शोधक
मेरे सच का विरोध करते हैं,
ईश वाणी पे शोध करते हैं,
फिर वह लाते हैं, भाग्य का शोधन,
नास्तिक पर क्रोध करते हैं।
कालिख
दाढ़ी है सन सफ़ैद औ मोछा सफ़ैद है,
धोती निरी सफ़ैद औ कुरता सफ़ैद है,
नेता की टोपी जूता औ मोज़ा सफ़ैद है,
देख सखी झूट औ कितना सफ़ैद है।
ढांचों के ढेंचू
दो सोलहवीं सदी के बहादुर थके हुए,
रक्तों की प्यास, खून की लज़्ज़त चखे हुए,
फ़िर से हुए हैं दस्तो-गरीबां यह सींगदार,
इतिहास की ग़लाज़तें सर पर रखे हुए।
बहुत सही!!
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