Tuesday, November 13, 2018

जुंबिशें - - - रुबाइयात 106-108


106

तेरी मर्ज़ी पे है, मै बे दाग़ मरूँ,
हल्का हूँ पेट का, सुबकी को चरूँ,
'मुंकिर' को नहीं ह.ज्म बहुत से मौज़ूअ,
ग़ीबत न करे तू तो, मैं चुग़ली न करूँ. 

تیری مرضی پہ ہے ، میں بے داغ مروں 
ہلکا ہوں پیٹ کا ، سُبکی کو چروں 
منکر کو نہیں ہضم ، بہت سے موضوع 
غیبت نہ کرے تو ، تو میں چغلی نہ کرتوں ٠ 

107

देहात की नव मुस्लिमा, थी ग़र्क ए सना,
आ जाओ मेरे अंगना, मेरे अल्ला मियाँ,
लाहौल पढ़ी, सुनके, वह ज़ाहिद बोला,
गोया कि कन्हैया जी हुए अल्ला मियाँ.

 دیہات کی نو مسلمہ ، تھی غرقِ ثنا 
 آ جاؤمرے انگنا ، کبھی الله میاں 
لاحول پڑھی سن کے ، وہ زاہد بولے 
گویہ کہ کنہیّا جی ہوئے الله میں ٠

108

मौसम के सभी फल को, खाना है हमें,
है मशविरा क़ुदरत का, निभाना है हमें,
महरूम नहीं होंगे किसी नेअमत से,
खाते हुए, पीते हुए, जाना है हमें.

 موسم کے سبھی فصل کو کھانا ہے مجھے   
ہے مشورہ قدرت کا ، نبھانا ہے مجھے 
محروم نہیں ہونگے کسی نعمت سے 
کھاتے ہوئے ، پیتے ہوئے جانا ہے مجھے ٠ 

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