Friday, May 31, 2019

जुंबिशें ---- दोहे


दोहे
'मुंकिर' अपनी सोंच में, पाले है शैतान ,
बात सुनी शैतान ने , बहुत हुवा हैरान . 

'منکر'اپنی سوچ میں پالے ہے شیطان 
شیطاں سن کر بات کو ، بہت ہوا حیران ٠
*

काहे हंगामा करे, रोए ज़ारो-क़तार,
आंसू के दो बूँद बहुत हैं, पलक भिगोले यार।

کاہے ہنگامہ کرے ، روے زار و قطار 
آنسو کے دو بوند بہت ہیں ، پلک بھگولے یار .
**
'मुंकिर' कच्ची सोच है, ऊपर है इनआम,
इस में गारत कर लिया, नीचे का मय जाम।

'منکر' طفلی سوچ ہے ، اوپر ملے انعام 
اس سے غارت ہو گے ، نیچے کے مے جام ٠
***

हम में तुम में रह गई, न नफ़रत न चाह,
बेहतर है हो जाएँ अब, अलग अलग ही राह.

ہم میں تم میں رہ گئی ، نہ نفرت نہ چاہ 
بہتر ہے ہو جایں اب ، الگ الگ ہی راہ ٠
****


चित को कैदी कर गई, लोहे की दीवार।
बड़ी तिजोरी में छिपी, दौलत की अम्बार॥

چت کو قیدی کر گئی ، لوہے کی دیوار 
بڑی تجوری میں چھپی دولت کی امبار

Thursday, May 30, 2019

ध्यान का ज्ञान


ध्यान का ज्ञान 

इक ध्यानी ध्यान में था, डूबा विधान में था,
इच्छा थी उसको पाऊँ, फिर दुनिया को दिखाऊँ.
लेकिन बड़ी थी मुश्किल, होना ये ग़र्क ए कामिल. 
कोई विचार आता, प्रयत्न टूट जाता.
उसने गुरु बनाया, जो उसके काम आया.

गुरुवर ने दक्षिना ली, भंग उसको फिर पिला दी.
उसको नशा जो आया, धीरे से खिलखिलाया.
बोला गुरु, मिला कुछ ? "हाँ और भी पिला कुछ"
जब पूरी चढ़ गई भंग, शागिर्द रह गया दंग.
प्रसाद गुड का खाता, लड्डू के मज़े पाता.

उठ कर वह नाच जाता, फिर तालियाँ बजाता.
जिसको वो ध्यान करता, वह सामने गुज़रता.
भगवान् पा चुका था, मुक्ति कमा चूका था.
ग़र्क ए कामिल -पूरी तरह डूबना 

 دھیان کا گیان 

اک گیانی گیان میں تھا ، ڈوبا ندان میں تھا 
اچھا تھی اسکو پاؤں ، پھر دنیا کو دکھاؤں 

لیکن بڑی تھی مشکل ، ہونا یہ غرق کامل 
کوئی وچار آتا ، پریتن ٹوٹ جاتا

اسنے گرو بنایا ، جو اسکے کام آیا 
گرو ور نے دکچھنا لی ، بھنگ اسکو پھر پلا دی

اسکو نشہ جو آیا ، دھیرے سے کھلکھلایا 
جب پوری چڑھ گئی بھنگ ، شاگرد رہ گیا دنگ 

پرساد گڑ کا کھاتا  ، لدڈو کا مزہ پاتا 
اٹھ کر وہ ناچ جاتا ، پھر تالیاں بجاتا، 

جسکو وہ دھیان کرتا ، وہ سامنے گزرتا 
بھگوان پا چکا تھا ، مکتی کما چکا تھا٠ 

Wednesday, May 29, 2019

क़तआत


क़तआत 

फ़ितरी लम्हे 

फ़ितरत ए वहशी जवाँ थी, नातवाँ फ़िक्र ए गुनाह,
हुस्न का आतश फ़शां था, थी न कोई सर्द राह,
पिघली यूँ ज़ंजीर ए तक़वा, खौ़फ़ पत्थर का था छू,
लिख भी दे कोई सज़ा , ऐ जज़ाए फ़ितना गाह.
नातवाँ=कमज़ोर , आतश फ़शां =ज्वालामुखी ,तक़वा=परहेज़ 
जज़ाए फ़ितना गाह=क़यामत का मैदान 

فِطری لمحے 
فِطرتِ وحشی جواں تھی ، نا تواں فکرِ گناہ 
حسن کا آتش فشاں تھا ، تھی نہ کوئی سرد را ہ،
پِگھلی یوں زنجیر تقویٰ ، خوفِ سنگ ساری تھا چهو 
لِکھ بھی دے کوئی سزا اب ، ائے جزا ے فِتنہ گاہ ٠


अना को फ़ना 

इस अना को सुपुर्द ए क़ब्र करो,
है ये बेहतर की ख़ुद पे जब्र करो,
बाद में वह भी ज़िद को छोड़ेगा ,
भाई मुंकिर ! ज़रा सा सब्र करो . 
अना=मर्यादा 

انا کو فنا

اِس انا کو سُپُردِ قبر کرو 
ہے یہ بہتر کہ خود پہ جبر کرو 
بعد میں وہ بھی ضِد کو چھوڑے گا ،
میاں 'منکر' ذرا سا صبر کرو ٠ 


गोचा पेची 

सब कुछ तो साफ़ साफ़ था इरशाद ए किबरिया,
तफ़सीर लिखने वालो बताओ ये क्या किया,
 कैसे अवाम पढ़ के उठाएँगे फ़ायदे ?  
तुमने लिखे हुए पे ही कुछ और लिख दिया. 
इरशाद ए किबरिया=क़ुरान , तफ़सीर=भावार्थ 

گوچہ - پیچی

سب کچھ تو صاف صاف تھا ، ارشادِ کِبریہ 
تفسیر لکھنے والو بتاؤ یہ کیا کیا 
کیسے عوام پڑھ کے ، سمجھ لینگے حقیقت 
تم نے لکھے ہوئے پہ ، ہی کچھ اور لکھ دیا ٠
***

Tuesday, May 28, 2019

जुंबिशें ----रुबाइयात


रुबाइयात 

कुछ रुक तो ज़माने को जगा दूं तो चलूँ,
मैं नींद के मारों को हिला दूं तो चलूँ,
ऐ मौत किसी मूज़ी को जप कर आजा,
सोई हुई उम्मत को उठा दूं तो चलूँ.

کُچھ رُک تو زمانے کو جگا دوں تو چلوں 
میں نیند کے ماروں کو ہلا دوں تو چلوں 
ائے موت کسی موذی کو جَپ کر آ جا 
سوئی ہُوئی اُمّت کو جگا دوں تو چلوں ٠
**

औरत को गलत समझे कि आराज़ी है,
यह आप के ज़ेहनों में बुरा माज़ी है,
यह माँ भी, बहन बेटी भी, शोला भी है,
अब दीन की पूछो, वह भला राज़ी है.

عورت کو غلط سمجھے کہ اراضی ہے،
یہ آپ کے زہنو ں میں برا ماضی ہے،
یہ ماں بھی بہن بیٹی بھی ، شولا بھی ہے،
اب دین سے پوچھو جو اگر راضی ہے ٠ 
***
क्यों तूने बनाया इन्हें बोदा यारब!
ज़ेहनों को छुए इनका अक़ीदा यारब,
पूजे जो कोई मूरत, काफ़िर ये कहें,
खुद क़बरी सनम पर करें सजदा यारब.

کیوں تونے بنایا انہیں بودا یا رب 
ذہنوں کو چُھوے ان کا عقیدہ یا رب 
پوجے جو کوئی مورت ، کافر یہ کہیں 
خود قبری صنم کو کریں سجدہ یا رب ٠

Monday, May 27, 2019

जुंबिशें --- नज़्म ----राज़ ए ख़ुदावन्दी


नज़्म
राज़ ए ख़ुदावन्दी

क़ैद ओ बंद तोड़ के निकलो, ऐ तालिबान ए फ़रेब1,
तुम हो इक क़ैदी, मज़ाहिब के ख़ुदा ख़ानों के.
हम तुम्हें राज़ बताते हैं, ख़ुदा वन्दों के,
साकितो२,व् सिफ़्र३ व् नफ़ी४,अर्श के बाशिंदों के.

यह तसव्वर५ में जन्म पाते हैं,
बस कयासों६ में कुलबुलाते हैं.

चाह होते हैं यह, समाअत७ की,
रिज्क़८ होते हैं यह, जमाअत९ की.

यह कभी साज़िसों में पलते हैं,
जंग की भट्टियों में ढलते हैं.

डर सताए तो, यह पनपते हैं,
गर हो लालच तो, यह निखरते हैं.

यह सुल्ह नामाए फ़ातेह10 भी हुवा करते हैं,
पैदा होते हैं नए, कोहना11 मरा करते हैं.

हम ही रचते हैं इन्हें, और कहा करते हैं,
सब का ख़ालिक़12 है वही, सब का रचैता वह है.

१-छलावा की चाह वाले २-मौन ३-शुन्य ४-अस्वीक्र्ती५-कल्पना ६-अनुमान ७-श्रवण शक्ति 
८-भोजन ९-टोली १०-विजेता की संधि ११-पुराना १२-जन्म -दाता

رازِ خدا وندی

اپنے خولوں سے نکل آؤ نئی دنیا میں
تم ہو اک قیدی مذاھب کے خدا خانوں کے
میں تمہیں شوشے بتاتا ہوں خدا وندوں کے
ساکِت و صِفر نفی ، عرش کے باشندوں کے٠ 

یہ تصوّر میں جنم پاتے ہیں
بس قیاسوں میں کلبلاتے ہیں
چاہ ہوتے ہیں یہ سماعت کی
رزق ہوتے ہیں یہ جماعت کی٠ 

یہ کبھی سازشوں میں پلتے ہیں
جنگ کی بھٹیوں میں ڈھلتے ہیں
ڈر ستاۓ  تو یہ پنپتے ہیں،
گر ہو لالچ تو یہ نکھرتے ہیں٠ 

یہ صلح نامہء فاتح بھی ہوا کرتے ہیں
پیدا ہوتے ہیں نئے ، کہنہ مرا کرتے ہیں
ہم ہی رچتے ہیں انہیں اور کہا کرتے ہیں
سب کا خالق ہے وہی ، سب کا رچیتا وہ ہے ٠ 

Sunday, May 26, 2019

जुंबिशें -------ग़ज़ल -तू है एक रुक्न अंजुमन , तेरी अपनी एक ख़ू है

ग़ज़ल
तू है एक रुक्न अंजुमन , तेरी अपनी एक ख़ू है,
मैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग व् बू है.

वतो इज़ज़ो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख़ रू है, बेक़ुसूर ज़र्द रू है.

तेरा दीं सुना सुनाया, है मिला लिखा लिखाया,
मेरे ज़ेहन की इबारत, मेरी अपनी जुस्तुजू है.

मुझे खौ़फ़ है ख़ुदा का, न ही एहतियात ए शैताँ,
न ही खौ़फ़ दोज़खो़ का, न बेहिश्त आरज़ू है.

वोह नहीं पसंद करते, जो हैं सर्द मुल्क वाले,
तेरी जन्नतों के नीचे, वो जो बहती आब ए जू है.

तेरे ध्यान की ये डुबकी, है सरल बहुत ही जोगी ,
कि बहुत सी भंग पी लूँ , तो ये पाऊँ तू ही तू है.

* वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए=
खुदा जिसको चाहे इज्ज़त दे,जिसको काहे जिल्लत.

 تو ہے ایک رکنِ انجمن ، تری اپنی ایک خو ہے  
میں الگ ہوں انجمن سے، مرا اپنا رنگ بو ہے٠ 

وَتُعزو مَن تشاؤ ، وَتُزللو مَن تُشاؤ 
جو تھا شَر پہ، سُرخرو ہے، بے قصور زرد رو ہے٠ 

ترا دیں سنا سنایا ، ہے ملا لکھا لکھایا، 
مرے ذہن کی عبارت، مری اپنی جستجو ہے٠ 

مجھے خوف نہ خدا کا، نہ ہی احتیاطِ شیطاں 
نہ ہی خوف دوزخوں کا، نہ بہشت آرزو ہے٠ 

وہ نہیں پسند کرتے، جو ہیں سرد ملک والے 
ترے جنّتوں کے نیچے، وہ جو بہتی اب جو ہے٠ 

ترے دھیان کی یہ ڈُبکی، ہے بہت سرل سی جوگی 
کہ ذرا سی بھنگ پی لوں، تو یہ پاؤں تو ہی تو ہے٠ 

Friday, May 24, 2019

जुंबिशें -------------मुस्कुराहटें


मुस्कुराहटें 
बैटिंग ----

क्या बात है, अकेले ही 'मुंकिर' खड़े हो तुम?
लगता है इस समाज से कस के लड़े हो तुम.

तफसीर1,तर्जुमा2 कि हो तारीख, चट चुके,
जितने ज़मीं से निकले हो उतने गडे़ हो तुम.

इब्लीस3 की तरह ही, ख़ुदी के नशे में हो,
आदम की वल्दियत है, ये किस पे पड़े हो तुम?

मज़हब हैं ग्यारह, बारह किसी पर तो पसीजो,
दिल नर्म है, दिमाग़ से कितने कड़े हो तुम.

कैच

लोगो ये कायनात4 तग़य्युर पजीर5 है,
सदियों पुरानी रस्मे-कुहन6 पर अडे़ हो तुम.

ख़ुद अपनी रहनुमाई के क़ाबिल नहीं हुए?
कब तक रहोगे गोद में? जल्दी बड़े हो तुम.
१-ब्याख्या २-अनुवाद ३-बड़ा शैतान ४-ब्रम्हांड ५-परिवर्तन शील ६-पुराणी रस्में

بیٹنگ

کیا بات ہے ، اکیلے ہی 'منکر' کھڑے ہو تم
لگتا ہے اس سماج سے ، کس کے لڑے ہو تُم٠ 
تفسیر و ترجمہ کہ ہو تاریخ ، چٹ چکے 
جتنے زمیں سے نکلے ہو ، اتنے گڑے ہو تم ٠ 
ابلیس کی طرح ہی ، خودی کے نشے میں ہو  
آدم کی ولدیت مگر ، کس پہ پڑے ہو تم ٠ 
مذہب ہیں چار پانچ ، کسی پر پسیج جاؤ 
دل نرم ہے ، دماغ کے کتنے کڑے ہو تم ٠ 

اور کیچ 

لوگو ! یہ کاینات تغیّر پذیر ہے 
صدیوں پرانی رسم کہن پر اڑے ہو تم 
خود اپنی رہنمائی کے قابل نہیں ہوئے ؟
کب رہوگے گود میں ،جلدی بڑے ہو تم ٠ 

Thursday, May 23, 2019

क़तआत


क़तआत

जहाज़ का पंछी

 नाहक़ था मैं ही, हक़ पे तुम्हीं थे, जहाँ थे तुम,
मैं उड़ के थक गया तो ज़मीं पर निशाँ थे तुम,
मैं आ गया हूँ  भूले हुए घर को लौट कर,
मानिंद  माँ के  पूछ लो, अब तक कहाँ थे तुम.

جہاز کا پنچھی

نا حق تھا میں ہی ، حق پہ تمہیں تھے ، جہاں تھے تم

میں اڑ کے تھک گیا ، تو زمیں پر نشاں تھے تم 

میں آ گیا ہوں بچھڑے ہوئے ، گھر میں لوٹ کر 

مانند ماں کے پوچھو ، کہ اب تک کہاں تھے تم ٠23
***

कुत्तों का ग़लबा 

बेचने दो उसे इंसानी लहू का मअज़ून,
पुश्त पर उसके है, मौजूदा सदी का क़ानून,
मुझको फ़िलहाल तो कुत्तों से बचाओ यारो,
फिर कभी लिखखूँगा, हड्डी की ख़ता पर मज़मून.
मअज़ून=दवाई , मज़मून=विषय 

کُتوں کا غلبہ
بیچنے دو اُسے انسانی لہو کا معجون 
پشت پر اُس کے ہے ، موجودہ صدی کا قانون 
مُجھ کو فی ا لحال تو ، کُتوں سے بچاؤ یارو! 
پھر کبھی لکّھونگا ، ہڈ ی کی خطا پر مضمون ٠ 


ताजिर
 हर वक़्त फ़िक्र ए दौलत, बस खाता और बही है,
रहती है ये कुएँ में, ताजिर की ज़िंदगी है,
दुन्या की सारी क़दरें, गुम हो गईं हैं इनमें,
दौलत ही दुःख है इनका, दौलत ही हर ख़ुशी है.
ताजिर=व्योसाई,क़दरें=मूल्य 

تاجر
ہر وقت فکرِ دولت ، کھاتا ہے اور بہی ہے 
رہتی ہے اک کویں میں ، تاجر کی زندگی ہے 
دنیا کی ساری قدریں ، گم ہو گئی ہیں ان میں 
دولت ہی دکھ ہے انکا ، دولت ہی ہر خوشی ہے ٠ 

जुंबिशें ---------रुबाइयात


रुबाइयात
इन्सान के मानिंद हुवा उसका मिज़ाज , 
टेक्सों के एवज़ में ही चले राज व् काज,
है दाद-व् -सितद में वह बहुत ही माहिर,
देता है अगर मुक्ति तो लेता है ख़िराज.

اِنسان کے مانند ہُوا اُسکا مزاج 
ٹیکسوں کے عوض میں ہی چلے راج و کاج 
ہے داد و سِتد میں وہ بڑا ہی ماہر 
دیتا ہے گر نجات ، لیتا ہے خراج .
**

अल्फाज़ के मीनारों में क्या रख्खा है, 
सासों भरे गुब्बारों में क्या रख्खा है,
इस हाल को देखो कि कहाँ है मिल्लत,
माज़ी के इन आसारों में क्या रख्खा है. 
***
الفاظ میناروں میں کیا رکّھا ہے 
ساسوں بھرے غُباروں میں کیا رکّھا ہے
اس حال میں دیکھو کہ کہاں ہے اُمّت 
ماضی کے ان آساروں میں کیا رکّھا ہے 
***

आज़ादी है सभी को कोई कुछ माने,
अजदाद* के जोगी को पयम्बर जाने,
या अपने कोई एक खुदा को गढ़ ले,
गुस्ताख़ी है औरों को लगे समझाने.
*पूर्वज 

آزادی سبھی کو ہے ، کوئی کچھ مانے 
اجداد کے جوگی کو پیمبر جانے
یا اپنے کوئی ایک خدا کو گڑھ لے 
گستاخی ہے آوروں کو لگے سمجھنے ٠ 

Tuesday, May 21, 2019

जुंबिशें -----------नज़्म--शक के मोती


नज़्म 
शक के मोती

शक जुर्म नहीं, शक पाप नहीं, शक ही तो इक पैमाना है,
विश्वाश में तुम लुटते हो सदा, विश्वाश में कब तक जाना है.

शक लाज़िम है भगवान व् , ख़ुदा पर जिनकी सौ दूकानें हैं,
औतार ओ पयम्बर पर शक हो, जो ज़्यादः तर अफ़साने1हैं.

शक हो सूफ़ी सन्यासी पर, जो छोटे ख़ुदा बन बैठे हैं,
शक फूटे धर्म ग्रंथों पर, फ़ासिक़२ हैं दुआ बन बैठे हैं.

शक पनपे धर्म के अड्डों पर, जो अपनी हुकूमत पाए हैं,
जो पिए हैं ख़ून  की गंगा जल, जो माले ग़नीमत3 खाए हैं.

शक थोड़ा सा ख़ुद पर भी हो, मुझ पर कोई ग़ालिब४ तो नहीं?
जो मेरा गुरू बन बैठा है, वह बदों का ग़ासिब५ तो नहीं?

शक के परदे हट जाएँ तो, 'मुंकिर' हक़ की तस्वीर मिले,
क़ौमों को नई तअलीम मिले,ज़ेहनों को नई तासीर६ मिले.

१-कहानी २- मिथ्य  ३-युद्ध में लूटी सम्पत्ति ४-विजई ५ -अप्भोगी ६-सत्य

شک کے موتی 

شک جُرم نہیں ، شک پاپ نہیں ، شک ہی تو اِک پیمانہ ہے 
وِشواس میں تم لٹتے ہو صدا ، وِشواس میں کب تک جانا ہے ٠

شک لازم ہے بھگوان و خدا پر ، جن کی سو دوکانیں ہیں 
اوتار و پیمبر پر شک ہو ، جو زیادہ تر فرزانے ہیں ٠

شک ہو صوفی سنیاسی پر ، جو چھوٹے خُدا بن بیٹھے ہیں 
شک پھوٹے دھرم گرنتھوں پر فاسِق ہیں ، دُعا بن بیٹھے ہیں ٠

شک پھوٹے دھرم کے اڈوں پر ، جو اپنی حکومت پاۓ ہیں 
جو پیے ہیں خون کی ندیوں کو ، جو مالِ غنیمت کھاۓ ہیں ٠

شک تھوڑا سا خود پر بھی ہو ، مجھ پر کوئی غالب تو نہیں 
جو میرا گرو بن بیٹھا ہے ، وہ بندوں کا غاصِب تو نہیں 

شک کے پردے ہٹ جایں تو 'منکر' حق کی تصویر ملے 
قوموں کو نئی تعلیم ملے ، ذہنوں کو نئی تاثیر ملے ٠ 

Monday, May 20, 2019

जुंबिशें ------- ग़ज़ल -----------साफ़ सुथरी सी काएनात मिले,


ग़ज़ल 

साफ़ सुथरी सी काएनात मिले,
तंग ज़ेहनो से कुछ, नजात मिले.

संस्कारों में, धर्म और मज़हब,
न विरासत में ज़ात, पात मिले.

आप की मजलिस ए मुक़द्दस1 में,
सिर्फ़ फ़ितनों के, कुछ नुक़ात2 मिले.

तुझ से मिल कर गुमान होता है,
बस की जैसे, ख़ुदा की ज़ात मिले.

उलझी गुत्थी है, सांस की गर्दिश,
एक सुलझी हुई, हयात मिले.

हर्फ़ ए आख़ीर हैं, तेरी बातें,
इस में ढूंडा कि कोई बात मिले.

१-सदभाव-सभा २-षड़यंत्र-सूत्र


صاف سُتھری سی کائنات ملے  
تنگ ذہنوں سے کُچھ نجات ملے٠ 

سَنسکاروں میں دھرم نہ مذہب 
نہ وراثت میں ذات پات ملے٠ 

تُجھ سے مل کر گُمان ہوتا ہے
بس کہ جیسے خدا کی ذات ملے٠ 

اُلجھی گُتّھی ہے سانس کی گردش 
ایک سُلجھی ہوئی حیات ملے٠ 

آپ کی مجلسِ مقدّس میں 
بس کہ فتنوں کے کُچھ نُکا ت ملے٠ 

حرفِ آخیر ہیں تیری باتیں 
اس میں ڈھونڈھا کہ کوئی بات ملے٠ 

Sunday, May 19, 2019

जुंबिशें - दोहे


दोहे 
हम में तुम में रह गई, न नफरत न ही चाह, 
बेहतर है हो जाएं अब, अलग अलग ही राह. 

ہم میں تم میں رہ گئی نہ نفرت نہ چاہ 
بہتر ہے ہو جایں اب الگ الگ ہی راہ .

**
कुदरत का ये रूप है, देख खिला है फूल, 
अल्लाह की धुन छोड़ दे, पत्थर पूजा भूल. 

الله کی شکل ہے ، دیکھ کھلا ہے پھول
واحد مطلق ترک کر ، پتھر پوجہ بھول ٠

***

कुदरत ही है आईना, प्रक्रति ही है माप, 
तू भी इसका अंश है, तू भी इसकी ताप. 

قدرت ہی ہے آئینہ ، پرکرتی ہی ہے ناپ 
تو بھی اسکا انش ہے ، تو بھی اسکی تاپ .

****
'मुंकिर' हड्डी मॉस का, पुतला तू मत पाल।
तन में मन का शेर है, बाहर इसे निकाल॥

'منکر' ہڈی ماس کا ، پتلا تو مت پال 
تن میں من کا شیر ہے ،باہر اسے نکال ٠

*****
अन्तर मन का टोक दे, सबसे बड़ा अज़ाब,
पाक साफ़ रोटी मिले , सब से बड़ा सवाब।

انتر من کا ٹوک دے سب سے بڑا عذاب 
محنت کی روٹی ملے ، سب سے بڑا ثواب ٠

******

दिन अब अच्छे आए हैं , क़र्ज़ा देव चुकाए ,
ऐसा हरगिज़ मत किहौ , यह बच्चन पर जाए .

دن اب اچھے آئے ہیں ، قرضہ دیو چکائے  
ایسا مت ہرگز کرو ، یہ بچوں پہ جائے ٠
*

Friday, May 17, 2019

जुंबिशें - मुस्कुराहटें


मुस्कुराहटें 
दोहा-तीहा-चौहा

दोहा

 तुलसी बाबा की कथा, है धारा प्रवाह, 
राम लखन के काल के, जैसे होएँ गवाह. 
तीहा

हे दो मन की बालिके ! देहे पर दे ध्यान,
चलत, फिरत, डोलत तुझे, पल पल होत थकान,
पर मुँह ढोवे न थके, तन यह बैल समान.
चौहा
सात नवाँ तिरसठ भया, तीन औ छ चुचलाएँ,
तीन नवाँ छत्तीस हुआ, तीन औ छ टकराएँ,
छत्तीस का यह आकड़ा, अकड़े बीच बजार,
तिरसठ की है आकडी , गलचुम्मी कर जाएँ.

دوہا  --تیہا ---چوہا 

دوہا

تلسی بابا کی کتھا، ہے دھارا پرواہ 
رام لکھن کے کال کے، جیسے ہویں گواہ٠  

تیہا

ہے دو من کی بالیکے ! دے دیہے پر دھیان، 
چلت پھرت ڈولت تجھے پل پل ہوت تکان
پر منہ ڈھووت نہ تھکے ، تن یہ دھول سمان٠  

چوہا
سات نواں ترسٹھ بھیا ، تین اور چھہ چچلأیں
تین نواں چھتیس ہوا ، تین اور چھہ ٹکرایں
 چھتیس کا یہ آکڑا ، اکڑیں بیچ بزار 
ترسٹھ کی ہے آکڑی ، گلچممی کر جاین٠ 

Thursday, May 16, 2019

जुंबिशें - - क़तआत


क़तआत 

साँच की ताप 
कुछ अगर ख़्वाहिश न हो, तो है अधूरी ज़िन्दगी,
ख़्वाहिशें अंधी हैं, गर हस्ती में हो नाख़ान्दगी,
इल्म भी बेकार है, इन्सां अगर है बेअमल,
सच नहीं मुंकिर तो है, इल्मो ओ हुनर शर्मिदगी.
नाख़ान्दगी=अनपढ़ स्तिथि                                                                                          
صدق کی حرارتیں 
کچھ اگر خواہش نہ ہو تو ، ہے ادھوری زندگی 
خواہشیں اندھی ہیں ، گر ہستی میں ہے نہ خواندگی 
علم بھی بیکار ہے ، انسان اگر ہے بے عمل 
سچ نہیں 'منکر' ، تو ہے علم و ہنر شرمندگی ٠  


रिआयत 
इम्कानी गिरावट हो कि अख़लाक़ी बुलंदी,
हों आप की या मेरी, इक हद हैं सभी की,
हैरत से हिक़ारत से, यूँ मुजरिम को न देखो,
लगती है दिल आज़ारी, कहीं उसमें छिपी सी. 
رعایت
امکانی گراوٹ ہو کہ اخلاقی بلندی 
ہوں آپ کی یا میری ، یہی حد ہے سبھی کی 
حیرت سے حقارت سے ، یوں مجرم کو نہ دیکھو 
لگتی ہے دل آزاری ، کہیں اسمیں چھپی سی .

सज़ा ए दोबाला 
जीने न दिया घर में, तुर्बत में अब जियो,
शैदाइयों की मानो तो शिद्दत में जियो,
तुमको ही मारने में, ख़ुद मर गया है शौहर,
मेरी बहन ये क्या है, कि इद्दत में अब जियो.
दोबाला=दोहरा , तुर्बत=समाधि,
इद्दत=तलाक़ शुदा की पर्दा अवधि  
سزا ے دو بالا
جینے نہ دیا گھر میں ، تربت میں اب جیو 
شیدائیوں کی مانو، تو شدّت میں اب جیو 
تم کو ہی مارنے میں ، خود مر گیا شوہر 
میری بہن ! یہ کیا ہے کہ ، عدّت میں اب جیو ٠ 

Wednesday, May 15, 2019

जुंबिशें - रुबाइयात


रुबाइयात
फिर धर्म के पाखण्ड पे भारत है रवाँ,
खो दे न तवानाई व्  तरक्की ये जवाँ,
बढ़ चढ़ के दिमागों पे है मज़हब की अफ़ीम,
हुब्बुल वतनी का जज़्बा है कहाँ?

پھر دھرم کے پاکھنڈ پہ ، بھارت ہے رواں 
کھو دے نہ توانائی و ترققی یہ جواں 
بڑھ چڑھ کے دماغوں پہ ہے مذہب کی افیم 
حب الوطنی کا جزبہ ہے کہاں ٠

**
हो सकता है ठीक, दमा मिर्गी व् खाज,
बख्श सकता है जिस्म को रोगों का राज,
तर्बियतों की घुट्टी पिए है माहौल, 
मुश्किल है बहुत मुंकिर ज़ेहनों का इलाज.

ہو سکتا ہے ٹھیک ، دَما مِرگی و کھاج 
بَخش سکتا ہے جِسم کو روگوں کا راج
تربیّتوں کی گُھٹَی پیے ہے ماحول 
مشکل ہے بہت منکر ذہنوں کا عِلاج ٠ 
***
इक उम्र पे रुक जाए, जूँ बढ़ना क़द का,
कुछ लोगों में हश्र है, इसी तरह ख़िरद का,
मुंजमिद ख़िरद को ढोते हैं सारी उम्र,
रहता है सदा पास मुसल्लत हद का.

اِک عمر میں روک جاۓ جوں بڑھنا قد کا 
کچھ لوگوں میں حشر ہے ، اسی طرح خِرد کا 
منجمِد خِرد کو ڈھوتے ہیں ساری عمر 
رہتا ہے صدا پاس مسلّط حد کا ٠ 
*

Tuesday, May 14, 2019

जुंबिशें - नज़्म - - - ग्यारहवीं सदी की आहें


नज़्म
ग्यारहवीं  सदी की आहें

हमारे घर में घुसे, बस कि धड़धदाए हुए,
वो डाकू कौन थे? इन वादियों में आए हुए.

यक़ीन व् खौफ़, सज़ा और तमअ1 की तलवारें,
अजीब रब था कोई, उनको था थमाए हुए.

खुदाए सानी2 बने हुक्मराँ,वज़ीर ओ सिपाह,
सितम के तेग़ थे, हर शख़्स में चुभाए हुए.

जेहाद उनकी बज़िद थी, लड़ो या जज़या  दो,
नहीं तो ज़ेह्नी ग़ुलामी, को थे जताए हुए.

दलाल उसके, रिया कारियों3 का दीन लिए,
दूकाने अपनी थे, हर कूंचे में सजाए हुए.

दोबारा रोपे गए हैं, वह शजर4 हैं 'मुंकिर',
महद5 से माँ के हैं, ज़ालिम उसे उठाए हुए.

१-लालच २-द्वतीय ईश्वर ३-ढोंगी ४-पेड़ ५-पालना


گیاروھیں صدی کی آہیں

ہمارے گھر میں گھُسے ، بس کہ دھڑ دھاڑاے ہوئے  
وہ ڈاکو کون تھے ان وادیوں میں آے ہوئے ٠

یقین و خوف و طمع اور سزا کی تلواریں
عجیب رب تھا کوئی ، انکو تھا تھماے ہوئے ٠

خداۓ ثانی بنے حکمراں ، وزیر و سپاہ 
ستم کی تیغ تھے ، ہر ذہن میں چُبھاۓ ہوئے ٠

جہاد انکی بضد تھی ، لڑو کہ جزیہ دو 
وگرنہ ذہنی غُلامی کو تھے جتاے ہوئے ٠

دلال ان کے ، ریا کاریوں کا مال لئے 
دکانیں اپنی تھے ، ہر کوچے میں سجاۓ  ہوئے ٠

دوبارہ روپے گۓ ہیں ، شجر وہ ہیں 'منکر' ٠
محدِ مادر سے  ہیں، ظالم اُسے اُٹھاۓ ہوۓ ٠

Sunday, May 12, 2019

junbishen - - - gazal वह्म का परदा उठा क्या, हक़ था सर में आ गया,


ग़ज़ल

वह्म का परदा उठा क्या, हक़ था सर में आ गया,
दावा ऐ पैग़म्बरी, हद्दे बशर में आ गया.

खौ़फ़ के बेजा तसल्लुत1, ने बग़ावत कर दिया,
डर का वो आलम जो ग़ालिब था, हुनर में आ गया.

यादे जानाँ तक थी बेहतर, आक़बत2 की फ़िक्र से,
क्यूं दिल ए  नादाँ, तू ज़ाहिद के असर में आ गया.

जितनी शिद्दत से, दुआओं की सदा कश्ती में थी,
उतनी तेज़ी से सफ़ीना, क्यूँ भंवर में आ गया.

छोड़ कर हर काम, मेरी जान तू लाहौल3 पढ़,
मन्दिर व् मस्जिद का शैताँ, फिर नगर में आ गया.

एक दीन इक बे हुनर, बे इल्म और काहिल वजूद,
लेके पुडि़या दीन की "मुंकिर" के घर में आ गया.

१-लदान २ -परलोक ३-धिक्कार मन्त्र


وہم کا پردہ اُٹھا کیا، حق تھا سر میں آ گیا 
دعوهء پیغمبری، حدِّ بشر میں آ گیا٠ 

خوف کے بے جہ تسلّط نے بغاوت کر دیا 
ڈر کا وہ عالم جو غالب تھا، ہُنر میں آ گیا٠ 

یادِ جاناں تک تھی بہتر، عاقبت کی فکر سے 
کیوں دلِ ناداں تو زاہد کے اثر میں آ گیا٠ 

جِتنی شدّت سے دعا وں کی صدا کشتی میں تھی 
اُتنی تیزی سے سفینہ کیوں بھنور میں آ گیا٠ 

چھوڑ کر ہر کام میری جان تو لاحول پڑھ 
مندرو مسجد کا شیطاں، پھر نگر میں آ گیا٠ 

ایک دن اِک بے ہنر، بے علم اور کاہل وجود 
لے کے پُڑ یہ دین کی، منکر کے گھر میں آ گیا٠ 



Friday, May 3, 2019

जुंबिशें - - - दोहे

दोहे 
मानव-जीवन युक्ति है, संबंधों का जाल, 
मतलब के पाले रहे, बाकी दिया निकाल. 

مانو جیون یکتی ہے ، سمبندھوں کا جال 
مطلب کے پھانسے رہے ، باقی دیا نکال ٠
*

नादानों की सोच है ऐसा बने विधान,
वैदिक  युग में जा बसे अपना हिदुस्ताn.

نادانوں کی سوچ ہے ، ایسا بنے ودھان 
ویدک یوگ میں جا بسے ، اپنا ہدستان ٠


इंसानी तहजीब के मिटे हैं कितने रूप,
आज जिहादी हैं खड़े सर पे ताने धुप .

 انسانی تہذیب کے مٹے ہیں کتنے روپ 
 آج جہادی ہیں کھڈے سرپہ تانے دھوپ 

अल्ला को तू भूल जा, मत कर उसका ध्यान,
अल्ला की मखलूक का, पहले कर कल्यान.

الله کو تو بھول جا ، مت کر اسکا دھیان
الله کی مخلوق کا ، پہلے کر کلیاں ٠
*

सबसे अच्छी बात है, दुन्या हो महबूब,
अपने आप से प्यार कर, जीवन से मत ऊब.

سب سے اچھی بات ہے ، دنیا ہو محبوب 
اپنے آپ سے پیار کر ، جیون سے مت اوب ٠
*


Thursday, May 2, 2019

जुम्बिशें - - -मुस्कुराहटें



मुस्कुराहटें
साझेदारी 

फ़न का माहिर हूँ ज़ात1 रखता हूँ,
मैं उरूज़ी2 बिसात रखता हूँ,
बस कि आवाज़ ही नहीं पाई,
तुम में मूसूक़ी3 है मेरे भाई.

आओ ग़जलों का कारोबार करें,
अपनी ग़ुरबत4 को शर्म सार,
दाल रोटी का कुछ सहारा हो,
ग़ज़लें मेरी गला तुम्हारा हो,
आधे आधे की हिस्से दारी हो,
मैं हूँ शायर कि तुम मदारी हो. 
1 हस्ती 2 शायरी व्याकरण 3 संगीत 4 दरिद्द्रता 

ساجھیداری 

فن کا ماہر ہوں ، ذات رکھتا ہوں 
میں عروضی بساط رکھتا ہوں 
بس کہ آواز ہی نہیں پائی 
تم میں موسوقیت ہے ائے بھائی 

آ و غزلوں کا کاروبار کریں 
اپنی غربت کو شرم سار کریں 
دال روٹی کا کچھ سہارا ہو 
غزلیں میری ، گلا تمہارا ہو 
تم اپنے نام سے میرا کلام پڑھتے رہو 
میری روحوں پہ راگ مڑھتے رہو 
آدھے آدھے کی حصّے داری ہو
 ہم ہیں شائر کہ تم مداری ہو ٠ 

Wednesday, May 1, 2019

जुंबिशें - - - रुबाइयात


 रुबाइयात

हैवान हुवा क्यूँ न भला, तख्ता ए मश्क़,
इंसान का होना है, रज़ाए अहमक,
शैतान कराता फिरे, इंसाँ से गुनाह,
अल्लाह करता रहे, उट्ठक बैठक.
तख्ता ए मश्क़=ब्लेक बोर्ड,रज़ाए =स्वीकृति 

حیوان ہوا کیوں نہ بھلا تختہء مشق  
اِنسان کا ہونا ہے رضاء احمق 
شیطان کرا تا پِھرے ، انساں سے گناہ 
الله کرا تا رہے ، اُٹھک بیٹھک ٠ 
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साइंस की सदाक़त पे यक़ीं रखता हूँ,
अफ़कार ओ सरोकार का दीं रखता हूँ, 
सच की देवी का मैं पुजारी ठहरा, 
बस दिल में यही माहे-जबीं रखता हूँ.

سائنس کی صداقت پہ یقیں رکھتا ہوں 
افکار و سروکار کا دیں رکھتا ہوں 
سچ کی دیوی کا میں پُجاری ٹھہرا 
بس دل میں یہی ماہِ جبیں رکھتا ہوں 
 ***
हमदर्द भी होते, वह दवा भी होते,
वह मेरे मददगार नुमा भी होते,
लाज़िम था कि होता न मैं, उनसे बढ़ कर,
वह मुझ पे हँसा, करते फ़िदा भी होते.

ہمدرد بھی ہوتے ، وہ دوا بھی ہوتے 
وہ میرے مدد گار، نُما بھی ہوتے 
لازم تھا کہ ہوتا نہ میں ، اُن سے بڑھ کر
وہ مجھ پہ ہنسا کرتے ، فدا بھی ہوتے ٠