Saturday, December 1, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 22-24



22
जहाज़ का पंछी

 नाहक़ था मैं ही, हक़ पे तुम्हीं थे, जहाँ थे तुम,
मैं उड़ के थक गया तो ज़मीं पर निशाँ थे तुम,
मैं आ गया हूँ  भूले हुए घर को लौट कर,
मानिंद  माँ के  पूछ लो, अब तक कहाँ थे तुम.

جہاز کا پنچھی

نا حق تھا میں ہی ، حق پہ تمہیں تھے ، جہاں تھے تم 

میں اڑ کے تھک گیا ، تو زمیں پر نشاں تھے تم 

میں آ گیا ہوں بچھڑے ہوئے ، گھر میں لوٹ کر 

مانند ماں کے پوچھو ، کہ اب تک کہاں تھے تم ٠23

कुत्तों का ग़लबा 

बेचने दो उसे इंसानी लहू का मअज़ून,
पुश्त पर उसके है, मौजूदा सदी का क़ानून,
मुझको फ़िलहाल तो कुत्तों से बचाओ यारो,
फिर कभी लिखखूँगा, हड्डी की ख़ता पर मज़मून.
मअज़ून=दवाई , मज़मून=विषय 

کُتوں کا غلبہ

بیچنے دو اُسے انسانی لہو کا معجون 
پشت پر اُس کے ہے ، موجودہ صدی کا قانون 
مُجھ کو فی ا لحال تو ، کُتوں سے بچاؤ یارو! 
پھر کبھی لکّھونگا ، ہڈ ی کی خطا پر مضمون ٠ 

24
ताजिर

 हर वक़्त फ़िक्र ए दौलत, बस खाता और बही है
रहती है ये कुएँ में, ताजिर की ज़िंदगी है
दुन्या की सारी क़दरें, गुम हो गईं हैं इनमें
दौलत ही दुःख है इनका, दौलत ही हर ख़ुशी है.
ताजिर=व्योसाई,क़दरें=मूल्य 

تاجر
ہر وقت فکرِ دولت ، کھاتا ہے اور بہی ہے 
رہتی ہے اک کویں میں ، تاجر کی زندگی ہے 
دنیا کی ساری قدریں ، گم ہو گئی ہیں ان میں 
دولت ہی دکھ ہے انکا ، دولت ہی ہر خوشی ہے ٠ 

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