Wednesday, December 5, 2018

जुंबिशें - - - क़तआत 37-39



37
प्रेत आत्माएं

जेब में कुछ ले के आए हो कि बस दर्शन किया,
मैं हूँ मर्यादा पुरूष, है मूल्य मेरा रूपया,
तुम ने ही जन्मा है हम को, नाम ज्ञानेश्वर दिया,
जी रहा हूँ ऐश से ऐ बेवकूफ़ो! शुक्रया.

پریت آتما ئیں 

جیب میں کُچھ لے کے آے ہو ، کہ بس درشن کیا 
میں ہوں مریادہ پُرش ، ہے مولیہ میرا روپیہ 
تُم نے ہی جنما ہے مُجھ کو ، نام گیانیشور دیا 
جی رہا ہوں عیش سے ، ائے بے وقوفو ! شکریہ ٠

38
प्रशंशनीय 

प्रदर्शनी प्रकृति की, नहीं पूजनीय है,
ये आपदा, विपदा भी, नहीं निंदनीय है,
भगवान् या शैतान नहीं होती है क़ुदरत,
जो कुछ मिला है उससे, वह प्रशंशनीय.

39 
जल परी 

शाम आई भर नहीं, ऊबने लगता है दिल,
जाने क्यों गुम सी ख़बर, ढूँढने लगता है दिल,
याद आती है उसे तब, खूबसूरत जल परी,
जाके पैमाने में फिर, डूबने लगता है दिल.

جل پری 

شام آئ بھر نہیں کہ اوبنے لگتا ہے دل 
جانے کیوں گم سی خبر کو ڈھونڈھنے لگتا ہے دل 
یاد آتی ہے اسے تب خوب صورت جل پری
جا کے پیمانے میں پھر ڈوبنے لگتا ہے دل٠  

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