Monday, February 9, 2009

ग़ज़ल ---- पास आ जाएँ तो कुछ बात बने


ग़ज़ल

पास आ जाएँ तो कुछ बात बने,
समझें समझाएं तो कुछ बात बने।


मर्द से कम तो नहीं हैं लेकिन,
नाज़ दिखलाएं तो कुछ बात बनें।




जुज्व आदम! क़सम है हव्वा की,
बहकें, बह्काएँ तो कुछ बात बनें।


कुर्बते वस्ल1 की अज़मत समझें,
थोड़ा शर्माए, तो कुछ बात बनें।


ख़ाना दारी से हयातें हैं रवाँ,
घर को महकाएँ तो कुछ बात बनें।


तूफाँ रोकेंगे नारीना2 बाजू,
पीछे आ जाएँ तो कुछ बात बनें।


कौन रोकेगा तुम्हें अब 'मुंकिर',
हद जो पा जाएँ तो कुछ बात बनें।


१-मिलन की निकटता 2- मर्दाना 

2 comments:

  1. वाह जुनैद साहब, बहुत ख़ूब

    ---
    गुलाबी कोंपलें

    ReplyDelete
  2. bahut khoob junaid sahab

    मर्द से कम तो नहीं हैं लेकिन,
    नाज़ दिखलाएं तो कुछ बात बनें।

    bahut achche

    ReplyDelete