Friday, January 30, 2009

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ

सद बुद्धि दे उसको तू , निराले भगवान्,


अपना ही किया करता है, कौदम नुक़सान,


नफ़रत है उसे, सारे मुसलमानों से,


पक्का हिन्दू है, वह कच्चा इंसान।


*
इंसान नहीफ़ों को, दवा देते है,


हैवान नहीफ़ों को, मिटा देते हैं,


हैं कौन समझदार, यहाँ दोनों में?


कुछ देर ठहर जाओ, बता देते हैं।


नहीफों =कमजोरों

*


कफ़िर है न मोमिन, न कोई शैतां है,


हर रूप में, हर रंग में, बस इन्सां है,


मज़हब ने, धर्म ने, किया छीछा लेदर,


बेहतर है मुअतक़िद * नहीं जो हैवाँ  है।


*आस्थावान




मज़हब है रहे गुम पे, दिशा हीन धरम हैं,


आपस में दया भाव नहीं है, न करम हैं,


तलवार, धनुष बाण उठाए दोनों,


मानव के लिए पीड़ा हैं, इंसान के ग़म हैं।

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