Wednesday, January 14, 2009

दोहे



दोहे

हिन्दू मुस्लिम लड़ मरे, मरे रज़ा और भीम,
सुलभ तमाशा बैठ के, देखें राम रहीम।


गांधी कलि-युग में हुए अजब हैं ये अवतार,
मार काट से दूर हैं, तीर है न तलवार।


घृणा मानव से करे, करे ईश से प्यार,
जैसे छत सुददृढ़ करै, खोद खोद दीवार।


कित जाऊं किस से मिलूँ, नगर-नगर सुनसान,
हिन्दू-मुस्लिम लाख हैं, एक नहीं इंसान।

जिन के पंडित मोलवी, घृणा पाठ पढाएं,
दीन धरम को छोड़ कर, वह मानवता अपनाएं।

कृषक! राजा तुम बनो, श्रमिक बने वज़ीर,
शाषक जाने भाइयो, बहु संख्यक की पीर।

सन्यासी सूफी बने, तो माटी पाथर खाए,
दूजी पीस पिसान को, काहे मांगन जाए।

माटी के तन पर तेरे, चढत है चादर पीर,
बिन चादर के सहित में, मानव तजें शरीर.


4 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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    आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  2. गांधी कलि-युग में हुए अजब हैं ये अवतार,
    मार काट से दूर हैं, तीर है न तलवार।
    " very well said"

    regards

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  3. घृणा मानव से करे, करे ईश से प्यार,
    जैसे छत सुददृढ़ करै, खोद खोद दीवार।
    कमाल का दोहा है ये आपका...बेमिसाल...वाह...
    नीरज

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  4. ब्लाग जगत में सुंदर लेखन के साथ आपका स्वागत है। जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई सच्चा साथी मिले, तो खुशी होती है। आपको भी इस विशाल सागर में आपकी भावनाओं को समझने वाले मित्र मिलेंगे। शुभकामनाएं।

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