Friday, February 22, 2013

ग़ज़ल - - - दुश्मनी गर बुरों से पालोगे



ग़ज़ल


दुश्मनी गर बुरों से पालोगे,

ख़ुद को उन की तरह बना लोगे।

तुम को मालूम है मैं रूठूँगा,

मुझको मालूम है मना लोगे।

लम्स1 रेशम हैं दिल है फ़ौलादी,

किसी पत्थर में जान डालोगे।

मेरी सासों के डूब जाने तक,

अपने एहसान क्या गिना लोगे।

दर के पिंजड़े के ग़म खड़े होंगे,

इस में खुशियाँ बहुत जो पालोगे।

सूद दे पावगे न "मुंकिर" तुम,

क़र्ज़े ना हक़ को तुम लोगे।

1-स्पर्श

Friday, February 15, 2013

ग़ज़ल - - -नई सी सिन्फ़ ए सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,






नई सी सिन्फ़ ए सुख़न1 हो, नेअम2 की बात करो,
न झूट सच की, ख़ुशी की, न ग़म की बात करो।

न बैठ जाना कि मसनद3 है, सुलह कुल4 की ये,
खड़े खड़े ही दिलेरी की, दम की बात करो।

उतार आओ अक़ीदत को, साथ जूतों के,
हमारी बज़्म में, हक की, धरम  की बात करो।

मुआमला है, करोड़ों की ज़िदगी का ये,
सियासतों के खिलाड़ी, न बम की बात करो।

सभी असासा5 वतन का है, हस्बे नव आईन6,
अमीन कौन है, इस पर भरम की बात करो।

ये चाहते हो, हमा तन ही गोश7 हो जाएँ,
हों उलझे गेसुए अरज़ी8, अदम9 की बात करो।

तलाशे सिद्क़ ए ख़ला10 कितने मक़नातैशी11 हैं,
न अब जनाब, ख़ुदा की, सनम की बात करो।

बहुत ही खून पिए जा रहे हैं ये "मुंकिर"
क़सम है तुम को जो दैरो हरम12 की बात करो।

Saturday, February 9, 2013

ईद की महरूमियाँ



ईद की महरूमियाँ 1

कैसी हैं ईद की खुशियाँ, यह नक़ाहत की तरह,
जश्न क़र्ज़े की तरह, नेमतें क़ीमत की तरह।
ईद का चाँद ये, कैसी खुशी को लाता है,
घर के मुखिया पे, नए पन के सितम ढाता है।

ज़ेब तन कपड़े नए हों, तो खुशी ईद है क्या?
फ़िकरे-गुर्बा के लिए, हक की ये ताईद है क्या?
क़ौम पर लानतें हैं, फित्रा-ओ-खैरात -ओ-ज़कात ,
ठीकरे भीख की ठंकाए है, उमरा की जमाअत।

पॉँच वक्तों की नमाजें हैं अदा, रोजाना,
आज के रोज़ अज़ाफ़ी है सफ़र दोगाना।
इसकी कसरत से कहीं दिल में ख़ुशी होती है,
भीड़ में ज़िन्दगी, तनहा सी पड़ी होती है।

ईद के दिन तो, नमाज़ों से बरी करना था,
छूट इस दिन के लिए, मय-ब-लबी करना था।
नव जवाँ देव परी के लिए मेले होते,
अपनी दुन्या में दो, महबूब अकेले होते।

रक़्स होता, ज़रा धूम धडाका होता,
फुलझडी छूटतीं, कलियों में धमाका होता।
हुस्न के रुख़ पे, शरीयत का न परदा होता,
मुत्तक़ी१०, पीर11, फ़क़ीहों११, को ये मुजदा१२, होता,

हम सफ़र चुनने की, यह ईद इजाज़त देती,
फ़ितरते ख़ल्क़१३ को, संजीदगी फुर्सत देती।
ईद आई है मगर दिल में चुभी फांस लिए,
करबे१४ महरूमी लिए, घुट्ती हुई साँस लिए।

१-वनचित्ता २-कमजोरी ३-गरीबों की चिंता ४-ईश्वर 5-समर्थन ६-दान की विधाएँ ७-धनाड्य ८-ईद की नमाज़ को दोगाना कहते ९-धर्मं विधान १०-सदा चारी ११-बुजुर्ग 11-धर्म-शास्त्री १३-खुश खबरी १3-जीव प्रवर्ति14-वंचित की पीड़ा
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Sunday, February 3, 2013

मैं क्या हूँ ?


मैं क्या हूँ ?


हिन्दू के लिए मैं इक मुस्लिम ही हूँ आख़िर ,


मुस्लिम ये समझते हैं गुमराह है काफ़िर ,


इनसान भी होते हैं कुछ लोग जहाँ में ,


ग़फ़लत में हैं ये दोनों ,समझाएगा 'मुंकिर'


Saturday, February 2, 2013

ग़ज़ल - - - बज़ाहिर मेरे हम नवा पेश आए



बज़ाहिर मेरे हम नवा पेश आए,
बड़े हुस्न से कज अदा पेश आए।

मेरे घर में आने को बेताब हैं वह,
रुके हैं कोई हादसा पेश आए।


हजारों बरस की विरासत है इन्सां,
 ,

न खूने बशर की नदा1 पेश आए।

ये कैसे है मुमकिन इबादत गुज़ारो!
नवालों को लेकर दुआ पेश आए।

मुझे तुम मनाने की तजवीज़ छोडो,
जो माने न वह तो कज़ा2 पेश आए।

खुदा की मेहर ये, वो शैतां की हरकत,
कि "मुंकिर" कोई वाक़ेआ पेश आए।

१-ईश-वाणी २-मौत