नज़्म
सुब्ह की पीड़ा
सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
लेटे-लेटे, मैं बैठ जाता हूँ ,
ध्यान, चिंतन के यत्न करता हूं,
ग़र्क़ होना भी फिर से सोना है,
कुछ भी पाना, न कुछ भी खोना है.
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सुब्ह फूटी है, नींद टूटी है,
सैर करने मैं चला जाता हूँ,
तन टहलता मन पे बोझ लिए,
याद आते हैं ख़ल्क़ के शैताँ,
रूहे-बद साथ साथ रहती है,
मेरी तन्हाइयाँ कचरती है.
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सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
चीख उठता है भोपू मस्जिद का,
चीख उठती है नवासी मेरी,
बस अभी चार माह की है वह,
यूँ नमाज़ी को वह जगाते है,
सोए मासूम को रुलाते हैं.
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सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
पत्नी टेलिविज़न को खोले है,
ढोल ताशे पे बैठा इक पंडा,
झूमता,गाता और रिझाता है,
आने वाले हमारे सतयुग को,
अपने कलि युग में लेके जाता है.
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सुब्ह फूटी है नींद टूटी है,
किसी मासूम का करूँ दर्शन,
वरना आ जायगा मिथक बूढा,
और पूछेगा ख़ैरियत मेरी,
घंटे घडयाल शोर कर देंगे,
रस्मी दावत अज़ान दे देगी.
صُبح کا درد
صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے
لیٹے لیٹے میں بیٹھ جاتا ہوں
دھیان چنتن کا یتن کرتا ہوں
جھپکی آتی ہے ، سر جھٹکتا ہوں
غرق ہونا بھی ، پھر سے سونا ہے
کُچھ بھی پانا ، نہ کُچھ بھی کھونا ہے٠
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صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے
سیر کرنے میں چلا جاتا ہوں
تن ٹہلتا ہے من کا بوجھ لئے
یاد آتے ہیں خلق کے شیطاں
روحِ بد ڈٹ کے ساتھ رہتی ہے
میری تنہائیاں کچرتی ہے ٠
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صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے
پتنی ٹیلی وزن کو کھولے ہے
بیٹھا ہارمونیم پہ اک پنڈا ،
جھومتا گاتا اور ریجھاتا ہے
آنے والے ہمارے ست یگ کو
اپنے کلی یگ میں لیکے جاتا ہے ٠
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صُبح پھوٹی ہے نیند ٹوٹی ہے
کسی معصوم کا درشن کر لوں
ورنہ آ جائگی بوڑھی متھیا
اور پوچھیگی خیریت میری
گھنٹے گھڑیال ، شور کر دینگے
رسمی دعوت ، اذان دیدیگی ٠
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