Sunday, January 18, 2009

रुबाइयाँ

1


तुम भी अगर जो सोचो, विचारो तो सुनो,



अबहाम के शैतान को, मारो तो सुनो,



कुछ लोग बनाते हैं, तुम्हें अपना सा,



ख़ुद अपना सा बनना है , गर यारो तो सुनो।




१-अन्धविश्वास


2


'मुंकिर' की ख़ुशी जन्नत, तौबा तौबा,



दोज़ख़ से डरे ग़ैरत, तौबा तौबा



बुत और ख़ुदाओं से ताल्लुक उसका,



लाहौल वला,क़ूवत, तौबा तौबा।


3


अल्लाह ने बनाया है, जहानों सामां,


मशकूक खिरद है, कहूं हाँ या नां,


इक बात यक़ीनन है, सुनो या न सुनो,


अल्लाह को बनाए है, क़यास इन्सां।












2 comments:

  1. बहुत खूब...सारी की सारी रुबाईयाँ कमाल की हैं...लिखते रहें...और एहसासात के मुख्तलिफ रंग बिखेरते रहें...
    नीरज

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