1
तुम भी अगर जो सोचो, विचारो तो सुनो,
तुम भी अगर जो सोचो, विचारो तो सुनो,
अबहाम१ के शैतान को, मारो तो सुनो,
कुछ लोग बनाते हैं, तुम्हें अपना सा,
ख़ुद अपना सा बनना है , गर यारो तो सुनो।
१-अन्धविश्वास
2
'मुंकिर' की ख़ुशी जन्नत, तौबा तौबा,
दोज़ख़ से डरे ग़ैरत, तौबा तौबा
बुत और ख़ुदाओं से ताल्लुक उसका,
लाहौल वला,क़ूवत, तौबा तौबा।
3
अल्लाह ने बनाया है, जहानों सामां,
मशकूक खिरद है, कहूं हाँ या नां,
इक बात यक़ीनन है, सुनो या न सुनो,
अल्लाह को बनाए है, क़यास इन्सां।
बहुत खूब...सारी की सारी रुबाईयाँ कमाल की हैं...लिखते रहें...और एहसासात के मुख्तलिफ रंग बिखेरते रहें...
ReplyDeleteनीरज
bahut aCha likha hai.
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