127
तहरीर शुदा देखे अजाबात ए अजीब ,
पढ़ पढ़ के धड़कते हैं, दिल व् जान ग़रीब,
सहमें हुए बैठे हैं बेचारे क़ारी.
क्या खूब डराता है उन्हें उनका मुजीब.
تحریر شدہ دیکھے ، عذابا تِ عجیب
پڑھ پڑھ کے دھڑکتے ہیں ، دل و جان غریب
سہمیں ہوئے بیٹھے ہیں ، بِچارے قاری
کیا خوب ڈراتا ہے ، اُنہیں اُنکا مجیب ٠
128
मय, हूर, गुलामान, खराबात ए नसीब,
नहरों पे सजी जन्नातें देता है नजीब,
बस देर है ईमान के ले आने की,
क्या खूब रिझाता है, इन्हें इनका रक़ीब.
مے، حور، غلامان، خراباتِ نصیب
نہروں پہ سجی جنّتیں ، دیتا ہے نجیب
بس دیر ہے ایمان کو، لے آنے کی
کیا خوب ریجھاتا ہے ، اُنہیں اُنکا رقیب ٠
129
मुंह, आँख, समाअ सी कर सोया मुनकिर,
इक लंबी सज़ा जी कर सोया मुनकिर,
बस आँख लगी है न जगाना उसको,
ग़म खा के लहू पी कर सोया मुनकिर.
منہہ، آنکھ ، سماع سی کے سویا منکر
اک لمبی سزا جی کر ، سویا منکر
بس آنکھ لگی ہے ، نہ جگانا اسکو
غم کھا کے ، لہو پی کے، سویا 'منکر٠
No comments:
Post a Comment