Wednesday, March 20, 2019

जुंबिशें - - - क़तआत

क़तआत
मिठ्ठू मियाँ 
पढ़ते हो झुकाए हुए सर क़िस्सा कहानी,
अंजान जुबां में है लिखी देव की बानी ,
यूँ लूट के ले जाते हो अंबार ए सवाब ,
दर पे हैं अज़ाबों के ये हालात जहानी .

مٹّھومیاں 
پڑھتے ہو جُھکاۓ ہوئے سر ، قصّہ کہانی 
انجان زباں میں ہے لکھی ، دیو کی بانی 
یوں لوٹ کے پا جاتے ہو ، انبار ثواب 
در پہ ہیں عذابوں کے ، یہ حالتِ جہانی ٠ 

शायरी 
फ़िक्र से ख़ारिज अगर है शायरी, बे रूह है,
फ़न से है आरास्ता, मानी मगर मकरूह है,
हम्द व्  नात व्  मरसिया, लाफ़िकरी हैं, फ़िकरें नहीं,
फ़िक्र ए नव की बारयाबी, शायरी की रूह है. 
फ़िक्र =चितन ,फ़न= कला/हम्द,नात, मरसिया=धर्म गान , बारयाबी=प्राप्ति 

شاعری 
فکر سے خارج اگر ہے شاعری، بے روح ہے، 
فن سے ہے آراستہ، مانا مگر مکروہ ہے، 
حمد و نعتیں ، مرثیہ، لافکری ہیں فکریں نہیں، 
فکرِ نو کی باریابی، شاعری کی روح ہے٠ 


बेचारे 
तोतों की ज़िन्दगी थी, शिकरों में कट गई,
अनदेखी आक़बत के, फ़िकरों में कट गई,
जो अहले होश थे, वो सभी लेके उड़ गए,
इनकी हयात दीन  के ज़िक्रों में कट गई.
आक़बत=परलोक 
بے چارے 

 طوطوں کی زندگی تھی ، شکروں میں کٹ گئی 
اندیکھی عاقبت کے ، فکروں میں کٹ گئی 
جو اہل ہوش تھے ، وہ مزہ لے کے اڑ گئے 
انکی حیات دین کےزکروں میں کٹ گئی ٠ 

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