skip to main
|
skip to sidebar
जुंबिशें
Tuesday, January 13, 2009
जुरवा कहिस
जुरवा कहिस
भ्रमित हव्यो गयो, भ्रमण
करिके,
चार धाम हव्यो आएव ।
माँगा,
बाँटा
अउर
परोसा,
ज्ञान
सभै
लै
आएव।
जोड़ा गांठा धेला पैसा,
पनडन का दै आएव,
दइव रहा मन तुम्हरे बैठा,
ओह पर न पतियाएव।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
BlogCatalog
Subscribe To
Posts
Atom
Posts
Comments
Atom
Comments
Raftar
Followers
Blog Archive
►
2019
(145)
►
July
(11)
►
June
(24)
►
May
(20)
►
April
(25)
►
March
(24)
►
February
(17)
►
January
(24)
►
2018
(276)
►
December
(30)
►
November
(23)
►
October
(25)
►
September
(30)
►
August
(31)
►
July
(26)
►
June
(27)
►
May
(29)
►
April
(30)
►
March
(20)
►
February
(5)
►
2016
(146)
►
December
(7)
►
November
(11)
►
October
(8)
►
September
(13)
►
August
(15)
►
July
(14)
►
June
(13)
►
May
(12)
►
April
(13)
►
March
(13)
►
February
(13)
►
January
(14)
►
2015
(159)
►
December
(12)
►
November
(13)
►
October
(13)
►
September
(13)
►
August
(12)
►
July
(11)
►
June
(12)
►
May
(15)
►
April
(14)
►
March
(14)
►
February
(14)
►
January
(16)
►
2014
(169)
►
December
(15)
►
November
(20)
►
October
(14)
►
September
(11)
►
August
(13)
►
July
(13)
►
June
(14)
►
May
(12)
►
April
(14)
►
March
(15)
►
February
(14)
►
January
(14)
►
2013
(139)
►
December
(16)
►
November
(13)
►
October
(16)
►
September
(15)
►
August
(14)
►
July
(15)
►
June
(11)
►
May
(15)
►
April
(10)
►
March
(5)
►
February
(5)
►
January
(4)
►
2012
(58)
►
December
(4)
►
November
(2)
►
October
(5)
►
September
(7)
►
August
(6)
►
July
(4)
►
June
(7)
►
May
(4)
►
April
(5)
►
March
(4)
►
February
(4)
►
January
(6)
►
2011
(44)
►
December
(5)
►
November
(4)
►
October
(6)
►
September
(3)
►
August
(10)
►
July
(16)
▼
2009
(123)
►
June
(1)
►
May
(6)
►
April
(27)
►
March
(30)
►
February
(24)
▼
January
(35)
ग़ज़ल---इस ज़मीं के वास्ते मिल कर दुआ बन जाएँ हम
ग़ज़ल ------बेखटके जियो यार कि जीना है ज़िन्दगी
ग़ज़ल -------बहानो पर बहाना
ग़ज़ल-------चाहत है तेरी और तेरा इंतेखाब है
हिन्दी ग़ज़ल
रुबाइयाँ
ग़ज़ल ------साफ़ सुथरी सी काएनात मिले
ग़ज़ल___सब रवाँ मिर्रीख१ पर और आप का यह दरसे-दीन२
ग़ज़ल-----पोथी समाए भेजे में, तब कुछ यकीं भी हो
ग़ज़ल- - - शोर-किब्रियाई1 है और स्वर हरे ! हरे !!
गुलकारियां
आस्तिक और नास्तिक
गीत बनाम ख़लील जिब्रान
ग़ज़ल - - - आज़माने की बात करते हो,
ग़ज़ल - - - कौन आमादाए फ़ना होगा,
दोहे
मुस्कुराहटें
रुबाइयाँ
ग़ज़ल -----किताब सर से उतरा है कहे देता हूँ
हिदी ग़ज़ल
टीसें
मुस्कुराहटें
मुस्कुराहटें
नज़्म इल्म और लाइल्मी
छीछा लेदर
हिन्दी ग़ज़ल
बैटिंग ---- क्या बात है, अकेले ही 'मुंकिर' खड़े...
दोहे
उन्नति शरणम् गच्छामि
कमसिन रहनुमा
जुरवा कहिस
अच्छी बहू
कुदरत का मशविरा
महा जननी भवः
अकेलवा
►
2008
(37)
►
December
(37)
About Me
Munkir
हिन्दू के लिए मैं इक मुस्लिम ही हूँ आख़िर,
मुस्लिम ये समझते हैं गुमराह है काफिर,
इनसान भी होते हैं कुछ लोग जहाँ में,
गफलत में हैं ये दोनों ,समझाएगा 'मुंकिर'।
View my complete profile
No comments:
Post a Comment