सलोनी ग़ज़ल
(मादरी ज़बान में)
आंधी पानी आवत है,
चिड़िया ढोल बजावत है,
बदरी छपरा छावत है,
सूरज आँख चुरावत है.
मछरी ताल मां नाचत है,
मेढक सुर मां गावत है.
पागल मेघा गर्जत है,
मस्त बयरया धावत है.
गोरी तन का सीचत है,
छोरा नयन सुखावत है.
जी मां कितनी राहत है,
वर्षा रूप रिझावत है.
दूर खड़ी भरमावत है,
दुविधा मोर बगावत है.
कैसी अद्भुत चाहत है,
यह सावन की दावत है.
भावत है सो भावत है,
मुंकिर क़दम बढ़ावत है.
برکھا
مادری زبان میں
آندھی پانی آوت ہے ، چڑیا دھول بجاوت ہے ٠
بدری چپرا چھاوت ہے ، سورج آنکھ چرا وت ہے ٠
مچھری تال ما ناچت ہے ، مینڈھک سر مچا وت ہے ٠
پاگل میگھا گرجت ہے ، مست بیریہ د ھا و ت ہے ٠
چھوری تن کا سیچت ہے ، چھورا نیں سکھا وت ہے ٠
کھڑے کھڑے بھرماوت ہے ، دویدھا مور بگاوت ہے ٠
من ما کتنی راحت ہے ، برکھا سبھے دکھا وت ہے ٠
کیسی ادبھت چاہت ہے ، یہ ساون کی دعوت ہے ٠
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