Thursday, December 20, 2018

जुंबिशें - - - मुस्कुराहटें 13


दुआ ए ग़ैर 

या इलाही हर बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख.
सब मरें मेरी बला से, तू मुझे महफ़ूज़ रख.

है ये बेहतर कि पड़ोसी के यहाँ हों सरफ़रोश,
इन्क़लाबी हादसा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख.

न पुलिस वालों से मेरा, हो कभी साहब सलाम,
और हिजड़ों की अदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख.

सौ बरस तक मैं मरीज़ों की दवा करता रहूँ,
नातवानी व् क़ज़ा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख.

मेरा धंधा है कुछ ऐसा, नर्क है पर्यावरण,
देख, दैविक आपदा से, तू मुझे महफ़ूज़ रख.

हाय! ये मुंकिर है बैठा, राह में बन कर फ़क़ीर,
इस दहेरिए की दुआ से तू मुझे महफ़ूज़ रख.

دعائے غیر 

یا الہی ہر وبا سے، تو مجھے محفوظ رکھ  
سب مریں میری بلا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 

ہے یہ بہتر ہوں پڑوسی، کے یہاں ہی سرفروش  
انقلابی حادثوں سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 

نہ پولیس والوں سے، میرا ہو کبھی صاحب سلام  
اور ہجڑوں کی ادا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠

سو برس تک میں، مریضوں کو دو دیتا رہوں  
نا توانی و قضا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 

میرا دھندھا ہے کچھ ایسا ، نرک ہے پریا ورن  
دیکھ دیوک آپدا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠

ہاۓ ! یہ 'منکر' ہے بیٹھا ، راہ میں بن کر فقیر 
اس دہریہ کی دعا سے، تو مجھے محفوظ رکھ ٠ 

No comments:

Post a Comment