Thursday, November 29, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 19-21



19
साँच की ताप 

कुछ अगर ख़्वाहिश न हो, तो है अधूरी ज़िन्दगी,
ख़्वाहिशें अंधी हैं, गर हस्ती में हो नाख़ान्दगी,
इल्म भी बेकार है, इन्सां अगर है बेअमल,
सच नहीं मुंकिर तो है, इल्मो ओ हुनर शर्मिदगी.
नाख़ान्दगी=अनपढ़ स्तिथि 

صدق کی حرارتیں 

کچھ اگر خواہش نہ ہو تو ، ہے ادھوری زندگی 
خواہشیں اندھی ہیں ، گر ہستی میں ہے نہ خواندگی 
علم بھی بیکار ہے ، انسان اگر ہے بے عمل 
سچ نہیں 'منکر' ، تو ہے علم و ہنر شرمندگی ٠  

20
रिआयत 

इम्कानी गिरावट हो कि अख़लाक़ी बुलंदी,
हों आप की या मेरी, इक हद हैं सभी की,
हैरत से हिक़ारत से, यूँ मुजरिम को न देखो,
लगती है दिल आज़ारी, कहीं उसमें छिपी सी. 

رعایت

امکانی گراوٹ ہو کہ اخلاقی بلندی 
ہوں آپ کی یا میری ، یہی حد ہے سبھی کی 
حیرت سے حقارت سے ، یوں مجرم کو نہ دیکھو 
لگتی ہے دل آزاری ، کہیں اسمیں چھپی سی 

21
सज़ा ए दोबाला 

जीने न दिया घर में, तुर्बत में अब जियो,
शैदाइयों की मानो तो शिद्दत में जियो,
तुमको ही मारने में, ख़ुद मर गया है शौहर,
मेरी बहन ये क्या है, कि इद्दत में अब जियो.
दोबाला=दोहरा , तुर्बत=समाधि, इद्दत=तलाक़ शुदा की पर्दा अवधि  

سزا ے دو بالا

جینے نہ دیا گھر میں ، تربت میں اب جیو 
شیدائیوں کی مانو، تو شدّت میں اب جیو 
تم کو ہی مارنے میں ، خود مر گیا شوہر 
میری بہن ! یہ کیا ہے کہ ، عدّت میں اب جیو ٠ 

No comments:

Post a Comment