Sunday, January 11, 2009

अकेलवा



अकेलवा

वह पेड़ देखो तनहा है, पौदों के दर्मियां,


खेतों का और जीवों का, जैसे हो पासबाँ ।




देता है राहगीरों को, मंजिल के रस्ते,


बादल को खीच लाता, खेतों के वास्ते।




चिडयों का घर दुवार है और ऐश गाह है,


गर्मी में मवेशी के लिए, इक पनाह है।




महकाता है फज़ाओं को, जब फूलता है यह,


फलता है, तो फलों को लिए, झूलता है यह।




जब तक जिएगा, सब के लिए आम देगा यह,


मरने के बाद भी, हमें आराम देगा यह।




इन्सां तो बस ज़मीं पे है, लेने के वास्ते,


यह पेड़ बस कि होते हैं, देने के वास्ते।





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