Thursday, January 22, 2009

ग़ज़ल - - - आज़माने की बात करते हो,


ग़ज़ल

आज़माने की बात करते हो,


दिल दुखाने की बात करते हो।




उसके फ़रमान में, सभी हल हैं,


किस फ़साने की बात करते हो।




मुझको फुर्सत मिली है रूठों से,


तुम मनाने की बात करते हो।




ऐसी मैली कुचैली गंगा में,


तुम नहाने की बात करते हो।




मेरी तक़दीर का लिखा सब है,


मार खाने की बात करते हो।




झुर्रियां हैं जहाँ कुंवारों पर ,


उस घराने की बात करते हो।




हाथ 'मुंकिर' दुआ में फैलाएं,


क़द घटाने की बात करते हो।

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

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  2. फरीदा खानम जी की गायी ग़ज़ल...." सारी दुनिया के रंजो ग़म देकर...मुस्कुराने की बात करते हो" याद आ गयी...बहुत अच्छा लिखा है आपने खास तौर पर ..ये शेर. वाह...वा...
    मेरी तकदीर का लिखा सब है,
    मार खाने की बात करते हो।
    हाथ 'मुंकिर' दुआ में फैलाएं,
    क़द घटाने की बात करते हो।
    नीरज

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