Tuesday, January 20, 2009

मुस्कुराहटें


शोधक

मेरे सच का विरोध करते हैं,


ईश वाणी पे शोध करते हैं,


फिर वह लाते हैं, भाग्य का शोधन,


नास्तिक पर क्रोध करते हैं।


कालिख  

दाढ़ी है सन सफ़ैद  मोछा सफ़ैद है,


धोती निरी  सफ़ैद  कुरता सफ़ैद है,


नेता की टोपी जूता  मोज़ा सफ़ैद है,


देख सखी झूट कितना  सफ़ैद है


ढांचों के ढेंचू

दो सोलहवीं सदी के बहादुर थके हुए,


रक्तों की प्यास, खून की लज़्ज़त चखे हुए,


फ़िर से हुए हैं दस्तो-गरीबां यह सींगदार,


इतिहास की ग़लाज़तें सर पर रखे हुए।


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