दोहे
अन्तर मन का टोक दे, सबसे बड़ा अज़ाब,
पाक साफ़ रोटी मिले , सब से बड़ा सवाब।
क़ुदरत ही है आइना, प्रकृति ही है माप,
तू भी उसका अंश है, तू भी उसकी नाप।
बा-मज़हब मुस्लिम रहे, हिदू रहे सधर्म,
अवसर दंगा का मिला, हत्या इन का धर्म।
गति से दुरगत होत है, गति से गत भर मान,
गति की लागत कुछ नहीं, गति के मूल महान।
काहे हंगामा करे, रोए ज़ारो-क़तार,
आंसू के दो बूँद बहुत हैं, पलक भिगोले यार।
'मुंकिर' कच्ची सोच है, ऊपर है इनआम,
इस में गारत कर लिया, नीचे का मय जाम।
हम में तुम में रह गई, न नफ़रत न चाह,
बेहतर है हो जाएँ अब, अलग अलग ही राह.
तुलसी बाबा की कथा, है धरा परवाह,
राम लखन के काल के, जैसे होएं गवाह।
बहुत अच्छे दोहे
ReplyDeleteबढिया दोहे हैं। बधाई।
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