Sunday, February 15, 2009

ग़ज़ल --- तालीम नई जेहल मिटाने पे तुली है



ग़ज़ल


तालीम नई जेहल1 मिटाने पे तुली है,
रूहानी वबा है, कि लुभाने पे तुली है।



बेदार शरीअत3 की ज़रूरत है ज़मीं को,
अफ्लाफ़4 की लोरी ये सुलाने पे तुली है।


जो तोड़ सकेगा, वो बनाएगा नया घर,
तरकीबे रफ़ू, उम्र बिताने पे तुली है।


किस शिद्दते जदीद की, दुन्या है उनके सर
बस ज़िन्दगी का जश्न, मनाने पे तुली है।


मैं इल्म की दौलत को, जुटाने पे तुला हूँ,
कीमत को मेरी भीड़, घटाने पे तुली है।


'मुंकिर' की तराजू पे, अनल हक5 की  धरा6 है,
"जुंबिश" है कि तस्बीह के दानों पे तुली है।


१-अंध विशवास २-आध्यात्मिक रोग ३-बेदार शरीअत=जगी हुई नियमावली ४-आकाश ५- मैं ख़ुदा हूँ 6- वह वजन जो तराजू का पासंग ठीक करता है



2 comments:

  1. क्या पारस ! सोना हो गया हूं तुम्हारे छुने भर से
    क्या प्राण ! जिवन्त हो गया मेरा मृत मन तुमसे
    क्या वायू ! की कल्पना-पत्र मेरे उडा ले जाते हो
    क्या झरना ! कलकल सी हँसी ,सुध बहा जाते हो
    क्या ओस ! की शीतल हो जाता है तन-मन तुमसे
    क्या संगीत ! की आते हो जब,नृत्यमय लगे सब
    bahut khub likha hai.

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  2. sir ji gazal to bahut hi aachi he par ek gujarish he ki yadi aalfaaja jara aasaan ho jese ki bashir saahab ki gazalo me hote he to samjhna aaur aasaana ho jaayega.

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