Friday, November 30, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 25-27



25
फ़ितरी लम्हे 

फ़ितरत ए वहशी जवाँ थी, नातवाँ फ़िक्र ए गुनाह,
हुस्न का आतश फ़शां था, थी न कोई सर्द राह,
पिघली यूँ ज़ंजीर ए तक़वा, खौ़फ़ पत्थर का था छू,
लिख भी दे कोई सज़ा , ऐ जज़ाए फ़ितना गाह.
नातवाँ=कमज़ोर , आतश फ़शां =ज्वालामुखी ,तक़वा=परहेज़ 
जज़ाए फ़ितना गाह=क़यामत का मैदान 

فِطری لمحے 

فِطرتِ وحشی جواں تھی ، نا تواں فکرِ گناہ 
حسن کا آتش فشاں تھا ، تھی نہ کوئی سرد را ہ،
پِگھلی یوں زنجیر تقویٰ ، خوفِ سنگ ساری تھا چهو 
لِکھ بھی دے کوئی سزا اب ، ائے جزا ے فِتنہ گاہ ٠

26
अना को फ़ना 

इस अना को सुपुर्द ए क़ब्र करो,
है ये बेहतर की ख़ुद पे जब्र करो,
बाद में वह भी ज़िद को छोड़ेगा ,
भाई मुंकिर ! ज़रा सा सब्र करो . 
अना=मर्यादा 

انا کو فنا

اِس انا کو سُپُردِ قبر کرو 
ہے یہ بہتر کہ خود پہ جبر کرو 
بعد میں وہ بھی ضِد کو چھوڑے گا 
میاں 'منکر' ذرا سا صبر کرو ٠ 

27
गोचा पेची 

सब कुछ तो साफ़ साफ़ था इरशाद ए किबरिया,
तफ़सीर लिखने वालो बताओ ये क्या किया,
 कैसे अवाम पढ़ के उठाएँगे फ़ायदे ?  
तुमने लिखे हुए पे ही कुछ और लिख दिया. 
इरशाद ए किबरिया=क़ुरान , तफ़सीर=भावार्थ 

گوچہ - پیچی

سب کچھ تو صاف صاف تھا ، ارشادِ کِبریہ 
تفسیر لکھنے والو بتاؤ یہ کیا کیا 
کیسے عوام پڑھ کے ، سمجھ لینگے حقیقت 
تم نے لکھے ہوئے پہ ، ہی کچھ اور لکھ دیا ٠

Thursday, November 29, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 19-21



19
साँच की ताप 

कुछ अगर ख़्वाहिश न हो, तो है अधूरी ज़िन्दगी,
ख़्वाहिशें अंधी हैं, गर हस्ती में हो नाख़ान्दगी,
इल्म भी बेकार है, इन्सां अगर है बेअमल,
सच नहीं मुंकिर तो है, इल्मो ओ हुनर शर्मिदगी.
नाख़ान्दगी=अनपढ़ स्तिथि 

صدق کی حرارتیں 

کچھ اگر خواہش نہ ہو تو ، ہے ادھوری زندگی 
خواہشیں اندھی ہیں ، گر ہستی میں ہے نہ خواندگی 
علم بھی بیکار ہے ، انسان اگر ہے بے عمل 
سچ نہیں 'منکر' ، تو ہے علم و ہنر شرمندگی ٠  

20
रिआयत 

इम्कानी गिरावट हो कि अख़लाक़ी बुलंदी,
हों आप की या मेरी, इक हद हैं सभी की,
हैरत से हिक़ारत से, यूँ मुजरिम को न देखो,
लगती है दिल आज़ारी, कहीं उसमें छिपी सी. 

رعایت

امکانی گراوٹ ہو کہ اخلاقی بلندی 
ہوں آپ کی یا میری ، یہی حد ہے سبھی کی 
حیرت سے حقارت سے ، یوں مجرم کو نہ دیکھو 
لگتی ہے دل آزاری ، کہیں اسمیں چھپی سی 

21
सज़ा ए दोबाला 

जीने न दिया घर में, तुर्बत में अब जियो,
शैदाइयों की मानो तो शिद्दत में जियो,
तुमको ही मारने में, ख़ुद मर गया है शौहर,
मेरी बहन ये क्या है, कि इद्दत में अब जियो.
दोबाला=दोहरा , तुर्बत=समाधि, इद्दत=तलाक़ शुदा की पर्दा अवधि  

سزا ے دو بالا

جینے نہ دیا گھر میں ، تربت میں اب جیو 
شیدائیوں کی مانو، تو شدّت میں اب جیو 
تم کو ہی مارنے میں ، خود مر گیا شوہر 
میری بہن ! یہ کیا ہے کہ ، عدّت میں اب جیو ٠ 

Wednesday, November 28, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 16-18



16
बांग ए नव 
रुख़ पे सूरज के चलो, साए को पीछे छोड़ो,
अपनी परछाईं से खेलो न, ज़रा मुंह मोड़ो,
न बदलने की क़सम खाई है, इसको तोड़ो,
नव सदी के नए पैग़ाम से रिश्ता जोड़ो.

رہنمائی

رُخ پہ سورج کے چلو ، ساۓ کو پیچھے چھوڑو 
اپنی پرچھائیں سے کھیلونہ ، ذرا مُنہہ موڑو 
نہ بدلنے کی قسم کھائی ہے ، اسکو توڑو 
نو صدی کے نیے پیغام ، سے رشتہ جوڑو ٠ 

17
बार ए ज़मीं 

हाथों में हैं दुआओं के कंगन जड़े हुए,
ये फावड़े कुदाल हैं, बेजाँ पड़े हुए,
क़हहारी और रहीमी की बेडी है पाँव में,
दिल में हैं खौ़फ़ व् ऐश के शैताँ खड़े हुए.

زمیں کے بوجھ
ہاتھوں میں ہیں دعا وں کے کنگن جڑے ہوئے 
یہ پھاوڑے کدل ہیں ، بے جاں پڑے ہوئے 
قہہاری اور رحیمی کی ، بیڑی ہے پانو میں 
دل میں ہیں خوف و عیش کے ، شیطاں کھڑے ہوئے ٠ 

18
मौत के राग 

तबलीग़ है कि मौत को हर वक़्त याद कर,
मैं कहता हूँ कि मौत की कोई ख़बर न रख,
इक लम्हा मौत का है, मुसलसल है ज़िंदगी,
हर रोज़ खुद सरी हो, तो हर रोज़ बे सरी.
तबलीग़=प्रचार 

زندگی بنام موت
تبلیغ ہے کہ موت کو ہر وقت یاد کر 
میں کہتا ہوں کہ موت کی ،  کوئی نہ ہو خبر
اک لمحہ موت کا ہے ، مسلسل ہے زندگی 
ہر روز خود سری ہو ، تو ہر شب ہو بے سری ٠ 

Tuesday, November 27, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 13-15



13
काश 
तोहफ़ा पाने का हसीं एहसास होती ज़िंदगी,
ज़िंदा रहने के लिए यूँ रास होती ज़िंदगी,
नब्ज़ मंडलाती न हरदम यूँ बक़ा के वास्ते,
धड़कने होतीं न, पैहम सास होती ज़िंदगी.
बक़ा=स्तित्व , पैहम=लगातार 

کاش  
تحفہ پانے کا حسیں ، احساس ہوتی زدگی 
زندہ رہنے کے لئے ، یوں راس ہوتی زندگی 
نفس منڈلاتی نہ ہردم یوں ، بقا کے واسطے 
دھڑکنیں ہوتیں ، نہ پیہم سانس ہوتی زندگی ٠ 

14
ग़ालिब ओ मग़लूब 
"नो दाई सेल्फ"कहता है बेदार मग़रिबी ,
जिसको कि अहं कहता है, सोया ये मशरिक़ी,
अंजाम कार दोनों की तारीख़ें देखिए,
मग़रिब रहा सवार तो मशरिक़ सुपुरदगी. 
मग़रिबी=पश्चिमी , मशरिक़=पूरब 

غالب و مغلوب
نو دائی سلف، کہتا ہے ، بیدار مغربی 
جسکوکہ 'اہم' کہتا ہے ، سویا یہ مشرقی 
انجام کار دونوں کے تاریخیں دیکھئے 
مغرب بنا سوار ، تو مشرق سُپُردگی٠  

15
आक़बत के ताजिर 
ये दस्त ए नफ्स में बे ख़ाहिशी की ज़ंजीरें,
ये नीम ख़ुद कुशी में आक़बत की तदबीरें,
ख़ुदा के साथ ताल्लुक़ ये ताजिराना है,
अजब है तर्क ए तअल्लुक़ बग़रज़ जागीरें. 
दस्त ए नफ्स =रूह के हाथों , आक़बत=अंत 

عاقبت کے تاجر 
یہ دستِ نفس میں، بے خواہشی کی زنجیریں 
یہ نیم خود کشی میں، عاقبت کی تدبیریں 
خدا کے ساتھ تعلّق یہ تاجرانہ ہے 
عجب ہے ترکِ تعیّش ، بغرض جاگیریں٠  

Monday, November 26, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 7-9


7
मिठ्ठू मियाँ 
पढ़ते हो झुकाए हुए सर क़िस्सा कहानी,
अंजान जुबां में है लिखी देव की बानी ,
यूँ लूट के ले जाते हो अंबार ए सवाब ,
दर पे हैं अज़ाबों के ये हालात जहानी .

مٹّھومیاں 
پڑھتے ہو جُھکاۓ ہوئے سر ، قصّہ کہانی 
انجان زباں میں ہے لکھی ، دیو کی بانی 
یوں لوٹ کے پا جاتے ہو ، انبار ثواب 
در پہ ہیں عذابوں کے ، یہ حالتِ جہانی ٠ 

8
शायरी 
फ़िक्र से ख़ारिज अगर है शायरी, बे रूह है,
फ़न से है आरास्ता, मानी मगर मकरूह है,
हम्द व्  नात व्  मरसिया, लाफ़िकरी हैं, फ़िकरें नहीं,
फ़िक्र ए नव की बारयाबी, शायरी की रूह है. 
फ़िक्र =चितन ,फ़न= कला/हम्द,नात, मरसिया=धर्म गान , बारयाबी=प्राप्ति 

شاعری 
فکر سے خارج اگر ہے شاعری، بے روح ہے 
فن سے ہے آراستہ، مانا مگر مکروہ ہے 
حمد و نعتیں ، مرثیہ، لافکری ہیں فکریں نہیں 
فکرِ نو کی باریابی، شاعری کی روح ہے٠ 

9
बेचारे 
तोतों की ज़िन्दगी थी, शिकरों में कट गई,
अनदेखी आक़बत के, फ़िकरों में कट गई,
जो अहले होश थे, वो सभी लेके उड़ गए,
इनकी हयात दीन  के ज़िक्रों में कट गई.
आक़बत=परलोक 

بے چارے 

 طوطوں کی زندگی تھی ، شکروں میں کٹ گئی 
اندیکھی عاقبت کے ، فکروں میں کٹ گئی 
جو اہل ہوش تھے ، وہ مزہ لے کے اڑ گئے 
انکی حیات دین کےزکروں میں کٹ گئی ٠ 

Sunday, November 25, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 4-6



4
बंधक
ऋण के गाहक बन बैठे हो,
शून्य के साधक बन बैठे हो,
किस से मोक्ष और कैसी मोक्ष,
ख़ुद में बंधक बन बैठे हो.

 بندھک
رِن کے گاہک بن بیٹھے ہو 
شونیہ کے سادھک بن بیٹھے ہو 
کس سے مُکتی، کیسی موکچه ؟ 
خود میں بندھک بن بیٹھے ہو ٠ 

5
शोधन 
मेरे सच का विरोध करते हैं,
ईश वाणी पे शोध करते हैं,
फिर वह लाते हैं भाग्य का शोधन,
नासतिक पर क्रोध करते हैं.

شودھن 
میرے سچ کا وِرودھ کرتے ہیں 
ایش وانی پہ شودھ کرتے ہے 
پھر وہ لاتے ہیں بھاگیہ کا شودھن 
ناستک پر کرودھ کرتے ہیں ٠ 

6
ढांचों के ढेंचू
दो सोलहवीं सदी के बहादुर थके हुए,
रक्तों की स्वाद, खून की लज़्ज़त चखे हुए,
फ़िर से हुए हैं दस्त व् गरीबां यह सींगदार,
इतिहास की ग़लाज़तें सर पर रखे हुए,
दस्तो-गरीबां =युद्धरत 

ڈھانچوں کے ڈھینچو
 دو سولویں صدی کے بہادر تھکے ہوئے 
رکتوں کا سواد ، خون کی لذّت چکھے ہوئے
پھر سے ہوئے ہیں دست و گریباں ، یہ سینگ دار 
تاریخ کی غلاظتیں سر پہ رکھے ہوئے ٠ 

Saturday, November 24, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 1-3

क़तआ त                    قطعات 
1
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई 
हिन्दू के लिए मैं इक, मुस्लिम ही हूँ आख़िर,
मुस्लिम ये समझते हैं, गुमराह है काफ़िर,
इंसान भी होते हैं, कुछ लोग जहाँ में,
गफ़लत में हैं ये दोनों, समझाएगा 'मुनकिर'.
منکر
ہندو کے لئے میں اک مسلم ہی ہوں آخر 
مسلم یہ سمجھتے ہیں گمراہ ہے کافر 
انسان بھی ہوتے ہیں کچھ لوگ جہاں میں 
غفلت میں ہیں، یہ دونوں سمجھاۓ گا منکر٠ 

2
चिड़िया चुग गई खेत 
बनने का या संवारने का मौक़ा न मिल सका,
खुशियों से बात करने का मौक़ा न मिल सका ,
बन्दर से फ़स्ल ताकने में ही ज़िन्दगी कटी ,
कुछ और कर गुज़रने का मौक़ा न मिल सका .

چڑیا چُگ گئی کھیت 

سجنے کا اور سنوارنے کا موقعہ نہ مل سکا 
خوشیوں سے بات کرنے کا ، موقعہ نہ مل سکا 
بندروں سے فصل ، بچانے میں کٹ گئی 
کچھ اور کر گزرنے کا، موقعہ نہ مل سکا ٠
3
ख़सीस
बन के बीमार लेट लेता हूँ,
मुंह पे चादर लपेट लेता हूँ,
ऐ शनाशाई१ तेरी आहट से,
अपनी किरनें समेट लेता हूँ.
ख़सीस=कंजूस शनाशाई=परिचय
بخل
بن کے بیمار لیٹ لیتا ہوں 
منہہ پہ چادر لپیٹ لیتا ہوں 
ائے شناسائی تیری آہٹ سے 
اپنی کرنیں سمیٹ  لیتا ہوں ٠

Friday, November 23, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 136-139


136

मस्जिद के ढहाने को विजय कहते हो,
तुम दिल के दुखाने को विजय कहते हो,
होती है विजय सरहदों पे दुशमन पर,
सम्मान गंवाने को विजय कहते हो.

مسجد کو ڈھانے کو ، وجے کہتے ہو 
تم دل کے دکھانے کو ، وجے کہتے ہو 
ہوتی ہے وجے سرحدوں پہ ، دشمن پر 
سمماں گنوانے کو ، وجے کہتے ہو ٠

137

नाख़्वानदा व् जाहिल में बचेगा मज़हब,
नाकारा व् काहिल में बचेगा मज़हब,
बेदारों के कब्जे में समंदर होगा,
सीपी भरे साहिल पे बचेगा मज़हब.

نا خواندہ و جاہل میں بچینگے مذہب 
نا کارہ و کاحل میں بچینگے مذہب
بیداروں کے قبضے میں سمندر ہوگا 
سیپی بھرے ساحل بچینگے مذہب
138

हिस्सा है खिज़र का इसे झटके क्यों हो?
आगे भी बढ़ो राह में अटके क्यों हो ?
टपको कि बहुत तुम ने बहारें देखीं,
पक कर भी अभी डाल में अटके क्यों हो.

حصّہ ہے خضر کا، اسے جھٹکے کیوں ہو 
آگے بھی بڑھو ، راہ میں اٹکے کتوں ہو 
تپکو کہ بہت تھمنے بہاریں دیکھیں 
پک کر بھی ابھی ڈال میں اٹکے کیوں ہو 

139
दिल नदा व् इल्हाम से मुड़ जाता है,
हक़ सनाशियों से वह जुड़ जाता है,
देख कर यह पामाली ए सर ए इंसानी,
मुनकिर का दिमाग़ भक से उड़ जाता है.

دل ندا و الہام سے مڑ جاتا ہے 
حق سناشیوں سے وہ جڑ جاتا ہے 
دیکھ کر یہ پامالی ے سرِ انسان 
منکر کا دماغ بہک سے اڑ جاتا ہے ٠ 

Thursday, November 22, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 133-135


133

मअदा परस्ती में है बिरझाई हुई,
नामूस ख़ुदाई पे है ललचाई हुई,
इंसानी तरक्क़ी से कहो होश करे,
है आलम ए बाला से ख़बर आई हुई.

مادّہ پرستی میں ، ہے برجھائی ہوئی 
ناموس خدائی پہ ہے ، للچائی ہوئی 
انسانی ترققی سے کھو ، ہوش کرے 
ہے عالم بالہ سے ، خبر آئ ہوئی ٠ 

134

मोमिन ये भला क्या है दहरया क्या है ?
आला है भला कौन , ये अदना क्या है ?
देखो कि (उसके) मुआश का ज़रीआ क्या है,
उस तन में रवाँ ख़ून का दरिया क्या है.

مومن یہ بھلا کیا ہے ، دہریہ کیا ہے 
آلہ ہے بھلا کون ، یہ عدنا کیا ہے 
دیکھو کہ معاش کا ذریعہ کیا ہے 
اس تن میں رواں خون کا دریہ کیا ہے ؟ ٠

135

किस धुन से बजाय था मजीरा देखो,
किस बल से चुने, मोती व् हीरा देखो,
बनिए की समाधि है कि इबरत का मुक़ाम,
इस क़ब्र में बे कैफ़ जज़ीरा देखो.

کس دھن سے بجاۓ تھے مجیرہ دیکھو 
کس بل سے چنے ، موتی و ہیرا دیکھو 
بنئے کی سمدھی ہے کہ ، عبرت کا مقام 
اس قبر میں بے کیف ، جزیرہ دیکھو ٠ 

Wednesday, November 21, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात130-132


130

आसान बहुत है कि अक़ीदत पी लो,
भेड़ों की तरह आओ , जहाँ में जी लो,
तहक़ीक़ गराँ शय है इसे ठुकरा दो,
आँखों को करो बंद, ज़बाँ को सी लो.

آسان بہت ہے کہ عقیدت پی لو 
بھیڑوں کی طرح ، آؤ جہا میں جی لو 
تحقیق گراں شے ہے اسے  جھٹلاؤ 
آنکھوں کو کرو بند ، زبان کو سی لو ٠ 

131

अब बअज़ भी आओ कि बहुत ज़ुल्म क्या,
भगवान व् ख़ुदाओं ने बहुत ख़ून पिया,
 आते रहे अवतार व् पयम्बर बन कर,
आराम से इंसान को जीने न दिया.

اب باز بھی آؤ کہ بہت ظلم کیا 
بھگوان ، خداؤں نے بڑا خون پیا 
آتے رہے اوتار و پیمبر بن کے 
آرام سے انسان کو جینے نہ دیا ٠ 

132

सब कुछ यहीं ज़ाहिर है, खुला देख रहे हो,
क़ुदरत लिए हाज़िर है, खुला देख रहे हो,
बातिन में छुपाए वह इल्म ए नाक़िस,  
वह झूट में माहिर है खुला देख रहे हो.

سب کچھ یہیں ظاہر ہے ، کھلا دیکھ رہے ہو 
قدرت لئے حاضر ہے ، کھلا دیکھ رہے ہو 
باطن میں چھپاۓ ہے ،وہ علم ناقص 
وہ جھوٹ میں ماہر ہے کھلا دیکھ رہے ہو ٠ 

Tuesday, November 20, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात127-129


127

तहरीर शुदा देखे अजाबात ए अजीब ,
पढ़ पढ़ के धड़कते हैं, दिल व् जान ग़रीब,
सहमें हुए बैठे हैं बेचारे क़ारी.
क्या खूब डराता है उन्हें उनका मुजीब.

تحریر شدہ دیکھے ، عذابا تِ عجیب 
پڑھ پڑھ کے دھڑکتے ہیں ، دل و جان غریب 
سہمیں ہوئے بیٹھے ہیں ، بِچارے قاری 
کیا خوب ڈراتا  ہے ، اُنہیں اُنکا مجیب ٠ 

128

मय, हूर, गुलामान, खराबात ए नसीब,
नहरों पे सजी जन्नातें देता है नजीब,
बस देर है ईमान के ले आने की,
क्या खूब रिझाता है, इन्हें इनका रक़ीब.

مے، حور، غلامان، خراباتِ نصیب 
نہروں پہ سجی جنّتیں ، دیتا ہے نجیب 
بس دیر ہے ایمان کو، لے آنے کی 
کیا خوب ریجھاتا ہے ، اُنہیں اُنکا رقیب ٠ 

129

मुंह, आँख, समाअ सी कर सोया मुनकिर,
इक लंबी सज़ा जी कर सोया मुनकिर,
बस आँख लगी है न जगाना उसको,
ग़म खा के लहू पी कर सोया मुनकिर.

منہہ، آنکھ ، سماع سی کے سویا منکر
اک لمبی سزا جی کر ، سویا منکر
بس آنکھ لگی ہے ، نہ جگانا اسکو 
غم کھا کے ، لہو پی کے، سویا 'منکر٠ 

Monday, November 19, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात124-126


124

दिल चाहता है, जिस्म थका, फिर से जवां हो,
खूंनाब में परियों की अदा, फिर से रवां हो,
कुछ ऐसा मुआज्ज़ा हो कि लौट आए जवानी,
मय जाम व् सुबू , सागर व् साक़ी का जहाँ हो.

دل چاہتا ہے ، جسم تھکا ، پھر سے جوان ہو 
خون ناب میں پریوں کی ادا ، پھر سے رواں ہو 
کچھ ایسا معجزہ ہو ، کہ لوٹ آے جوانی 
مے، جام و صبو، ساغر و ساقی کا جہاں ہو ٠ 

125

मुझ को क्या कुछ समझा बूझा तुमने,
या अपने जैसा ही जाना तुमने,
मेरे ईमान में फर्क लाने का ख़याल ?
चन्दन पे है गोया, सांप को पला तुमने.

مجھ کو کیا کچھ ، سمجھا بوجھا تم نے 
یا اپنے جیسا ہی ، جانا تم نے 
میرے ایماں میں ، فرق لانے کا خیال 
چندن پہ ہے گویہ ، سانپ پالا تم نے ٠ 

126

तहरीक सदाक़त हो दिलों में पैदा,
तबलीग़ ए जिसारत हो दिलों में पैदा,
बतला दो ज़माने को खुदा भी बुत है,
फितरत की अक़ीदत हो दिलों में पैदा.

تحریک صداقت ہو دلوں میں پیدا 
تبلیغ جسارت ہو دلوں میں پیدا
بتلا دو زمانے کو ، خدا بھی بت ہے 
فطرت کی عقیدت ہو دلوں میں پیدا ٠ 

Sunday, November 18, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 121-123



121 

बे खौफ निहत्थे से सिपाही बन जाओ,
मुख़्तसर सफ़र के राही बन जाओ.
दूर रख कर ही देखो ख़ुशी और ग़म,
आदी न बनो इनके , गवाही बन जाओ.

بے خوف نہتے سے ، سپاہی بن جاؤ 
مختصر سفر کے ، راہی بن جاؤ
دور رکھ کر ہی دیکھو ، خوشی اور غم کو 
عادی نہ بنو ، ان کے گواہی بن جاؤ ٠ 

122 

रूदाद सुनाऊं मैं अदाकारों को,
ज़ेबा ही नहीं देता वज़अ दारों को ,
मंज़ूर है बे यार मददगार रहूँ ,
फ़रियाद नको, रहबरी अय्यारों को. 

روداد سناؤں میں اداکاروں کو 
زیبہ ہی نہیں دیتا ، وضع داروں کو 
منظور ہے ، بے یار و مدد گار رہوں
فریاد نکو ! رہبری عیاروں کو ٠ 

123

रोजों का असर देखो कि कुछ काम आया,
वह ईद के मौक़े पे लब ए बाम आया,
आदाब की झंकार सेवय्यों के साथ,
मुजदः ! कि पलकों पे रखे जाम आया.

روزوں کا اثر دیکھو ، کہ کچھ کام آیا 
وہ عید کے موقعہ پہ لبِ بام آیا 
آداب کی جھنکار ، سیویّوں کے ساتھ 
مژدہ ! کہ وہ پلکوں پہ رکھے جام آیا ٠ 

Saturday, November 17, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 118-120


118

चल दिए दबे क़दम किधर, ज़ाहिद तुम,
साथ में लिए हुए ये मुल्हिद तुम, 
पी ली उसकी या पिला दिया अपनी मय,
था तुम्हारा नक़क़ाद ये और नाक़िद तुम .
मुल्हिद=नास्तिक ,नक्काद, नाक़िद =आलोचक  
چل دِئے دبے قدم کِدھر زاہد تم
ساتھ میں لئے ہوئے یہ ملِحد تم
پی لی اُسکی یا پلا دیا اپنی مے ؟
تھا تمہارا نقّاد اور ناقِد تم ٠ 

119

ज़िल्लतें उठाए, सर झुकाए चलते हैं,
दाग़ ए दिल चरागों की तरह जलते हैं,
अहद कर चुके, कभी न लेंगे बदला,
इन्तेक़ाम भरे हाथ को हम मलते है,

ذلّتیں اُٹھاہے، سر جُھکاۓ چلتے ہیں
داغِ دل شراوں کی طرح جلتے ہیں 
عہد کر چُکے ، کبھی نہ لینگے بدلہ
انتقام بھرے ہاتھوں کو ہم ملتے ہیں ٠ 

120

सौ बार करो गौर , ग़लत तुम तो नहीं,
हो जाए अगर अपने ख़यालों पे यक़ीं,
कमज़ोर बनो और न मुआफी माँगो.
बकती फिरे दुन्या , बुलाता फिरे दीन . 

سو بار کرو غور ، غلط تم تو نہیں 
ہو جاۓ اگر اپنے خیالوں پہ یقیں 
کمزور بنو اور نہ معافی مانگو 
بکتی پھرے دنیا ، بلاتا پھرے دیں ٠

Friday, November 16, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 115-117


115

जन्मे तो सभी पहले हैं हिन्दू,माई! 
इक ख़ाम माल जैसे हैं ये हिन्दू भाई, 
इनकी लुद्दी से हैं ये डिज़ाइन सभी, 
मुस्लिम, बौद्ध, सिख हों या ईसाई. 

جنمیں تو سبھی ہیں ہندو مائی 
اک خام مال جیسے ہیں ہندو بھائی 
انکی لددی سے ہیں یہ ڈیزائن سب 
مسلم ، بودھ ، سکھ ہوں ، یا عیسائی ٠ 

116

गुफ़्तार के फ़नकार कथा बाचेंगे, 
मुँह आँख किए बंद भगत नाचेंगे, 
एजेंट उड़ा लेंगे जो थोड़ी इनकम, 
महराज ख़फ़ा होंगे, बही बांचेंगे. 

شبدوں کے کلاکار ، کتھا باچیں گے 
منہ آنکھ کئے بند ، بھگت ناچیں گے 
ایجنٹ جو اڑا لینگے ، تھوڑی راشی 
مہراج خفا ہو کے بہی جا چین گے ٠ 

117

मदरसों से धरम अड्डे से आते हैं वह,
नफ़रतों को, कुदूरतों को फैलाते हैं वह,
मान लेती है इन्हें भोली यह अवाम,
सीख लेती है जो सिखलाते हैं वह.
कुदूरतों=बैर भाव 

مدرسوں سے مساجد سے آتے ہیں وہ
نفرتوں، قدورتوں کو پھیلا تے ہیں وہ
مان لیتی ہے اِنہیں بھولی عوام  
سیکھ لیتی ہے جو سِکھلاتے ہیں وہ ٠ 

Thursday, November 15, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 112-114


112

माहौल पे हो छाए तरक्क़ी के नशे में,
नस्लों को खपाए हो तरक्क़ी के नशे में,
मुसबत नफ़ी को देखो, मीज़ान में ज़रा,
क्या खोए हो, क्या पाए, तरक्क़ी के नशे में. 

ماحول پہ چھاۓ ہو ترقّی کے نشے میں
نسلوں کو کھپاۓ ہو ترقّی نے نشے میں
مثبت نفی کو دیکھو میزان میں ذرا
کیا کھوۓ ہو کیا پاۓ، ترقّی نے نشے میں٠ 

113

यह मर्द नुमायाँ हैं मुसीबत की तरह,
यह ज़िदगी जीते हैं अदावत की तरह ,
कुछ दिन के लिए निस्वाँ क़यादत आए, 
खुशियाँ हैं मुअननस सभी औरत की तरह. 
निस्वाँ=स्त्रीत्व ,मुअननस=स्त्रीलिंग 

یہ مرد نمایاں ہیں مصیبت کی طرح 
یہ زندگی جیتے ہیں عداوت کی طرح 
کچھ دن کے لئے ، نسواں قیادت آیے 
خوشیاں ہیں مونّس ، سبھی عورت کی طرح ٠ 

114

कुदरत ने अता की है तुन्हें अपनी ज़मीं,
बच्चों की विरासत है ये, तुम हो अमीं, 
ज़रख़ेज़ इसे करदो या कर दो बंजर,
हाथों में लिए बम हो खड़े, यार नहीं. 

قدرقت نے عطا کی ہے ، تمہیں اپنی زمیں 
بچّوں کی وراثت ہے یہ ، تم اس کے امیں 
زر خیز اسے کر دو، یا کر دو بنجر 
ہاتھوں میں لئے بم ہو کھڑے ، 'یار نہیں' ٠

Wednesday, November 14, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 109-111


109

मुंकिर ये बताओ, पीकर आए हो क्या?
खुशबुओं के परदे में छिपाए हो क्या?
कुछ दिन ही हुए हैं कि हुए उनसठ के,
कुछ उम्र से पहले सठ्याए हो क्या?

منکر یہ بتاؤ ، پی کر آے ہو کیا؟  
خوشبوؤں کے پردے میں ، چھپاۓ ہو کیا ؟
کچھ دن ہی ہوئے ہیں ، کہ ہوئے ونسٹہ کے 
کچھ عمر سے پہلے ، سٹھیا ے ہو کیا ؟

110

है मौत का आगाज़ जो इंसाँ  का जनम है,
है साल गिरह या कि बरस एक ये कम है,
ख़ुशियों के नतीजे में पलक है नमनाक,
हो ज़िन्दगी जब बोझ तो यह मौत करम है.

ہے موت کا آغاز جو انسان کا جنم ہے
ہے سال گرہ یا کہ برس ایک یہ کم ہے
خوشیوں کے نتیجے میں پلک ہے نمناک
ہو زندگی جب بوجھ تو یہ موت کرم ہے.

111

वह पूजते हैं बुत को, तरीक़ा उनका,
घंटे को बजाते हैं, सलीक़ा उनका,
बे वज्ह परेशान हैं ईमाँ वाले,
आमाल हैं उनके, ये दक़ीका उनका.

وہ پوجتے ہیں بُت کو ، طریقہ اُنکا 
گھنٹے کو بجاتے ہیں ، سلیقہ اُنکا 
بے وجہ پریشان ہیں ایماں والے 
اعمال ہیں اُنکے ، یہ دقیقہ اُنکا ٠ 

Tuesday, November 13, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 106-108


106

तेरी मर्ज़ी पे है, मै बे दाग़ मरूँ,
हल्का हूँ पेट का, सुबकी को चरूँ,
'मुंकिर' को नहीं ह.ज्म बहुत से मौज़ूअ,
ग़ीबत न करे तू तो, मैं चुग़ली न करूँ. 

تیری مرضی پہ ہے ، میں بے داغ مروں 
ہلکا ہوں پیٹ کا ، سُبکی کو چروں 
منکر کو نہیں ہضم ، بہت سے موضوع 
غیبت نہ کرے تو ، تو میں چغلی نہ کرتوں ٠ 

107

देहात की नव मुस्लिमा, थी ग़र्क ए सना,
आ जाओ मेरे अंगना, मेरे अल्ला मियाँ,
लाहौल पढ़ी, सुनके, वह ज़ाहिद बोला,
गोया कि कन्हैया जी हुए अल्ला मियाँ.

 دیہات کی نو مسلمہ ، تھی غرقِ ثنا 
 آ جاؤمرے انگنا ، کبھی الله میاں 
لاحول پڑھی سن کے ، وہ زاہد بولے 
گویہ کہ کنہیّا جی ہوئے الله میں ٠

108

मौसम के सभी फल को, खाना है हमें,
है मशविरा क़ुदरत का, निभाना है हमें,
महरूम नहीं होंगे किसी नेअमत से,
खाते हुए, पीते हुए, जाना है हमें.

 موسم کے سبھی فصل کو کھانا ہے مجھے   
ہے مشورہ قدرت کا ، نبھانا ہے مجھے 
محروم نہیں ہونگے کسی نعمت سے 
کھاتے ہوئے ، پیتے ہوئے جانا ہے مجھے ٠ 

Monday, November 12, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 106-108


106

तेरी मर्ज़ी पे है, मै बे दाग़ मरूँ,
हल्का हूँ पेट का, सुबकी को चरूँ,
'मुंकिर' को नहीं ह.ज्म बहुत से मौज़ू ,
ग़ीबत न करे तू तो, मैं चुग़ली न करूँ. 

تیری مرضی پہ ہے ، میں بے داغ مروں 
ہلکا ہوں پیٹ کا ، سُبکی کو چروں 
منکر کو نہیں ہضم ، بہت سے موضوع 
غیبت نہ کرے تو ، تو میں چغلی نہ کرتوں ٠ 

107

देहात की नव मुस्लिमा, थी ग़र्क ए सना,
आ जाओ मेरे अंगना, मेरे अल्ला मियाँ,
लाहौल पढ़ी, सुनके, वह ज़ाहिद बोला,
गोया कि कन्हैया जी हुए अल्ला मियाँ.

 دیہات کی نو مسلمہ ، تھی غرقِ ثنا 
 آ جاؤمرے انگنا ، کبھی الله میاں 
لاحول پڑھی سن کے ، وہ زاہد بولے 
گویہ کہ کنہیّا جی ہوئے الله میں ٠

108

मौसम के सभी फल को, खाना है हमें,
है मशविरा क़ुदरत का, निभाना है हमें,
महरूम नहीं होंगे किसी नेअमत से,
खाते हुए, पीते हुए, जाना है हमें.

 موسم کے سبھی فصل کو کھانا ہے مجھے   
ہے مشورہ قدرت کا ، نبھانا ہے مجھے 
محروم نہیں ہونگے کسی نعمت سے 
کھاتے ہوئے ، پیتے ہوئے جانا ہے مجھے ٠ 

Sunday, November 11, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 103-105


103

ख़ामोश हुए, मौत के ग़म मैंने पिए,
अब तुम भी न जलने दो ये आंसू के दिए,
मैं भूल चुका होता हूँ अपने सदमें,
तुम रोज़ चले आते हो पुरसे को लिए.

خاموش ہوئے ، موت کے غم ہم نے پئے 
اب تم بھی نہ جلنے دو ، یہ آنسو کے دئے 
میں بھول چکا ہوتا ہوں ، اپنے صدمے 
تم روز چلے آتے ہو ، پرسے کو لئے ٠ 

104

माइल बहिसाब यूँ न होना था तुम्हें ,
मालूम न था अज़ाब होना था तुम्हें,
हंगामे-जवानी की मेरी तसवीरों,
इतनी जल्दी ख़राब होना था तुन्हें?

 مائلِ بحساب ، یوں نہ ہونا تھا تمہیں 
معلوم نہ تھا ، عذاب ہونا تھا تمہیں 
ہنگامِ جوانی کی میری تصویرو 
اتنی جلدی خراب ، ہونا تھا تمہیں ؟

105

पंडित जी भी आइटम का ही दम ले आए,
तुम भी मियाँ परमाणु के बम ले आए,
लड़ जाओ धर्म युद्ध या मज़हबी जंगें ,
हम सब्र करेंगे, उम्र कम ले आए.

پنڈت جی بھی ،ایٹم کا ہی دم لےآۓ 
تم بھی میاں ، پرمانو کے بم لےآۓ 
لڑ جاؤ دھرم یدھ ، کہ جہادی جنگیں 
ہم صبر کرینگے ، عمر کم  لےآۓ  

Saturday, November 10, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 100-102


100

वह करके दुआ सबके लिए सोता है,
ख़िलक़त के लिए तुख्म ए समर बोता है, 
तुम और सताओ न मियाँ मुंकिर को,
मासूम की आहों में असर होता है.

وہ کر کے دعا سب کے لئے سوتا ہے 
خلقت کے لئے تخم ثمر بوتا ہے 
تم اور ستاو نہ میاں ' منکر' کو 
معصوم کی آ ہوں میں اثر ہوتا ہے ٠ 

101

होते हुए पुर अम्न ये हैबत में ढली, 
लगती है ख़तरनाक मगर कितनी भली,
है ज़िन्दगी दो चार दिनों की ही बहार,
ये मौत की खेती हुई, जो फूली न फली.

ہوتے ہوئے پر امن ، یہ ہیبت میں ڈھلی 
لگتی ہے خطر ناک ، مگر کتنی بہلی 
ہے زندگی دو چار دنوں کی ہی بہار
 یہ موت کی کھیتی ہے ، کہ جو پھولی پہلی ٠ 

102

इक फ़ासले के साथ मिला करते थे,
शिकवा न कोई और न गिला करते थे,
क़ुरबत की शिद्दतों ने डाली है दराड़,
दो रंग में दो फूल खिला करते थे.

اک فاصلے کے ساتھ ملا کرتے تھے 
شکوہ کوئی کرتے ، نہ گلہ کرتے تھے 
قربت کی شدتوں نے ، ڈالی ہے درار 
دو رنگ میں دو پھول ، کھلا کرتے تھے ٠ 

Friday, November 9, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 97-99


97

औक़ात बदलते हैं, बदलतीं सूरत, 
अहकाम इलाही में हो कैसे हुज्जत, 
खैरात, ज़कात, फ़ितरा तब किसको दें, 
जब हों सभी खुश, सभी बा गैरत. 
अहकाम इलाही =ईशादेश 

اوقات بدلتے ہیں ، بدلتی صورت 
احکام الہی میں ہو کیسے حجّت 
خیرات زکات فطرہ ، تب کس کودیں ؟
جب ہوں سبھی خوش حال ، سبھی با غیرت ٠ 

98 

किस बात पे यूँ गाना बजाना छोड़ा,
नाराज़ हुए, आब व् दाना छोड़ा,
कुछ सुनने सुनाने की क़सम भी खाली,
इक हिचकी ली और सारा ज़माना छोड़ा.

کیا بات ہوئی ، گانا بجانا چھوڑا 
ناراض ہوئے ، آب و دانہ چھوڑا 
کچھ سننے سنانے کی قسم بھی کھا لی 
اک ہچکی لیا ، اور زمانہ چھوڑا ٠ 

99

आवाज़ मुझे आख़िरी देकर न गए,
आवाज़ मेरी आख़िरी लेकर न गए,
बस चलते चलाते ही जहाँ छोड़ दिया,
अफ़सोस कि समझा के, समझ कर न गए. 

آواز مجھے آخری دیکر نہ گئے 
آواز مری آخری لیکر نہ گئے 
آئ ہے خبر تم نے جہاں چھوڑ دیا 
افسوس کہ سمجھا کے ، سمجھ کر نہ گئے ٠