Saturday, February 7, 2009

ग़ज़ल ------- उसकी टेढी नज़र है


ग़ज़ल 


उसकी टेढी नज़र है,
सिर फिरी राह पर है।

तेरा पत्थर का दिल है,
मेरा शीशे का घर है।

मसख़रा आ गया है,
आबरू दाँव पर है।

हो गए हैं वो राज़ी ,
साथ में इक मगर है।
इल्मे-नव शेख़ समझें?

नए मानो का डर है।

निभावो या की जाओ ,
तुम्हीं पर मुनहसर है।

खेतियाँ बस कमल की,
बाग़ बानी में शर है।

दुश्मनों में घुसे वह,
उन में दिल है, जिगर है।

1 comment:

  1. छोटी बहर की सुन्दर गजल..

    मसखरा आ गया है,
    आबरू दाँव पर है।

    हो गए हैं वो राज़ी ,
    साथ में इक मगर है।

    इल्मे-नव शेख समझें?
    नए मानो का डर है।

    खेतियाँ बस कमल की,
    बागबानी में शर है।

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