ग़ज़ल
सब रवाँ मिर्रीख़१ पर, और आप का यह दर्स ए दीन२,
काफ़िरीन व् मुशरिकीन व् मुनकिरीन व् मोमनीन3.
रौशनी कुछ सर पे कर लो, ताकि परछाईं का क़द,
छोटा हो जाए, तुम्हें कुछ अपने क़द पर हो यक़ीन.
सीखते क्या हो, इबादत और शरीअत के उसूल,
है ख़ुदा तो चाहता होगा, क़तार ए ग़ाफ़िलीन.
तालिबाने अफ़ग़नी, और कार सेवक हैं अडे़,
वह बजाएं, अपनी ढपली, यह बजाएं अपनी बीन.
जाने कितने काम बाक़ी हैं, जहाँ में और भी,
थोड़ी सी फ़ुर्सत उसे, दे दे ख़याल ए नाज़नीन.
साहबे ईमाँ! तुम्हारे हक़ में है 'मुंकिर' की राह,
सैकड़ों सालों से, ग़ालिब हैं, ये तुम पर फ़ासिक़ीन4.
१-मंगल ग्रह पर २-धर्म-शास्त्र दर्शन ३-शास्त्र-शीर्षक ४-झूठे
،سب رواں مِرّیخ پر، اور آپ کا یہ درسِ دین
کافرین و مُشرکین و منکرین و مومنین٠
،روشنی کچھ سر پہ کر لو، تاکہ پرچھائیں کا قد
چھوٹا ہو جاۓ، تمہیں کچھ اپنے قد پر ہو یقین٠
،سیکھتے کیا ہوعبادت اورشریعت کے اُصول
.ہے خدا تو جاہتا ہوگا قطارِ غافلین
,طالبانِ افغنی اور کار سیوک ہیں اڑے
.یہ بجائیں اپنی ڈفلی، وہ بجائیں اپنی بین
،جانے کتنے کام باقی ہیں، جہاں میں اور بھی
.تھوڑی سی فرصت اسے دےدے ، خیالِ نازنین
،صاحبِ ایماں تمہارے حق میں ہے منکر کی راہ
سیکڑوں سالوں سے غالب ہیں یہ تم فاسقین٠
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