Friday, December 21, 2018

जुंबिशें - - - मुस्कुराहटें 16


डुबोया मुझको होने ने 

जनम है इक जंजाल अजन्मो, जनम से जान बचाना तुम, 
मेरी बात नहीं माने तो, जीवन भर पछताना तुम.

जनम अगर हिन्दू में पाया, छूत छात में जाना तुम.
जनम अगर मुस्लिम में पाया, जड़ अपनी कटवाना तुम.

जनम अगर सिख्खों में पाया, बाल के जाल रखाना तुम. 
जनम अगर बुद्धों में पाया, तो भिक्षु बन जाना तुम .

धरम का चूहेदान जो बदला, ईसोई बन जाना तुम. 
या तो बाबा की कुटिया पर धूनी कहीं रमाना तुम.

नहीं अगर माने तो आकर, घुट घुट कर मर जाना तुम,
प्रदूषण है जात पात की, आकर आन गंवाना तुम.

जनम की ख़ातिर नहीं उचित है, भारत का माहौल अभी,
कुछ सदियों तक रुके रहो, जनम पे हो लाहौल अभी .
लाहौल=धिक्कार 

ڈبویا مجھکو ہونے نے 

جنم ہے اک جنجال اجنمو ! جنم سے جان بچانا تم 
 میری بات نہیں مانے تو، جیون بھر پچھتانا تم 

جنم اگر ہندو میں پایا، چھوت چھات میں جانا تم
جنم اگر مسلم میں پایا ، جڑ اپنی کٹوانا تم 

جنم اگر سکھوں میں پایا، بال کے جال رکنا تم 
جنم اگر بدھوں میں پایا ، بھکچھ پاتر اٹھانا تم 

دھرم کا چوہادان جو بدلہ ،چنگے منگے ہو جانا تم 
یا تو بابا کی کٹیا پر دھونی کہیں رمانا تم 

نہیں اگر مانے تو آکر گھٹ گھٹ کر مر جانا تم 
عمل دخل ہے جات پات کا، آکر آ ن گوانا تم 

جنم کی خاطر نہیں مناسب، بھارت کا ماحول ابھی 
 کچھ صدیوں تک رکے رہو ، جنم پہ ہو لاحول ابھی 

11 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २४ दिसम्बर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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    1. महोदय ! एक मुद्दत से आप मेरी रचनाओं को सम्मानित कर रहे हैं, धन्यवाद. मगर मैं कहाँ सम्मान पा रहा हूँ, मुझे इसका ज्ञान नहीं. अनाड़ी जो ठहरा. कृपया मेरा मार्ग दर्शन करें ताकि मैं आप के stege तक पहुँच सकूँ.

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना 👌
    हर शब्द अपने अस्तित्व साक्षी

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  3. सभी कूँअन में भांग पड़ी.
    मज़हब हमें सिखाए, आपस में बैर रखना,
    ये फल ज़हर बुझा है, हमको नहीं है चखना.

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  4. Replies

    1. हमारे यहाँ पधारिये https://deshwali.blogspot.com/

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  5. बहुत खूब

    काफी दिनों बाद हम लौट आये है
    हमारे यहाँ पधारिये https://deshwali.blogspot.com/

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    1. हाँ अभी जिंदा हूँ, देशवाली जी.

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