फ़क़ीर का ज़मीर
कम बख्त इक फ़कीर जो दफ्तर में आ घुसा,
बोला कि बेटा जीता रहे, लिख दे ख़त मेरा।
कागज़, कलम था हाथ में, बढ़ कर थमा दिया,
मैं ने भी कारे-खैर यह फ़ैसला किया।
कहने लगा कि जोरू को लिख दे मेरा सलाम,
लिख दे कि आज कल ज़रा ढीला है अपना काम।
माहे-रवाँ में लिख दे कि गर्दिश मेहरबां,
इस वजह सिर्फ़ साठ सौ रपया है कुल रवां।
अगले महीने काकाफ़ी बचत की उम्मीद है,
यह सुनके मेरा ज़ेहनी तवाज़ुन* बिगड़ गया,
हिन्दू की दीवाली है , मुसलमाँ की ईद है।
मैंने कहा कि लो ये, बुरे हाल लिख दिया ,
कहने लगा कि बेटा ! अब हो जाए कुछ भला .
मुंह से निकल गया कि, तेरी - - - - - - -- -- .
*-संतुलन
सही है..
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