शेखू ----
हर सच पे ही लाहौल1 पढ़ा करता है शेखू ,
हर झूट दलीलों से गढा करता है शेखू।
चट करता है बेवाओं , यतीमों की अमानत,
कुफ़्फ़ारह2 दुआओं से, अदा करता है शेखू ।
देता है सबक सब को, क़िनाअत 3की सब्र की ।
ख़ुद मुर्गे-मुसल्लम पे, चढा करता है शेखू ।
दो बीवी निंभाता है, शरीअत4 के तहत वह,
दोनों को फ़क़त निस्फ़,5 अता करता है शेखू ।
हर शाम मुरीदों को चराता है इल्मे-ताक़ ,
हर सुब्ह इल्मे-ख़ाक पढ़ा करता है शेखू ।
बख्शेगी इसे दुन्या, न बख्शेगा खुदा ही ,
'मुंकिर' ये ख़ताओं पे ख़ता करता है शेखू ।
१-धिक्कार २- प्रायश्चित ३-संतोष ४-धर्म-विधान ५-आधा
देता है सबक सब को, क़िनाअत 3की सब्र की ।
ReplyDeleteख़ुद मुर्गे-मुसल्लम पे, चढा करता है शेखू ।
क्या बात है जुनैद भाई. अल्लाह ताला आपको लम्बी उम्र बख्शें, दिल में ऐसा ही जज़्बा और कलम में ऐसी ही रोशनाई बनाए रखें. बाक़ी जिसे जो कहना हो कहता रहे, अपन को क्या! अपन तो वैसे भी कबीर की परम्परा के असली ध्वजवाहक हैं.
वाह भाई! क्या खूब लिखा है मियां!
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