Monday, April 30, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 45




 45

अनसुनी सभी ने की, दिल पे ये मलाल है,
मैं कटा समाज से, क्या ये कुछ ज़वाल है.

कुछ न हाथ लग सका, फिर भी ये कमाल है,
दिल में इक क़रार है, सर में एतदाल है.

जागने का अच्छा फ़न, नींद से विसाल है,
मुब्तिला ए रोज़ तू , दिन में पाएमाल है.

ख्वाहिशों के क़र्ज़ में, डूबा बाल बाल है,
ख़ुद में कायनात ए मन, वरना मालामाल है.

है थकी सी इर्तेक़ा, अंजुमन निढाल है,
उठ भी रहनुमाई कर, वक़्त हस्ब ए हाल है.

पेंच ताब खा रहे हो, तुम ग़लत जुनैद पर,
खौ़फ़ है कि किब्र? है कैसा ये जलाल है.

***

،ان سُنی سبھی نے کی، دل پہ ملال ہے 
میں سماج سے کٹا، کیا یہ کچھ زوال٠ 

،کچھ نہ ہاتھ لگ سکا، پھر بھی یہ کمال ہے  
دل میں اک قرار ہے، سر میں اعتدال ہے٠ 

،جاگنے کا اچھا فن، نیند سے وصال ہے 
مبتلاء روز تو، شب میں پائمال ہے٠ 

،خواہشوں کے قرض میں، ڈوبا بال بال ہے 
خود میں کائنات  من ، ورنہ مالا مال٠ 

،ہے تھکی سی ارتقاء، انجمن نڈھال ہے
اُٹھ بھی رہنمائی کر، وقت جسبِ حال  ہے. 

،پیچ و تاب کھا رہے ہو، تم غلط جنید پر 
خوف ہے کہ کِبر ہے، کیسا یہ جلال ہے٠ 

 

Sunday, April 29, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 44



44 

इस्तेंजाए ख़ुश्क की, इल्लत में लगे हैं,
वह बे नहाए धोए, तहारत में लगे हैं.

मीरास की बला, ये बुज़ुर्गों से है मिली,
तामीर छोड़ कर वह, अदावत में लगे हैं.

वह गिर्द मेरे, अपनी ग़रज़  ढूँढ रहा है,
हम बंद किए आँख, मुरव्वत में लगे हैं.

दोनों को सर उठाने की, फ़ुर्सत ही नहीं है,
ख़ालिक़ से आप, हम है कि ख़िलक़त से लगे हैं.

तन्हाई चाहता हूँ , तड़पने के लिए मैं,
ये सर पे खड़े, मेरी अयादत में लगे हैं.

'मुंकिर' ने नियत बांधी है, अल्लाह हुअक्बर,
फिर उसके बाद, आयत ए ग़ीबत में लगे हैं.

# इस शेर का मतलब किसी मुल्ला से दरयाफ्त करें.*मीरास=पैत्रिक सम्पत्ति 
*तामीर=रचनात्मक कार्य *खालिक=खुदा *अयादत =पुरसा हाली 
$=कहते हैं की नमाज़ पढ़ते समय शैतान विचारो में सम्लित हो जाता है.

،استنجا۶ خُشک کی علّت میں لگے ہیں 
وہ بے نہاے دھوے طہارت میں لگے ہیں٠

،میراث کی بلا یہ بُزرگوں سے ملی ہے 
تعمیر چھوڑ کر، وہ عداوت میں لگے ہیں٠ 

،وہ گرد میرے، اپنی غرض ڈھونڈھ رہا ہے 
ہم بند کئے آنکھ ، مُروّت میں لگے ہیں٠ 

،دونوں کو سر اُٹھانے کی، فُرصت ہی نہیں ہے 
خالق سے آپ اور ہم ، خلقت سے لگے ہیں٠ 

،تنہائی چاہتا ہوں تڑپنے کے لئے میں 
یہ سر پہ کھڑے میری، عیادت میں لگے ہیں٠ 

،منکر نے نیت باندھی ہے، الله اکبر
پھر اُسکے بعد آیتِ غیبت میں لگے ہیں٠  

Saturday, April 28, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 43



43

चेहरे यहाँ मुखौटे हैं, और गुफ़्तुगू हुनर, 
खाते रहे फ़रेब हम, कमज़ोर थी नज़र.

हैं फ़ायदे भी नहर के, पानी है राह पर,
लेकिन सवाल ये है, यहाँ डूबे कितने घर ?

पाले हुए है तू इसे, अपने ख़िलाफ़ क्यूँ ,
ये खौ़फ़ दिल में तेरे, है अंदर का जानवर.

होकर जुदा मैं ख़ुद से, तुम्हारा न बन सका,
तुम को पसंद जुमूद था, मुझ को मेरा सफ़र.

पुख़्ता भी हो, शरीफ़ भी हो, और जदीद भी,
फिर क्यूँ अज़ीज़ तर हैं, तुम्हें कुहना रहगुज़र.

हस्ती का मेरे जाम, छलकने के बाद अब,
इक सिलसिला शुरू हो, नई राह ए पुर असर.

जुमूद=ठहराव *जदीद=नवीन *कुहना रहगुज़र=पुरातन मार्ग

***

،چہرے یہاں مُکھوٹے ہیں، اور گُفتگو ہُنر 
کھاتے رہے فریب کہ کمزور تھی نظر٠ 

،ہیں فائدے بھی نہر کے، پانی ہےراہ پر
لیکن سوال یہ ہے، یہاں ڈوبے کتنے گھر؟

،پالے ہوئے ہے تو، اسے اپنے خلاف ہی 
یہ خوف تیرا ہے، ترے اندر کا جانور٠ 

،ہوکر جدا میں خود سے، تمہارا نہ ہو سکا 
تم قایمِ جمود تھے، ہم مائلِ سفر٠ 

،صا لح بھی ہو ،شریف بھی، اور جدید بھی 
 پھر کیوں عزیز تر ہے، تمہیں کہنہ رہ گزر؟ 

،ہستی کا میری جام چھلکنے کے بعد اب 
اک سلسلہ شروع ہو، نئی را ہِ  پُر اثر٠ 

Friday, April 27, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 42



42

उनकी हयात, उसकी नमाज़ों के वास्ते,
मेरी हयात, उसके ही राज़ों के वास्ते.

मुर्शिद के बाँक पन के, तक़ाज़ों को देखिए,
नूरानियत है, जिस्म गुदाज़ों के वास्ते.

मंज़िल को अपनी, अपने ही पैरों से तय करो,
है हर किसी का काँधा, जनाज़ों के वास्ते.

सासें तेरे वजूद की, नग़मो की नज़र हों,
जुंबिश बदन की हों, तो हों साज़ों के वास्ते.

गाने लगी है गीत वह, नाज़िल नुज़ूल की,
बुलबुल है आसमान के, बाज़ों के वास्ते.

मुंकिर वहां पे छूते, छुवाते हैं पैर को,
बज़्मे अजीब, दो ही तक़ाज़ों के वास्ते.

***

، اُنکی حیات ، اُسکی نمازوں کے واسطے
میری حیات اُسکے ہی، رازوں  کے واسطے٠ 

،مُرشد کے بانک پن کے تقاضوں کو دیکھئے 
نورانیت ہے، جسم گدازوں  کے واسطے٠  

،منزل کو اپنی، اپنے ہی پیروں سے طے کرو 
ہے ہر کسی کا کاندھا ، جنازوں  کے واسطے٠ 

،ساسیں تری وجود کے، نغموں کے نذر ہوں 
جنبش بدن کی ہو توہو، سازوں  کے واسطے٠ 

،گانے لگی ہے گیت، یہ نازل نُزول کے
بُلبُل ہے آسمان کے، بازوں  کے واسطے٠ 

،منکر وہاں پہ چھوتے، چُھلاتے ہیں پانو کو 
بزمِ عجب ہے، دو ہی تقاضوں  کے واسطے٠  

Thursday, April 26, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 41



41

पश्चिम हँसा है पूर्वी, कल्चर को देख कर,
हम जिस तरह से हंसते हैं, बंदर को देख कर.

चेहरे पे नातवाँ के, पटख देते हैं क़ुरआन ,
रख देते हैं क़ुरआन, तवंगर को देख कर.

फिर मादर ए वतन कभी जम कर करेगी रक्स , 
तारीख़ के सफ़े पे किसी नर को देख कर.

धरती का जिल्दी रोग है, इन्सान का ये सर,
फ़ितरत पनाह मांगे है, इस सर को देख कर.

यकता है वह, जो सूरत बातिन में है शुजअ,
डरता नहीं है ज़ाहिरी, लश्कर को देख कर.

झुकना न पड़ा, क़द के मुताबिक हैं तेरे दर,
मुंकिर का दिल है शाद तेरे घर को देख कर.

नातवां=कमज़ोर *तवंगर= ताक़तवर *फ़ितरत=पराकृति 
* बातिन=आंतरिक रूप में *शुजअ=बहादुर

***

،پچّھم ہنسا ہے، پوربی کلچر کو دیکھ کر 
ہم جس طرح سے ہنتے ہیں، بندر کو دیکھ کر٠ 

،چہرے پہ نا تواں کے، پٹخ دیتے ہیں قران  
رکھ دیتے ہیں قران ، تونگر کو دیکھ کر٠ 

، یکتا ہے وہ ، جو صورتِ باطن میں ہے شجاع   
ڈرتا نہیں وہ ظاھری لشکر کو دیکھ کر٠ 

،دھرتی کا جلدی روگ ہے، انسان کا یہ سر
فطرت پناہ مانگے ہے، اس سر کو دیکھ کر٠ 

،پھر مادرِ وطن کبھی، جم کر کریگی رقص 
تاریخ کے ورق پہ، کسی نر کو دیکھ کر٠ 

،جھکنا پڑا نہ، قد کے مطابق تھے تیرےدر 
منکر کا دل ہے شاد ، ترے گھر کو دیکھ کر٠  

Wednesday, April 25, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 40



40

काँटों की सेज पर, मेरी दुन्या संवर गई,
फूलों का ताज था वहाँ, इक गाए चर गई.

रूहानी भूक प्यास में, मैं उसके घर गया,
दूभर था सांस लेना, वहां नाक भर गई.

वोह साठ साठ साल के, बच्चों का था गुरू,
सठियाए बालिग़ान पे, उस की नज़र गई.

लड़ कर किसी दरिन्दे से, जंगल से आए हो?
मीठी जुबान, भोली सी सूरत, किधर गई?

नाज़ुक सी छूई मूई पे, क़ाज़ी के ये सितम,
पहले ही संग सार के, ग़ैरत से मर गई.

सोई हुई थी बस्ती, सनम और ख़ुदा लिए,
"मुंकिर" ने दी अज़ान तो, इक दम बिफर गई.

***

،کانٹوں کی سیج پر، میری دُنیا سنوار گئی
پھولوں کا تاج تھا وہاں، اِک گاۓ چر گئی٠ 

،روحانی بھوک پیاس میں، میں اُسکے گھر گیا 
دوبھر تھا سانس لینا، وہاں ناک بھر گئی٠ 

،وہ ساٹھ ساٹھ سال کے، بچوں کا تھا گرو 
سٹھیاے بالغان پہ، اُسکی نظر گئی٠ 

لڑ کر کسی درندے سے، جنگل سے آے ہو؟
میٹھی زبان، بھولی سی صورت کِدھر گئی٠   

،نازک ترین صِنف پر، قاضی کے یہ سِتم 
پہلے ہی سنگ ساری کے، غیرت سے مر گئی٠ 

،سوئی ہوئی تھی بستی، صنم اور خدا لئے 
منکر نے دی اذان تو، یک دم بپھر گئی٠ 

Tuesday, April 24, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 39



39

तोहमत शिकस्ता पाई , मुझ पर मढ़े हो तुम,
राहों के पत्थरों को, हटा कर बढ़े हो तुम?

कोशिश नहीं है, नींद के आलम में दौड़ना,
बेदारियों की शर्त को, कितना पढ़े हो तुम?

बस्ती है डाकुओं की, यहाँ लूट के ख़िलाफ़ ,
तक़रीर ही गढ़े, कि जिसारत गढ़े हो तुम?

अलफ़ाज़ से बदलते हो, मेहनत कशों के फल,
बाज़ारे हादसात में, कितने कढ़े हो तुम.

इंसानियत के फल हों? मज़ाहिब के पेड़ में,
ये पेड़ है बबूल का, जिस पे चढ़े हो तुम.

"मुंकिर" जो मिल गया, तो उसी के सुपुर्द हो,
ख़ुद को भी कुछ तलाशो, लिखे और पढ़े हो तुम.

शिकस्ता पाई=सुस्त चाल

***

،تہمت شکستہ پائی ، مُجھ پر مڑھے ہو تم 
راہوں کے پتھروں کو، ہٹا کے بڑھے ہوتم ؟

،کاوش نہیں ہے نیند کے عالم میں دوڑنا
بیداریوں کی شرط کو کتنا پڑھے ہو تم؟ 

،بستی ہے ڈاکووں کی، یہاں لوٹ کے خلاف 
تقریر ہی گڑھے، کہ جسارت گڑھے ہو تم؟

،الفاظ سے بدلتے ہو، محنت کشوں کے پھل 
بازارِ حادثات میں کتنے کڑھے ہو تم٠ 

انسانیت کے پھل ہوں، مذاہب کی ڈال میں؟ 
یہ پیڑ ہے ببول کا، جس پر چڑھے ہو تم٠ 

،منکر جو مل گیا تو، اُسی کے سُپُرد ہو 
خود کو بھی کُچھ تلاش کرو، گر پڑھے ہو تم٠ 

Monday, April 23, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 38



38

इक लम्हा लग्ज़िसों का अज़ाब ए हयात है,
ग़लबा है इक ख़ला का, भरी कायनात है. 

पाबंदियों की सुर्ख़ लकीरें लिए हुए,
रातों को दिन कहें, तो कहें दिन को रात है.

बस है बहुत लतीफ़, हक़ीक़त को छोडि़ए,
इन झूटे तर्जुमों में, बला की बिसात है.

आइना तेरे दिल का, निगाहों में नस्ब है,
सुनने की बात, और न कहने की बात है. 

मुन्सिफ़ की मुजरिमो की, हम आगोश हैं जड़ें, 
इन्साफ़ मर चुका है, ये क़ौमी वफ़ात है. 

ऐ डाकुओ! तुम्हारे भी अपने उसूल हैं, 
हातिम को लूट लो, बड़ी नाज़ेबा बात है. 

***

،اک لمحہ زندگی کا، عذاب حیات ہے
غلبہ ہے، اک خلا ہے، بھری کائنات ہے٠  

،پابندیوں کی سرخ، لکیریں لئے ہوئے
راتوں کو دن کہیں ، تو کہیں دن کو رات ہے٠  

،بس ہیں بہت لطیف، حقیقت کو چھوڑئے
ان جھوٹے ترجُموں میں، بلا کی بسات ہے٠  

،آئینہ تیرے دل کا، نگاہوں میں نسب ہے
سننے کی بات ، اور نہ کہنے کی بات ہے٠  

،مُنصف کی مجرموں سے ہم آگوش ہے جڑیں
انصاف مر چکا ہے، یہ قومی وفات ہے٠  

،ائے ڈاکوو! تمہارے بھی، اپنے اصول تھے
حاتم کو لوٹ لو، بڑی نازیبہ بات ہے٠  

Sunday, April 22, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 37



37

कहीं हैं हरम1 की हुकूमतें, कहीं हुक्मरानी-ऐ-दैर2 है,
कहाँ ले चलूँ , तुझे हम जुनूँ, कहाँ ख़ैर शर3 के बग़ैर है.

बुते गिल4 में रूह को फूँक कर, उसे तूने ऐसा जहाँ दिया,
जहाँ जागना है एक ख़ता, जहाँ बे ख़बर ही बख़ैर है.

बड़ी खोखली सी ये रस्म है, कि मिलो तो मुँह पे हो ख़ैरियत?
ये तो एक पहलू नफ़ी5 का है, कहाँ इस में जज़्बाए ख़ैर है.

मुझे ज़िन्दगी में ही चाहिए, तेरी बाद मरने कि चाह है,
मेरा इस ज़मीं पे है कारवाँ, तेरी आसमान की सैर है.

सभी टेढ़े मेढ़े सवाल हैं कि समाजी तौर पे क्या हूँ मैं,
मेरी ज़ात पात से है दुश्मनी, मेरा मज़हबों से भी बैर है.

१-काबा २-मन्दिर ३-झगडा ४-माटी की मूरत ५-नकारात्मक

***

،کہیں ہیں حرم کی حکومتیں، کہیں حُکمرانی ے دیر ہے 
کہاں لے چلوں تجھے ائے جنوں، کہاں خیر شر کے بغیر ہے٠ 

،بُتِ گل میں روح کو پھونک کر، اُسے تو نے ایسا جہاں دیا
جہاں جاگنا ہے اک خطا، جہاں بے خبر ہی بخیر ہے٠ 

بڑی کھوکھلی سی یہ رسم ہے، کہ ملو تو منہ پہ ہو خیریت؟ 
یہ تو ایک پہلونفی کا ہے، کہاں اس میں جزبہ۶ خیر ہے؟ 

،مجھے زندگی میں ہی چاہئے، تری بعد مرنے کی چاہ ہے 
مرا اس زمیں پہ ہے کا روں، ترا آسمان کی سیر ہے٠ 

،سبھی ٹیڑھے میڑھےسے سوال ہیں، کہ سماجی طور پہ کیا ہوں میں؟
میری ذات پات سے دُشمنی، میرا مذہبوں سے بھی بیر ہے٠ 

Saturday, April 21, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 36



36

अपने ही उजालों में, जिए जा रहा हूँ मैं,
घनघोर घटाओं को, पिए जा रहा हूँ मैं.

होटों को सिए, हाथ उठाए है कारवाँ,
दम नाक में रहबर के, किए जा रहा हूँ मैं.

मज़हब के हादसात, पिए जा रहे हो तुम,
बेदार हक़ायक़ को, जिए जा रहा हूँ मैं.

इक दिन ये जनता फूंकेगी, धर्मों कि दुकानें,
इसको दिया जला के, दिए जा रहा हूँ मैं.

फिर लौट के आऊंगा, कभी नई सुब्ह में,
तुम लोगों कि नफ़रत को, लिए जा रहा हूँ मैं.

फिर चाक न कर देना, सदाक़त के पैरहन,
"मुंकिर" का ग़रेबान सिए जा रहा हूँ मैं.
***

،اپنے ہی اُجالوں میں جئے جا رہا ہوں میں 
گھنگھور گھٹاؤں کو پئے جا رہا ہوں میں٠ 

،ہوٹوں کو سئے، ہاتھ اُٹھاے ہے کارواں 
دم ناک میں رہبر کے کئے جا رہا ہوں میں٠ 

،مسلک کے حوادث کو، پئے جا رہے ہو تُم 
بیدار حقایق کو، جئے جا رہا ہوں میں٠ 

،مذہب کے تجارت کو جلا دیگا وقت نو 
اک شمع قیادت کی دئے جا رہا میں٠ 

،پھر لوٹ کے آؤنگا ، کبھی ہوگی صبحِ نو 
تم  لوگوں کی نفرت کو لئے جا رہا ہوں میں٠ 

Friday, April 20, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 35



35

सपने सजा रहा हूँ, पलकें बिछा रहा हूँ,
यादों को ले के तेरी, मैं सोने जा रहा हूँ .

पैरों में बेड़ियाँ तू ,मत डाल ऐ मेरी माँ,
मैं आसमां के ऊपर सीढ़ी लगा रहा हूँ,

बहने यतीम छः हैं मेरी किफ़ालतों में,
मैं अपनी वल्दियत के क़र्जे चुका रहा हूँ.

जुज़्व ए ख़फ़ीफ़ सा हूँ , ज़र्रा हूँ कायनाती ,
बे सुर का हस्त व् बूदी, बाजे बजा रहा हूँ.

हरगिज़ जमात ए खर को मत छेड़एगा मुंकिर ,
हक्वारे यह कहेंगे भेड़ें चुरा रहा हूँ.
***
،سپنے سجا رہا ہوں، پلکیں بچھا رہا ہوں 
یادوں کو تیرے لے کے، میں سونے جا رہا ہوں٠ 

،پیروں میں بیڑیاں تو، مت ڈال اے مری ماں 
میں آسماں کے اوپر، سیڑھی لگا رہا ہوں٠ 

،بہنیں یتیم چھہ ہیں، میری کفالتوں میں 
میں اپنی ولدیت کے، قرضے چکا رہا ہوں٠ 

،جزوِ خفیف سا ہوں، زررہ ہوں کایناتی 
بے سر کا ہست بودی، باجہ بجا رہا ہوں٠ 

،ہرگز جماعتی کو مت چھیڑ ۓ گا منکر 
ہکوارے یہ کہیں گے، بھیڑیں چرا رہا ہوں٠  

Thursday, April 19, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 34



34

ख़िरद का मशविरा है, ये कि अब ग़लत निबाह है,
दलील ए दिल ये कह रही है, उस में उसकी चाह है.

मुक़ाबले में है ज़बां कि क़ादिरुल कलाम है,
सलाम आइना करे है, सब जहाँ सियाह है.

ज़मीर की रज़ा है गर, किसी अमल के वास्ते,
बहेस मुबाहसे जनाब, उस पे ख़्वाह मख़्वाह है.

लहू से सींच कर तुम्हारी खेतियाँ, अलग हूँ मैं,
किसी तरह का मशविरह, न अब कोई सलाह है.

नदी में तुम रवाँ दवाँ , कभी थे मछलियों के संग ,
बला के दावेदार हो, समन्दरों की थाह है.

तलाश में वजूद के, ये ज़िन्दगी तड़प गई,
फ़ुज़ूल का ये क़ौल है, कि चाह है तो राह है.

*खिरद=विवेक * व्यर्थ *क़दिरे कलाम =भाषाधिकार



،خرد کا مشورہ ہے یہ، کہ اب غلط نباہ ہے 
دلیل دل کی کہرہی ہے، اُس میں میری چاہ ہے٠ 

،مقابلے میں ہے زباں، کہ قادرالکلام  ہے 
سوال آئینہ کئے ہے، سب جہاں سیاہ ہے٠ 

،ضمیر کی رضا ہے گر، کسی عمل کے واسطے 
بحس مباحسا جناب، اُس پہ خواہ مخواہ ہے٠ 

،لہو سے سینچ کر، تمہاری کھیتیاں الگ ہوں میں 
کسی طرح کا مشورہ، نہ اب کوئی صلاح ہے٠ 

،ندی میں تم رواں دواں، کبھی تھے مچھلیوں کے سنگ  
بلا کے دعوے دار ہو، سمندروں کی تھاہ ہے٠ 

،تلاش میں وجود کے یہ زندگی تڑپ گئی
.فضول کا یہ قول ہے کہ چاہ ہے تو راہ ہے 

Wednesday, April 18, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 33




33

रहबर ने पैरवी का जुनूं , यूँ बढ़ा लिया,
आखें जो खुली देखीं तो, तेवर चढ़ा लिया.

तहक़ीक़ ग़ौर व् फ़िक्र, तबीअत पे बोझ थे,
अंदाज़ से जो हाथ लगा, वह उठा लिया.

शोध और आस्था में, उन्हें चुनना एक था,
आसान आस्था लगी, सर में जमा लिया.

साधू को जहाँ धरती के, जोबन ज़रा दिखे,
मन्दिर बनाया और, वहीँ धूनी रमा लिया.

पाना है गर ख़ुदा को, तो बन्दों से प्यार कर,
वहमों की बात थी ये, ग़नीमत कि पा लिया.

"मुंकिर" की सुलह भाइयों से, इस तरह हुई,
खूं पी लिया उन्हों ने, ग़म इस ने खा लिया.

،رہبر نے پیروی کا جنوں یوں بڑھا لیا 
 آنکھیں جو کھلی دیکھی  تو تیور چڑھا لیا٠ 

،تحقیق وغوروفکر، طبعیت پہ بوجھ تھے
انداز سے جو ہاتھ میں آیا، اٹھا لیا٠ 

،کرنا تھا انکو علم وعقیدت میں انتخا ب 
آسان تھیں عقیدتیں ، سر میں جما لیا٠ 

،دیکھے جہاں زمین پہ، قدرت کے ناک و نقش 
اک بُت وہیں بنایا اور دھونی رما لیا٠ 

،پانا ہے گر خدا تو بندوں سے پیار کر 
وہموں کی بات تھی یہ غنیمت، جو پا لیا٠ 

،منکر کی صُلح بھائیوں سے اِس طرح ہوئی 
خوں پی لیا اُنہوں نے، غم میں نے کھا لیا٠ 

Tuesday, April 17, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 32



32

मय्यत का मेरी आग या दरिया हो ठिकाना,
तुम खाता बही लेके, मियाँ क़ब्र में जाना. 

पहले तो वज़ू और रुकुअ तक में फसाना,
मैं फंस जो गया तो मुझे उंगली पे नचाना.

इंसान का है ज़िक्र मवेशी का नहीं है,
लाखों को हांकता है, यहाँ फ़र्द ए सयाना.

है ग़िलमा के तोहफ़े की तलबगार इमामत,
हुजरे में मसाजिद के न बच्चों को पढ़ाना.

अपनी ख़ुशी के रोड़े हटा ले तो मैं चलूँ ,
जिन रास्तों पर चलने को कहता है ज़माना.

अल्ला मियां की ज़ात घसीटे है बहस में,
दर अस्ल मेरी ज़ात है, ज़ाहिद का निशाना.

،میّت کا میری آگ یا، دریہ ہو ٹھکانا 
تُم کھاتا بہی لیکے، میاں قبر میں جانا٠  

،پہلے تو وضو اور رُقوع، تک ہی پھسانا
میں پھنس جو گیا تو، مجھے اُنگلی پہ نچانا٠  

،یہ ذکر ہے انساں، مویشی کا نہیں ہے
لاکھوں کو ہانکتا ہے، یہاں فردِ شیانا٠  

،ہے غلمه کے تحفہ کی، طلب گار اِمامت
حجرے میں مساجد کے، نہ بچوں کو پڑھانا٠  

،اپنی خوشی کے روڑے، ہٹا لے تو میں چلووں
جِن راستوں پہ چلنے کو، کہتا ہے زمانہ٠  

،اللہ میاں کی ذات، گھسیٹے ہے بحث میں
منکر کی ذات ، ورنہ ہے زاہد کا نشانہ٠  


Monday, April 16, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 31



31

दो चार ही बहुत हैं, गर सच्चे रफ़ीक़ हैं,
बज़्म ए अज़ीम से, तेरे दो चार ठीक हैं.

तारीख़ से हैं पैदा, तो मशकूक है नसब,
जुग़राफ़िया ने जन्म दिया, तो अक़ीक़ हैं.

कांधे पे है जनाज़ा, शरीक ए हयात का,
आँखें शुमार में हैं कि,  कितने शरीक हैं?

ईमान ताज़ा तर, तो हवाओं पे है लिखा,
ये तेरे बुत ख़ुदा तो, क़दीम ओ दक़ीक़ हैं.

इनको मैं हादसात पे, ज़ाया न कर सका,
आँखों की तिश्नगी , यही बूँदें रक़ीक़ हैं.

रहबर मुआशरा तेरा, तहतुत्सुरा में है,
"मुंकिर" बक़ैद ए सर, लिए क़ल्ब ए अमीक़ हैं.

रफीक़=दोस्त *मशकूक=शंकित * नसब=नस्ल *जुगराफ़िया=भूगोल 
*दकीक़=पुरातन *तहतुत्सुरा=पाताल *क़ल्बे अमीक़ गंभीर ह्र्दैय के साथ

،دو چار ہی بہت ہیں، جو سچے رفیق ہیں
بزمِ عظیم سے ترے، دو چار ٹھیک ہیں٠ 

،تاریخ سے ہیں پیدا، تو مشکوک ہے نسب 
جغرافیہ نے جنم دیا تو عقیق ہیں٠ 

،کاندھے پہ تھا جنازہ، رفیقِ حیات کا
آنکھیں شُمار میں تھیں، کہ کتنے شریک ہیں٠ 

،ایمان تازہ تر، تو فضاؤں میں ہے لکھا
تیرے بُت و خدا تو قدیم و دقیق ہیں٠ 

،آنسو کو اپنی لاش پہ ضائع نہ کر سکے
آنکھوں کی تشنگی ، یہ بوندیں رقیق ہیں٠ 

،رہبر معاشرہ ترا، تحت الثراء میں ہے 
منکر بقید سر، لئے قلبِ عمیق ہیں٠  

Sunday, April 15, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 30




30

ज़ेहनी दलील, दिल के तराने को दे दिया,
इक ज़र्ब ए तीर इस के, दुखाने को दे दिया.

तशरीफ़ ले गए थे, जो सच की तलाश में,
इक झूट ला के और, ज़माने को दे दिया.

तुम लुट गए हो इस में, तुम्हारा भी हाथ है,
तुम ने तमाम उम्र, ख़ज़ाने को दे दिया.

अपनी ज़ुबाँ, अपना मरज़, अपना ही आइना,
महफ़िल की हुज्जतों ने, दिवाने को दे दिया.

आराइशों की शर्त पे, मारा ज़मीर को,
अहसास का परिन्द, निशाने को दे दिया.

"मुंकिर" को कोई खौ़फ़, न लालच ही कोई थी,
सब आसमानी इल्म, फ़साने को दे दिया.

،ذہنی دلیل دل کے ترانے کو دے دیا 
اک ضربِ تیر اس کے دُکھانے کو دے دیا٠ 

،تشریف لے گئے تھے جو سچ کی تلاش میں 
اک جھوٹ لا کے اور زمانے کو دے دیا٠ 

،تُم لُٹ گئے تو اس میں، تمہارا بھی ہاتھ ہے 
تم نے تمام عمر، خزانے کو دے دیا٠ 

،اپنی زبان، اپنا مرض، اپنا ہی آئینہ 
محفل کی حُججتوں نے دوانے کو دے دیا٠ 

،آرائشوں کی شرط پر، مارا ضمیر کو 
احساس کا پرند، نشانے کو دے دیا٠ 

،منکر کو کوئی خوف، نہ لالچ ہی ہے کوئی
سب آسمانی علم ، فسانے کو دے دیا ٠ 


Saturday, April 14, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 29




29

बेखटके जियो यार, कि जीना है ज़िन्दगी,
निसवाँ1 है हिचक खौ़फ़, नरीना2 है ज़िन्दगी.

खनते को उठा लाओ, दफ़ीना है ज़िन्दगी,
माथे पे सजा लो, कि पसीना है ज़िन्दगी.

घर, खेत, सड़क, बाग़ की, राहें सवाब हैं,
मक्का है ज़िन्दगी, न मदीना है ज़िन्दगी.

नेकी में नियत बद है, तो मजबूर है बदी,
देखो कि किसका कैसा,  क़रीना है ज़िन्दगी.

जिनको ये क़नाअत3 की नफ़ी4, रास आ गई,
उनके लिए ये नान ए शबीना5 है ज़िन्दगी.

इबहाम6 की तौकों से, सजाए वजूद हो,
'मुंकिर' जगे हुए पे, नगीना है ज़िन्दगी.

१-स्त्री लिंग २-पुल्लिग़ ३-संतोष ४-आभाव ५-बासी रोटी ६-अंध-विशवास

، بے کھٹکے جیو یار، کہ جینا ہے زندگی
نسواں ہے ہچک خوف ، نرینہ ہے زندگی٠ 

کھنتے کو اٹھا لاؤ، دفینہ ہے زندگی٠
ماتھے پہ سجا لو کہ پسینہ ہے زندگی٠

، گھر کھیت سڑک، باغ کی راہیں حیات ہیں، 
مکّہ ہے زندگی نہ مدینہ ہے زندگی٠

، نیکی میں نیت بد ہے، تو مجبور ہے بدی، 
ہر اک کے لئے اپنا قرینہ ہے زندگی٠

، جنکو یہ قناعت کی نفی را س آ گئی، 
انکے لئے اک نانِ شبینہ ہے زندگی٠

، ہے طوق یہ لعنت کی، جوپہنے وہم کو،  
منکر کی انگوٹھی میں نگینہ ہے زندگی٠

Friday, April 13, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 28



28

दाग़ सारे धुल गए तो, इस जतन से क्या हुवा,
थोड़ा सा पानी भी रख, ऐ दूध का धोया हुवा.

ज़ेहनी बीमारी पे शक करना है, जैसे फ़र्द ए जुर्म,
अंधी और बहरी अक़ीदत, पे है हक़ रोया हुवा.

थी सदा पुर जोश कि, जगते रहो, जगते रहो,
डाकुओं की सरहदों पर, होश था खोया हुवा.

लग़ज़िशों1 की परवरिश में, पनपा काँटों का शजर,
बच्चों पर इक दिन चुभेगा, आप का बोया हुवा.

उसकी आबाई किताबों, से जो नावाक़िफ़ हुवा,
देके जाहिल का लक़ब, उस से ख़फ़ा मुखिया हुवा.

भीड़ थामे था अक़ीदत, का मदारी उस तरफ़,
था इधर तनहा मुफ़क्किर2 इल्म पर रोया हुवा.

1 ग़लती 2 बुद्धि जीवी

،داغ سارے دُھل گئے تو اس جتن سے کیا ہوا 
تھوڑا سا پانی بھی رکھ ، اے دُودھ کا دھویا ہوا٠

،زہنی بیماری پہ شک کرنا ہے، جیسے فردِ جرم 
اندھی اور بہری عقیدت، میں ہے حق کھویا ہوا٠ 

،تھی مسلسل اک صدا، جگتے رہو، جگتے رہو 
ڈاکُووں کی سرحدوں پر، ہوش تھا کھویا ہوا٠ 

،لغزشوں کی پرورش میں، پنپا کانٹوں کا شجر
بچوں کو اک دن چُبھیگا، آپ کا بویا ہوا٠ 

،بھیڑ تھامے تھا عقیدت کا مداری، اُس طرف 
تھا اِدھر تنہہ مفککر، علم پر رویا ہوا٠ 


Thursday, April 12, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 27



27

बज़ाहिर मेरे हम नवा1पेश आए,
बड़े हुस्न से, कज अदा2 पेश आए.

मेरे घर में आने को, बेताब हैं वह,
रुके हैं, कोई हादसा पेश आए.

हज़ारों बरस की, विरासत है इंसाँ,
न ख़ून ए बशर की, नदा3 पेश आए.

ये कैसे है मुमकिन, इबादत गुज़ारो!
नवालों को लेकर, दुआ पेश आए.

मुझे तुम मनाने की, तजवीज़ छोडो,
जो माने न वह, तो क़ज़ा4 पेश आए.

ख़ुदा की मेहर ये, वो शैताँ  की हरकत,
कि "मुंकिर" कोई, वाक़ेआ पेश आए.

1 मेरे सुर में सुर मिलाने वाले २ बुरी  हरकत वाले 3 -ईश-वाणी 4 -मौत

،بظاھر مرے ہمنواں پیش آئے 
بڑے حُسن سے کج ادا پیش آئے٠ 

،مرے گھر میں آنے کو بیتاب ہیں وہ 
رُکے ہیں کوئی حادثہ پیش آئے٠ 

،ہزاروں برس کی وراثت ہے انساں 
.نہ خون بشر کی ندا پیش آئے 

،یہ کیسے ہے ممکن عبادت گُزارو
.نوالوں کو لیکر دُعا پیش آئے 

،مُجھے تم منانے کی تجویز چھوڑو 
جو مانے نہ وہ، تو قضا پیش آئے٠  

،خدا کی مہر یہ، وہ شیطان کی حرکت 
کہ منکر کوئی واقعہ پیش آئے٠ 

Wednesday, April 11, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 26



26

दुश्मनी गर बुरों से पालोगे,
ख़ुद को उन की तरह बना लोगे.

तुम को मालूम है, मैं रूठूँगा,
मुझको मालूम है, मना लोगे.

लम्स1 रेशम हैं, दिल है फ़ौलादी,
किसी पत्थर में, जान डालोगे.

मेरी सासों के डूब जाने तक,
अपने एहसान, क्या गिना लोगे.

दर के पिंजड़े के, ग़म खड़े होंगे,
इस में खुशियाँ, बहुत जो पालोगे.

सूद दे पावगे न "मुंकिर" तुम,
क़र्ज़ ए नाहक़, को तुम बढ़ा लोगे.

1-स्पर्श

،دُشمنی گر بُروں سے پالوگے 
خود کو اُن کی طرح بنالوگے٠ 

،تُم کو معلوم ہے میں روٹھنو گا 
مُجھکو معلوم ہے، منا لوگے٠ 

،لمس ریشم ہے، دل ہے فولادی 
کسی پتھر میں جان ڈالوگے٠ 

،میری ساسوں کے ڈوب جانے تک 
اپنے احسان کیا گنا لوگے٠ 

،در پہ پُنجڑے کے غم کھڑے ہوں گے 
اس میں خوشیاں بہت جو پالوگے٠ 

،سود دے پاؤگے نہ منکر تم 
قرض کو اور بھی بڑھا لوگے٠