Wednesday, March 6, 2019

जुंबिशें - - - ग़ज़ल है कैसी कशमकश ये


ग़ज़ल 

है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है,
यकसूई चाहता है, दो पाट में फँसा है.

दिल जोई तेरी की थी, बस यूँ ही वह हँसा है,
दिलबर समझ के जिस को, तू छूने में लसा है.

बकता है आसमाँ को, तक तक के मेरी सूरत,
पागल ने मेरा बातिन, किस ज़ोर से कसा है।

सच बोलने के ख़ातिर, दो आँख ही बहुत थीं,
अलफ़ाज़ चुभ रहे हैं, आवाज़ ने डंसा है.

कैसी है सीना कूबी? भूले नहीं हो अब तक,
बहरों का फ़ासला था, सदियों का हादसा है.

है वादियों में बस्ती, आबादी साहिलों पर,
देखो जुनून ए 'मुंकिर' गिर्दाब में बसा है.

*बातिन=अंतरात्मा *सीना कूबी=मातम *बहरों=समन्दरों *गिर्दाब=भंवर

ہے کیسی کشمکش یہ، یہ کیسا وسوسہ ہے؟ 
یکسوئی چاہتا ہے، دو پاٹوں میں پھنسا ہے٠ 

دل جوئی تیری کی تھی، بس یوں ہی وہ ہنسا ہے 
دلبر سمجھ کے جسکو، تو چھونے میں لسا ہے٠ 

تکتا ہے آسماں کو، تک تک کے میری صورت
پاگل نے میرا باطن، کس زور سے کسا ہے٠ 

سچ بولنے کی خاطر، دو آنکھین ہی بہت تھیں
الفاظ چُبھ رہے ہیں، آواز نے ڈنسا ہے٠ 

کیسی ہے سینہ کوبی، بھولے نہیں ہو اب تک؟
صدیوں کا حادثہ ہے، بحروں کا فاصلہ ہے٠ 

ہے وادیوں میں بستی، آبادی ساحلوں پر 
دیکھو جنونِ منکر، گرداب میں بسا ہے٠ 

No comments:

Post a Comment