Thursday, February 28, 2019

जुंबिशें - - - नज़्म ईद की महरूमियाँ


 नज़्म
ईद की महरूमियाँ 1

कैसी हैं ईद की ख़ुशियाँ, यह नक़ाहत२ की तरह,
जश्न क़र्ज़े की तरह, नेमतें क़ीमत की तरह.
ईद का चाँद ये, कैसी ख़ुशी को लाता है,
घर के मुखिया पे नए पन के सितम ढाता है.

ज़ेब तन कपड़े नए हों तो ख़ुशी ईद है क्या?
फ़िक्र-ए-गुर्बा३ के लिए हक़४ की ये ताईद५ है क्या?
क़ौम पर लअनतें हैं फ़ित्रा व् ख़ैरात व् ज़कात६ ,
ठीकरे भीख की ठंकाए है, उमरा७ की जमाअत.

पॉँच वक़तों  की नमाज़ें हैं अदा रोज़ाना,
आज के रोज़ अज़ाफ़ी है सफ़र८ दोगाना.
इसकी कसरत से कहीं दिल में ख़ुशी होती है,
भीड़ में ज़िन्दगी तनहा सी पड़ी होती है.

ईद के दिन तो नमाज़ों से बरी करना था,
छूट इस दिन के लिए मय-ब-लबी करना था.
नव जवाँ देव परी के लिए मेले होते,
अपनी दुन्या में दो महबूब अकेले होते.

रक़्स होता, ज़रा धूम धड़ाका होता,
फुलझड़ी छूटतीं, कलियों में धमाका होता.
हुस्न के रुख़ पे शरीयत९ का न परदा होता,
मुत्तक़ी१०,पीर, फ़क़ीहों११, को ये मुजदा१२, होता.

हम सफ़र चुनने की यह ईद इजाज़त देती,
फ़ितरते ख़ल्क़१३ को संजीदगी फ़ुर्सत देती.
ईद आई है मगर दिल में चुभी फांस लिए,
क़र्बे१४ महरूमी लिए, घुट्ती हुई साँस लिए.

१-वनचित्ता २-कमजोरी ३-गरीबों की चिंता ४-ईश्वर 5-समर्थन 
६-दान की विधाएँ ७-धनाड्य ८-ईद की नमाज़ को दोगाना कहते ९-धर्मं विधान 
१०-सदा चारी  11-धर्म-शास्त्री १३-खुश खबरी १3-जीव प्रवर्ति14-वंचित की पीड़ा


عید کی محرومیاں

کیسی ہیں عید کی خوشیاں ، یہ نقاہت جیسی 
جشن قرضے کی طرح ، نعمتیں قیمت جیسی 
عید کا چاند ، خوشی لےکے کہاں آتا ہے ؟
گھر کے مکھیہ پہ ، نئے پن کے ستم ڈھاتا ہے ٠

زیبِ تن کپڑے نئے ہوں ، تو خوشی عید ہے کیا ؟
فکرِ غربہ کے لئے ، حق کی یہ تائید ہے کیا ؟
قوم کی لعنتیں ہیں ، فطرہ و خیرات و زکات 
ٹھیکرے بھیکھ کے ، ٹھنکاتی ہے عمرہ کی جماعت ٠

پانچ وقتوں کی نمازیں ہیں ادا روزانہ 
آج کے روز اضافی ہے ، سفرِ دوغانا 
ان کی کثرت سے ، کہیں کوئی خوشی ملتی ہے ؟
اس کی ییاری میں ہی ، نصف صدی لگتی ہے ٠

آج کے دن تو نمازوں سے بری کرنا تھا 
چھوٹ اس دن کے لئے مے بہ لبی کرنا تھا 
نو جواں دیو و پری کے لئے میلے ہوتے 
محوِ انفاس میں ہر جوڑے اکیلے ہوتے ٠

ان چھئے جسم ، نئے لمس کی لذّت پاتے 
انتخباتِ نظر ، رتبۂ فطرت پا تے 
حسن کے رخ پہ ، شریعت کا نہ پردہ ہوتا 
متقی ، پیر ، فقیہوں کو یہ مژدہ ہوتا ٠

ہم سفر چننے کی ، یہ عید اجازت دیتی 
فطرت خلق کو ، سنجیدگی فرست دیتی 
عید آئ ہے ، مگر دل میں چبھی پھانس لئے 
قربِ محرومی لئے ، گھٹتی ہوئی سانس لئے ٠ 

Wednesday, February 27, 2019

जुंबिशें - - -ग़ज़ल


ग़ज़ल 



जहाँ रुक गया हूँ वह मंज़िल नहीं है,

ये तन आगे बढ़ने के क़ाबिल नहीं है.



 नफ़ी1 लेके मुल्क ए अदम2 जा रहा हूँ,

अजब मुस्बतें3 हैं कि हासिल नहीं हैं.



ज़ईफ़ी, नहीफ़ी4, ग़रीबी, असीरी5,

सदा दे अना6 कोई क़ातिल नहीं है.



जो रूपोश वहशत7, नफ़स8 चुन रही है,

वह ग़ालिब हैं मद्दे मुक़ाबिल नहीं हैं.



तेरे हुस्न की बे रुखी कह रही है,

तेरे पास सब कुछ है, बस दिल नहीं है.



ये मुंकिर नई  रहगुज़र चाहता है,

तुम्हारी क़तारों में शामिल नहीं है.



1 ऋणात्मक 2 अंतिम यात्रा 3 धनात्मक 4 कमजोरी 5 क़ैद 6 आत्म सम्मान 7 डर 8 साँसें  




جہاں رک گیا ہوں، وہ منزل نہیں ہے

یہ تن آگے بڑھنے کے قابل نہیں ہے٠  



نفی لیکے ملکِ عدم جا رہا ہوں

عجب مثبتیں ہیں کہ حاصل نہیں ہیں٠  



ضعیفی، نحیفی، غریبی، اسیری

صدا دے آنا، کوئی قاتل نہیں ہے ؟



جو روپوش وحشت، نفس چُن رہی ہے

وہ غالب ہے، مد مقابل نہیں ہے٠  



ترے حسن کی، بے رُخی کہہ رہی ہے 

ترے پاس سب کچھ ہے، بس دل نہیں ہے٠  



یہ منکر نئی رہگزر چاہتا ہے

تمہاری قطاروں میں شامل نہیں ہے٠  

Monday, February 25, 2019

बइस्म ए सिद्क़ 1


1
बइस्म ए सिद्क़ 1



(सच्चाई के नाम से शुरू करता हूँ )




यह जुम्बिशें हैं दिल की, बेदारी2 सू ए ज़न2 की,

हैं रूह की ख़राशें, टीसें हैं मेरे मन की.



रस्मो की बारगाहें3, बाज़ार हैं चलन की,

बोसीदा4 हो चुकी हैं, दूकानें यह सुख़न5 की. 



फ़रमान ए साबक़ा6 के, ऐ बाज़ गश्तो ठहरो,

अब होगी आज़माइश, थोड़े से बाँकपन की.



आतिश फ़िशाँ8 की नोबत, आए तो क्यों न आए,

बेचैन हो चुकी हैं, पाबंदियाँ दहन* की.



जिस झूट में सदाक़त10, साबित हुई हो शर से,

उस सिद्क़11 को ज़रूरत, है गोर12 और कफ़न की.



तअलीम नव13 के तालिब14, अब अर्श१५ छू रहे हैं,

डोरी न इनको खींचे, इन शेख़ व बरहमन की.



गर दिल पे बोझ आये, ईमान छटपटाए,

ऐसे क़फ़स१६ से निकलो, छोडो फ़िज़ा चुभन की.



हम सब ही आलमीं17 हैं, भूगोल सब की माँ है,

आओ बढ़ाएँ अज़मत18, हम मादर ए वतन की.



धर्मो से पाई मुक्ति, मज़हब से पाई छुट्टी,

इंसानियत की बूटी, पीडा हरे है मन की.



तअमीर19 में है बाक़ी, जो ईंट, वह है 'मुंकिर',

मेमार20 इसको चुन दे, तकमील21 हो चमन की.



१-प्रचलित बिस्मिल्लाह या श्री गणेश २-जागरण 2+ MITURITY३-दरबार ४-जीर्ण ५-वाणी ६-पुरानेआदेश 

७-प्रति -ध्वनी ८-ज्वाला-मुखी ९-मुख (दहन =मुँह)१० सत्यता 11-सत्य 12 -कब्र १३-नवीं शिक्छा १४-इच्छुक 
१५-आकाश १६-पिंजडा १७-अन्तर राष्ट्रीय 18 मर्यादा 19-रचना 20-रचना कार २१-सम्पूर्णता.



بئسمِ صدق 




یہ جُنبشیں ہیں دل کی، بیداری سوئےِزن کی

ہیں روح کی خراشیں، ٹیسیں ہیں میرے من کی٠



رسموں کی بارگاہیں، بازار ہیں چلن کی

بوسیدہ ہو چکی ہیں، دوکانیں یہ سُخن کی٠



فرمانِ گزشتہ کی، ائے بازِگشتو ٹھہرو

تم میں ہے آزمائش، تھوڑے سے بانک پن کی٠



آتش فشاں کی نوبت، آتی تو کیوں نہ آتی

بے چین ہو چُکی تھیں، پابندیاں دَہن کی٠

جس جھوٹ کی صداقت، ثابِت ہی ہو شر سے
اُس صِدق کو ضرورت، ہے گور اور کفن کی٠ 



تعلیمِ نَو کے طالب ، ہیں عالمِ  فلک پہ 

 ڈوری نہ ان کو کھینچے، اب شیخ و برہمن کی٠



گر دل  پہ  بوجھ  آئے، ایمان چھٹپٹائےِ

ایسے قفس سے نکلو، چھوڑو فضا گُھٹن کی٠



ہم سب ہی عالمی ہیں، بھوگول سب کی ماں ہے

آؤ بڑھأئیں عظمت ، ہم مادرِ وطن کی٠ 



دھرموں سے پائی مُکتی، مذہب سے پائی چُھٹّی

انسانیت کی بوٹی، پیڑا ہرے ہے من کی٠



تعمیر میں ہے باقی، جو اینٹ وہ ہے منکر

معمار اسکو چُن دے ، تکمیل ہو وطن کی٠ 

Friday, February 22, 2019

जुंबिशें - - - (जुगल गीत)



ख़लील जिब्रान के नाम 
(जुगल गीत) 


बहुत थके ऐ हमराही हम, आओ थोड़ा जी जाएँ,

मैं भी प्यासा, तुम भी प्यासे, इक दूजे को पी जाएँ.


अरमानो के बीज दबे हैं, बर्फ़ीली चट्टानों में,

बरखा रानी हिम पिघला, अंकुर फूटें, हम लहराएँ.


कुछ न बोलें, मुँह न खोलें, शब्दों के परछाईं तले,

चारों नयनों के दर्पन को, सारी छवि दे दी जाएँ.


तेरे तन की झीनी चादर, मेरे देह की तंग क़बा,

आओ दोनों परिधानों को, उतन पुतन के सी जाएँ.


सूरज के किरनों से बंचित, नर्म हवाओं से महरूम,

काया क़ैदी कपड़ों की है,आओ बग़ावत की जाएँ.


نغمۂ دوگانہ 

بہت تھکے ائے ہمراہی ہم ، آؤ تہوڑا جی جائیں 
میں بھی پیاسا تم بھی پیاسے ، چلو یہ دوری پی جائیں ٠ 
ارمانوں کے بیج دبے ہیں ، برفیلی چٹانوں میں 
برکھا اب برفیں پگھلا ، انکور پھوٹیں، ہم لہرا یں ٠ 
کچھ نہ بولیں ، لب نہ کھولیں ، شبدوں کے پرچھائیں تلے 
چاروں نینوں کے درپن کو، ساری چھوی دے دی جائیں ٠ 
تیرے تن کی جھینی چادر ، میرے دیہ کی تنگ قبا 
آؤ دونوں پریدھانوں کو ، اتن پتن، اک کی جائیں ٠ 
سورج کے کرنوں سے بنچت ، نرم ہواؤں سے محروم 
کایا قیدی کپڑوں کی ہیں ، آؤ بغاوت کی جائیں ٠ 

Thursday, February 21, 2019

जुंबिशें - - - रुबाइयाँ


रुबाइयाँ

तुम भी अगर जो सोचो, विचारो तो सुनो,
अबहाम१ के शैतान को, मारो तो सुनो,
कुछ लोग बनाते हैं, तुम्हें अपना सा,
ख़ुद अपना सा बनना है, गर यारो तो सुनो.
१-अन्धविश्वास

تم بھی اگر جو سوچو ، وچارو تو سنو
ابہام کے شیطان کو مارو تو سنو
کچھ لوگ بناتے ہیں تمہیں اپنا سا 
خود اپنا سا بننا ہے، جو یارو تو سنو٠


'मुंकिर' की ख़ुशी जन्नत, तौबा तौबा,
दोज़ख़ से डरे ग़ैरत, तौबा तौबा,
बुत और ख़ुदाओं से तअल्लुक़ उसका,
लाहौल वला, क़ूवत, तौबा तौबा.

منکر کی خوشی جنّت، توبہ توبہ 
دوزخ سے ڈرے غیرت ، توبہ توبہ 
بُت اور خداؤں سے تعلّق اُسکا 
لا حول ولا قووتھ ، توبہ توبہ ٠ 


अल्लाह ने बनाया है, जहानों सामाँ ,
मशकूक ख़िरद1 है, कहूं हाँ या नाँ,
इक बात यक़ीनन है, सुनो या न सुनो,
अल्लाह को बनाए है, क़यास इंसाँ.
क़यास =अनुमान 
الله نے بنایا ہے جہان و ساماں 
مشکوک خرد ہے کہ کہوں ہاں یا نا 
اک بات یقیناً ہے سُنو یا نہ سُنو 
الله کو بناۓ ہے قیاسِ انساں ٠ 

Tuesday, February 19, 2019


तीरें 


तेज़ तर तीर की तरह तुम हो, 

नसलो! तुम को निशाना पाना है.
हम हैं बूढे कमान की मानिंद, 
बोलो कितना हमें झुकाना है?
***
सुल्हा कर लूँ कि ऐ अदू १ तुझ से, 
मैं ने तदबीर ही बदल डाली,
तेरे जैसा ही क्यूं न बन जाऊं, 
अपने जैसा ही क्यों बनाना है.
***
रोज़े रौशन को छीन लेती है, 
तू कि ऐ गर्दिशे ज़मीं हम से,
हम हैं सूरज के वंशजों से मगर, 
सर पे तारीक2 ये ख़ज़ाना है.
***
कौडी कौडी बचा के रक्खा है, 
तिनका तिनका सजा के रक्खा है,
गीता संदेश कुछ इशारा कर, 
हम ने जोड़ा है किस को पाना है.
***
बारी बारी से सोते जगते हैं, 
मेरे कांधों पे दो फ़रिश्ते ये,
हम सवारी गमो खुशी के हैं, 
रोते हँसते नजात पाना है.
***
आप के पास भी अन्दाज़ा है, 
है हमारे भी पास तख़मीना,
आप ने माना एक वाहिद को, 
हम ने सत्तर करोर माना है.
***
तू है क़ायम फ़क़त गवाही पर, 
सदियाँ गुज़रीं गवाह गुज़रे हुए,
हिचकिचाहट है इल्म नव3 को अब, 
तुझ को नुक्तों पे आज़माना है.
***
तेरे एह्काम4 की करूँ तामील, 
फ़ायदे कुछ न चाहिए मुझ को,
आसमानों से झाँक कर तुझ को,
सिर्फ़ इक बार मुस्कुराना है.


१-दुश्मन २-अँधेरा ३-नई शिक्षा ४-आज्ञा



تیرں 



تیز تر تیر کی طرح تم ہو 

نسلو ! تم کو نشانہ پانا ہے 
ہم ہیں بوڑھے کمان کی مانند 
بولو ، کِتنا تمہیں جُھکنا ہے ٠
*
صلح کر لوں ، کہ ائے عدو تُجھ سے 
میں نے تدبیر ہی بدل ڈالی 
تیرے جیسا ہی کیوں نہ بن جاؤں 
اپنے جیسا ہی کیوں بنانا ہے ٠
*
روزِ روشن کو چھین لیتی ہے 
تو کہ ائے ، گردشِ زمیں مجھ سے 
ہم تو سورج کے قبلائی ہیں 
سر پہ اندھیر کا کیوں خزانہ ہے ٠
*
کوڑی کوڑی بچا کے رکھا ہے 
تِنکا تِنکا سجا کے رکھا ہے 
گیتا سندیش تو اِشارہ دے 
ہمنے جوڑا ہے ، کِسکو پانا ہے ٠
*
باری باری سے سوتے جگتے ہیں
میرے کا ندھوں پہ دو فرشتے یہ 
ہم سواری غم و خوشی کے ہیں 
روتے ہنستے نجات پانا ہے ٠ 
 *
آپ کے پاس بھی اندازہ ہے 
ہے ، ہمارے بھی پاس تخمینہ 
آپ نے مانا ایک واحد کو 
ہم نے ستتر کروڑ مانا ہے ٠ 

Monday, February 18, 2019

जुंबिशें - - -ग़ज़ल – 33 इस शहरी


ग़ज़ल

इस शहरी आबादी को, जंगल में बोया जाए,

परबत के दामन हैं ख़ाली, चलो वहीँ सोया जाए.


जीवन भर के सृजित हीरे, आँख खुली तो पत्थर थे,

चुन कर लाए जहाँ से इनको, वहीँ कहीं खोया जाए.


आहें निकलें, आंसू बरसें, हस्ती का कुछ बोझ कटे,

मन भारी है, तन है बोझिल, फूट फूट रोया जाए.


ऐ फ़ातेह! यह तेरा जिगरा, बस्ती है वीरान पड़ी,

तौबा का साबुन ले आओ, दाग़ ए जिगर धोया जाए.


दुःख को ढूंढो बाती लेकर, मिले कहीं तो बतलाना,

सुख की गठरी नहीं है सर पे, इस पर क्यों रोया जाए.


जुल दे कर भागी है "मुंकिर" उम्र जवानी हाय रे अब,

बूढ़ी पीठ पे इस की करनी, किस बल से ढोया जाए.


اِس شہری آبادی کو، جنگل میں بویا جاۓ 

پربت کے دامن ہیں خالی، چلو وہیں، سویا جاۓ٠ 


جیون بھر کے سِرجت ہیرے، آنکھ کُھلی تو پتھر تھے 

چُن کر جہاں سے لاۓ انکو، وہیں کہیں کھویا جاۓ٠ 


آہیں نکلیں، آنسو برسیں، ہستی کا کچھ بوجھ کٹے

من بھاری ہے، تن ہے بوجھل، پھوٹ پھوٹ رویا جاۓ٠ 


ائے فاتح، یہ تیرا جگرا، بستی ہے ویران پڑی

توبہ کا صابن لا کر دے، داغِ جگر دھویا جاۓ٠ 


دُکھ کو ڈھونڈھو باتی لیکر، کہیں ملے تو بتلانا 

سُکھ کی گٹھری نہیں ہے سر پر، اس پر کیوں رویا جاۓ٠ 


جُل دیکر بھاگی ہے منکر، عمر جوانی ہاۓ رے اب 

بوڑھی پیٹھ پہ اس کی کرنی، کس بل سے ڈھویا جاۓ٠ 

Sunday, February 17, 2019

जुंबिशें - - - नज़्म कुफ्र व ईमां



कुफ़्र और ईमान

कुफ़्र१ ओ ईमान2 दो सगे भाई,
सैकड़ों साल हुए बिछडे़ हुए,
हाद्साती३ हवा थी आई हुई,
एक तूफाँ ने इनको तोड़ा था.

कोहना क़द्रों4 पे कुफ़्र था क़ायम,
इक ख़ुदा की सदा लिए ईमाँ,
बस नज़रयाती इख़्तेलाफ़5 के साथ,
ठन गई कुफ्र और ईमाँ में.

नारा ए जंग और जेहाद६लिए,
भाई भाई को क़त्ल करते थे,
बरकतें लूट की ग़नीमत7थीं,
और ज़रीआ मुआश8 थे हमले.

कुफ़्र की देवियाँ लचीली थीं,
देवता बेनयाज़9 थे बैठे,
जैश१० ईमान का जो आता था,
देवता मालो-ज़र लुटाता था.

ज़द में थे एशिया व् अफ्रीक़ा,
हर मुक़ामी पे क़ह्र बरपा थी,
ऐसा ईमान ने गज़ब ढाया,
आधी धरती पे मौत बरसाया.

ख़ित्ता ए सख़्त, जमीं पे भारत था,
सख़्त जानी थी कुफ़्र की इस पर,
इसपे आकर रुका थका ईमाँ,
कुफ़्र के साथ कुछ हुवा राज़ी.

सदियों ग़ालिब रहा मगर इस पर,
कुफ़्र के आधे इल्तेज़ाम11के साथ,
कुफ़्र पहुँचा सिने बलूग़त11 को,
फ़िर ये जमहूर्यत की ऋतु आई,

कुफ़्र को कुछ ज़रा मिली राहत,
और उसने नतीजा अख्ज़12 किया,
क्यूं न ईमान की तरह हम भी,
जौर ओ शिद्दत13की राह अपनाएं.

मेरा भी एक ही पयम्बर हो,
राम से और कौन बेहतर है,
मेरा भी सिर्फ़ एक मक्का हो,
मन को भाई अयोध्या नगरी.

काबा जैसा ही राम का मन्दिर,
बाबरी टूटे, कुफ़्र क़ायम हो,
उनका इस्लाम, अपना हो हिंद्त्व,
सारे रद्दे-अमल14 हैं फ़ितरी15 से.

कुफ़्र में इख़्तेलाफ़16 दूर हुए,
फ़ार्मूला ये ठीक था शायद,
उसकी कुछ जुज़वी कामयाबी है,
उसकी गुजरात में जवाबी है.

आज ईमाँ को होश आया है,
बिसरी आयत17 को जान पाया है,
है लकुम-दीनकुम18 से अब मतलब,
भूले काफ़िर को, क़त्ल करना अब.

अहल-ऐ-ईमाँ की बड़ी मुश्किल है,
आज मोहलिक१९ निज़ाम-कामिल२०,
कोई भाई भी पुरसा हाल नहीं,
करके हिजरत२१ वह कहाँ जाएँ अब.

है बहुत दूर मर्कज़े-ईमाँ22,
उसकी अपनी ही चूलें ढ़ीली हैं,
हैं पड़ोसों  में भाई बंद कई,
जिन के अपने ही बख़्त23 फूटे हैं.

ईमाँ त्यागे अगर जो हट धर्मी,
कुफ़्र वालों के नर्म गोशे24 हैं,
उनकी नरमी से बचा है ईमाँ,
वरना दस फ़ी सदी के चे-माने ?

बात 'मुंकिर' की गर सुने ईमाँ,
जिसकी तजवीज़25 ही मुनासिब है,
जिसका इंसानियत ही मज़हब है,
कुफ़्र की भी यही ज़रूरत है. 

1-काफिर आस्था २-मुस्लिम आस्था ३-दुर्घटना -युक्त ४-पुरानी मान्यताएं ५-दिरिष्ट -कौणिक 
६-धर्म युद्ध ७-धर्म युद्ध में लूटा हुआ माल ८-जीविका-श्रोत ९-अबोध १०-लश्कर 10- nishana 
११-चपेट १२-समझौता १३-निकाला १४-ज़ुल्म,ज्यादती १५-प्रति-क्रिया १६-स्वाभाविक 
१७-विरोध १८-कुरानी लेख अंश १९-तुहारा दीन तुहारे लिए,हमारा दिन हमारे लिए २०-हानि कारक
 २१-सम्पूर्ण जीवन शैली २२स्वदेश त्याग २३-मक्का की ओर संकेत २४-भाग्य २५-कुञ्ज २६-उपाय .

کُفر اور ایمان



کُفر و ایمان دو سگے بھائی 

سیکڑوں سال ہوئے بِچھڑے ہوئے 
حادثاتی ہوا تھی آئ ہوئی ،
ایک طوفاں نے انہیں توڑا تھا 


کُہنہ قدروں پہ کُفر تھا قایم 

اِک خدا کی صدا لئے ایماں 
بس نظریاتی اختلاف کے ساتھ 
ٹھن گئی کُفر اور ایماں میں؛


نعرہء جنگ اور جہاد لئے 

قائم ایمان قتل و خوں پہ ہوا 
برکتیں لوٹ کی غنیمت تھیں 
اور ذریعہ مُعاش تھے حملے ٠


کُفر کی دیویاں لچیلی تھیں 

دیوتا بے نیاز تھے بیٹھے 
جیش ایمان کا جو آتا تھا 
کُفر بس مال و دھن لُٹاتا تھا 


زد میں تھے ایشیا و افریقہ 

ہر مقامی پہ قہر برپا تھا 
ایسا ایمان نے غضب ڈھایا 
 آدھی دھرتی پہ زلزلہ آیا 


ایک خطّہ زمیں پہ بھارت تھا 

سخت جانی تھی کفر کی اس پر 
اس پہ آکر رُکا تھکا ایماں 
کُفر کے ساتھ کُچھ ہوا راضی ٠


صدیوں قابض رہا یہ مل جُل کر 

کُفر کے آدھے التزام کے ساتھ 
کُفر میں طاقت کُہن جاگی 
پھر یہ جمہوریت کی رُت آئ 


کُفر کو کُچھ ذرا مِلی راحت 

اور اس نے نتیجہ اخذ کیا 
کیوں نہ ایمان کی طرح ہم بھی 
جور و شِدّت کی راہ اپنائیں ٠


میرا بھی اِک بڑا پیمبر ہو 

رام سے اور کون بہتر تھا 
میرا بھی صِرف کوئی کعبہ ہو 
من کو بھائی ایودھیا نگری 


کعبہ جیسا ہی رام کا مندر 

بابری ٹوٹے کُفر قائم ہو 
اِنکے اسلام کی طرح ہندتو 
سارے ردِ عمل تھے فطری سے ٠


کُفر میں اِختلاف دور ہوے 

فارمولا یہ ٹھیک تھا شاید
انکی دلّی میں کامیابی ہے 
اور گجرات میں جوابی ہے٠ 


آج ایماں کو ہوش آیا ہے

بِسری آیت میں جان پایا ہے
اب لکُم دینکُم ہی جائز ہے
بھولا کافِر کو قتل کرنا اب ٠


اہل ایمان پہ سخت مشکل ہے

آج  مہلک نظام کامِل ہے
کوئی پُرسان حال ملتا نہیں
کرکے ہجرت یہ اب کہاں جائیں


 ہے بہت دور مرکزِ ایمان

اِنکی اپنی ہی چولیں ڈھیلی ہیں
ہیں پڑوسوں میں بھائی بند کئی
جِن کے اپنے ہی بخت پھوٹے ہیں٠ 


ایماں چھوڑے اگر جو ہٹ دھرمی

کُفر کے پھر بھی نرم گوشے ہیں
ان کی نرمی سے بچا ہے ایماں
ورنہ دس فی صدی کے چہ معنی ؟


بات 'منکر' کی گر سُنے ایماں

جِس کی تجویز ہی غنیمت ہے
جِس کی انسانیت ہی منزل ہے  
ایسے مذہب کی اب ضرورت ہے٠  





Friday, February 15, 2019

जुंबिशें - - - 31चाहत है तेरी


ग़ज़ल

चाहत है तेरी, और तेरा इंतेख़ाब1 है,

क्या दोस्त तेरा, तेरी तरह लाजवाब है?


सो लेना चाहिए, तुझे कुछ देर के लिए,

नींद की हालत में, यह बेजा ख़िताब2 है.


है एक ही नुमायाँ, वहाँ चाँद की तरह,

बाक़ी हसीन चेहरों के, रुख पे नक़ाब है.


शायर है बेअमल, कि इसे बा अमल करो,

चक्खी नहीं कभी, मगर मौज़ूअ शराब है.


क़ानून क़ाएदों के, उसूलों की नींद में ,

उस घर में घुस गया, जहाँ जीना सवाब है.


रोका नहीं है भीड़ ने, टोका है, रुका हूँ,

'मुंकिर' को रोक ले, ये भला किस में ताब है.


१ पसंद 2  -संबोधन



چاہت ہے تیری اور ترا انتخاب ہے 

کیا دوست تیرا، تیری طرح لا جواب ہے؟ 


سو لینا چاہئے تمہیں، کچھ دیر کے لئے 

حالت غنودگی کی ہے، بے جا خطاب ہے٠ 


ہے ایک ہی نُمایاں وہاں چاند کی طرح 

باقی حسین تاروں کے رُخ پر نقاب ہے٠ 


شاعر ہے بے عمل، کہ اُسے با عمل کرو 

چکّھی نہیں شراب کو، موضوع شراب ہے٠ 


قانون قاعدوں کے، اُصولوں کی نیند میں 

اُس گھر میں گھس گیا، جہاں جینا ثواب ہے٠ 


روکا نہیں ہے بھیڑ نے ٹوکا ہے، رُک گیا 

منکر کو روک لے، بھلا یہ کس میں تاب ہے٠ 

Thursday, February 14, 2019

जुंबिशें - - - 30 मुस्लिम राजपूत




मुस्लिम राजपूतों के नाम


ख़ुद को कहते हो, ग़ुलामान ए रसूले-अरबी1,

हैसियत दूसरे दर्जे के लिए हैं अजमी2,
तीसरा दर्जा हरब३, रखता है 'मुंकिर', हरबी.
और फ़िर दर्जा-ऐ-जिल्लत4 पे हैं हिन्दी मिस्कीं5,
बरतरी६ को लिए, मग़रूर हैं काबा के अमीं७,
सोच है कैसी तुम्हारी ? भला कैसा है यकीं ?


हज से लौटे हुए हाजी से हक़ीक़त८ पूछो,

एक हस्सास९ से कुछ, क़र्ब ए हिक़ारत पूछो.


है वतन जो भी तुम्हारा, है तुम्हें उसकी क़सम,

खून में पुरखो की धारा है ?तुम्हें उसकी क़सम,
नुत्फ़े१० की आन गवारा है? तुम्हें उसकी  क़सम,
ज़ेहन का कोई इशारा है ? तुम्हें उसकी क़सम,


अपने पुरखों की ख़ता क्या थी भला, हिदू थे ?

क़बले इस्लाम सभी, हस्बे ख़ुदा हिन्दू थे.
ज़ेब११ देता ही नहीं, पुरखो की अज़मत१२ भूलो,
उनको कुफ़्फ़र१३ कहो, और ये बुरी गाली दो.


क़ौमे होती हैं नसब14 की, कोई बुनियाद लिए,

अपने मीरास१५ से पाई हुई, कुछ याद लिए,
तुम बहुत ख़ुश हो, बुरे माज़ी१६ की बेदाद१७ लिए,
अरबों की ज़ेहनी गुलामी18 की, ये तादाद लिए.


अपने खूनाब19 की, नुत्फ़े की तहारत20 समझो,

जाग जाओ, नई उम्मत21 की ज़रूरत समझो.


अज़ सरे नव22, नया एहसास जगाना होगा,

इक नए बज़्म२३ का, मैदान सजाना होगा.
इक नई फ़िक्र24 का, तूफ़ान उठाना होगा,
मादरे हिंद में ही, काबा बनाना होगा.


राम और श्याम से भी, हाथ मिलाना होगा,

नानको-बुद्ध को, सम्मान में लाना होगा,
दूर तक माज़िए नाकाम25 में जाना होगा,
इस ज़मी का बड़ा इन्सान बनाना होगा.



१-मुहम्मद-दास 2-अरब गैर अरब मुस्लिम देशों को अजम कहते हैं ,वहां के रहने वालों को अजमी अर्थात गूंगा कहते हैं जोकि हीन माने जाते हैं .ठीक ऐसा ही हिंदू शब्द अरबों का दिया हुआ है जिसके माने अप शब्द हैं जिस पर कुछ लोग गर्व करते हैं .३-सभी गैर मुस्लिम देश को मुस्लिम हरब कहते हैं ।वहां के बाशिंदों को हरबी यानी हरबा (चल बाज़ी )करने वाला. ४- अपमानित श्रेणी ५-भारतीय भिखारी (ये हमारे लिए अरबियों का संबोधन है ) ६-श्रेष्टता ७-न्यास धारी ८-सच्चाई १०-शुक्र ,वीर्य ११-शोभा १२-मर्यादा १३-मूर्ति-पूजक १४-पीढी १५-दाय १६-अतीत १७-ज़ुल्म १८-मानसिक दासता 19-मर्यादित रक्त २०-पवित्रता २१-वर्ग २२-नए सिरे से २३-सभा २४-चिंतन २५-असफल २६-अत



 راجپوت ٹھاکُروں کے نام



خود کو کہتے ہو غلامانِ رسول عربی 

حیثیت دوسرے درجے کی لئے ہو اجمی 
تیسرا درجہ حرب رکھتا ہے 'منکر' حربی 
اور پھر درجۂ ذلّت پہ ہیں ہندی مسکیں 
برتری کو لئے مغرور ہیں کعبہ کے امیں 
آسماں کیسا تُمہارا ہے، یہ کیسی ہے زمیں ؟
حج سے لوٹے ہوئے حاجی سے صداقت پوچھو 
ایک حسساس سے کُچھ قربِ حقارت پوچھو ٠ 


ہے وطن جو بھی تُمہارا ، تُمہیں ہے اُسکی قسم 

خون میں پُرکھوں کی دھارا ہے ، تُمہیں اُسکی قسم 
نُطفے کی شان گورا ہے ؟ تُمہیں اُسکی قسم 
ذہن کا کوئی اشارہ ہے ، تُمہیں ہے اُسکی قسم 
اپنے پُرکھوں کی خطا کیا تھی ، بھلا ہندو تھے ؟
قبلِ اسلام سبھی حسبِ خدا ، ہندو تھے 
زیب دیتا ہی نہیں ، پُرکھوں کی عظمت بھولو 
اُنکو کُفّار کہو اور یہ بُری گالی دو ٠

قومیں ہوتی ہیں نسب کی کوئی بنیاد لئے 
اپنے پُرکھوں کی بُلندی کی ، کوئی یاد لئے 
اپنے میراث میں پائی ہوئی کچھ دا د لئے 
تم بڑے خوش ہو ، برے ماضی کی بیداد لئے 
جبر کا بوجھ لئے ، ظلم کی فریاد لئے 
 عربوں کی ذہنی غلامی کی یہ تعداد لئے 
اپنے خوں ناب کی ، نطفے کی طہارت سمجھو 
جاگ جاؤ نئی اُمّت کی ضرورت سمجھو ٠


اپنے میں اِک نیا احساس جگانا ہوگا 

اِک نئے بزم کا ، میدان سجانا ہوگا 
اِک نئی فکر کا ، طوفان اٹھانا ہوگا 
مادر ہند میں ہی کعبہ بنانا ہوگا،
رام اور شیام سے بھی ہاتھ مِلانا ہوگا 
نانک و بدھ کو سممان میں لانا ہوگا 
دور تک ماضی ے ناکام میں جانا ہوگا 
اِس زمیں کا بڑا انسان بنانا ہوگا ٠  

Tuesday, February 12, 2019

जुंबिशें - - - यह जम्हूरियत

ग़ज़ल

ये जम्हूरियत बे असर है,
संवारे इसे, कोई नर है?

बहुत सोच कर खुद कशी कर,
किसी का तू , नूर ए नज़र है.

दिखा दे उसे क़ौमी दंगे,
सना ख्वान मशरिक, किधर है.

बहुत कम है पहचान इसकी,
रिवाजों में डूबा बशर है.

है ऊपर न जन्नत, न दोज़ख,
ख़ला है, नफ़ी है, सिफ़र है.

इबादत है, रोज़ी मशक्क़त,
अज़ान ए कुहन, पुर ख़तर है.

ये सोना है, जगने की मोहलत,
जगो! ज़िन्दगी दांव पर है.

है तक़लीद बेजा ये 'मुंकिर',
तेरे जिस्म पर एक सर है.

*जम्हूरियत=गण-तन्त्र *नूरे नज़र=आँख का तारा * तकलीद=अनुसरण.
 *सना ख्वान मशरिक=पूरब का गुण-गण करने वाले*खला, नफ़ी=क्षितिज एवं शून्य 

یہ جمہوریت بے اثر ہے
سنوارے اسے کوئی نر ہے٠ 

بہت سوچ کر خود کشی کر 
کسی کا تو نور نظر ہے٠ 

دکھا دے اسے قومی دنگے 
ثنا خوانِ مشرق کدھر ہے٠ 

بہت کم ہے پہچان اسکی 
رِواجوں میں ڈوبا بشر ہے٠ 

نہیں بن سکا فرد انساں 
کہاں پر یہ باقی کثر ر ہے٠ 

ہے اوپرنہ جنّت نہ دوزخ، 
خلاء ہے، نفی ہے، صفر ہے٠ 

عبادت ہے روزی مشقت 
اذان کُہن پر خطر ہے٠ 

یہ سونا ہے جگنے کی مہلت 
جگو! زندگی دانو پر ہے٠ 

ہے تقلید بے جہ یہ منکر 
ترے جسم پر ایک سر ہے٠ 

Monday, February 11, 2019

जुंबिशें - - -नज़्म - - - हिंदुत्व


  हिंदुत्व

सदियों से गढ़ते गढ़ते, गढ़ाया है ये हिदुत्व,
पलकों को मूंदते नहीं, आया है ये हिंदुत्व.

तबलीग़1, जोर व् ज़ुल्म, जिहादों से दूर है,
सद भावी आचरण से, नहाया है ये हिंदुत्व.

तारीख़2  का लिहाज़ है, जुग़राफ़िया3  का पास,
आब ओ हवा में अपने, नहाया है ये हिंदुत्व.

नदियों में तैरता है, पहाड़ों में बसा है,
सूरज को, चाँद तारों को, भाया है ये हिंदुत्व.  

आओ मियाँ कि देखें, ज़रा घुस के इसका हुस्न,
पुरखों का है, कहाँ से पराया है ये हिंदुत्व. 

क़द्रें4 नई समेट के, चलता है डगर पे,
हाँ, इर्तेकाई5 हुस्न की, काया है ये हिंदुत्व.

तहजीब ए अर्ज़6 की ये, मुसलसल हयात7 है,
गर नाप तौल हो, तो सवाया है ये हिंदुत्व.

अरबों के फ़ल्सफ़े हि, न भाएँ ख़मीर8 को,
'मुंकिर' को भाए हिन्द, सुहाया है ये हिंदुत्व.

1-प्रचार 2-इतिहास 3-भूगोल 4-मान्यताएं 5-रचना 6-भूभाग 7-बानगी 

ہندوتو 

صدیوں سے گڑھتے گڑھتے ، گڑھایا ہے یہ ہندوتو 
پلکوں کے جھپکتے نہیں آیا ہے یہ ہندوتو

تبلیغ جور و ظلم ، جہادوں سے دور ہے 
سد بھاوی آچرن سے نہایا ہے یہ ہندوتو

تاریخ کا لحاظ ہے ، جغرافیہ کا پاس 
آب و ہوا میں اپنے، نہایا ہے یہ ہندوتو

ندیوں پہ تیرتا ہے ، پہاڑوں پہ بسا ہے 
سورج کو چاند تاروں کو، بھا یا ہے یہ ہندوتو

آؤ میاں کہ دیکھیں ذرا گھس کے اس کا حسن 
پرکھوں کا ہے ، کہاں سے پرایا ہے یہ ہندوتو

قدریں نی سمیٹ کے ، چلتا ہے دگر پہ 
ہاں ! ارتقائی حسن کا کایا ہے یہ ہندوتو

تہذیب ارض کی یہ مسلسل حیات ہے 
گر ناپ تول ہو تو سوایا ہے یہ ہندوتو

عربوں کے فلسفے ہی ، نہ بھا یں ضمیر کو 
منکر کو بھاۓ ہند ، سھایا ہے یہ ہندوتو

Sunday, February 10, 2019

जुंबिशें - - - ग़ज़ल – तरस न खाओ


ग़ज़ल 

तरस न खाओ, मुझे प्यार कि ज़रुरत है,
मुशीर कार नहीं यार कि ज़रुरत है.

तुम्हारे माथे पे उभरे हैं, सींग के आसार,
तुम्हें तो फ़तह नहीं हार की ज़रुरत है.

कलम की निब ने, कुरेदा है ला शऊर तेरा,
जवाब में कहाँ, तलवार की ज़रुरत है.

अदावतों को भुलाना भी, कोई मुश्क़िल है,
दुआ, सलाम, नमस्कार की ज़रुरत है.

शुमार शेरों का होता है, न कि भेड़ों का,
कसीर कौमों, बहुत धार की ज़रुरत है.

तुम्हारे सीनों में आबाद इन किताबों को,
बस एक 'मुंकिर' व् इंकार कि ज़रुरत है.

*मुशीर कार = परामर्श दाता *ला शऊर =अचेतन मन कसीर=बहुसंख्यक 


ترس نہ کھاؤ مجھے پیار کی ضرورت ہے 
مشیر کار نہیں یار کی ضرورت ہے ٠ 
تمہارے ماتھے پہ ابھرے ہیں سینگ کے آثار 
تمہیں تو فتح نہیں ، ہار کی ضرورت ہے ٠
قلم کے نب نے کریدا ہے لا شعور ترا 
جواب میں کہاں ، تلوار کی ضرورت ہے ٠
عداوتوں کو بھلانا بھی کوئی مشکل ہے 
دعا ، سلام ، نمسکار، کی ضرورت ہے ٠
شمار شیر کا ہوتا ہے ، نہ کہ بھیڑوں کا 
کثیر قوم ، بہت دھار کی ضرورت ہے ٠
تمہارے سینے میں آباد ان کتابوں کو 
بس ایک منکر و انکار کی ضرورت ہے ٠٠ 
^^