Friday, December 23, 2011

गज़ल - - - यादे माज़ी को तो बेहतर है भुलाए रखिए


 
यादे माज़ी को तो बेहतर है भुलाए रखिए,
हाल शीशे का है, पत्थर से बचे रखिए।
 
दोस्ती, यारी, नज़रियात, मज़ाहिब, हालात,
ज़हन ओ दिल पे न बहानों को बिठाए रखिए।
 
मैं फ़िदा आप पे कैसे जो बराबर हैं सभी,
ऐ मसावती मुजाहिद! मुझे पाए रखिए।
 
सात पुश्तों से खजाना ये चला आया है,
सात पुश्तों के लिए माँ इसे ताए रखिए।
 
आबला पाई भुला बैठी है राहें सारी,
आप कुछ रोज़ चरागों को बुझाए रखिए।
 
सच की किरणों से जहाँ में लगे न आग कहीं,
आतिशे दिल अभी "मुंकिर" ये बुझाए रखिए।
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Wednesday, December 14, 2011

ग़ज़ल - - - वोह जब करीब आए



 
वोह जब करीब आए ,
 
इक खौफ़ दिल पे छाए।


 
जब प्यार ही न पाए,
 
महफिल से लौट आए।


 
दिन रात गर सताए,
 
फ़िर किस तरह निंभाए?

 
इस दिल से निकली हाय!
 
अब तू रहे की जाए।


 
रातों की नींद खो दे,
 
गर दिन को न सताए।


 
ताक़त है यारो ताक़त,
 
गर सीधी रह पाए।
 


है बैर भी तअल्लुक़
 
दुश्मन को भूल जाए।

 
हो जा वही जो तू है,
 
होने दे हाय, हाय।
 


इकरार्यों का काटा,
 
"मुंकिर" के पास आए.

 
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Thursday, December 8, 2011

हिन्दी ग़ज़ल - - - मन को लूटे धर्म की दुन्या , धन को लूटे नेता


मन को लूटे धर्म की दुन्या , धन को लूटे नेता,
देश को लूटे नौकर शाही, गुंडा इज्ज़त लेता।
 
आटोमेटिक प्रोडक्शन है, श्रम को कोई न टेता,
तन लूटे सरमायादारी,जतन को घूस का खेता।
 
चैन की सांस प्रदूषण लूटे, गति लूटे अतिक्रमण,
उन्नत भक्षी जन संख्या ने अपना गला ही रेता।
 
प्रतिभा देश से करे पलायन सिस्टम को गरियाती,
आरक्षन का कोटा सब को दूध भात है देता।
 
प्रदेशिकता देश को बाटे, कौम को जाति बिरादर,
भारत माता भाग्य को रोए, कोई नहीं सुचेता।
 
सब के मन का चोर है शंकित, मुंह देखी बातें हैं,
"मुंकिर" शब्द का लहंगा चौडा, मन का घेर सकेता।
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ग़ज़ल - - - वोह जब करीब आए

Wednesday, December 7, 2011

ग़ज़ल - - - है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है


 
है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है,
यकसूई चाहता है, दो पाट में फँसा है।
 
दिल जोई तेरी की थी, बस यूँ ही वह हँसा है,
दिलबर समझ के जिस को तू छूने में लसा है।
 
बकता है आसमा को, तक तक के मेरी सूरत,
पागल ने मेरा बातिन, किस जोर से कसा है।
 
सच बोलने के खातिर दो आँख ही बहुत थीं,
अल्फाज़ चुभ रहे हैं, आवाज़ ने डंसा है।
 
कैसी है सीना कूबी? भूले नहीं हो अब तक,
बहरों का फासला था, सदियों का हादसा है।
 
है वादियों में बस्ती, आबादी साहिलों पर,
देखो जुनून ए "मुंकिर" गिर्दाब में बसा है.
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*बातिन=अंतरात्मा *सीना कूबी=मातम *बहरों=समन्दरों *गिर्दाब=भंवर

Saturday, December 3, 2011

gazal - - - सुकून क़ल्ब को दिल की हसीं परी तो मिले


सुकूने क़ल्ब को, दिल की हसीं परी तो मिले,
तेरे शऊर को इक हुस्ने दिलबरी तो मिले.
 
नफ़स नफ़स की बोखालत को ख़त्म कर देंगे,
तेरे निज़ाम में पाकीज़ा रहबरी तो मिले.
 
केनाआतें तेरी तुझ को सुकूं भी देदेंगी,
कि तुझ को सब्र बशकले कलंदरी तो मिले.
 
जेहाद अब नए मानो को ले के आई है.
तुम्हें ''सवाब ओ गनीमत'' से बे सरी तो मिले.
 
वहाँ पे ढूँढा तो बेहतर न कोई बरतर था,
फरेब खुर्दाए एहसास बरतरी तो मिले.
 
तू एक रोज़ बदल सकता है ज़माने को,
ख़याल को तेरे 'मुंकिर" सुखनवरी तो मिले.
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*बोखालत=कंजूसी *केनाआतें=संतोष *कलंदरी=मस्त-मौला *''सवाब ओ गनीमत'' =पुण्य एवं लूट-पाट*सुखनवरी=वाक्-पुटता.