Sunday, February 22, 2009

ग़ज़ल - - - तारीकियों से पहले सरे शाम चाहिए


ग़ज़ल 

तारीकियों से पहले, सरे शाम चाहिए,
हर सुब्ह आगही से भरा, जाम चाहिए।

अब जशने हुर्रियत को फ़रामोश भी करो,
आजादी ऐ मुआश3 का पैग़ाम चाहिए।

आरी हथौडा छोड़ के, चाक़ू उठा लिया,
मेहनत कशों के हाथों को, कुछ काम चाहिए।

मैं भी दबाए बैठा था, मुद्दत से उसके ऐब,
उस को भी एक ज़िद थी, कि इलज़ाम चाहिये।

कानो में रूई डाल के, बैठा है वह अमीन,
कुछ शोर चाहिए, ज़रा कोहराम चाहिए।

जद्दो जेहाद में, जाने जवानी कहाँ गई,
"मुंकिर" को बाक़ियात में आराम चाहिए।


१- अधकार २ -स्वतंत्रता दिवस ३-जीविका



4 comments:

  1. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ...हमेशा की तरह...

    नीरज

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  2. WWAAAAHHHHH !!!
    Lajawaab Gazal !
    bahut bahut sundar...padhkar man mgdh ho gaya.

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  3. मैं भी दबाए बैठा था मुद्दत से उसके ऐब,

    उस को भी एक ज़िद थी कि इल्जाम चाहिये
    waah

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  4. बहुत उम्दा शेर हैं भाई. बहुत अच्छी ग़ज़ल.

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