Thursday, May 31, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 73


73

जीवन आपाधापी है, 
लोभी है ये पापी है .

 आपे से बाहर है वह, 
कहते हैं परतापी है. 

पहले जग को जीता था ,
बाद में तुर्बत1नापी है. 

अपने तन का भक्षी है, 
कितना वह संतापी है.

हिन्दू मुस्लिम ईसाई ,
जात बिरादर जापी है. 

धर्मों का विष त्यागा है, 
अपनी मन मदिरा पी है.

दिल मुंकिर का कैसा है ?
हक़ की फोटो कापी है. 
1 क़ब्र

***

،جیوں آپا دھاپی ہے
لوبھی ہے یہ پاپی ہے٠ 

،آپے سے باہر ہے وہ
کہتے ہیں پرتاپی ہے٠  

،پہلے جگ کو جیتا تھا
بعد میں تربت ناپی ہے٠  

،اپنے تن کا بھکھچھی ہے
کتنا وہ سنتاپی ہے٠  

،ہندو مسلم ، سکھ عیسائی
جات بردار جاپی پی ہے٠  

،دھرموں کا وش تیاگا ہے 
اپنی من مدیرا پی ہے٠ 

دل منکر کا کیسا ہے ؟ 
حق کی فوٹو کپے ہے٠  .

Wednesday, May 30, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 72 कभी कभी तो, मुझे तू निराश करता है,



72

कभी कभी तो, मुझे तू निराश करता है,
मेरे वजूद में, ख़ुद को तलाश करता है.

मेरे वजूद का, ख़ुद अपना एक परिचय है,
सुधारता नहीं, तू इस को लाश करता है.

किसी इलाके के, थोड़े विकास के ख़ातिर,
बड़ी ज़मीन का, तू सर्वनाश करता है.

मैं होश में हूँ , हजारों कटार के आगे,
तुम्हारे हाथ का कंकड़, निराश करता है.

निसार जाँ से तेरी, इस लिए अदावत है,
तेरे ख़ुदाओं का, वह पर्दा फ़ाश करता है.

नशा हो शक्ति का, या हो शराब का 'मुंकिर" ,
नशे की शान है वह सर्व नाश करता है.

***

،کبھی کبھی تو مجھے تو نِراش کرتا ہے 
مرے وجود میں خود کو تلاش کرتا ہے٠ 

،مرے وجود کا خود اپنا ایک پریچَے ہے 
سُدھارتا نہیں تو اِسکو لاش کرتا ہے٠ 

،کسی علاقے کے تھوڑے وِکاس کے خاطر 
بڑی زمیں کا تو سروناش کرتا ہے٠ 

،میں ہوش میں ہوں، ہزارو کٹار کے آگے 
تمہارے ہاتھ کا کنکڑنرا ش کرتا ہے٠ 

،نثار جاں سے تری اس لئے عداوت ہے 
ترے خداؤں کا وہ پردہ فاش کرتا ہے ٠ 

،نشہ ہو شکتی کا، یا ہو شراب کا منکر 
نشے کی شان ہے، وہ سرو ناش کرتا ہے٠ 

Tuesday, May 29, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 71 स्वार्थ की भाषा ड्योढा बांचे



71

स्वार्थ की भाषा ड्योढा बांचे, लालच पढ़े सवय्या,
रिश्तों में जब गांठ पड़े, तो कोई बहेन न भय्या.

घूर घूर के जुरुवा देखे, टुकुर टुकुर ऊ मय्या,
दो फाडों में चीरे हम को, घर की ताता थय्या.

दूध पूत से छुट्टी पाइस, भूखी खड़ी है गय्या,
इस के दुःख को कोई न देखे, देखै खड़ा क़सय्या.

गुरू गोविन्द की पुड़िया बेचे, कबर कमाए रुपय्या,
पाखंड और कलाकारी की, ईश चलाए नय्या.

गिरजा और गुरुद्वारे बोलें, ज़ोर लगा के हय्या!
मन्दिर, मस्जिद इक दूजे की, काटे हैं कंकय्या.

किसके लागूं पाँव खड़े हैं गाड, ख़ुदा और दय्या,
'मुंकिर' को ये कोई न भाएँ, सब को रमै रमय्या.

***

،سوارتھ کی بھاشا ڈیوڑھا بانچے، لالچ پڑھے سویّا 
رشتوں میں جب گانٹھ پڑے تو، کوئی بہیں نہ بھیّہ٠ 

،گھور گھور کے جورُوا دیکھے، ٹُکر ٹُکر وہ میّہ 
دو پا ٹن میں چیرے ہم کو، گھر کی تاتھا تھیّہ٠ 

،دودھ پوت سے چُھٹّی پائس، بھوکی کھڑی ہے گیّا  
اسکے دُکھ کو کوئی نہ جانے، دیکھے کھڑا قصیّا٠ 

،گرو گووند کی پُڑیا بیچے، قبر کماۓ رو پیّیہ 
پاکھنڈ اور ریا کاری کی ایش چلاۓ نیّه٠ 

،گِرجہ اورگرُودوارے سے، سب کھڑے تماشہ دیکھیں 
ہندو مسلم، مندر مسجد کی، کاٹے کنکیّہ۰  

،کس کے لاگوں پانو، کھڑے ہیں گاڑ، خدا اور دیّہ 
منکر کو یہ کوئی نہ بھاۓ، سب کو رمے رمیّہ٠ 

Monday, May 28, 2018

69 मन को लूटे धर्म की दुन्या , धन को लूटे नेता,



69

मन को लूटे धर्म की दुन्या, धन को लूटे नेता,
देश को लूटे नौकर शाही, गुंडा इज्ज़त लेता.

आटोमेटिक प्रोडक्शन है, श्रम को कोई न टेता,
तन लूटे सरमायादारी,जतन को घूस का खेता.

चैन की सांस प्रदूषण लूटे, गति लूटे अतिक्रमण,
उन्नत भक्षी जन संख्या ने, अपना गला ही रेता.

प्रतिभा देश से करे पलायन, सिस्टम को गरियाती,
आरक्षन का कोटा सब को, दूध भात है देता.

प्रदेशिकता देश को बाटे, कौम को जाति बिरादर,
भारत माता भाग्य को रोए, कोई नहीं सुचेता.

सब के मन का चोर है शंकित, मुंह देखी बातें हैं,
'मुंकिर' शब्द का लहंगा चौड़ा, मन का घेर सकेता.

***

مَن کو لوٹے دَھرم کی دُنیا، دَھن کو لوٹے نیتا 
دیش کو لوٹے نوکر شاہی، غُنڈہ عزت لیتا٠ 

آٹو میٹک پروڈکشن ہے، شرم کو کوئی نہ ٹیتا 
تن لوٹے سرمایا داری، جتن کو گھوس کا کھیتا٠ 

چین کی سانس پردوشن لوٹے، گتی لوٹے آرکچھن
اُنتی بھکچھی جَن سنکھیا نے، اپنا گلہ ہی ریتا٠ 

پرتیبھا دیش سے کرے پلا ین، سِسٹم کو گریاتی 
آرکچھن کا کوٹا سب کو، دودھ بھات ہے دیتا٠ 

پردیشکتا دیش کو بانٹے، قوم کو ذات برادر،
بھارت ماتا بھاگ کو روۓ، کوئی نہیں سُچیتا٠ 

سبکے من کا چور ہے شنکِت، منہہ دیکھی سب باتیں 
منکر شبد کا لہنگا چوڑا، من کا گھیر سکیتا٠ 

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 74


74

इस शहरी आबादी को, जंगल में बोया जाए,
परबत के दामन हैं ख़ाली, चलो वहीँ सोया जाए.

जीवन भर के सृजित हीरे, आँख खुली तो पत्थर थे,
चुन कर लाए जहाँ से इनको, वहीँ कहीं खोया जाए.

आहें निकलें, आंसू बरसें, हस्ती का कुछ बोझ कटे,
मन भारी है, तन है बोझिल, फूट फूट रोया जाए.

ऐ फ़ातेह! यह तेरा जिगरा, बस्ती है वीरान पड़ी,
तौबा का साबुन ले आओ, दाग़ ए जिगर धोया जाए.

दुःख को ढूंढो बाती लेकर, मिले कहीं तो बतलाना,
सुख की गठरी नहीं है सर पे, इस पर क्यों रोया जाए.

जुल दे कर भागी है 'मुंकिर' उम्र जवानी हाय रे अब,
बूढ़ी पीठ पे इस की करनी, किस बल से ढोया जाए.

***

،اِس شہری آبادی کو، جنگل میں بویا جاۓ 
پربت کے دامن ہیں خالی، چلو وہیں، سویا جاۓ٠ 

،جیون بھر کے سِرجت ہیرے، آنکھ کُھلی تو پتھر تھے 
چُن کر جہاں سے لاۓ انکو، وہیں کہیں کھویا جاۓ٠ 

،آہیں نکلیں، آنسو برسیں، ہستی کا کچھ بوجھ کٹے 
من بھاری ہے، تن ہے بوجھل، پھوٹ پھوٹ رویا جاۓ٠ 

،ائے فاتح، یہ تیرا جگرا، بستی ہے ویران پڑی 
توبہ کا صابن لا کر دے، داغِ جگر دھویا جاۓ٠ 

،دُکھ کو ڈھونڈھو باتی لیکر، کہیں ملے تو بتلانا 
سُکھ کی گٹھری نہیں ہے سر پر، اس پر کیوں رویا جاۓ٠ 

،جُل دیکر بھاگی ہے منکر، عمر جوانی ہاۓ رے اب 
بوڑھی پیٹھ پہ اس کی کرنی، کس بل سے ڈھویا جاۓ٠ 

Sunday, May 27, 2018

70 ला इल्मी का पाठ पढाएँ, अन पढ़ मुल्ला योगी,



70

ला इल्मी का पाठ पढाएँ, अन पढ़ मुल्ला योगी,
दुःख दर्दों की दवा बताएँ, ख़ुद में बैठे रोगी.

तन्त्र मन्त्र की दुन्या झूठी, बकता भविष्य अयोगी,
अपने आप में चिंतन मंथन, सब को है उपयोगी.

आँखें खोलें, निंद्रा तोडें, नेता के सहयोगी,
राम राज के सपन दिखाएँ, सत्ता के यह भोगी.

बस ट्रकों में भर भर के, ये भेड़ बकरियां आईं,
ज़िदाबाद का शोर मचाती, नेता के सहयोगी.

पूतों फलती, दूध नहाती, रनिवास में रानी,
अँधा राजा मुकुट संभाले, मारे मौज नियोगी.

'मुकिर' को दो देश निकला, चाहे सूली फांसी,
दामे, दरमे, क़दमे, सुख़ने, चर्चा उसकी होगी.

दामे,दरमे,क़दमे,सुखने=हर अवसर पर

،لا علمی کا پاٹھ پڑھا ئیں، انپڑھ ملا یوگی 
دُکھ دردوں کی دوا بتائیں، خود میں بیٹھے روگی٠

،تنر منتر کی دنیا جھوٹی، بکتا بھوِشیہ ایوگی 
اپنے آپ میں چنتن منتھن، سب کو ہے اُپیوگی٠ 

،آنکھیں کھولیں. نندرا توڑیں، نیتا کے سہیوگی 
رام راج کے سپن دکھائیں، ستّا کے یہ بھوگی٠ 

،بس ٹرکوں میں بھر بھر کے، یہ بھیڑ بکریاں لائیں 
زندہ باد کا شور مچاتے، نیتا کے سہیوگی٠ 

،پوتوں پھل کے دودھ نہا ئیں، رنیواسوں میں رانی 
اندھا راجہ مُکٹ چڑھاۓ، ماریں موج نیوگی٠ 

،منکر کو دو دیش نکالا، چاہے سولی پھانسی
دامے، درمے، قدمے، سخنے، چرچا اسکی ہوگی٠ 

Saturday, May 26, 2018

68 मन को भेदे, भय से गूथे, विश्वासों का जाल,



68

मन को भेदे, भय से गूथे, विश्वासों का जाल,
अंधियारे में मुझे सताए, मेरा ही कंकाल.

तन सूखा, मन डूबा है, तू देख ले मेरा हाल,
रोक ले शब्दों के कोड़ों को, खिंचने लगी है खाल.

सास ससुर हैं लोभी मेरे, शौहर है कंगाल,
नन्द की शादी रुकी है माँ, मत भेज मुझे ससुराल.

इच्छाएँ बैरी हैं सुख की, जी की हैं जंजाल,
जितनी कम से कम हों पूरी, बस उतनी ही पाल.

जब जब बाढ़ का रेला आया, जब जब पडा अकाल,
जनता दाना दाना तरसी, बनिया हुवा निहाल.

वाह वाह की भूख बढाए, टेट में रक्खा माल,
'मुंकिर' छोड़ डगर शोहरत की, पूँजी बची संभाल.

***************

، مَن کو بھیدے، بَھئے سے گوتھے، وِشواسوں کا جال
اندھیرے میں مجھے ستاۓ، میرا ہی کنکال٠ 

، تن سوکھا، ہردے ہے ڈوبا، دیکھ تو میرا حال
روک لے شَبدوں کے کوڑے کو، کِھنچنے لگی ہے کھال٠ 

، ساس سُسر ہیں لوبھی میرے، شوہر ہے بد حال 
نند کی شادی رُکی ہے ماں! مت بھیج مجھے سُسرال٠ 

، اِچھائیں ہیں بیری سُکھ کی، جی کی ہیں جنجال 
جتنی پوری کر پایے تو، بس اُتنی ہی پآل٠ 

، جب جب باڑھ کا ریلہ آیا، جب جب پڑا اکال 
جنتا دانہ دانہ ترسی، بنیا ہوا نہال٠ 

، واہ واہ کی بھوک بڑھاۓ، ٹیٹ میں رکّھا مال 
منکر چھوڑ ڈگر شہرت کی، پونجی بچی سنبھال٠ 

Thursday, May 24, 2018

67 रिश्ता नाता कुनबा फ़िर्क़ा, सारा जग ये झूठा है,



67

रिश्ता नाता कुनबा फ़िर्क़ा, सारा जग ये झूठा है,
जुज़्व1की नदिया मचल के भागी,कुल2का सागर रूठा है.

ज्ञानेश्वर का पत्थर है, और दानेश्वर की लाठी है,
समझ की मटकी बचा के प्यारे, भाग्य नहीं तो फूटा है.

बन की छोरी ने लूटा है, बेच के कंठी साधू को,
बाती जली हुई मन इसका, गले में सूखा ठूठा है.

चिंताओं की चिता है मानव, मंसूबों का बंधन है,
बिरला पंछी फुदके गाए, रस्सी है न खूंटा है.

सुनता है वह सारे जग की, करता है अपने मन की,
सीने के भीतर रहता है, मेरा यार अनूठा है.

लिखवाई है हवा के हाथों, माथे पर इक राह नई,
'मुंकिर' सब से बिछड़ गया है, सब से रिश्ता टूटा है.


1 अंश 2 पूर्ण 

،رِشتہ ناتا قُنبہ فِرقہ، سارا جگ یہ جھوٹا ہے 
جزو کی ندیا مچل کے بھاگی، کُل کا ساگر روٹھا ہےِ٠ 

گیانیشورکا پتھر ہے اور دانیشورکی لاٹھی ہے
سمجھ کی مٹکی بچا کے پیارے، بھاگ نہیں تو پھوٹا ہے٠ 

بن کی چھوری نے لوٹا ہے، بیچ کے کنٹھی جوگی کو 
باتی جلی ہوئی من اسکا، گلے میں سوکھا ٹھوٹھا ہے٠ 

چِنتاؤں کی چِتا ہے مانو، منصوبوں کا بندھن ہے 
بڑلا پہنچی پُھدکے گاۓ، رسسی ہے نہ کھونٹا ہے٠ 

سُنتا ہے وہ سارے جگ کی، کرتا ہے اپنے من کی 
سینے کے بھیتر رہتا ہے، میرا یار انوکھا ہے٠ 

لِکھوائی ہے ہَوا کے ہاتھوں، ماتھے پر اِک راہ نئی 
منکر سب سے بچھڑ گیا ہے، سب سے رشتہ ٹوٹا ہے٠ 

Wednesday, May 23, 2018

66 बहुत दुखी है, जीता है वह, बस केवल अभिलाषा में,


66

बहुत दुखी है, जीता है वह, बस केवल अभिलाषा में,
सांस ऊपर की आशा में ले, नीचे जाए निराशा में.

बड़ी तरक़्क़ी की है उसने, लोगों की परिभाषा में,
पाप कमाया मन मन भर, और पुन्य है तोला माशा में.

अय्याशी में कटी जवानी, पाल न पाए बच्चों को,
अंत में गेरुवा बस्तर धारा, पल जाने की आशा में.

महशर के इन हंगामों को, मेरे साथ ही दफ़ना दो,
अमल ने सब कुछ खोया पाया, क्या रक्खा है लाशा में.

ज्ञानी,ध्यानी,आलिम,फ़ाज़िल, श्रोता गण की महफ़िल में,
'मुंकिर' अपनी ग़ज़ल सुनाए, टूटी फूटी भाषा में.

***

،بہت دُکھی ہے، جیتا ہے وہ، بس کیول ابھیلاشا میں 
سانس اُوپر کی آشا میں لے، نیچے جائے، نراشا میں٠ 

،بڑی ترقّی کی ہے اُسنے، لوگوں کی پریبھاشا میں 
پاپ کمایا من من بھر، اور پُنیہ ہے تولہ ماشہ میں٠ 

،عیاشی میں کٹی جوانی، پال نہ پاۓ بچوں کو 
انت میں گیروا بستر دھارا، پَل جانے کی آشا میں٠ 

،محشر کے ان افسانو کو، میرے ساتھ ہی دفنا دو 
عمل نے سب کُچھ کھویا پایا، کیا رکھا ہے لاشہ میں٠ 

،گیانی دھیانی، عالم فاضل، شروتا گن کی محفل میں 
منکر اپنی غزل سناۓ، ٹوٹی پھوٹی بھاشا میں٠


Monday, May 21, 2018

65 तुम जाने किस युग के ज्ञानी, साथ मेरे क्यूं आए हो,



65

तुम जाने किस युग के ज्ञानी, साथ मेरे क्यूं आए हो,
सर का भेद न समझे सर, दाढ़ी चोटी लटकाए हो.

चमत्कार चतुराई है उसकी, तुम जैसा इंसान है वह,
करके महिमा मंडित उसको, तुम काहे बौराए हो.

माथा टेकू मस्तक वालो, यह भी कोई शैली है,
धोती ऊपर टोपी नीचे, इतना शीश नवाए हो.

मुझ तक अल्लह यार है मेरा, मेरे संग संग रहता है,
तुम तक अल्लह एक पहेली, बूझे और बुझाए हो.

चाहत की नगरी वालो, कुछ थोड़ा सा बदलाव करो,
तुम उसके दिल में बस जाओ, दिल में जिसे बसाए हो.

यह चिंतन, यह शोधन मेरे, मेरे ही उदगार नहीं,
अपने मन में इनके जैसा, तुम भी कहीं छुपाए हो.

चाँद, सितारे, सूरज, पर्बत, ज़ैतून व् इन्जीरों१ की,
मौला! 'मुंकिर' समझ न पाया, इनकी क़समें खाए हो.

१-कुरान में अल्लाह इन चीज़ों की क़समें खा खा कर अपनी बातों का यकीन दिलाता है.

،تم جانے کس یُگ کے ساتھی، ساتھ میرے کیوں آۓ ہو 
سر کا بھید نہیں سمجھے، سر میں داڑھی لٹکاۓ ہو٠ 

،چَمتکار چتُرائی ہے اُسکی، تم جیسا انسان ہے وہ 
کر کے مہیما منڈِٹ اُسکو، تم کا ہے بو ر اۓ ہو٠ 

ماتھا ٹیکو سجدے والو یہ بھی کوئی شیلی ہے؟ 
دھوتی اُوپر، ٹوپی نیچے، اِتنا شیش نواۓ ہو٠ 

،مجھ تک الله یار ہے میرا، سنگ سنگ میرے رہتا ہے 
تم تک الله ایک پہیلی، بوجھے اور بُجھاۓ ہو٠ 

،چاہت کی نگری والو کُچہ تھوڑا سا بدلاؤ کرو 
تم اُسکے دل میں بس جاؤ، دل میں جِسے بساۓ ہو٠ 

،یہ چِنتن، یہ منتھن میرا، میرے ہی اُدگار نہیں

اسکے جیسا من میں اپنے، تم کہیں چھپاۓ ہو

،چاند ستارے سورج پربت، زیتون و انجیروں کی 
مولا منکر سمجھ نہ پایا ، انکی قسمیں کھے ہو٠ 

Sunday, May 20, 2018

64 मैं अकेला, तू अकेला, सब अकेले हैं यहाँ,



64

मैं अकेला, तू अकेला, सब अकेले हैं यहाँ,
दे रहा उपदेश स्वामी, भीड़ में बैठा वहाँ.

जन हिताय उपवनों के, शुद्ध पावन मौन में,
धर्म की जूठन परोसे, हैं, जुनूनी टोलियाँ.

जज़्बा ए शर देखिए, उस मर्द ए मुतलक़ में ज़रा,
या शहीदे जंग होगा, या तो फिर ग़ाज़ी मियाँ.

बिक गया है कुछ नफ़े के साथ, वह तेरा हबीब,
बाप की लागत थी उस पे, माँ का क़र्ज़ ए आसमाँ.

मैं समझता हूँ नवाह व् गिर्द2 पे ग़ालिब हूँ मैं,
ग़लबा ए रूपोश जैसा गिर्द3 है मेरे जहाँ.

हर तरफ़ बातिल हैं छाए, जाहिलों की है पकड़,
कैसे मुंकिर इल्म अपना, झेले इनके दरमियाँ.

१-दुष्ट-भाव मीठी-आस-पास ३-चहु ओर *बातिल =मिथ्य

،میں اکیلا، تو اکیلا، سب اکیلے ہیں یہاں 
دے رہا ہے درس راہب، بھیڑ میں بیٹھا وہاں٠ 

،جَن ہتا ۓ، شُدھ پا ون مَون میں، کے اُپونوں
 دھرم کا جوٹھن پروسے ہیں جنونی ٹولیاں٠ 

،جزبہء  شر دیکھئے اس مردِ مطلق میں ذرا 
یا جہادی مرد ہوگا، یا تو پھر غازی میاں٠ 

،بک گیا ہے کچھ نفع کے ساتھ وہ تیرا حبیب 
باپ کی لاگت تھی اُس پہ، ماں کا قرضِ آسماں٠ 

،میں سمجھتا ہوں، نواے گِرد پرغالب ہوں میں 
غلبہء روپوش جیسا، گِرد ہے میرے جہاں٠ 

،ہر طرف باطل ہیں غالب، جاہلوں کی ہے پکڑ 
کیسے منکر علم اپنا، جھیلیں انکے درمیاں٠ 

Saturday, May 19, 2018

63 ज़मीं पे माना, है ख़ाना ख़राब1 का पहलू,

63

ज़मीं पे माना, है ख़ाना ख़राब1 का पहलू,
मगर है अर्श पे, रौशन शराब का पहलू.

ज़रा सा ग़ौर से देखो, मेरी बग़ावत को,
छिपा हुआ है, किसी इन्क़लाब का पहलू. 

नज़र झुकाने की, मोहलत तो देदे आईना,
सवाल दाबे हुए है,जवाब का पहलू.

पड़ी गिज़ा  ही, बहुत थी मेरी बक़ा के लिए,
बहुत अहम है मगर, मुझ पे आब का पहलू.

ख़ता ज़रा सी है, लेकिन सज़ा है फ़ौलादी,
लिहाज़ में हो ख़ुदाया, शबाब का पहलू.

खुली जो आँख तो देखा, निदा2 में हुज्जत थी,
सदाए ग़ैब में पाया, हुबाब3 का पहलू.

तुम्हारे माज़ी  में, मुखिया था कोई, ग़ारों में,
अभी भी थामे हो उसके निसाब4 का पहलू.

बड़ी ही ज़्यादती की है, तेरी ख़ुदा ई ने,
तुझे भी काश हो लाज़िम हिसाब का पहलू.

ज़बान खोल न पाएँगे, आबले दिल के,
बहुत ही गहरा दबा है, इताब5 का पहलू.

सबक़ लिए है वह, बोसीदा दर्स गाहों के,
जहाने नव को सिखाए, सवाब का पहलू.

तुम्हारे घर में फटे बम, तो तुम को याद आया,
अमान व् अम्न पर लिक्खे, किताब का पहलू.

उधम मचाए हैं 'मुंकिर' वह दीन व् मज़हब के ,
जुनूँ को चाहिए अब सद्दे बाब6 का पहलू.

1-  बर्बादी 2-ईश वाणी 3- बुलबुले 4- Cource 5- सज़ा 6- समाप्त  

***

زمیں پہ مانا، ہے خانہ خراب کا پہلو 
مگر ہے عرش پر، روشن شراب کا پہلو٠ 

،ذرہ سا غور سے دیکھو، میری بغاوت کو 
چھپا ہے اس میں،  کسی انقلاب کا پہلو٠ 

،نظر جُھکانے کی مہلت تو دے دے آئینہ 
سوال دا بے ہوئے ہے ، جواب کا پہلو٠

،پڑی غذا ہی بہت تھی، مری بقا کے لئے 
بہت اہم ہے مگر، مُجھ پہ آب کا پہلو٠

،خطا ذرہ سی ہے، لیکن سزا ہے فولادی 
لحاظ میں ہو خدا یا ، شباب کا پہلو٠

،کُھلی جو آنکھ تودیکھا، ندا میں حُجّت تھی 
صداے غیب میں دیکھا حُباب کا پہلو٠

،تُمہارے ماضی کا مُکھیہ کوئی تھا، غاروں میں 
ابھی بھی تھامے ہو، اسکے نصاب کا پہلو٠ 

،بڑی ہی زیادتی کی ہے، تری خدائی نے 
تجھے بھی کاش ہولازم ، حساب کا پہلو٠ 

،زبا ں کو کھول نہ پاینگے آبلے دل کے 
بہت ہی گہرا دبا ہے، عتاب کا پہلو٠ 

،سبق لئے ہے وہ، بوسیدہ درس گاہوں کے 
جہانِ نو کو سکھاۓ ثواب کا پہلو٠ 

،تمہارے گھر میں پھٹے بم تو تمہیں یاد آیا 
امان و امن پر لکھکھے کتاب کا پہلو٠ 

،اُدھم مچاۓ ہیں منکر، وہ دھرم ومذہب کے 
جُنوں کو چاہئے اب صدّ باب کا پہلو٠ 

Friday, May 18, 2018

62 हरगिज़ न परेशान हों, जो इलज़ाम लगा हो,



62

हरगिज़ न परेशां हों, जो इलज़ाम लगा हो,
जब तक कि हक़ीक़त में, तुम्हारी न ख़ता हो.

जो बातें बड़ों की तुम्हें अच्छी न लगी हों,
बेजा है कि छोटों को, वही तुमने कहा हो. 

वह मौत की तफ़सीर बताने में है माहिर,
जिसने कि कभी ज़िन्दगी, समझा न जिया हो. 

जज़्बात के कानों में ज़रा उंगली लगा ले, 
जब खूं में तेरे, आग कोई घोल रहा हो. 

वह बोझ गुनाहों का,उठाए है कमर पे,
अब ढूंढ रहा है कि कहीं कोई गढ़ा हो. 

नस्लों का तेरे चाँद सितारों पे जनम हो,
जन्नत की नहीं, हक में मेरे ऐसी दुआ हो .

***

،ہرگز نہ پریشان ہوں، کوئی بھی سزا ہو 
جب تک کہ حقیقت میں تمہاری خطا نہ ہو٠ 

، جو بات بڑوں کی تمہیں اچھی نہ لگی ہوں 
بے جہ ہے کہ چھوٹوں کو، وہی تم نے کہا ہو٠ 

،وہ موت کی تفسیر بتانے میں ہے ماہر 
جس نے نہ کبھی زیست کو، سمجھا نہ جِیا ہو٠ 

،ڈھو ڈھو کے گُناہوں کو کمر جُھک جو گئی ہے 
اب ڈھونڈھ رہا ہے کہ کہیں کوئی گڑھا ہو٠ 

،نسلوں کا تیرے چاند ستاروں پہ جنم ہو 
جنّت کی نہیں، حق میں مرے ایسی دعا ہو٠ 

Thursday, May 17, 2018

61 उस तरफ़ फिर बद रवी की, इन्तहा ले जाएगी



61

उस तरफ़ फिर बद रवी की, इन्तहा ले जाएगी,
फिर घुटन कोई किसी को, करबला ले जायगी.

ज़ुल्म से सिरजी ये दौलत, दस गुना ले जाएगी,
लूट कर फ़ानी ने रक्खा है, फ़ना ले जाएगी.

है तआक़ुब में ये दुन्या, मेरे नव ईजाद के,
मैं उठाऊंगा क़दम, तो नक़्श ए पा ले जाएगी.

तिफ़्ल के मानिंद, अगर घुटने के बल चलते रहे,
ये जवानी वक़्त की आँधी उड़ा ले जाएगी.

बा हुनर ने चाँद तारों पर बनाई है पनाह,
मुन्तज़िर वह हैं, उन्हें उन की दुआ ले जाएगी.

*

बुल हवस को मौत तक, हिर्स ओ हवा ले जाएगी,
जश्न तक हमको, क़िनाअत की अदा ले जाएगी.

बद ख़बर अख़बार का, पूरा सफ़ह ले जाएगा,
नेक ख़बरी को बलाए, हाशिया ले जाएगी.

बाँट दूँगा बुख़्ल  अपने ख़ुद ग़रज़ रिश्तों को मैं,
बाद इसके जो बचेगा, दिल रुबा ले जाएगी.

रंज ओ गम, दर्द ओ अलम, सोज़ ओ ख़लिश हुज़्न ओ मलाल,
"ज़िन्दगी हम से जो रूठेगी, तो क्या ले जाएगी".

मेरा हिस्सा ना मुरादी का, मेरे सर पे रखो,
अपना हिस्सा ऐश का, वह बे वफ़ा ले जाएगी.

ग़ैरत मुंकिर को मत, काँधा लगा पुरसाने हाल,
क़ब्र तक ढो के उसे, उसकी अना ले जाएगी.

*बद रवी =दूर व्योहार *तआक़ुब=पीछा करना *तिफ्ल=बच्चा *तमअ=लालच
*बुल हवस =लोलुपता *हिर्स ओ हवा =आकाँछा *किनाअत=संतोष *बुख्ल=कंजूसी *अना=गैरत

،اُس طرف پھر بدَ روی کی اِنتہا لے جاۓگی 
پھر گُھٹن کوئی، کسی کو کربلہ لے جاۓگی٠ 

،ظُلم سے سِرجی یہ دولت، دس گُنہ لے جاۓگی
لوٹ کر فانی نے رکّھا ہے، فنا لے جاۓگی٠

،بُوالہوس کو موت تک، حِرص و ہوا لے جاۓگی
جشن تک مُجھکو، قناعت کی ادا لے جاۓگی٠

،طِفل کے مانند اگر، گُھٹنوں کے بل چلتے رہے 
یہ جوانی وقت کی آندھی، اُڑا لے جاۓگی٠

،با ہُنر نے چاند تاروں پر بنائی ہے پناہ 
مُنتظر وہ ہیں، اُنھیں کوئی دُعا لے جاۓگی٠

،ساری خِلقت کی امانت دار ہے میری طبع
ائے طماع تجھ پر نظر ہے، کُچھ چُرا لے جاۓگی٠

،بَد خبر اخبار کا، پورا صفحہ لے جاےگا 
نیک خبروں کو بلانے حاشیہ لے جاۓگی٠

،بانٹ دونگا بخل اپنے، خود غرض رشتوں کو میں
بعد اِسکے جو بچیگا ، دل رُبا لے جاۓگی٠

،میرا حصّہ نا مُرادی کا، میرے سر پر رکھو 
اپنا حصّہ عیش کا، وہ بے وفا لے جاۓگی٠

،رنج وغم، درد والم، سوزو خلش، حزن و ملال 
زندگی ہم سے، جو روٹھے گی، تو کیا لے جاۓگی٠

،غیرتِ منکر کو مت کاندھا لگا، پُرسانِ حال 
قبر تک ڈھو کے اُسے، اُسکی انا لے جاۓگی٠

Wednesday, May 16, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 60 सुब्ह उफ़ुक़ है शाम शिफ़क़ है,


60

सुब्ह उफ़ुक़ है शाम शिफ़क़ है,
देख ले उसको, एक झलक है.

बात में तेरी सच की औसत,
दाल में जैसे, यार नमक है.

आए कहाँ से हो तुम ज़ाहिद?
आंखें फटी हैं, चेहरा फ़क़ है.

उसकी राम कहानी जैसी,
बे पर की ये ,सैर ए फ़लक है.

माल ग़नीमत ज़ाहिद खाए,
उसकी जन्नत एक नरक है.

काविश काविश, हासिल हासिल,
दो पाटों में जान बहक़ है.

धर्मों का पंडाल है झूमा,
भक्ति की दुन्या, मादक है.

हिंद है पाकिस्तान नहीं है,
बोल बहादर जो भी हक़ है.

कुफ़्र ओ ईमान, टेढ़ी गलियां,
सच्चाई की, सीध सड़क है.

फ़ितरी बातें, एन सहीह हैं,
माफ़ौक़ुल फ़ितरत पर शक है.

कितनी उबाऊ हक़ की बातें,
मुंकिर उफ़! ये किस की झक है.

तिज लालिमा *शिफ़क़=शाम की क्षितिज लालिमा *काविश=जतन 
*फितरी=लौकिक *माफौकुल=अलौकिक उफुक़=प्रातः 

،صبح اُفق ہے، شام شِفق ہے 
دیکھ لےاُسکو، ایک جَھلک ہے٠ 

،بات میں تیرے سچ کی اَوسط؟ 
دال میں جیسے یار نمک ہے٠  

،آئے کہاں سے، تم ہو زاہد 
آنکھ پھٹی ہے، چہرہ فَق ہے٠ 

،اُسکی رام کہانی جیسے
  سیر فلک ہے. بے  پر کی وہ    

مالِ غنیمت غازی کھاۓ؟ 
اُسکی جنّت ایک نرک ہے٠ 

کاوش کاوش؟ حاصل حاصل؟؟ 
دو پاٹوں میں جان بحق٠ 

،دھرموں کا پنڈال ہے جھوما 
بَھگتی کی دُنیا مادک ہے٠ 

،ہند ہے، پاکستان نہیں ہے
بول بہادر جو بھی حق ہے٠

،کُفر و ایماں سکری گلیاں، 
سچائی کی سیدہ سڑک ہے٠ 

،فِطری باتیں عین صحیح ہیں 
مافوق الفطرت پہ شک ہے٠ 

،کتنی اُباؤ ایش کی گاتھا  
منکر اُف ! یہ کیسی جھک ہے٠ 

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 59 ये तसन्नो में डूबा हुवा, प्यार है,


59 

ये तसन्नो में डूबा हुवा, प्यार है,
क्या कोई चीज़ फिर, मुफ़्त दरकार है.

फैली रूहानियत की, वबा क़ौम में,
जिस्म मफ़्लूज है, रूह बीमार है.

नींद मोहलत है इक, जागने के लिए,
जाग कर सोए तो, नींद आज़ार है.

बुद्धि हाथों पे सरसों, उगाती रही,
बुद्धू कहते रहे, ये चमत्कार है.

मुज़्तरिब हर तरफ़, सीधी जमहूर है,
मुन्तख़िब की हुई, किसकी सरकार है.

बाँटता फिर रहा है, वो पैग़ाम ए मौत,
भीड़ थमती है, जैसे तलबगार है.

एक झटके में जोगी, कहीं जा मर,
क़िस्त में मौत तेरी, ये बेकार है.

हों न'मुंकिर' इबारत ये उलटी सभी,
ले के आ आइना वोह मदद गर है.

*आज़ार=रोग *मुज़्तरिब=बेचैन *मुन्तखिब=चुनी हुई.

، یہ تصنع میں ڈوبا ہوا پیار ہیے
کیا کوئی چیز پھر مفت درکار ہے ٠ 

، پھیلی روحانیت کی وبا قوم میں
جسم مفلوج ہے ذہن بیمار ہے ٠ 

، نیند مہلت ہے اک جاگنے کے لئے 
جاگ کر سوۓ تو نیند آزار ہے ٠ 

، بُدھی ہاتھوں پہ سرسوں اُگاتی رہی، 
بدھو کہتے رہے یہ چمتکار ہے ٠

، مضطرب ہر طرف سیدھی جمہور ہے 
مُنتخب کی ہی کس کی سرکار ہے ٠

، بانٹتا پھر رہا ہے وہ پیغامِ موت 
بھڑ روکتی ہے جیسے طلبگار ہے ٠ 

، ایک جھٹکے میں جوگی کہیں جاکے مر 
قسط میں موت تیری یہ بیکا ر ہے ٠ 

، ہوں نہ منکر عبارت یہ اُلٹی سبھی 
لے کے آ آئینہ وہ مددگار ہے ٠

Monday, May 14, 2018

जुंबिशें - - -ग़ज़ल 58 तुम तो आदी हो सर झुकाने के,


58

तुम तो आदी हो सर झुकाने के,
बात सुनने के, लात खाने के.

क्या नक़ाइस हैं, पास आने के,
फ़ायदे क्या हैं, दिल दुखाने के?

क़समें खाते हो, बावले बन कर,
तुम तो झूटे हो इक ज़माने के.

लब के चिलमन से, मोतियाँ झांकें,
ये सलीक़े हैं , घर सजाने के.

ले के पैग़ाम ए सुल्ह आए हो,
क्या लवाज़िम थे, तोप ख़ाने के.

मैं ने पूछी थी ख़ैरियत यूं ही,
आ गए दर पे, काट खाने के.

जिन के हाथों बहार बोई थीं, 
हैं वह मोहताज दाने दाने के.

*** 

،تم تو عادی ہو سر جُھکانے کے
بات سُننے کے، لات کھانے کے٠ 

،کیا نقائص ہیں پاس آنے کے
فائدے کیا ہیں دل دُکھانے کے٠ 

،قسمیں کھاتے ہو باؤلے بن کر 
تم تو جھوٹے ہو اِک زمانے کے٠

،لب کی چِلمن سے موتیاں جھاکیں 
یہ سلیقے ہیں گھر سجانے کے٠ 

لے کے پیغام صُلح آے ہو؟ 
کیا لوازم تھے توپ خانے کے٠ 

،میں نے پوچھی تھی خیریت یوں ہی 
آ گئے در پہ کاٹ کھانے کے٠ 

،جِن کے ہاتھوں بہار بوئی گئیں 
وہ ہیں محتاج دانے دانے کے٠