Friday, November 30, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 25-27



25
फ़ितरी लम्हे 

फ़ितरत ए वहशी जवाँ थी, नातवाँ फ़िक्र ए गुनाह,
हुस्न का आतश फ़शां था, थी न कोई सर्द राह,
पिघली यूँ ज़ंजीर ए तक़वा, खौ़फ़ पत्थर का था छू,
लिख भी दे कोई सज़ा , ऐ जज़ाए फ़ितना गाह.
नातवाँ=कमज़ोर , आतश फ़शां =ज्वालामुखी ,तक़वा=परहेज़ 
जज़ाए फ़ितना गाह=क़यामत का मैदान 

فِطری لمحے 

فِطرتِ وحشی جواں تھی ، نا تواں فکرِ گناہ 
حسن کا آتش فشاں تھا ، تھی نہ کوئی سرد را ہ،
پِگھلی یوں زنجیر تقویٰ ، خوفِ سنگ ساری تھا چهو 
لِکھ بھی دے کوئی سزا اب ، ائے جزا ے فِتنہ گاہ ٠

26
अना को फ़ना 

इस अना को सुपुर्द ए क़ब्र करो,
है ये बेहतर की ख़ुद पे जब्र करो,
बाद में वह भी ज़िद को छोड़ेगा ,
भाई मुंकिर ! ज़रा सा सब्र करो . 
अना=मर्यादा 

انا کو فنا

اِس انا کو سُپُردِ قبر کرو 
ہے یہ بہتر کہ خود پہ جبر کرو 
بعد میں وہ بھی ضِد کو چھوڑے گا 
میاں 'منکر' ذرا سا صبر کرو ٠ 

27
गोचा पेची 

सब कुछ तो साफ़ साफ़ था इरशाद ए किबरिया,
तफ़सीर लिखने वालो बताओ ये क्या किया,
 कैसे अवाम पढ़ के उठाएँगे फ़ायदे ?  
तुमने लिखे हुए पे ही कुछ और लिख दिया. 
इरशाद ए किबरिया=क़ुरान , तफ़सीर=भावार्थ 

گوچہ - پیچی

سب کچھ تو صاف صاف تھا ، ارشادِ کِبریہ 
تفسیر لکھنے والو بتاؤ یہ کیا کیا 
کیسے عوام پڑھ کے ، سمجھ لینگے حقیقت 
تم نے لکھے ہوئے پہ ، ہی کچھ اور لکھ دیا ٠

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