इक क़िनदील से .
नव अज़ाँ  का सिलसिला, लेता है क्यों मुद्दत तवील ,
सौ सफ़र में रख के क्यों, आता है अगला संग ए मील .
ज़ेहन कैसे हम सफ़र हों , इरतेक़ाई चाल के ,
मुज़्तरिब फ़ितरत को हैं, हर लम्हा सौ सौ साल के. 
इंतज़ार इ वक़्त बन, वह दिन यक़ीनन आएगा ,
मज़हबों के इस जुनूँ से, आदमी थर्राएगा .

Tuesday, July 1, 2014

Junbishen 308

रूबाइयाँ 

बेचैन सा रहता भरी महफ़िल में,
है कौन छिपा बैठा, तड़पते दिल में,
रहती हैं ये आखें, मतलाशी किसकी ?
मंजिल है कहाँ, कौन निहाँ मंजिल में.


धरती के हैं, धरती की रज़ा रखते हैं,
हक धरती का हर रोज़ अदा करते हैं,
वह चाहने वाले हैं फ़लक के 'मुंकिर',
ऊपर की दुआओं में लगे रहते हैं.


तस्बीह, तसवीर, मसाजिद, तोगरा,
एक्सपोर्ट करे चीन, खरीदे मक्का,
सीने से लगाए हैं इन्हें हाजी जी,
बेदीनों के तिकड़म का यह दीनी तुक्का.