Sunday, March 31, 2019

ग़ज़ल--- किताब सर से उतारा है, कहे देता हूँ,


ग़ज़ल 

किताब सर से उतारा है, कहे देता हूँ,
हमारे सर में भी पारा है, कहे देता हूँ.

फ़क़त नहीं वह तुम्हारा है, कहे देता हूँ,
सभी का उस पे इजारा है, कहे देता हूँ.

सवाब पढ़ के पढ़ा के मिले, तो लानत है,
सवाब जीना गवारा है, कहे देता हूँ.

हिफ्ज़ ए रूदाद ऐ हाफ़िज़ है तज़ीउल वक़ती,
यह सर का भारी ख़सारा1 है, कहे देता हूँ.

दिमाग माने, कोई धर्म या कोई मज़हब,
लहू में पुरखों की धारा है, कहे देता हूँ.

यही इनकार तो 'मुंकिर'की जमा पूँजी है,
इसी ने उसको संवारा है, कहे देता हूँ.

हिफ्ज़ ए रूदाद =दास्तान कंठस्त , तज़ीउल वक़ती=समय की बर्बादी १-हानि 

کتاب سر سے اُتارا ہے، کہے دیتا ہوں 
ہمارے سر میں بھی، پارہ ہے کہے دیتا ہوں. 

فقط نہیں وہ تمہارا ہے کہے دیتا ہوں 
سبھی کا اُس پہ اِجارہ ہے کہے دیتا ہوں. 

ثواب پڑھ کے پڑھا کے ملے تو لعنت ہے
ثواب جینا گوارہ ہے کہے دیتا ہوں. 

حفظِ روداد ائےحافظ! ہےتضیع الوقتی 
یہ سر کا بھاری خسارہ ہے کہے دیتا ہوں. 

دماغ مانگے کوئی دھرم، یا کوئی مذہب 
لہو میں پُرکھوں کی دھارا ہے کہے دیتا ہوں. 

یہی انکار تو منکر کی جمع پونجی ہے 
اِسی نے اُسکو سنوارا ہے کہے دیتا ہوں٠

Friday, March 29, 2019

जुंबिशें - - - नज़्म ख़्वाहिशे पैग़म्बरी


ख़्वाहिशे पैग़म्बरी


जी में आता है कि मैं भी, इक ख़ुदा पैदा करुँ,

पहले जैसों ही, सदाक़त1 में रिया2 पैदा करुँ.


कुछ ख़ता पैदा करुँ, फ़िर कुछ सज़ा पैदा करुँ,

मौत से पहले ही इक, यौमे जज़ा3 पैदा करुँ.


आऊँ और जाऊं पहाडों पर, निदा4 के वास्ते,

वह्यी5 सी, या देव वाणी सी, सदा पैदा करुँ.


गढ़ के इक हुलिया निकालूँ , ख़ुद को इस मैदान में,

सब से हट कर इक अनोखी ही अदा पैदा करुँ.


मुह्मिलों6 में फ़लसफ़े राग माले डाल कर,

आश्रम में रख के, अपना बुत गिज़ा पैदा करुँ.


उफ़! कि दिल के क़ैद ख़ामें है 'मुंकिर' का ज़मीर,

कैसे मासूमों के ख़ातिर, मैं दग़ा पैदा करुँ.


१-सत्य २-मिथ्य ३-प्रलय के बाद इनाम पाने का दिन

 ४-आकाशवाणी ५-ईश्वानी ६- अर्थ हीन और अनरगल 


خواہشِ پیغمبری



جی میں آتا ہے کہ ، میں بھی اک خُدا پیدا کروں

پہلے جیسوں ہی ، صداقت میں رِیا پیدا کروں٠


کچھ خطا پیدا کروں ، پھر کچھ سزا پیدا کروں

موت سے پہلے ہی، اِک یومِ جزا پیدا کروں٠


آؤں  اور جاؤں پہاڑوں پر ، ندا کے واسطے

وحیی سی یا دیو وانی ، سی صدا پیدا کروں٠ 


گڑھ کے اک حلیہ نکالوں ، خود کو اس میدان میں

سب سے بڑھ کر، اِک انوکھی ہی ادا پیدا کروں٠


مُحملوں میں فلسفے کے ، راگ مالے ڈال کر

آشرم میں رکھ کے ، اپنا بُت غذا پیدا کروں٠


اُف ! کہ دل کے قید خانے میں ، ہے 'منکر' کا ضمیر

کیسے معصوموں کی خاطر ، میں دغا پیدا کروں٠ 

Thursday, March 28, 2019

जुंबिशें - - - ग़ज़ल तलवार है समाज की


ग़ज़ल 

तलवार है समाज की फ़ितरत के हैं गले ,
जाए कहाँ पे इश्क़, कहाँ फूले और फले .

दातों तले ज़बान हो, या हाथ तू मले ,
मुंह से तेरे निसल ही गई, बात हल्बले.

क्या खूब हो कि एक हवा, मौत की चले,
शाखों को छोड़ जाएँ सभी, फल सड़े गले. 

ख़बरें फ़ना की और किसी नव जवां को हों,
जुज़्दान में ही रख अभी, क़ब्री मुआमले.

खुद साज़ियाँ मना हैं, तो खुद  सोज़ियाँ हराम,
इस मसलिकी निज़ाम में, मुश्किल हैं मरहले .

किन मौसमों में क्या क्या, बोया कहाँ कहाँ ,
मुंकिर पकी हैं फ़स्ल सभी, जा के काट ले.

साज़ियाँ=संवारना , साज़ियाँ=जलाना 


تلوار ہے سماج کی، فطرت کے ہیں گلے
جاۓ کہاں پہ عشق، کہاں پھولے اور پھلے٠  

داتوں تلے زبان ہو، یا ہاتھ تو ملے
منہ سے تیرے نکل ہی گئی، بات ہلبلے٠  

کیا خوب ہو کہ ایک ہوا، موت کی چلے 
شاخوں کو چھوڑ جایں، سبھی پھل سڑے گلے٠  

خبریں فنا کی اور، کسی نو جواں کو ہوں
جزدان ہی میں ہی رکھ ابھی، قبری معاملے٠  

خود سازیاں منع ہیں، تو خود سوزیاں حرام 
اس مسلکی نظام میں، مشکل ہیں مرحلے٠  

کن موسموں میں کیا کیا، بویا کہاں کہاں 
منکر پکی ہیں فصل سبھی، جا کے کاٹ لے٠  

Wednesday, March 27, 2019

जुंबिशें - - -क़तआ त


क़तआ त 
*
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई 
हिन्दू के लिए मैं इक, मुस्लिम ही हूँ आख़िर,
मुस्लिम ये समझते हैं, गुमराह है काफ़िर,
इंसान भी होते हैं, कुछ लोग जहाँ में,
गफ़लत में हैं ये दोनों, समझाएगा 'मुनकिर'.

ہندو کے لئے میں اک مسلم ہی ہوں آخر 
مسلم یہ سمجھتے ہیں گمراہ ہے کافر، 
انسان بھی ہوتے ہیں کچھ لوگ جہاں میں 
غفلت میں ہیں، یہ دونوں سمجھاۓ گا منکر٠ 

**
चिड़िया चुग गई खेत 
बनने का या संवारने का मौक़ा न मिल सका,
खुशियों से बात करने का मौक़ा न मिल सका ,
बन्दर से फ़स्ल ताकने में ही ज़िन्दगी कटी ,
कुछ और कर गुज़रने का मौक़ा न मिल सका .

چڑیا چُگ گئی کھیت 

سجنے کا اور سنوارنے کا موقعہ نہ مل سکا 
خوشیوں سے بات کرنے کا ، موقعہ نہ مل سکا 
بندروں سے فصل ، بچانے میں کٹ گئی 
کچھ اور کر گزرنے کا، موقعہ نہ مل سکا ٠
***
ख़सीस
बन के बीमार लेट लेता हूँ,
मुंह पे चादर लपेट लेता हूँ,
ऐ शनाशाई१ तेरी आहट से,
अपनी किरनें समेट लेता हूँ।
ख़सीस=कंजूस शनाशाई=परिचय
بخل
بن کے بیمار لیٹ لیتا ہوں 
منہہ پہ چادر لپیٹ لیتا ہوں 
ائے شناسائی تیری آہٹ سے 
اپنی کرنیں سمیٹ  لیتا ہوں ٠

Tuesday, March 26, 2019

जुंबिशें - - - रुबाईयाँ



  रुबाईयाँ
तहरीर शुदा देखे अजाबात ए अजीब ,
पढ़ पढ़ के धड़कते हैं, दिल व् जान ग़रीब,
सहमें हुए बैठे हैं बेचारे क़ारी.
क्या खूब डराता है उन्हें उनका मुजीब.

تحریر شدہ دیکھے ، عذابا تِ عجیب 
پڑھ پڑھ کے دھڑکتے ہیں ، دل و جان غریب 
سہمیں ہوئے بیٹھے ہیں ، بِچارے قاری 
کیا خوب ڈراتا  ہے ، اُنہیں اُنکا مجیب ٠ 

****
मय, हूर, गुलामान, खराबात ए नसीब,
नहरों पे सजी जन्नातें देता है नजीब,
बस देर है ईमान के ले आने की,
क्या खूब रिझाता है, इन्हें इनका रक़ीब.
***
مے، حور، غلامان، خراباتِ نصیب 
نہروں پہ سجی جنّتیں ، دیتا ہے نجیب 
بس دیر ہے ایمان کو، لے آنے کی 
کیا خوب ریجھاتا ہے ، اُنہیں اُنکا رقیب ٠ 

**
मुंह, आँख, समाअ सी कर सोया मुनकिर,
इक लंबी सज़ा जी कर सोया मुनकिर,
बस आँख लगी है न जगाना उसको,
ग़म खा के लहू पी कर सोया मुनकिर.

منہہ، آنکھ ، سماع سی کے سویا منکر
اک لمبی سزا جی کر ، سویا منکر
بس آنکھ لگی ہے ، نہ جگانا اسکو 
غم کھا کے ، لہو پی کے، سویا 'منکر٠ 

Monday, March 25, 2019

जुंबिशें - - -नज़्म



नज़्म

सुब्ह की पीड़ा

सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
लेटे-लेटे, मैं बैठ जाता हूँ ,
ध्यान, चिंतन के यत्न करता हूं,
ग़र्क़ होना भी फिर से सोना है,
कुछ भी पाना, न कुछ भी खोना है.
**
सुब्ह फूटी है, नींद टूटी है,
सैर करने मैं चला जाता हूँ,
तन टहलता मन पे बोझ लिए,
याद आते हैं ख़ल्क़ के शैताँ,
रूहे-बद साथ साथ रहती है,
मेरी तन्हाइयाँ कचरती है.
***
सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
चीख उठता है भोपू मस्जिद का,
चीख उठती है नवासी मेरी,
बस अभी चार माह की है वह,
यूँ नमाज़ी को वह जगाते है,
सोए मासूम को रुलाते हैं.
****
सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
पत्नी टेलिविज़न को खोले है,
ढोल ताशे पे बैठा इक पंडा,
झूमता,गाता और रिझाता है,
आने वाले हमारे सतयुग को,
अपने कलि युग में लेके जाता है.
*****
सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
किसी मासूम का करूँ दर्शन,
वरना आ जायगा मिथक बूढा,
और पूछेगा ख़ैरियत मेरी,
घंटे घडयाल शोर कर देंगे,
रस्मी दावत अज़ान दे देगी.

صُبح کا درد

صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
لیٹے لیٹے میں بیٹھ جاتا ہوں 
دھیان چنتن کا یتن کرتا ہوں 
جھپکی آتی ہے ، سر جھٹکتا ہوں 
غرق ہونا بھی ، پھر سے سونا ہے 
کُچھ بھی پانا ، نہ کُچھ بھی کھونا ہے٠

**
صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
سیر کرنے میں چلا جاتا ہوں 
تن ٹہلتا ہے من کا بوجھ لئے 
یاد آتے ہیں خلق کے شیطاں 
روحِ بد ڈٹ کے ساتھ رہتی ہے 
میری تنہائیاں کچرتی ہے ٠

***
صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
پتنی ٹیلی وزن کو کھولے ہے
بیٹھا ہارمونیم پہ اک پنڈا ،
جھومتا گاتا اور ریجھاتا ہے 
آنے والے ہمارے ست یگ کو 
اپنے کلی یگ میں لیکے جاتا ہے ٠

****
صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے 
کسی معصوم کا درشن کر لوں 
ورنہ آ جائگی بوڑھی متھیا 
اور پوچھیگی خیریت میری 
گھنٹے گھڑیال ، شور کر دینگے 
رسمی دعوت ، اذان دیدیگی ٠ 

Sunday, March 24, 2019

जुंबिशें - - -ग़ज़ल


ग़ज़ल

याद ए माज़ी को तो, बेहतर है भुलाए रखिए,
हाल शीशे का है, पत्थर से बचाए रखिए.

दोस्ती, यारी, नज़रियात, मज़ाहिब, हालात,
ज़ेहन व् दिल पे, न बहानों को बिठाए रखिए.

मैं फ़िदा आप पे कैसे, जो बराबर हैं सभी,
ऐ मसावाती मुजाहिद! मुझे पाए रखिए.

सात पुश्तों से ख़ज़ाना, ये चला आया है,
सात पुश्तों के लिए माँ, इसे ताए रखिए.

आबला पाई भुला बैठी है, राहें सारी,
आप कुछ रोज़, चरागों को बुझाए रखिए.

सच की किरनों से, जहाँ में, लगे न आग कहीं,
आतिशे दिल अभी "मुंकिर" ये बुझाए रखिए.

یادِ ماضی کو تو بہتر ہے بُھلاے رکھئے 
حال شیشے کا ہے، پتھر سے بچاۓ رکھئے٠

دوستی، یاری، نظریات، مذاھب، حالات 
ذہن و دل پر نہ گواہوں کو بٹھاۓ رکھئے٠

میں فدا آپ پر کیسے، جو برابر ہیں سبھی 
ائے مساواتی مجاہد، مجھے پایے رکھئے٠ 

سات پشتوں کا خزانہ یہ چلا آیا ہے 
سات پشتوں کے لئے ماں، اسے تائے رکھئے٠

آبلہ پائی بھلا بیٹھی ہے را ہیں ساری
آپ کچھ روز چراغوں کو بُجھاۓ رکھئے٠

سچ کی کرنوں سے جہاں میں نہ لگے آگ کہیں 
آتشِ دل ابھی منکر، یہ دباۓ رکھئے٠ 

Friday, March 22, 2019

जुंबिशें - - - रुबाइयाँ


रुबाइयाँ
फतवे दिया करते हो, ये हाबी है मियाँ?
मुंकिर को करो क़त्ल, नवाबी है मियाँ?
मज़हब की मज़म्मत पे भड़क क्यों उट्ठे?
वल्दियत में कोई बड़ी खराबी है मियाँ?

فتویٰ دیا کرتے ہو ، یہ ہابی ہے میاں ؟
منکر کو کرو قتل ، نوابی ہے میاں ؟
مذہب کی بُرائی پہ بھڑک کیوں اُٹھے ؟
ولدیت میں کوئی ، بڑی خرابی ہے میاں ؟

**
कटती है मज़ेदार नवालों में इमाम,
छनती रहे सिगरेट मसालों में इमाम,
क्या जानो पसीने में सनी रोटी को,
पलते रहो मज़हब के कमालों में इमाम,

کٹتی ہے مزے دار ، نوالوں میں امام 
چھنتی رہے ، سگریٹ مثالوں میں امام 
کیا جانو پسینے میں سنی روٹی کو 
پلتے رہو ، مذہب کے کمالوں میں امام ٠

***
कमज़ोर हो बूढ़े हो अब आराम करो,
पैसों को बटोरो न भले करो,
 पोते पड़ पोते कहें बुड्ढा खूसट,
गर हो जो सके, खुद को गुमनाम करो.

کمزور ہو بوڑھے ہو ، اب آرام کرو 
پیسوں کو بٹورو نہ ، بھلے کام کرو 
 پوتے ، پڑ پوتے کہیں، بُڈدھا ، کھوسٹ 
گر ہو جو سکے ، خود کو گُم نام کرو ٠  

Thursday, March 21, 2019

जुंबिशें - - - दोहे

दोहे
*
कित जाऊं किस से मिलूँ, नगर-नगर सुनसान,
हिन्दू-मुस्लिम लाख हैं, एक नहीं इंसान.

**
कृषक! राजा तुम बनो, श्रमिक बने वज़ीर,
शाषक जाने भाइयो, बहु संख्यक की पीर.

***
सन्यासी सूफ़ी बने, तो माटी पाथर खाए,
दूजी पीस पिसान को, काहे मांगन जाए.

****
माटी के तन पर तेरे, चढत है चादर पीर,
बिन चादर के सहित में, मानव तजें शरीर.

*****
पानी की कल कल सुने, सुन ले राग बयार,
ईश्वर वाणी है यही, अल्ला की गुफ़तार.

Wednesday, March 20, 2019

जुंबिशें - - - क़तआत

क़तआत
मिठ्ठू मियाँ 
पढ़ते हो झुकाए हुए सर क़िस्सा कहानी,
अंजान जुबां में है लिखी देव की बानी ,
यूँ लूट के ले जाते हो अंबार ए सवाब ,
दर पे हैं अज़ाबों के ये हालात जहानी .

مٹّھومیاں 
پڑھتے ہو جُھکاۓ ہوئے سر ، قصّہ کہانی 
انجان زباں میں ہے لکھی ، دیو کی بانی 
یوں لوٹ کے پا جاتے ہو ، انبار ثواب 
در پہ ہیں عذابوں کے ، یہ حالتِ جہانی ٠ 

शायरी 
फ़िक्र से ख़ारिज अगर है शायरी, बे रूह है,
फ़न से है आरास्ता, मानी मगर मकरूह है,
हम्द व्  नात व्  मरसिया, लाफ़िकरी हैं, फ़िकरें नहीं,
फ़िक्र ए नव की बारयाबी, शायरी की रूह है. 
फ़िक्र =चितन ,फ़न= कला/हम्द,नात, मरसिया=धर्म गान , बारयाबी=प्राप्ति 

شاعری 
فکر سے خارج اگر ہے شاعری، بے روح ہے، 
فن سے ہے آراستہ، مانا مگر مکروہ ہے، 
حمد و نعتیں ، مرثیہ، لافکری ہیں فکریں نہیں، 
فکرِ نو کی باریابی، شاعری کی روح ہے٠ 


बेचारे 
तोतों की ज़िन्दगी थी, शिकरों में कट गई,
अनदेखी आक़बत के, फ़िकरों में कट गई,
जो अहले होश थे, वो सभी लेके उड़ गए,
इनकी हयात दीन  के ज़िक्रों में कट गई.
आक़बत=परलोक 
بے چارے 

 طوطوں کی زندگی تھی ، شکروں میں کٹ گئی 
اندیکھی عاقبت کے ، فکروں میں کٹ گئی 
جو اہل ہوش تھے ، وہ مزہ لے کے اڑ گئے 
انکی حیات دین کےزکروں میں کٹ گئی ٠ 

Tuesday, March 19, 2019

जुंबिशें - - - नज़्म

नज़्म


बांग 

एहसासे कम्तरो२ तुम, ज़ेहनी गदागरो3तुम,
पैरों में रह के देखा, अब सर में भी रहो तुम.

इनकी सुनो न उनकी, ऐ मेरे दोस्तों तुम,
अपनी ख़िरद4 की निकली, आवाज़ को सुनो तुम.

दुनिया की गोद में तुम, जन्में थे, बे-ख़बर थे,
ज़ेहनी बलूग़तों5 में, इक और जन्म लो तुम.

अंधे हो गर, सदाक़त, कानों से देख डालो,
बहरे हो गर, हकीक़त, आखों से अब सुनो तुम.

ख़ुद को संवारना है, धरती संवारनी है,
दुन्या संवारने तक, इक दम नहीं रुको तुम.

मैं  ख़ाक  लेके अपनी, पहुँचा हूँ पर्वतों तक,
ज़िद में अगर हो क़ायम, पाताल में रहो तुम.

१-कोड़े २-हीनाभासी3-तुच्छाभास ४-बुद्धि -बौधिक 5-ब्यासकता

بانگ 

احساس کمترو ، تم ذہنی گدا گرو تم
پیروں میں رہ کے دیکھا ، اب سر میں بھی رھوتم٠ 

انکی سنو نہ اُنکی ، اے میرے دوستو تم
پھوٹی ہوئی ندا کی آواز کو سنو تم٠ 

دنیا کی گود میں تم ، جنمے تھے بے خبر تھے
ذہنی بلوغتوں میں ، اک اور جنم لو تم٠ 

اندھے ہو گر ، صداقت کانوں سے دیکھ ڈالو
بہرے ہو گر ، حقیقت اب آنکھ سے سنو تم٠ 

خود کو سنوارنا ہے ، دنیا سنوار نی ہے،
دھرتی سنوارنے تک ، اکدم نہیں رُکو تم٠ 

میں جسم اپنا لے کے آکاش چڑھ گیا ہوں
ضد میں اڑے ہوئے ہو، پاتال میں رہو تم٠ 

Monday, March 18, 2019

जुंबिशें - - - ग़ज़ल


ग़ज़ल

सुममुम बुक्मुम उमयुन कह के, फ़हेम के देते हो ताने,
दिल में मरज़ बढ़ा के मौला, चले हो हम को समझाने.

लम यालिद वलम यूलद, तुम हम जैसे मख़लूक़ नहीं,
धमकाने, फुसलाने की, ये चाल कहाँ से हो जाने?

कभी अमन से भरी निदाएँ, कभी जेहादों के ग़मज़े,
आपस में ख़ुद टकराते हैं, तुम्हरे ये ताने बाने.

कितना मेक अप करते हो तुम, बे सर पैर की बातों को,
मुतरज्जिम, तफ़सीर निगारो! "बड़ बड़" में भर के मअने.

आज नमाज़ें, रोज़े, हज, ख़ैरात नहीं, बर हक़ ऐ हक़!
मेहनत, ग़ैरत, इज़्ज़त, का युग आया है रब दीवाने.

बड़े मसाइल हैं रोज़ी के, इल्म बहुत ही सीखने हैं,
कहाँ है फ़ुरसत सुनने की अब, फ़लक ओ हशर के अफ़साने.

कैसे इनकी, उनकी समझें, अपनी समझ से बाहर है,
इनके उनके सच में "मुंकिर" अलग अलग से हैं मअने.

नोट-पहले तीन शेरों में शायर सीधा अल्लाह से मुखातिब है , 
चौथे में उसके एजेंटों से और आखिरी तीन शेरों में आप सब से. अर्थ गूढ़ हैं, 
काश कि कोई सच्चा इस्लामी विद्वान् आप को समझा सके.

سُمّم ،بُکمُم ، اُمیُن کہکے، فَہم کے دیتے ہو تعانے
دل میں مرَض بڑھا کے مولہ ، چلے ہو ہم کو سمجھانے ٠ 

لَم یَلِد ولَم یولَد ، تم ہم جیسی مخلوق نہیں 
دھمکانے ، پُھسلنے کی یہ چال ، کہاں سے ہو جانے ٠ 

کبھی امن سے بھری ندایں ، کبھی جہادوں کے غمزے
آپس میں ٹکراتے ہیں ، تمہرے یہ تانے بانے ٠ 

کتنا میکپ کرتے ہو تم، بے سر پیر کی باتوں کو 
متَرجّم ، تفسیر نگارو ، بڑ بڑ میں بھر کے معنے ٠ 

آج نمازیں، روزے، حج، خیرات نہیں بر حق، اے حق 
محنت، غیرت، عزت کا یُگ آیا ہے، رب دیوانے ٠ 

بڑے مسائل ہیں روزی کے ،علم بہت سے باقی ہیں 
کہاں ہے فرصت سننے کی ، اب فلق و حشر کے افسانے ٠ 

کیسے اِنکی اُنکی سمجھیں ، اپنی سمجھ سے باہر ہے 
اِنکے اُنکے سچ میں منکر ، الگ الگ سے ہیں معنے ٠ 

Sunday, March 17, 2019

जुंबिशें - - - मुस्कुराहटें

मुस्कुराहटें
फ़क़ीर का ज़मीर

कम ब.ख्त इक फ़क़ीर कल दफ़तर में आ घुसा,
बोला कि बेटा जीता रहे, लिख दे ख़त मेरा.
कागज़, कलम था हाथ में, बढ़ कर थमा दिया,
मैं ने भी कारे-ख़ैर यह हलके में ले लिया.
कहने लगा कि जोरू को लिख दे मेरा सलाम,
लिख दे कि आज कल ज़रा ढीला है अपना काम.
माहे-रवाँ में लिख दे कि गर्दिश मेहरवाँ, 
इस वजह छ; हज़ार ही रपया है कुल वाँ.
अगले महीने काफ़ी बचत की उम्मीद है,
हिंदू की है दीवाली, मुसलमां की ईद है.

मैं ने कहा कि ये लो, बुरे हाल लिख दिया,
कहने लगा कि, "बेटा अब हो जाए कुछ भला"
यह सुन के सर फिरा तो तवाज़ुन1 बिगड़ गया,
मुंह से निकल गया कि तेरी --------------
१-संतुलन

فقیر کا ضمیر 
کمبخت ، اک فقیر کل دفتر میں آ گھسا 
بولا کہ بیٹا جیتا رہے ، لکھ دے خط مرا 
کاغزقلم مجھے، بسماجت تھما دیا 
میں نے نیے ثواب کا ، یہ قصد جو کیا 
کہنے لگا کہ جورو کو، لکھ دے مرا سلام 
لکھ دے کہ آج کل ذرا، ڈھیلا ہے اپنا کام 
ماہ رواں میں لکھ دے، کہ گردش ہے مہرباں 
اس وجہ صرف ساٹھ سو روپیہ ہیں کل رواں ٠ 
اگلے مہینے کافی بچت کی امید ہے 
ہندو کی دیوالی ہے ، مسلماں کی عید ہے ٠ 
میں نے کہا ، یہ لو کہ برے حال لکھ دیا 
کہنے لگا کہ بھیّہ جی! ہو جاۓ کچھ بھلا ٠ 
یہ سن کے سر پھرا ، تو توازن بگڑ گیا 
منہ سے نکل گیا کہ تیری - - - - - - ٠ 

Thursday, March 14, 2019

जुंबिशें - - - रुबाइयाँ

रुबाइयाँ
घर वाली की हर वक़्त हिमायत छोड़ो,
नर जैसे बनो, मादा की ख़सलत छोड़ो,
फुंक जाते हो, गर कान को फूंके जोरू,
बस थोड़ी सी ग़ैरत में हरारत छोड़ो.

گھر والی کی ہر وقت حمایت چھوڑو 
نر جیسے بنو ، مادہ کی خصلت چھوڑو 
پُھنک جاتے ہو ، گر کان کو پھونکے جورو 
بس تھوڑی سی غیرت میں حرارت چھوڑو ٠ 

**
मातूब हुवा जाए बुढ़ापे में वजूद, 
लागत मिली बीवी से, न औलाद से सूद, 
संन्यास की ताक़त है, न अब भाए जुमूद, 
बूढ़े को सताए हैं, बचे हस्त ओ बूद.   
मातूब=शापित,जुमूद=गत्यावरोध,हस्त ओ बूद=होना  

معتوب ہوا جاۓ ، بُڑھاپے میں وجود 
لاگت ملی بیوی سے ، نہ اولاد سے سود 
سنیاس کی طاقت ہے ، نہ اب بھاۓ جمود 
بوڑھے کو رُلاۓ ہے ، بچا ہست و بود ٠ 

***
हाँ! जिहादी तालिबों को पामाल करो, 
इन जुनूनियों का बुरा हाल करो, 
बे क़ुसूर, बे नयाज़ पर आँच न आए, 
आग के हवाले न कोई माल करो. 
पामाल=बरबाद,बे नयाज़ =अबोध

ہاں ! جہادی طالبوں کو پامال کرو 
اِن جُنونیوں کا بُرا حل کرو 
بے قصوروں ، بے نیازوں پر آنچ نہ آئے 
آگ کے حوالے ، نہ کوئی مال کرو ٠ 

Wednesday, March 13, 2019

जुंबिशें - - - दोहे


dohe
बस जा अपने आप में , फिर दुन्या की जान ,
पंडित जी की रागनी , मुल्ला जी की तान .
بس جا اپنے آپ میں ، پھر دنیا کی جان 
پنڈت جی کی راگنی ، مللہ جی کی تان 
**
धन साधन चुक जाए जब , भूख का हो आभास ,
मुंकिर नाक दबाए के रोकीं लीनेह सांस .
دھن سادھن چک جاۓ جب ، بھوک کا ہو آبھاس
منکر ناک دباۓ کے ، روک لیں اپنی سانس
***
देखो उसके बाल ओ पर निकले हैं शादाब ,
सब से पहले ए हवा , दे मेरे आदाब .
 دیکھو انکے بال و پر ، نکلے ہیں شاداب 
سب سے پہلے ائے ہوا ، میرا دے آداب ٠ 
*

Tuesday, March 12, 2019

जुंबिशें - - - नज़्म क़फ़्से इन्कलाब1


नज़्म 

क़फ़्से इन्कलाब1

हद बंदियों में करके, आज़ाद कर गए,
दी है नजात या फिर, बेदाद२ कर गए.

अरबो, अजम, हरब३ के, दर्जाते-इम्तियाज़4,
अपनों को दूसरों पर, आबाद कर गए.

जिस्मो, दिलों, दिमागों, पर हुक्मराँ हैं वह,
बे बालो पर हमें यूँ , सय्याद५ कर गए.

ज़ेहनो में भर दिया है, इक आख़िरी निज़ाम६,
हर नक्श इर्तेक़ा७ को, बरबाद कर गए.

इंसान चाहता है,  बे ख़ौफ़ ज़िन्दगी,
वह सहमी सी, ससी सी, इरशाद८ कर गए.

इक्कीसवीं सदी में, आया है होश 'मुंकिर',
उनके सभी सितम को, फिर याद कर गए.

१-इन्कलाब का पिंजडा २-जुल्म ३-मुल्कों की इस्लामी श्रेणी ४पदोन का अन्तर
५-आखेटक ६- व्यवस्था ७-रचनात्मक चिन्ह ८-फरमान

 قفسِ انقلاب

حد بندیوں میں کر کے، آزاد کر گئے ہیں 
دی ہے نجات یا پھر ، بیداد کر گئے ہیں ٠

اہل عرب ، عجم پر ، مسکین  ہندیوں پر 
اپنوں کو دوسروں پر ، آباد کر گئے ہیں ٠

جسموں و دل و دماغوں ، پر راج کر رہے ہیں
بے بال و پر ہمیں وہ ، صیاد کر گئے ہیں ٠

ذہنوں میں بھر دیا ہے اک آکری نظام
تصویرِ ارتقائی ، برباد کر گئے ہیں ٠

مفروضہ حادثاتی ، محشر میں  مبتلا ہم 
وہ سہمی زندگی کو ، ارشاد کر گئے ہیں ٠

اِکیسویں صدی میں ، آیا ہے ہوش 'منکر'٠
اُنکے سبھی ستم کو ، ہم یاد کر گئے ہیں ٠  

Monday, March 11, 2019

जुंबिशें - - - रुबाईयाँ


रुबाईयाँ
अब बअज़ भी आओ कि बहुत ज़ुल्म क्या,
भगवान व् ख़ुदाओं ने बहुत ख़ून पिया,
 आते रहे अवतार व् पयम्बर बन कर,
आराम से इंसान को जीने न दिया.
اب باز بھی آؤ کہ بہت ظلم کیا 
بھگوان ، خداؤں نے بڑا خون پیا 
آتے رہے اوتار و پیمبر بن کے 
آرام سے انسان کو جینے نہ دیا ٠ 

**
सब कुछ यहीं ज़ाहिर है, खुला देख रहे हो,
क़ुदरत लिए हाज़िर है, खुला देख रहे हो,
बातिन में छुपाए वह इल्म ए नाक़िस,  
वह झूट में माहिर है खुला देख रहे हो.
سب کچھ یہیں ظاہر ہے ، کھلا دیکھ رہے ہو 
قدرت لئے حاضر ہے ، کھلا دیکھ رہے ہو 
باطن میں چھپاۓ ہے ،وہ علم ناقص 
وہ جھوٹ میں ماہر ہے کھلا دیکھ رہے ہو ٠ 

***
मअदा परस्ती में है बिरझाई हुई,
नामूस ख़ुदाई पे है ललचाई हुई,
इंसानी तरक्क़ी से कहो होश करे,
है आलम ए बाला से ख़बर आई हुई.
مادّہ پرستی میں ، ہے برجھائی ہوئی 
ناموس خدائی پہ ہے ، للچائی ہوئی 
انسانی ترققی سے کھو ، ہوش کرے 
ہے عالم بالہ سے ، خبر آئ ہوئی ٠ 

Sunday, March 10, 2019

जुंबिशें - - - ग़ज़ल खंडहरों मे नक़्श हैं



नज़्म 

शाज़िशी मुहिम 

खंडहरों मे नक़्श हैं माज़ी की शरारतें,
लूटने में लुट गई हैं ज़ुल्म की इमारतें.

देख लो सफ़ीर ए हज, उस सफ़र में क्या मिला,
थोड़ा सा सवाब था, ढेर सी हिक़ारतें1.

बात क़ायदे की है, अपने ही ज़ुबां में हो,
मज़हबी किताब की तूल तर इबारतें.

है अज़ाब ए जारिया2, ज़ालिमों की क़ौम पर,
मिट गईं तमुद्दनी3 शाख की ज़ियारतें.

क़ाफ़ला गुज़र गया, नक्श ए पा पे धूल है,  
पा सकी न रह गुज़र, सिद्क़4  की हरारतें.

शर्म सार है ख़ुदा, उम्मतों पे बोझ है,
शाज़िशी मुहिम वह थी, बेजा थीं जिसारतें5
.
1 घृणा 2 निरंतर श्राप 3 सभ्यता 4 सत्य 5 दु;साहस

تاریخی سانحے

 کھنڈ ہروں میں نقش ہیں ، ماضی کی شرارتیں
لوٹنے میں لٹ گئی ہیں ، ظلم کی عمارتیں ٠

دیکھ لو سفیرر تم ، سفر حج میں کیا ملا 
تھوڑا سا ثواب تھا ، ڈھیر سی حقارتیں ٠ 

بات قائدے  کی ہے ، اپنی ہی زباں میں ہو
مذہبی کتابوں کی ، تول تر عبارتیں ٠

ہے عذاب جاریہ ، ظالموں کی قوم پر 
مٹ گئیں تمدّنی ، نقش کی زیارتیں 

قافلہ گزر گیا ، نقش پا پہ  ہے 
پا سکیں نہ رہگزر ، صدق کی حرارتیں ٠

شرمسار ہے خدا، امتیں ذلیل ہیں 
سازشی مہم وہ تھی ، بے جا تھیں جسارتیں ٠ 

Friday, March 8, 2019

जुंबिशें - - - मुस्कुराहटें


मरसिया 

बाद मुद्दत के सही , आई क़ज़ा अच्छा हुवा .
थक गया था , चार कान्धों पर लदा अच्छा हुवा .

लुट गया बुड्ढे का कल माल ओ मतअ अच्छा हुवा .
था दुकान ओ घर पे ग़ालिब , मर गया अच्छा हुवा .

बेबसी के बार ए ज़हमत से तुम्हें छुट्टी मिली ,
था निज़ाई वक़्त , तुमने ली ख़ुला अच्छा हुवा .

रो रहे हो इस लिए , दुन्या का ये दस्तूर है ,
दिल में कहते हो मरा खूसट , चलो अच्छा हुवा .

मैं भटकती रूह हूँ ,उसके सितम से था मरा ,
आज निपटूंगा , कि मह्शर में मिला अच्छा हुवा .  

देख कर मय्यत को क्यों, मिलती है राहत क़ल्ब को ,
लगता है मुंकिर कि थोडा सा, मरा अच्छा हुवा .
*
مسکراہٹیں

مرثیہ 

بعد مدّت کے سہی ، آئ قضا ، اچّھا ہوا 
تھک گیا تھا، چار کاندھوں پر لدا اچّھا ہوا 

لٹ گیا بدڈھے کا کل مال و مطع اچّھا ہوا
تھا دکان و گھر پہ غالب ، اٹھ گیا اچّھا ہوا

بےبسی کے بار زحمت سے تمہیں چھٹی ملی 
تھا نزاعی وقت ، تمنے لی خلاء اچّھاہوا 

رو رہے ہو اس لئے ، دنیا کا یہ دستور ہے 
دل میں کہتے ہو ، گیا کھوسٹ ، چلو اچّھا ہوا

میں بھٹکتی روح ہوں ، اسکے ستم سے تھا مرا 
آج نپٹونگا کہ محشر میں ملا ، اچّھا ہوا

دیکھ کر میّت کو کیوں ملتی ہے راحت قلب کو 

لگتا ہے منکر بھی تھوڑا سا مرا اچّھا ہوا

Thursday, March 7, 2019

जुंबिशें - - - दोहे


दोहे
1
जिनके पंडित मोलवी  घृणा पाठ पढ़ाएँ ,
दीन धरम को छोड़ के , वह मानवता अपनाएं .

جن کے پنڈت مولوی ، گھرنا پاٹھ پڑھا یں 
دین دھرم کو چھوڑ کے ، وہ مانوتا اپنایں ٠
  *

2
क़ुदरत ही है आइना, प्रकृति ही है माप,
तू भी उसका अंश है, तू भी उसकी नाप।

فطرت ہی ہے آئینہ ، قدرت ہی ہے ماپ 
تو بھی اسکا جزو ہے ، تو ہی اسکی تاپ ٠  

3
बा-मज़हब मुस्लिम रहे, हिदू रहे सधर्म,
अवसर दंगा का मिला, हत्या इन का धर्म।

با مذہب مسلم رہے، ہندو  رہے سدھرم 
اوسر دنگا کا ملا ، ہتیہ پھر نرمم ٠

Wednesday, March 6, 2019

जुंबिशें - - - ग़ज़ल है कैसी कशमकश ये


ग़ज़ल 

है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है,
यकसूई चाहता है, दो पाट में फँसा है.

दिल जोई तेरी की थी, बस यूँ ही वह हँसा है,
दिलबर समझ के जिस को, तू छूने में लसा है.

बकता है आसमाँ को, तक तक के मेरी सूरत,
पागल ने मेरा बातिन, किस ज़ोर से कसा है।

सच बोलने के ख़ातिर, दो आँख ही बहुत थीं,
अलफ़ाज़ चुभ रहे हैं, आवाज़ ने डंसा है.

कैसी है सीना कूबी? भूले नहीं हो अब तक,
बहरों का फ़ासला था, सदियों का हादसा है.

है वादियों में बस्ती, आबादी साहिलों पर,
देखो जुनून ए 'मुंकिर' गिर्दाब में बसा है.

*बातिन=अंतरात्मा *सीना कूबी=मातम *बहरों=समन्दरों *गिर्दाब=भंवर

ہے کیسی کشمکش یہ، یہ کیسا وسوسہ ہے؟ 
یکسوئی چاہتا ہے، دو پاٹوں میں پھنسا ہے٠ 

دل جوئی تیری کی تھی، بس یوں ہی وہ ہنسا ہے 
دلبر سمجھ کے جسکو، تو چھونے میں لسا ہے٠ 

تکتا ہے آسماں کو، تک تک کے میری صورت
پاگل نے میرا باطن، کس زور سے کسا ہے٠ 

سچ بولنے کی خاطر، دو آنکھین ہی بہت تھیں
الفاظ چُبھ رہے ہیں، آواز نے ڈنسا ہے٠ 

کیسی ہے سینہ کوبی، بھولے نہیں ہو اب تک؟
صدیوں کا حادثہ ہے، بحروں کا فاصلہ ہے٠ 

ہے وادیوں میں بستی، آبادی ساحلوں پر 
دیکھو جنونِ منکر، گرداب میں بسا ہے٠ 

Tuesday, March 5, 2019

जुंबिशें - - - नज़्म ---मुंसिफ


नज़्म 

मुन्सिफ़ हाज़िर हो 

ऐ अदालत तेरे आँखों में हैं क़ातिल के नुक़ूश,
और तेरे सर पे, बड़ी बेटी की शादी तय है,
इक बड़ी दौरी को भरना है, तुझे वर है सही,
अस्मत ए अद्ल1 को बेचेगा, तू रंडी की तरह.

मरने वाले का मैं वालिद, तू है बेटी का पिता,
हार जाऊंगा मुक़दमा मैं, बड़ी मुफ़लिस है.

मशविरा है ये मेरा, छोड़ो अदालत के तवाफ़2,
सब्र कर डालो, मुक़दमे का न चक्कर पालो,
बख्श दें मुद्दई हर छोटे गुनह गारों को,
और बड़े से तो ये बेहतर है, कि ख़ुद ही निपटें,
कल की बातें हैं अदालत, ये गवाही, ये वकील,
आज पैसे का खिलौना है ये ज़हरीला निजाम3.

नहीं इंसाफ यहाँ, है तो तबाही है यहाँ,
यह बना होगा कभी सिद्क़4 की मीनारों पर,
आज यह सब से बड़ा रिशवतों का अड्डा है.
तुम ज़मीरों में बसे हो तो, बहादर भी बनो,
वरना बुज़दिल की तरह जा के ख़ुद कुशी कर लो .
1 न्याय की मर्यादा 2 परिक्रमा 3 व्योवस्था 4 सत्य 

مُنصف حاضر ہو 

ائے عدالت تری آنکھوں میں ہیں ، قاتل کےنقوش 
اور ترے سر پہ بڑی بیٹی کی شادی طے ہے 
عظمتِ عدل کو بیچے گا تو رنڈی کی طرح 
مرنے والے کا میں والد ہوں ، تو بیٹی کا پتا 
ہار جاؤنگا مُقدمہ ، کہ بہت مُفلس ہوں ٠ 
مشورہ ہے یہ مرا ، چھوڑو عدالت کا طواف 
صبر کر ڈالو مُقدمے کا نہ چکّر پالو 
بخش دیں مُدعی ہر چھوٹے گُنہگاروں کو 
اور بڑوں سے تو یہ بہتر ہے ، کہ خود ہی نپٹیں ٠ 
کل کی باتیں ہیں عدالت ، یہ گواہی ، یہ وکیل 
آج پیسوں کا کھلونہ ہے، یہ بوسیدہ نظام 
یہ بنا ہوگا کبھی صِدق کے میناروں پر 
آج یہ سب سے بڑا رِشوتوں کا ا ڈ ڈا ہے ٠ 
تم ضمیروں میں بسے ہو تو بہادر بھی بنو 
مت غُلامانہ جیو بڑھ کے سنوارو یہ نظام ٠