ग़ज़ल
बहानो पर बहाना,
नया फिर इक फ़साना।
तवाज़ुन1 खो चुका हूँ,
न अब सर को उठाना।
तल्लुक़ मुन्क़ता2 हो,
नहीं मिलना मिलाना।
नहीं बर मिल सका था,
कि ऊंचा था घराना।
तहारत3 पर अडे हो,
न तुम हरगिज़ नहाना।
फ़लक़ पर जा बसे हो,
लिखा था आब दाना।
बहुत बारीक से हो,
ज़रा नज़दीक आना।
बहुत सीधा है 'मुंकिर',
न उसका दिल दुखाना।
१-संतुलन २-विच्छेद ३- पवित्रता
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