Sunday, October 14, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 55-57


55

मज़दूर थका मांदा है देखो तन से, 
वह बूढा मुफ़क्किर भी थका है मन से, 
थकना ही नजातों की है कुंजी मुंकिर, 
दौलत का पुजारी नहीं थकता धन से. 

مزدور تھکا ماندہ ، دیکھو تن سے 
وہ بوڑھا مفکّر بھی تھکا ہے من سے 
تھکنا ہی نجاتوں کی ہے کُنجی منکر 
دولت کا پُجاری نہیں تھکتا دھن سے ٠ 

56

हर सम्त सुनो बस कि सियासत के बोल, 
फुटते ही नहीं मुंह से सदाक़त के बोल , 
मज़लूम ने पकड़ी रहे दहशत गर्दी, 
गर सुन जो सको सुन लो हक़ीक़त के बोल. 
मज़लूम=निंदित 

ہر سمت سُنو ، بس کہ سیاست کے بول 
پُھٹتے ہی نہیں مُنہ سے صداقت کے بول 
مظلوموں نے پکڑی رہِ دہشت گردی 
گر سُن جو سکو ، سُن لو ، حقیقت کے بول ٠ 

57

शैतान मुबल्लिग़! अरे सबको बहका, 
जन्नत तू सजा, फिर आके दोज़ख दहका, 
फ़ितरत की इनायत है भले 'मुंकिर' पर, 
इस फूल से कहता है कि नफ़रत महका. 
मुबल्लिग़=प्रचारक 

شیطان مبلّغ ، ارے ! سب کو بہکا 
جنّت تو سجا ، پھر آ کے دوزخ دہکا 
قدرت کی عنایت ہے بھلے 'منکر' پر 
اس پھول سے کہتا ہے کہ نفرت مہکا ٠  

No comments:

Post a Comment