Sunday, December 16, 2018

जुंबिशें - - - मुस्कुराहटें 9


टक्कर 

था तबअ1 आज़ाद दहकाँ2, शेख़ ए बातिल3 का था वाज़4,
मैं उसे सौ ऊँट दूंगा, जो पढ़े सौ दिन नमाज़.
पा के लालच ऊँट का, दहकाँ वह राज़ी हो गया,
गोया अगले रोज़ से, पाजी नमाज़ी हो गया.

सौ दिनों के वाद आए शेख़ जब उसके यहाँ,
बोले बेटा पास मेरे ऊँट और घोडे कहाँ,
तुझको कर देना नमाज़ी, बस मुझे दरकार था,
राह में मस्जिद के बस, तू ही खटकता ख़ार था.
शेख़ की वादा ख़िलाफ़ी पर था उसका ये जवाब,
बे वज़ू5 के मैंने भी, टक्कर लगाए हैं जनाब.

1 स्वतंत्र स्वभाव 2 किसान 3 झूठा मोलवी 4 संबोधन 5 शरीर शुद्ध करना 

ٹکّر 

تھا طبع آزاد دہقان ، شیخ باطل کا تھا واعظ 
"میں اسے سو اونٹ دونگا ، جو پڑھے سو دن نماز"  
کر کے لالچ اونٹوں کا، وہ شخص راضی ہو گیا
گویہ اگلے دن سے، وہ پاجی نمازی ہو گیا ٠

  سو دنوں کے بعد آئے، شیخ جب اسکے یہاں 
بولے بیٹا پاس میرے، اونٹ اور گھوڑے کہاں ٠ 
تجھ کو کر دینا نمازی، بس مجھے درکار تھا 
راہ میں مسجد کے اک، تو ہی کھٹکتا خار تھا ٠ 
شیخ کی وعدہ خلافی پر، یہ اسکا تھا جواب  
بے وضو کے میں نے بھی ، ٹکّر لگاۓ ہیں جناب ٠ 

3 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १७ दिसम्बर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  2. वाह !!! आदरणीय मुनकीर जी |जैसे को तैसा सौ कोस से आ टकराता है |सादर आदाब|

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