Thursday, February 12, 2009

नज़्म ---अहसासात--- टुकड़े टुकड़े


ग़ज़ल 

तेज़ तर तीर की तरह तुम हो, नसलो! तुम को निशाना पाना है।

हम हैं बूढे कमान की मानिंद, बोलो कितना हमें झुकाना है?

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सुल्हा कर लूँ कि ऐ अदू तुझ से, मैं ने तदबीर ही बदल डाली,

तेरे जैसा ही क्यूं न बन जाऊं, अपने जैसा ही क्यों बनाना है।

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रोज़े रौशन को छीन लेती है, तू कि ऐ गर्दिशे ज़मीं हम से,

हम हैं सूरज के वंशजों से मगर, सर पे तारीक2 ये ख़ज़ाना है।

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कौडी कौडी बचा के रक्खा है, तिनका तिनका सजा के रक्खा है,

गीता संदेश कुछ इशारा कर, हम ने जोड़ा है किस को पाना है।

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बारी बारी से सोते जगते हैं, मेरे कांधों पे दो फ़रिश्ते ये,

हम सवारी गमो खुशी के हैं, रोते हँसते नजात पाना है।

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आप के पास भी अन्दाज़ा है, है हमारे भी पास तख़मीना,

आप ने माना एक वाहिद को, हम ने सत्तर करोर माना है।

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तू है क़ायम फ़क़त गवाही पर, सदियाँ गुज़रीं गवाह गुज़रे हुए,

हिचकिचाहट है इल्म नव3 को अब, तुझ को नुक्तों पे आज़माना है।

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तेरे एह्काम4 की करूँ तामील, फ़ायदे कुछ न चाहिए मुझ को,

आसमानों से झाँक कर तुझ को,सिर्फ़ इक बार मुस्कुराना है।


१-दुश्मन २-अँधेरा ३-नई शिक्षा ४-आज्ञा



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